साल 1968 में इंटरनेशनल बैकलॉरियट (IB) नाम से ग्लोबल सिस्टम ऑफ एजुकेशन की शुरुआत जेनेवा से हुई थी। भारत में साल 1976 से इससे मान्यता लेकर स्कूलों का संचालन हो रहा हैं। यहां के 10वीं और 12वीं बोर्ड को एसोसिएशन को इंडियन यूनिवर्सिटीज ने मान्यता दी हैं। अन्य बोर्ड की तुलना में इसमें कई ऐसी खूबी हैं जो इसे बेहद खास बनाती हैं। ये कहना हैं सिंगापुर से आए IB बोर्ड के सीनियर अफसर महेश बालाकृष्णन का। उन्होंने बताया कि रेडियंस इंटरनेशनल स्कूल लखनऊ का पहला IB एफिलिएटिड स्कूल हैं। कैंपस@लखनऊ सीरीज के 157वें एपिसोड में इंटरनेशनल बैकलॉरियट (IB) के सीनियर मैनेजर साउथ एशिया के प्रमुख महेश बालाकृष्णन से खास बातचीत…. दूसरे बोर्ड की तुलना में हैं ये फर्क महेश कहते हैं कि ये सब बोर्ड सिलेबस ओरिएंटेड हैं और स्ट्रक्चर्ड भी हैं। जिनकी IB फ्रीडम देता हैं, लोकल के साथ ग्लोबल स्टैंडर्ड की एजुकेशन पर फोकस हैं। दूसरे शब्दों में कहे तो बच्चों और स्कूल को सुधार के अवसर देता हैं। ऐसे में टीचिंग और लर्निंग कांसेप्ट और कॉन्टेक्स्ट पर बेस हैं। न की रट्टा पद्धति की तर्ज पर पढ़ाई होती हैं। उदाहरण के तौर पर बताते हुए वो कहते हैं कि जैसे अन्य बोर्ड ये पढ़ाते हैं पानीपत की लड़ाई कब हुई थी? पर हम पढ़ाते हैं कि पानीपत की लड़ाई कैसे रोकी जा सकती थी। ऐसे में स्टूडेंट्स फिर खुद से सब कुछ जान जाता हैं। इन पर हैं सबसे ज्यादा फोकस महेश बालाकृष्णन ने बताया कि फोकस एक्सपीरियन्स लर्निंग पर रहता हैं। IB स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे ज्यादा खुश रहते हैं। तेजी से बदल रही दुनिया मे IB बोर्ड से पढे बच्चे, रिसर्च में भी जाते हैं,बड़ी बड़ी कंपनियों में भी जाते हैं। यहां तक गवर्नमेंट जॉब्स में सेलेक्टेड कैंडिडेट्स और रिसर्च वर्क करने में भी इनका फोकस रहता हैं। साथ ही यहां पढ़ें स्टूडेंट्स को नौकरी भी मिलती हैं। वो स्टार्टअप भी शुरू करते हैं। ऐसे बच्चे बदलाव के लिए तैयार रहते है। और किसी भी तरह के बदलाव से डरते नही हैं।