मॉरीशस के पीएम नवीनचंद्र रामगुलाम 9 से 15 सितंबर तक भारत यात्रा पर रहेंगे। इसी बीच 10 सितंबर को वो वाराणसी भी जाएंगे। ऐसा पहली बार होगा, जब मॉरीशस का कोई प्रधानमंत्री काशी में पीएम मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक करेगा। नवीनचंद्र रामगुलाम उन्हीं गिरमिटिया मजदूर परिवार से आते हैं, जिनके पूर्वजों को एग्रीमेंट कराकर अंग्रेज मॉरीशस ले गए थे। गिरमिटिया मजदूर क्यों कहा जाता है ? कैसे मॉरीशस की सत्ता में गिरमिटिया मजदूर काबिज हुए? भारत और मॉरीशस के बीच कैसा है ऐतिहासिक रिश्ता? इन सारे सवालों के जवाब पढ़िए भास्कर एक्सप्लेनर में… सवाल: मॉरीशस के प्रधानमंत्री बनारस क्यों आ रहे?
जवाब: मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम 10 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचेंगे। यह दौरा धार्मिक, सांस्कृतिक और कूटनीतिक- तीनों ही नजरिए से बेहद अहम माना जा रहा है। रामगुलाम पीएम मोदी के साथ काशी में पहली बार औपचारिक द्विपक्षीय बैठक करेंगे। इसमें व्यापार, तकनीकी नवाचार और पर्यटन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा होगी। यह पहली बार होगा, जब मॉरीशस का कोई प्रधानमंत्री काशी में द्विपक्षीय वार्ता करेगा। केंद्र के साथ यूपी सरकार के प्रतिनिधि भी बैठक में शामिल होंगे। वाराणसी दौरे पर मॉरीशस के पीएम काशी विश्वनाथ और बाबा कालभैरव मंदिर में दर्शन-पूजन करेंगे। इसके अलावा सारनाथ और बीएचयू के भारत कला भवन का भी दौरा करेंगे। साथ ही शाम को गंगा आरती में शामिल होंगे। वाराणसी में 6 साल पहले 2019 में 21 से 23 जनवरी तक 15वां प्रवासी भारतीय दिवस मनाया गया था। आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि मॉरीशस के तत्कालीन पीएम प्रविंद जुगनाथ मौजूद थे। पीएम मोदी के साथ काशी में कई कार्यक्रम में शामिल हुए थे। सवाल: भारत और मॉरीशस के बीच ऐतिहासिक रिश्ता कैसा रहा है?
जवाब: भारत और मॉरीशस के रिश्ते सदियों पुराने हैं। इसकी शुरुआत 18वीं सदी से मानी जाती है। उस समय भारत में अकाल और भुखमरी बढ़ने लगी थी। इससे करीब 3 करोड़ लोगों की मौत हो गई थी। ब्रिटिश शासन ने इस हालात का फायदा उठाया और द ग्रेट एक्सपेरिमेंट के नाम से एक योजना शुरू की। इसके तहत भारतीय मजदूरों को कर्ज के बदले काम करने का लालच देकर विदेश भेजा जाने लगा। 10 सितंबर, 1834 को कोलकाता से एटलस नामक जहाज 36 मजदूरों को लेकर मॉरीशस रवाना हुआ। ये सभी मजदूर बिहार के थे और कोलकाता में काम करते थे। ये जहाज 2 नवंबर, 1834 को मॉरीशस पहुंचा। यही दिन गिरमिटिया मजदूरों के इतिहास की शुरुआत माना जाता है। इसके बाद यह सिलसिला 1920 तक जारी रहा। 1834 से 1920 के बीच लगभग 4.5 लाख भारतीय मजदूर मॉरीशस ले जाए गए। सवाल: मॉरीशस गए मजदूरों को गिरमिटिया मजदूर क्यों कहा जाता है?
