बसपा सुप्रीमो मायावती ने 9 साल बाद 9 अक्टूबर को शक्ति प्रदर्शन करने वाली हैं। इसी दिन कांशीराम की 19वीं पुण्यतिथि (महापरिनिर्वाण दिवस) है। बसपा का खुद को साबित करने का पुराना हथियार रैली है। जब भी पार्टी को अपना दमखम दिखाना होता है, वह बड़े स्तर पर रैलियां करती है और भीड़ इकट्ठा करती है। इस बड़ी रैली में 5 लाख कार्यकर्ताओं को जुटाने का टारगेट रखा गया है। कार्यक्रम में खुद मायावती भी मौजूद रहेंगी। इसको लेकर उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद के साथ पूरा रोडमैप तैयार कर लिया है। 9 साल बाद इतने बड़े स्तर पर मायावती के रैली करने को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा शुरू हो गई है। ऐसे में सवाल है कि आखिर बसपा का प्लान क्या है? क्या ये 2007 की यादें ताजा करने की कोशिश है? क्या आकाश आनंद की वापसी के बाद की नई रणनीति है? क्या कांशीराम की नीतियों को बसपा लागू करने वाली है? क्या बुआ-भतीजे की जोड़ी कमाल दिखा पाएगी? एक्सपर्ट क्या मानते हैं? पढ़िए पूरी रिपोर्ट सवाल: बसपा का प्लान क्या है?
जवाब: बसपा 2027 के विधानसभा चुनाव में 2007 वाला करिश्मा दोहराने की कोशिश में जुटी है। इसी कड़ी में मायावती ने कांशीराम की पुण्यतिथि पर लखनऊ स्थित कांशीराम स्मारक में विशाल जनसभा करने का ऐलान किया है। राजनीतिक हलकों में चर्चा हो रही है कि इस आयोजन से मायावती न सिर्फ कांशीराम की स्मृति को श्रद्धांजलि देंगी, बल्कि आगामी 2027 विधानसभा चुनाव और पंचायत चुनावों को लेकर भी कार्यकर्ताओं को दिशा देंगी। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार का कहना है- बहुजन समाज पार्टी के लिए यह रैली एक परीक्षा जैसी होगी। अगर पार्टी इस आयोजन में बड़ी संख्या में लोग जुटाने में कामयाब रहती है, तो इससे 2027 के विधानसभा चुनाव में उसकी संभावनाएं मजबूत हो सकती हैं। हालांकि, लगातार घटते वोट प्रतिशत और संगठनात्मक कमजोरियों के बीच मायावती के लिए यह चुनौती आसान नहीं होगी। कांशीराम की पुण्यतिथि पर होने वाली यह रैली BSP के लिए केवल एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम नहीं, बल्कि संगठन को फिर से मजबूत करने और समर्थकों में नया जोश भरने का मौका भी है। अभी से शुरू रैली की तैयारियां
बसपा सुप्रीमो मायावती इससे पहले भी कई रैलियां कर चुकी हैं। कभी अपने जन्मदिन पर, तो कभी काशीराम की पुण्यतिथि पर। लेकिन, 9 साल हो रही ये रैली एक तरह से यूपी में वापस लौटने की तैयारी दिख रही है। क्योंकि बसपा शुरू से ही रैलियों और भीड़ के जरिए अपना दमखम दिखाती रही है। रैली की तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं। इसके लिए मायावती लगातार बैठकें कर रहीं हैं। 7 सितंबर को 3 बैठकें हुई। फिर 9 सितंबर को पार्टी की कोर टीम की बैठक हुई। साथ ही 10 सितंबर को पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ बैठक की गई। रैली में शामिल होने के लिए 8 अक्टूबर को ही बाहरी समर्थक आ जाएंगे। जिनके खाने-रहने की व्यवस्था रमाबाई स्मारक स्थल में की जाएगी। वहीं, 9 अक्टूबर को आस-पास के समर्थक आएंगे। सवाल: क्या बीएसपी कांशीराम की नीतियां भी लागू करेगी?
