अखिलेश दुबे गैंग से जुड़े 6 अफसरों को नोटिस:3 CO, एक इंस्पेक्टर और 2 KDA कर्मी शामिल, सिंडीकेट से जुड़कर कारोबार कर रहे थे

कानपुर में जेल भेजे गए अधिवक्ता अखिलेश दुबे की जांच कर रही एसआईटी ने अब चार पुलिस अफसरों समेत दो केडीए के कर्मचारियों को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा है। यह सभी कानपुर में तैनात रहे और अखिलेश दुबे से इनका आर्थिक लेनदेन और उनके अपराध में संलिप्तता के साक्ष्य मिले हैं। इन सभी के बयान दर्ज होने के बाद आगे की कार्रवाई तय होगी। SIT ने जारी किया नोटिस, अब होगी पूछताछ
कानपुर पुलिस कमिश्नरेट के मीडिया प्रभारी एडीसीपी राजेश पांडेय ने बताया- एसआईटी ने पूछताछ के लिए शुक्रवार को छह सरकारी कर्मचारियों को नोटिस जारी किया है। इसमें कानपुर में तैनात रहे सीओ संतोष सिंह (वर्तमान में हरदोई में तैनात), उन्नाव से हाल ही में मैनपुरी ट्रांसफर हुए एसीपी ऋषिकांत शुक्ला, लखनऊ में तैनात एसीपी विकास पांडेय, कानपुर में तैनात इंस्पेक्टर आशीष द्विवेदी, केडीए में तैनात रहे केडीए वीसी महेंद्र कुमार सोलंकी (एमके सोलंकी) ये मौजूदा समय में बस्ती में तैनात हैं। इसके साथ ही केडीए वीसी के पीआरओ कश्यपकांत दुबे को एसआईटी ने पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया है। सूत्रों की मानें तो ये सभी सरकारी कर्मचारी होने के बाद भी अखिलेश दुबे के साथ मिलकर जमीनों के कारोबार कर रहे थे। इतना ही नहीं बकायदा कंपनी बनाकर अपने परिवारीजनों के सदस्यों के नाम पर कारोबार कर रहे थे। एक कंपनी सामने आई है, जिसमें सौ करोड़ से भी ज्यादा का टर्नओवर है। इसी आधार पर इन सभी को नोटिस देकर पूछताछ के लिए बुलाया गया है। अब जानिए अखिलेश दुबे के बारे में एक ऐसा वकील, जिसने कभी कोर्ट में नहीं की बहस
अखिलेश दुबे एक ऐसा वकील है, जिसने कभी कोर्ट में खड़े होकर किसी केस में बहस नहीं की। उसके दरबार में खुद की कोर्ट लगती थी और दुबे ही फैसला सुनाता था। वह सिर्फ अपने दफ्तर में बैठकर पुलिस अफसरों के लिए उनकी जांचों की लिखा-पढ़ी करता था। बड़े-बड़े केस की लिखा-पढ़ी दुबे के दफ्तर में होती थी। इसी का फायदा उठाकर वह लोगों के नाम निकालने और जोड़ने का काम करता था। इसी डर की वजह से बीते 3 दशक से उसकी कानपुर में बादशाहत कायम थी। कोई उससे मोर्चा लेने की स्थिति में नहीं था। काले कारनामों को छिपाने के लिए शुरू किया था न्यूज चैनल
अखिलेश दुबे ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए सबसे पहले एक न्यूज चैनल शुरू किया था। इसके बाद वकीलों का सिंडीकेट बनाया। फिर इसमें कई पुलिस अफसरों को शामिल किया। कानपुर में स्कूल, गेस्ट हाउस, शॉपिंग मॉल और जमीनों के कारोबार में बड़े-बड़े बिल्डर उसके साथ जुड़ते चले गए। दुबे का सिंडीकेट इतना मजबूत था कि उसकी बिल्डिंग पर केडीए से लेकर कोई भी विभाग आपत्ति नहीं करता था। कमिश्नर का दफ्तर हो या डीएम ऑफिस, केडीए, नगर निगम और पुलिस महकमे से लेकर हर विभाग में उसका मजबूत सिंडीकेट फैला था। उसके एक आदेश पर बड़े से बड़ा काम हो जाता था। मेरठ से भागकर आया था कानपुर
अखिलेश दुबे मूलरूप से कन्नौज के गुरसहायगंज का रहने वाला है। उसके पिता सेंट्रल एक्साइज में कॉन्स्टेबल थे। मेरठ में तैनात थे। वहां रहने के दौरान अखिलेश दुबे की सुनील भाटी गैंग से भिड़ंत हो गई। इसके बाद वह भागकर कानपुर आ गया। बात 1985 की है। अखिलेश दुबे किदवई नगर में किराए का कमरा लेकर रहने लगा। दीप सिनेमा के बाहर साइकिल स्टैंड चलाता था। इस दौरान मादक पदार्थ तस्कर मिश्री जायसवाल की पुड़िया (मादक पदार्थ) बेचने लगा। धीरे-धीरे आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया। ——————————– ये खबर भी पढ़िए- वकील अखिलेश दुबे ने मेरी गंदी किताबें छपवाकर बंटवाईं, मंडप से उठवाने की कोशिश की मुझे शादी के मंडप से उठवाने का प्रयास किया। मेरे खिलाफ अश्लील किताबें छपवा कर बंटवा दीं। झूठी शिकायत की, मेरे होटल खरीदने के बाद वो रंगदारी के चक्कर में मेरे पीछे पड़ गया था। औरतें अमूमन क्या करती हैं या तो आत्महत्या कर लेती हैं या तो सरेंडर। दो ही विकल्प हैं, लेकिन जब से भाजपा सरकार आई है, तब से कानून व्यवस्था बेहतर हुई है। यह कहना है कानपुर की प्रज्ञा त्रिवेदी का। उन्होंने बताया कि एक होटल मालकिन होने के बाद भी आखिर अखिलेश दुबे ने किस कदर उनकी जिंदगी को नरक बना दिया था। पढ़ें पूरी खबर