जवाब: ब्रिटिश हुकूमत के समय में भारतीय मजदूरों को कर्ज के बदले विदेश भेजा जाने लगा। इस व्यवस्था को इंडेंचर्ड लेबर सिस्टम कहा गया और मजदूरों को “गिरमिटिया मजदूर”। “गिरमिट” शब्द अंग्रेजी के एग्रीमेंट ( Agreement) से बना है। दरअसल, मजदूरों को अंग्रेजों ने एक कागज पर अंगूठा लगवाकर तय सालों तक काम करने के लिए बाध्य किया था। इसी वजह से उन्हें गिरमिटिया कहा गया। महात्मा गांधी खुद को पहला गिरमिटिया कहते थे। सवाल: गिरमिटिया मजदूरों ने कैसे बदल दी मॉरीशस की सियासत
जवाब: 1930 आते-आते पीएम नवीनचंद्र रामगुलाम के पिता शिवसागर रामगुलाम ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी। शिवसागर के पिता भी गिरमिटिया मजदूरों में शामिल थे और बिहार से मजदूरी करने मॉरीशस पहुंचे थे। शिवसागर ने मजदूरों के अधिकारों को लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए और हीरो बने। 1948 में भारत ने मॉरीशस में अपना दूतावास खोला। दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए। मॉरीशस ने डच, फ्रांसीसी और ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के साथ संबंध बनाए रखे। 12 मार्च, 1968 में मॉरीशस को आजादी मिली और शिवसागर राष्ट्रपिता कहलाए। वो पहले प्रधानमंत्री भी बने। उनके परिवार का राजनीतिक कद बढ़ता गया। 1968 में जब मॉरीशस आजाद हुआ, तब भारत सबसे पहले उसे मान्यता देने वाला देश बना। आज भी दोनों देशों के बीच व्यापार, शिक्षा, टेक्नोलॉजी और रक्षा के क्षेत्र में गहरा सहयोग है। सवाल: गिरमिटिया कनेक्शन क्यों अहम माना जाता है?
जवाब: मॉरीशस के साथ भारत के संबंधों के नए दौर की शुरुआत 1970 के दशक में हुई, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मॉरीशस गईं। इंदिरा गांधी खासतौर पर अप्रवासी घाट देखने गई थीं, जहां भारत के बंधुआ मजदूर उतारे जाते थे। फिर धीरे-धीरे भारत के साथ मॉरीशस की नजदीकियां बढ़ने लगीं। सवाल: मॉरीशस में भारतीय मूल की कितनी आबादी रहती है?
जवाब: मॉरीशस की कुल आबादी करीब 12 लाख है। इसमें से करीब 70% आबादी भारतीय मूल की है। इनमें ज्यादातर लोग यूपी और बिहार से गए थे। यहां मॉरीशियन क्रिओल मुख्य भाषा है, लेकिन भोजपुरी भी बड़े पैमाने पर बोली जाती है। उत्तर भारतीय हिंदुओं की बड़ी आबादी के साथ मॉरीशस में मुसलमान समुदाय भी है। इनके पूर्वज भी 19वीं सदी की शुरुआत में बंधुआ मजदूरों के तौर पर मॉरीशस पहुंचे थे। ज्यादातर मुसलमानों की जड़ें भी उत्तर भारत से जुड़ी हैं। इसके अलावा कुछ संख्या में मजदूर महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से भी मॉरीशस गए थे। रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन BTI की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, मॉरीशस की आबादी में 52% हिंदू, 30.7% ईसाई, 16.1% मुस्लिम और 2.9% चीनी मूल के लोग हैं। आज मॉरीशस को मिनी इंडिया भी कहा जाता है, क्योंकि वहां भारतीय संस्कृति, त्योहार और परंपराएं उसी तरह है जैसे भारत में है। इसी तरह फिजी की करीब 9 लाख आबादी में साढ़े तीन लाख से ज्यादा भारतीय मूल के लोग हैं। यहां तक कि फिजी में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा ‘फिजियन हिंदी’ है, जो भारतीय प्रवासी मजदूरों की धरोहर मानी जाती है। सवाल: मॉरीशस में भारतीय मूल के कितने लोग सरकार में है?
जवाब: 1960 के दशक में जब मॉरीशस आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, उस वक्त भारतीय मूल के नेताओं-खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार से जुड़े परिवारों ने बड़ा योगदान दिया। इनकी अगुवाई में ही आजादी का आंदोलन मजबूत हुआ। आजादी के बाद मॉरीशस की राजनीति में पूर्वांचली नेताओं का दबदबा कायम हो गया। सवाल: मॉरीशस के लिए भारत का क्या महत्व है? दोनों देश किन क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा रहे?