जवाब : बसपा का जन्म ही कांशीराम की नीतियों और विचारों पर हुआ था। अब यह सवाल चुनावी राजनीति में अहम हो जाता है कि क्या मायावती फिर से कांशीराम की नीतियों पर लौटेंगी या नहीं? 2005 में मायावती ने कांशीराम की नीतियों को बदल दिया था। बहुजन हिताय की जगह सर्वजन हिताय कर दिया था। कांशीराम की नीतियों को भूलकर अपनी नीतियां बनाने लगी थीं। हालांकि, पॉलिटिकल एक्सपर्ट रतन मणि लाल इस चीज को नहीं मानते। उनका कहना है कि नीतियां वही हैं, बस चीजें थोड़ी बदल गई हैं। लेकिन, ये कहना कि नीतियां लागू करेंगी या नहीं, ये थोड़ा सार्थक नहीं होगा। सवाल: आकाश आनंद की पार्टी में एंट्री-एग्जिट से क्या सवाल खड़े हुए?
जवाब: बसपा की राजनीति में मायावती के भतीजे आकाश आनंद की एंट्री और एग्जिट ने बीते कुछ सालों में सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं। कभी पार्टी के उत्तराधिकारी के तौर पर पेश किए गए आकाश अब सक्रिय राजनीति से पूरी तरह किनारे कर दिए गए हैं। हालांकि माफी मिल गई है, लेकिन सक्रिय भूमिका में नहीं हैं। दरअसल, आकाश आनंद, मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। 10 दिसंबर, 2023 को मायावती ने आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित किया था। पार्टी की विरासत और राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने भतीजे पर विश्वास जताया था। हालांकि, 7 मई, 2024 को आकाश की गलतबयानी की वजह से मायावती ने उनसे सभी जिम्मेदारियां छीन ली थीं। साथ ही नेशनल कोऑर्डिनेटर पद से भी हटा दिया था। मायावती ने कहा था कि आकाश अभी अपरिपक्व (इम्मेच्योर) हैं। 23 जून, 2024 को उन्होंने भतीजे आकाश को फिर से अपना उत्तराधिकारी बनाया और नेशनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी भी सौंप दी थी। हालांकि, एक धड़ा मानता है कि BSP को नई पीढ़ी का चेहरा चाहिए था, जिसे बीच में ही रोक दिया गया। जबकि, दूसरा धड़ा कहता है कि आकाश कार्यकर्ताओं और जनता से सीधा जुड़ाव नहीं बना पाए। इसी वजह से उन्हें हटाया गया। सवाल: अशोक सिद्दार्थ की एंट्री एग्जिट के क्या मायने हैं?
जवाब: अशोक सिद्धार्थ पहले वामसेफ से जुड़े और फिर बसपा में सक्रिय हुए। पार्टी में उन्होंने जिलाध्यक्ष से लेकर मंडल अध्यक्ष तक कई जिम्मेदारियां निभाईं। 2009 में बसपा ने उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया। 2016 से 2022 तक वे राज्यसभा सांसद रहे। उनकी पत्नी भी बसपा सरकार में महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं। मायावती ने सतीश चंद्र मिश्र के साथ अशोक सिद्धार्थ को भी राज्यसभा भेजा था। 12 फरवरी, 2025 को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में मायावती ने उन्हें बसपा से निकाल दिया। हालांकि इन्होंने माफी मांग ली और वापसी हो गई। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में लगातार कमजोर हो रहे संगठन और दलित वोट बैंक को बचाने के लिए मायावती ने यह बड़ा कदम उठाया। सवाल: क्या BSP फिर से 2007 वाला करिश्मा दोहराने की तैयारी में है?
जवाब: 2007 में बसपा ने यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। यह मायावती के नेतृत्व में बने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का नतीजा था। उस साल बसपा ने प्रदेश में राजनीतिक परिदृश्य में अपनी मजबूत स्थिति साबित की थी। अब पार्टी उसी ताकत को फिर से जगाने की कोशिश कर रही है। यह रैली 2009 में मायावती के जन्मदिन और 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले की विशाल रैलियों जैसी होगी। बसपा इस रैली के जरिए दलित-ब्राह्मण गठजोड़ को फिर से सक्रिय करना चाहती है। आगामी 2026 के पंचायत चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए कार्यकर्ताओं और समर्थकों को जोश और ऊर्जा देना चाहती है। कमजोर पड़ते संगठन और घटते दलित वोट बैंक को मजबूत करने का संदेश देना चाहती है। यूपी की राजनीति में जाटव समुदाय हमेशा बसपा के लिए एक अहम वोट बैंक रहा है। जाटव यूपी की सबसे बड़ी 11% कम्युनिटी है। पूरे राज्य में अनुसूचित जातियों की कुल आबादी लगभग 21% है। यही कारण है कि बसपा हमेशा जाटव और दलित वोटों पर केंद्रित रणनीति अपनाती रही है। जाटव वोट बैंक को मजबूत करना बसपा की चुनावी जीत की कुंजी है। 2027 विधानसभा चुनाव को देखते हुए बसपा जाटव वोटों को फिर से सक्रिय करने के लिए कांशीराम पुण्यतिथि पर भव्य रैली और संगठनात्मक बैठकों का सहारा ले रही है। सवाल: BSP का 2007 के बाद ग्राफ कैसे कमजोर हुआ?