जवाब: भारत और मॉरीशस के रिश्ते ऐतिहासिक के साथ साझेदारी के भी है। 1968 में आजादी मिलने के बाद से ही भारत मॉरीशस का सबसे बड़ा विकास सहयोगी बना हुआ है। पिछले 10 सालों में ही भारत ने मॉरीशस को करीब 1.1 अरब डॉलर की मदद दी है। भारत ने मॉरीशस में कई अहम परियोजनाओं में हाथ बंटाया है। इनमें मेट्रो एक्सप्रेस, सुप्रीम कोर्ट बिल्डिंग और अस्पताल जैसे बड़े प्रोजेक्ट शामिल हैं। भारत, मॉरीशस का अहम सुरक्षा साथी भी है। दोनों देश मिलकर समुद्री गश्त, निगरानी और सर्वे करते हैं। जिससे मॉरीशस के आर्थिक क्षेत्र (EEZ) की सुरक्षा हो सके। मॉरीशस पर कोई संकट आया, तो भारत सबसे पहले आगे आया। चाहे 2024 का चक्रवात चिडो, 2020 का वाकाशियो तेल रिसाव हो या फिर कोरोना महामारी, भारत ने हर बार तुरंत मदद दी। भारत के ITEC कार्यक्रम के तहत 2002 से अब तक लगभग 5 हजार मॉरीशस नागरिकों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। साथ ही, भारत का राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (NCGG) वहां के अधिकारियों को भी खास ट्रेनिंग देता है। सवाल: क्या यह दौरा भारत-मॉरीशस रिश्तों को और मजबूत करने का संदेश है?
जवाब: मॉरीशस के प्रधानमंत्री का भारत दौरा सिर्फ धार्मिक यात्रा नहीं, भारत-मॉरीशस के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्तों की नई मजबूती देगा। इस पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री का दौरा प्रवासी भारतीय समुदाय के साथ जुड़ाव का बड़ा संदेश माना जा रहा है। वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम और गंगा तट पर उनकी मौजूदगी देशों की साझा आध्यात्मिक विरासत को मजबूत करेगी। इसके साथ ही यह यात्रा हिंद महासागर क्षेत्र में भारत-मॉरीशस की रणनीतिक साझेदारी को भी मजबूती देगी। जानकारों का मानना है कि इस दौरे से न सिर्फ भावनात्मक कनेक्शन गहरा होगा, बल्कि व्यापार, सुरक्षा और सांस्कृतिक सहयोग को भी नया आयाम मिलेगा। ————————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी में सबसे ज्यादा कानपुर वाले देते हैं गाली, टॉप 10 शहरों में लखनऊ और प्रयागराज यूपी में गाली कितनी आम है। किसी बात पर गुस्सा निकालना है तो गाली और फेमस होना है तो गाली…। रिसर्च भी यही कहती है कि रोजमर्रा की जिंदगी में लोग गाली का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। 11 साल तक चले सर्वे में यह निकलकर आया है कि यूपी में गंदी–गंदी गालियां चौथी क्लास के बच्चे भी दे रहे हैं। गाली देने में कौन सा राज्य सबसे आगे? क्या है गाली देने की वजह? यूपी में कितने प्रतिशत लोग देते हैं गाली? यूपी के टॉप 5 जिले कौन से हैं, जहां ज्यादा गाली दी जाती है? किस शहर में दी जाती है सबसे ज्यादा गाली? कब हुई थी गाली की शुरुआत? गाली देने पर क्या है कानून? पढ़िए पूरी खबर…
जवाब: मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम 10 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचेंगे। यह दौरा धार्मिक, सांस्कृतिक और कूटनीतिक- तीनों ही नजरिए से बेहद अहम माना जा रहा है। रामगुलाम पीएम मोदी के साथ काशी में पहली बार औपचारिक द्विपक्षीय बैठक करेंगे। इसमें व्यापार, तकनीकी नवाचार और पर्यटन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा होगी। यह पहली बार होगा, जब मॉरीशस का कोई प्रधानमंत्री काशी में द्विपक्षीय वार्ता करेगा। केंद्र के साथ यूपी सरकार के प्रतिनिधि भी बैठक में शामिल होंगे। वाराणसी दौरे पर मॉरीशस के पीएम काशी विश्वनाथ और बाबा कालभैरव मंदिर में दर्शन-पूजन करेंगे। इसके अलावा सारनाथ और बीएचयू के भारत कला भवन का भी दौरा करेंगे। साथ ही शाम को गंगा आरती में शामिल होंगे। वाराणसी में 6 साल पहले 2019 में 21 से 23 जनवरी तक 15वां प्रवासी भारतीय दिवस मनाया गया था। आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि मॉरीशस के तत्कालीन पीएम प्रविंद जुगनाथ मौजूद थे। पीएम मोदी के साथ काशी में कई कार्यक्रम में शामिल हुए थे। सवाल: भारत और मॉरीशस के बीच ऐतिहासिक रिश्ता कैसा रहा है?
जवाब: भारत और मॉरीशस के रिश्ते सदियों पुराने हैं। इसकी शुरुआत 18वीं सदी से मानी जाती है। उस समय भारत में अकाल और भुखमरी बढ़ने लगी थी। इससे करीब 3 करोड़ लोगों की मौत हो गई थी। ब्रिटिश शासन ने इस हालात का फायदा उठाया और द ग्रेट एक्सपेरिमेंट के नाम से एक योजना शुरू की। इसके तहत भारतीय मजदूरों को कर्ज के बदले काम करने का लालच देकर विदेश भेजा जाने लगा। 10 सितंबर, 1834 को कोलकाता से एटलस नामक जहाज 36 मजदूरों को लेकर मॉरीशस रवाना हुआ। ये सभी मजदूर बिहार के थे और कोलकाता में काम करते थे। ये जहाज 2 नवंबर, 1834 को मॉरीशस पहुंचा। यही दिन गिरमिटिया मजदूरों के इतिहास की शुरुआत माना जाता है। इसके बाद यह सिलसिला 1920 तक जारी रहा। 1834 से 1920 के बीच लगभग 4.5 लाख भारतीय मजदूर मॉरीशस ले जाए गए। सवाल: मॉरीशस गए मजदूरों को गिरमिटिया मजदूर क्यों कहा जाता है?
जवाब: ब्रिटिश हुकूमत के समय में भारतीय मजदूरों को कर्ज के बदले विदेश भेजा जाने लगा। इस व्यवस्था को इंडेंचर्ड लेबर सिस्टम कहा गया और मजदूरों को “गिरमिटिया मजदूर”। “गिरमिट” शब्द अंग्रेजी के एग्रीमेंट ( Agreement) से बना है। दरअसल, मजदूरों को अंग्रेजों ने एक कागज पर अंगूठा लगवाकर तय सालों तक काम करने के लिए बाध्य किया था। इसी वजह से उन्हें गिरमिटिया कहा गया। महात्मा गांधी खुद को पहला गिरमिटिया कहते थे। सवाल: गिरमिटिया मजदूरों ने कैसे बदल दी मॉरीशस की सियासत
जवाब: 1930 आते-आते पीएम नवीनचंद्र रामगुलाम के पिता शिवसागर रामगुलाम ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी। शिवसागर के पिता भी गिरमिटिया मजदूरों में शामिल थे और बिहार से मजदूरी करने मॉरीशस पहुंचे थे। शिवसागर ने मजदूरों के अधिकारों को लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए और हीरो बने। 1948 में भारत ने मॉरीशस में अपना दूतावास खोला। दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए। मॉरीशस ने डच, फ्रांसीसी और ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के साथ संबंध बनाए रखे। 12 मार्च, 1968 में मॉरीशस को आजादी मिली और शिवसागर राष्ट्रपिता कहलाए। वो पहले प्रधानमंत्री भी बने। उनके परिवार का राजनीतिक कद बढ़ता गया। 1968 में जब मॉरीशस आजाद हुआ, तब भारत सबसे पहले उसे मान्यता देने वाला देश बना। आज भी दोनों देशों के बीच व्यापार, शिक्षा, टेक्नोलॉजी और रक्षा के क्षेत्र में गहरा सहयोग है। सवाल: गिरमिटिया कनेक्शन क्यों अहम माना जाता है?
जवाब: मॉरीशस के साथ भारत के संबंधों के नए दौर की शुरुआत 1970 के दशक में हुई, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मॉरीशस गईं। इंदिरा गांधी खासतौर पर अप्रवासी घाट देखने गई थीं, जहां भारत के बंधुआ मजदूर उतारे जाते थे। फिर धीरे-धीरे भारत के साथ मॉरीशस की नजदीकियां बढ़ने लगीं। सवाल: मॉरीशस में भारतीय मूल की कितनी आबादी रहती है?
जवाब: मॉरीशस की कुल आबादी करीब 12 लाख है। इसमें से करीब 70% आबादी भारतीय मूल की है। इनमें ज्यादातर लोग यूपी और बिहार से गए थे। यहां मॉरीशियन क्रिओल मुख्य भाषा है, लेकिन भोजपुरी भी बड़े पैमाने पर बोली जाती है। उत्तर भारतीय हिंदुओं की बड़ी आबादी के साथ मॉरीशस में मुसलमान समुदाय भी है। इनके पूर्वज भी 19वीं सदी की शुरुआत में बंधुआ मजदूरों के तौर पर मॉरीशस पहुंचे थे। ज्यादातर मुसलमानों की जड़ें भी उत्तर भारत से जुड़ी हैं। इसके अलावा कुछ संख्या में मजदूर महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से भी मॉरीशस गए थे। रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन BTI की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, मॉरीशस की आबादी में 52% हिंदू, 30.7% ईसाई, 16.1% मुस्लिम और 2.9% चीनी मूल के लोग हैं। आज मॉरीशस को मिनी इंडिया भी कहा जाता है, क्योंकि वहां भारतीय संस्कृति, त्योहार और परंपराएं उसी तरह है जैसे भारत में है। इसी तरह फिजी की करीब 9 लाख आबादी में साढ़े तीन लाख से ज्यादा भारतीय मूल के लोग हैं। यहां तक कि फिजी में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा ‘फिजियन हिंदी’ है, जो भारतीय प्रवासी मजदूरों की धरोहर मानी जाती है। सवाल: मॉरीशस में भारतीय मूल के कितने लोग सरकार में है?