जवाब: 2007 में बसपा ने यूपी में पूर्ण बहुमत हासिल किया था, लेकिन उसके बाद पार्टी का ग्राफ धीरे-धीरे गिरता गया। विशेषज्ञ इसके कई कारण मानते हैं। इसमें दलित वोटों का बंटवारा और संगठन का कमजोर होना शामिल है। 2007 के बाद पार्टी ने ग्राउंड लेवल संगठन को मजबूत नहीं रखा। बूथ स्तर पर कार्यकर्ता कमजोर पड़े और पार्टी की पहुंच प्रभावित हुई। एक्सपर्ट बताते हैं, बसपा ने नई पीढ़ी के नेताओं को मौका नहीं दिया और आंतरिक गुटबाजी ने संगठन को हिला दिया। विरोधी दलों ने रणनीति बदलकर बसपा के इस आधार को चुनौती दी। इसी वजह से ग्राफ नीचे गिरता गया। बसपा को 2022 के विधानसभा चुनाव में केवल एक सीट मिली थी। वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी से एक भी सीट नहीं मिली। लगातार हार ने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल गिरा दिया। सवाल: 2012 के बाद कितने नेताओं ने बसपा छोड़ी?
जवाब: 2007 में 206 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली मायावती ने नकुल दुबे, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, लालजी वर्मा, स्व. रामवीर उपाध्याय, ठाकुर जयवीर सिंह, सुधीर गोयल, स्वामी प्रसाद मौर्य, वेदराम भाटी, चौधरी लक्ष्मी नारायण, राकेश धर त्रिपाठी, बाबू सिंह कुशवाहा, फागू चौहान, दद्दू प्रसाद, राम प्रसाद चौधरी, धर्म सिंह सैनी, राम अचल राजभर, सुखदेव राजभर और इंद्रजीत सरोज को बड़े पोर्टफोलियो दिए थे। इनमें से कई नेताओं ने कोई दूसरी पार्टी जॉइन कर ली और किसी ने अपनी खुद की पार्टी बना ली। नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कांग्रेस जॉइन कर ली। ठाकुर जयवीर सिंह, वेदराम भाटी, स्वामी प्रसाद मौर्य, चौधरी लक्ष्मी नारायण, फागू चौहान और धर्म सिंह सैनी ने भारतीय जनता पार्टी जॉइन कर ली थी। सवाल: किन परिस्थितियों में मायावती सीएम बनीं?