जवाब: 1960 के दशक में जब मॉरीशस आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, उस वक्त भारतीय मूल के नेताओं-खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार से जुड़े परिवारों ने बड़ा योगदान दिया। इनकी अगुवाई में ही आजादी का आंदोलन मजबूत हुआ। आजादी के बाद मॉरीशस की राजनीति में पूर्वांचली नेताओं का दबदबा कायम हो गया। सवाल: मॉरीशस के लिए भारत का क्या महत्व है? दोनों देश किन क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा रहे?
जवाब: भारत और मॉरीशस के रिश्ते ऐतिहासिक के साथ साझेदारी के भी है। 1968 में आजादी मिलने के बाद से ही भारत मॉरीशस का सबसे बड़ा विकास सहयोगी बना हुआ है। पिछले 10 सालों में ही भारत ने मॉरीशस को करीब 1.1 अरब डॉलर की मदद दी है। भारत ने मॉरीशस में कई अहम परियोजनाओं में हाथ बंटाया है। इनमें मेट्रो एक्सप्रेस, सुप्रीम कोर्ट बिल्डिंग और अस्पताल जैसे बड़े प्रोजेक्ट शामिल हैं। भारत, मॉरीशस का अहम सुरक्षा साथी भी है। दोनों देश मिलकर समुद्री गश्त, निगरानी और सर्वे करते हैं। जिससे मॉरीशस के आर्थिक क्षेत्र (EEZ) की सुरक्षा हो सके। मॉरीशस पर कोई संकट आया, तो भारत सबसे पहले आगे आया। चाहे 2024 का चक्रवात चिडो, 2020 का वाकाशियो तेल रिसाव हो या फिर कोरोना महामारी, भारत ने हर बार तुरंत मदद दी। भारत के ITEC कार्यक्रम के तहत 2002 से अब तक लगभग 5 हजार मॉरीशस नागरिकों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। साथ ही, भारत का राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (NCGG) वहां के अधिकारियों को भी खास ट्रेनिंग देता है। सवाल: क्या यह दौरा भारत-मॉरीशस रिश्तों को और मजबूत करने का संदेश है?
जवाब: मॉरीशस के प्रधानमंत्री का भारत दौरा सिर्फ धार्मिक यात्रा नहीं, भारत-मॉरीशस के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्तों की नई मजबूती देगा। इस पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री का दौरा प्रवासी भारतीय समुदाय के साथ जुड़ाव का बड़ा संदेश माना जा रहा है। वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम और गंगा तट पर उनकी मौजूदगी देशों की साझा आध्यात्मिक विरासत को मजबूत करेगी। इसके साथ ही यह यात्रा हिंद महासागर क्षेत्र में भारत-मॉरीशस की रणनीतिक साझेदारी को भी मजबूती देगी। जानकारों का मानना है कि इस दौरे से न सिर्फ भावनात्मक कनेक्शन गहरा होगा, बल्कि व्यापार, सुरक्षा और सांस्कृतिक सहयोग को भी नया आयाम मिलेगा। ————————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी में सबसे ज्यादा कानपुर वाले देते हैं गाली, टॉप 10 शहरों में लखनऊ और प्रयागराज यूपी में गाली कितनी आम है। किसी बात पर गुस्सा निकालना है तो गाली और फेमस होना है तो गाली…। रिसर्च भी यही कहती है कि रोजमर्रा की जिंदगी में लोग गाली का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। 11 साल तक चले सर्वे में यह निकलकर आया है कि यूपी में गंदी–गंदी गालियां चौथी क्लास के बच्चे भी दे रहे हैं। गाली देने में कौन सा राज्य सबसे आगे? क्या है गाली देने की वजह? यूपी में कितने प्रतिशत लोग देते हैं गाली? यूपी के टॉप 5 जिले कौन से हैं, जहां ज्यादा गाली दी जाती है? किस शहर में दी जाती है सबसे ज्यादा गाली? कब हुई थी गाली की शुरुआत? गाली देने पर क्या है कानून? पढ़िए पूरी खबर…