जवाब: मायावती 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। 1995- मायावती को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भाजपा ने समर्थन दिया। यह पहली बार था कि कोई दलित महिला मुख्यमंत्री बनी। 1997- भाजपा के साथ मायावती ने दोबारा सरकार बनाई। 2002- विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। भाजपा के साथ फिर शपथ ली। 2007- मायावती ने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ की रणनीति अपनाई, जिससे सभी वर्गों के वोट एकजुट हुए। विधानसभा चुनाव में बसपा ने पूर्ण बहुमत हासिल किया। बसपा के इतिहास में पहली बार यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार थी। ———————— ये खबर भी पढ़ें… शाह ने सपा सांसद को बर्थडे विश किया, उनका इंटरव्यू, बोले- जब रेड पड़ी थी, तभी मैं उनकी वाशिंग मशीन में धुल जाता ‘जब मेरे यहां इनकम टैक्स का छापा पड़ा था, तभी भाजपा में चला जाता और वाशिंग मशीन में धुल गया होता। जिसे आज भी झेल रहा हूं। मैं समाजवादी था, हूं और रहूंगा।’ दैनिक भास्कर के भाजपा में शामिल होने की संभावना पर किए गए सवाल पर यह बात सपा के राष्ट्रीय सचिव, राष्ट्रीय प्रवक्ता और घोसी से सांसद राजीव राय ने कही। राजीव राय के जन्मदिन पर गृहमंत्री अमित शाह ने फोन करके बधाई दी थी। तभी से उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। अमित शाह से बातचीत का वीडियो कैसे बाहर आया? उम्र 53 या 56 साल? क्या चुनाव लड़ने के लिए सपा सांसद ने उम्र ज्यादा लिखाई? ऐसे ही सवालों के जवाब सपा सांसद राजीव राय से दिए। पढ़िए पूरी खबर…
जवाब: बसपा 2027 के विधानसभा चुनाव में 2007 वाला करिश्मा दोहराने की कोशिश में जुटी है। इसी कड़ी में मायावती ने कांशीराम की पुण्यतिथि पर लखनऊ स्थित कांशीराम स्मारक में विशाल जनसभा करने का ऐलान किया है। राजनीतिक हलकों में चर्चा हो रही है कि इस आयोजन से मायावती न सिर्फ कांशीराम की स्मृति को श्रद्धांजलि देंगी, बल्कि आगामी 2027 विधानसभा चुनाव और पंचायत चुनावों को लेकर भी कार्यकर्ताओं को दिशा देंगी। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार का कहना है- बहुजन समाज पार्टी के लिए यह रैली एक परीक्षा जैसी होगी। अगर पार्टी इस आयोजन में बड़ी संख्या में लोग जुटाने में कामयाब रहती है, तो इससे 2027 के विधानसभा चुनाव में उसकी संभावनाएं मजबूत हो सकती हैं। हालांकि, लगातार घटते वोट प्रतिशत और संगठनात्मक कमजोरियों के बीच मायावती के लिए यह चुनौती आसान नहीं होगी। कांशीराम की पुण्यतिथि पर होने वाली यह रैली BSP के लिए केवल एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम नहीं, बल्कि संगठन को फिर से मजबूत करने और समर्थकों में नया जोश भरने का मौका भी है। अभी से शुरू रैली की तैयारियां
बसपा सुप्रीमो मायावती इससे पहले भी कई रैलियां कर चुकी हैं। कभी अपने जन्मदिन पर, तो कभी काशीराम की पुण्यतिथि पर। लेकिन, 9 साल हो रही ये रैली एक तरह से यूपी में वापस लौटने की तैयारी दिख रही है। क्योंकि बसपा शुरू से ही रैलियों और भीड़ के जरिए अपना दमखम दिखाती रही है। रैली की तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं। इसके लिए मायावती लगातार बैठकें कर रहीं हैं। 7 सितंबर को 3 बैठकें हुई। फिर 9 सितंबर को पार्टी की कोर टीम की बैठक हुई। साथ ही 10 सितंबर को पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ बैठक की गई। रैली में शामिल होने के लिए 8 अक्टूबर को ही बाहरी समर्थक आ जाएंगे। जिनके खाने-रहने की व्यवस्था रमाबाई स्मारक स्थल में की जाएगी। वहीं, 9 अक्टूबर को आस-पास के समर्थक आएंगे। सवाल: क्या बीएसपी कांशीराम की नीतियां भी लागू करेगी?
जवाब : बसपा का जन्म ही कांशीराम की नीतियों और विचारों पर हुआ था। अब यह सवाल चुनावी राजनीति में अहम हो जाता है कि क्या मायावती फिर से कांशीराम की नीतियों पर लौटेंगी या नहीं? 2005 में मायावती ने कांशीराम की नीतियों को बदल दिया था। बहुजन हिताय की जगह सर्वजन हिताय कर दिया था। कांशीराम की नीतियों को भूलकर अपनी नीतियां बनाने लगी थीं। हालांकि, पॉलिटिकल एक्सपर्ट रतन मणि लाल इस चीज को नहीं मानते। उनका कहना है कि नीतियां वही हैं, बस चीजें थोड़ी बदल गई हैं। लेकिन, ये कहना कि नीतियां लागू करेंगी या नहीं, ये थोड़ा सार्थक नहीं होगा। सवाल: आकाश आनंद की पार्टी में एंट्री-एग्जिट से क्या सवाल खड़े हुए?
जवाब: बसपा की राजनीति में मायावती के भतीजे आकाश आनंद की एंट्री और एग्जिट ने बीते कुछ सालों में सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं। कभी पार्टी के उत्तराधिकारी के तौर पर पेश किए गए आकाश अब सक्रिय राजनीति से पूरी तरह किनारे कर दिए गए हैं। हालांकि माफी मिल गई है, लेकिन सक्रिय भूमिका में नहीं हैं। दरअसल, आकाश आनंद, मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। 10 दिसंबर, 2023 को मायावती ने आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित किया था। पार्टी की विरासत और राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने भतीजे पर विश्वास जताया था। हालांकि, 7 मई, 2024 को आकाश की गलतबयानी की वजह से मायावती ने उनसे सभी जिम्मेदारियां छीन ली थीं। साथ ही नेशनल कोऑर्डिनेटर पद से भी हटा दिया था। मायावती ने कहा था कि आकाश अभी अपरिपक्व (इम्मेच्योर) हैं। 23 जून, 2024 को उन्होंने भतीजे आकाश को फिर से अपना उत्तराधिकारी बनाया और नेशनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी भी सौंप दी थी। हालांकि, एक धड़ा मानता है कि BSP को नई पीढ़ी का चेहरा चाहिए था, जिसे बीच में ही रोक दिया गया। जबकि, दूसरा धड़ा कहता है कि आकाश कार्यकर्ताओं और जनता से सीधा जुड़ाव नहीं बना पाए। इसी वजह से उन्हें हटाया गया। सवाल: अशोक सिद्दार्थ की एंट्री एग्जिट के क्या मायने हैं?
जवाब: अशोक सिद्धार्थ पहले वामसेफ से जुड़े और फिर बसपा में सक्रिय हुए। पार्टी में उन्होंने जिलाध्यक्ष से लेकर मंडल अध्यक्ष तक कई जिम्मेदारियां निभाईं। 2009 में बसपा ने उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया। 2016 से 2022 तक वे राज्यसभा सांसद रहे। उनकी पत्नी भी बसपा सरकार में महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं। मायावती ने सतीश चंद्र मिश्र के साथ अशोक सिद्धार्थ को भी राज्यसभा भेजा था। 12 फरवरी, 2025 को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में मायावती ने उन्हें बसपा से निकाल दिया। हालांकि इन्होंने माफी मांग ली और वापसी हो गई। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में लगातार कमजोर हो रहे संगठन और दलित वोट बैंक को बचाने के लिए मायावती ने यह बड़ा कदम उठाया। सवाल: क्या BSP फिर से 2007 वाला करिश्मा दोहराने की तैयारी में है?
जवाब: 2007 में बसपा ने यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। यह मायावती के नेतृत्व में बने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का नतीजा था। उस साल बसपा ने प्रदेश में राजनीतिक परिदृश्य में अपनी मजबूत स्थिति साबित की थी। अब पार्टी उसी ताकत को फिर से जगाने की कोशिश कर रही है। यह रैली 2009 में मायावती के जन्मदिन और 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले की विशाल रैलियों जैसी होगी। बसपा इस रैली के जरिए दलित-ब्राह्मण गठजोड़ को फिर से सक्रिय करना चाहती है। आगामी 2026 के पंचायत चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए कार्यकर्ताओं और समर्थकों को जोश और ऊर्जा देना चाहती है। कमजोर पड़ते संगठन और घटते दलित वोट बैंक को मजबूत करने का संदेश देना चाहती है। यूपी की राजनीति में जाटव समुदाय हमेशा बसपा के लिए एक अहम वोट बैंक रहा है। जाटव यूपी की सबसे बड़ी 11% कम्युनिटी है। पूरे राज्य में अनुसूचित जातियों की कुल आबादी लगभग 21% है। यही कारण है कि बसपा हमेशा जाटव और दलित वोटों पर केंद्रित रणनीति अपनाती रही है। जाटव वोट बैंक को मजबूत करना बसपा की चुनावी जीत की कुंजी है। 2027 विधानसभा चुनाव को देखते हुए बसपा जाटव वोटों को फिर से सक्रिय करने के लिए कांशीराम पुण्यतिथि पर भव्य रैली और संगठनात्मक बैठकों का सहारा ले रही है। सवाल: BSP का 2007 के बाद ग्राफ कैसे कमजोर हुआ?
जवाब: 2007 में बसपा ने यूपी में पूर्ण बहुमत हासिल किया था, लेकिन उसके बाद पार्टी का ग्राफ धीरे-धीरे गिरता गया। विशेषज्ञ इसके कई कारण मानते हैं। इसमें दलित वोटों का बंटवारा और संगठन का कमजोर होना शामिल है। 2007 के बाद पार्टी ने ग्राउंड लेवल संगठन को मजबूत नहीं रखा। बूथ स्तर पर कार्यकर्ता कमजोर पड़े और पार्टी की पहुंच प्रभावित हुई। एक्सपर्ट बताते हैं, बसपा ने नई पीढ़ी के नेताओं को मौका नहीं दिया और आंतरिक गुटबाजी ने संगठन को हिला दिया। विरोधी दलों ने रणनीति बदलकर बसपा के इस आधार को चुनौती दी। इसी वजह से ग्राफ नीचे गिरता गया। बसपा को 2022 के विधानसभा चुनाव में केवल एक सीट मिली थी। वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी से एक भी सीट नहीं मिली। लगातार हार ने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल गिरा दिया। सवाल: 2012 के बाद कितने नेताओं ने बसपा छोड़ी?
जवाब: 2007 में 206 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली मायावती ने नकुल दुबे, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, लालजी वर्मा, स्व. रामवीर उपाध्याय, ठाकुर जयवीर सिंह, सुधीर गोयल, स्वामी प्रसाद मौर्य, वेदराम भाटी, चौधरी लक्ष्मी नारायण, राकेश धर त्रिपाठी, बाबू सिंह कुशवाहा, फागू चौहान, दद्दू प्रसाद, राम प्रसाद चौधरी, धर्म सिंह सैनी, राम अचल राजभर, सुखदेव राजभर और इंद्रजीत सरोज को बड़े पोर्टफोलियो दिए थे। इनमें से कई नेताओं ने कोई दूसरी पार्टी जॉइन कर ली और किसी ने अपनी खुद की पार्टी बना ली। नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कांग्रेस जॉइन कर ली। ठाकुर जयवीर सिंह, वेदराम भाटी, स्वामी प्रसाद मौर्य, चौधरी लक्ष्मी नारायण, फागू चौहान और धर्म सिंह सैनी ने भारतीय जनता पार्टी जॉइन कर ली थी। सवाल: किन परिस्थितियों में मायावती सीएम बनीं?
जवाब: मायावती 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। 1995- मायावती को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भाजपा ने समर्थन दिया। यह पहली बार था कि कोई दलित महिला मुख्यमंत्री बनी। 1997- भाजपा के साथ मायावती ने दोबारा सरकार बनाई। 2002- विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। भाजपा के साथ फिर शपथ ली। 2007- मायावती ने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ की रणनीति अपनाई, जिससे सभी वर्गों के वोट एकजुट हुए। विधानसभा चुनाव में बसपा ने पूर्ण बहुमत हासिल किया। बसपा के इतिहास में पहली बार यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार थी। ———————— ये खबर भी पढ़ें… शाह ने सपा सांसद को बर्थडे विश किया, उनका इंटरव्यू, बोले- जब रेड पड़ी थी, तभी मैं उनकी वाशिंग मशीन में धुल जाता ‘जब मेरे यहां इनकम टैक्स का छापा पड़ा था, तभी भाजपा में चला जाता और वाशिंग मशीन में धुल गया होता। जिसे आज भी झेल रहा हूं। मैं समाजवादी था, हूं और रहूंगा।’ दैनिक भास्कर के भाजपा में शामिल होने की संभावना पर किए गए सवाल पर यह बात सपा के राष्ट्रीय सचिव, राष्ट्रीय प्रवक्ता और घोसी से सांसद राजीव राय ने कही। राजीव राय के जन्मदिन पर गृहमंत्री अमित शाह ने फोन करके बधाई दी थी। तभी से उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। अमित शाह से बातचीत का वीडियो कैसे बाहर आया? उम्र 53 या 56 साल? क्या चुनाव लड़ने के लिए सपा सांसद ने उम्र ज्यादा लिखाई? ऐसे ही सवालों के जवाब सपा सांसद राजीव राय से दिए। पढ़िए पूरी खबर…