बसपा प्रमुख मायावती ने नाम लिए बिना जगद्गुरु रामभद्राचार्य पर पलटवार किया। मायावती ने शनिवार को X पर लिखा- कुछ साधु-संत सुर्खियों में बने रहने के लिए विवादित बयानबाजी करते हैं। उन्हें संविधान में डॉ. अंबेडकर के योगदान की जानकारी नहीं है। इसलिए, गलत बोलने की बजाय चुप रहें तो अच्छा रहेगा। मायावती ने यह भी कहा कि बाबा साहेब के अनुयायी, मनुस्मृति का विरोध क्यों करते हैं? उसे भी अपनी जातिवादी भावना को त्याग करके समझना चाहिए। इस मामले में कोई भी टीका-टिप्पणी करने वाले साधु-संत, इनकी विद्वता के मामले में कुछ भी नहीं हैं। ऐसे में कुछ कहने से पहले इनको जरूर बचना चाहिए, यही नेक सलाह है। दरअसल, रामभद्राचार्य ने एक इंटरव्यू में कहा था- मनुस्मृति भारत का प्रथम संविधान है। मनु स्मृति में एक भी ऐसा वाक्य नहीं है, जो संविधान के खिलाफ है। अंबेडकर संस्कृति को जानते तो मनुस्मृति का विरोध नहीं करते। चलिए मामले को विस्तार से समझते हैं… सबसे पहले रामभद्राचार्य का बयान, जिस पर विवाद… रामभद्राचार्य से एक इंटरव्यू में पूछा गया कि मनु स्मृति क्या है तो उन्होंने कहा- मनु स्मृति देश का पहला संविधान है। मनु स्मृति में ऐसी एक भी लाइन नहीं है जो कि भारतीय संविधान के खिलाफ हो। इस दौरान जब डॉ. अंबेडकर की बात की गई तो रामभद्राचार्य ने कहा- वह कोई सामाजिक न्याय के नायक नहीं हैं। अगर वह संस्कृत जानते तो मनु स्मृति को जलाने की गलती नहीं करते। उन्होंने कहा- मनु स्मृति संस्कृत भाषा में है। अंबेडकर ने संविधान का निर्माण नहीं किया है। 100 लोगों की कमेटी थी जिसने संविधान का निर्माण किया था वह उसके अध्यक्ष थे। आगे बढ़ने से पहले पोल में हिस्सा लेकर राय दें- 7 महीने पहले रामभद्राचार्य कहा था- अम्बेडकर को संस्कृत का ज्ञान नहीं था इससे पहले, रामभद्राचार्य ने मार्च 2025 में डॉ बीआर अम्बेडकर पर टिप्पणी की थी। चित्रकूट के दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय में आयोजित “भारतीय न्याय संहिता 2023” पर एक संगोष्ठी के दौरान उन्होंने कहा था कि डॉ. अम्बेडकर को संस्कृत का ज्ञान नहीं था, इसलिए उन्होंने मनुस्मृति को जलाया। यदि उन्हें संस्कृत आती होती, तो वे ऐसा नहीं करते। मनुस्मृति की आलोचना की शुरुआत मायावती ने की, जो उसके वास्तविक सामग्री से अनभिज्ञ थीं। अगस्त 2025 में अखिलेश पर की थी टिप्पणी
सपा प्रमुख ने मनु महाराज को लेकर कहा था- यह हजारों साल पुरानी लड़ाई है, एक कोई मनु महाराज आए थे, जिन्होंने गड़बड़ कर दी, जिनकी वजह से हम लोग बंट गए। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए रामभद्राचार्य ने कहा था- अखिलेश को संस्कृत का एक भी अक्षर का ज्ञान नहीं है। उन्हें संस्कृत आती तो मनु महाराज पर उल्टा-सीधा कमेंट नहीं करते। अब सवाल-जवाब में मनुस्मृति को जानिए… सवाल- आखिर इस किताब में लिखा क्या है?
जवाब: मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं, जिनमें 2,684 श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2,964 है। यह हिंदुओं को धर्म और उनके कर्तव्यों के बारे में बताते हैं।’ मनुस्मृति में किसी का ‘वर्ण’ तय करने के लिए उसके कामकाज, हुनर और योग्यता को आधार बनाया गया, न कि जन्म को। इसमें जातियों और जीवन के अलग-अलग हालातों में सामाजिक दायित्व और कर्तव्य की जानकारी दी गई है। साथ ही अलग-अलग जातियों के पुरुष और महिला से जुड़े पर्सनल और प्रोफेशनल नियम-कायदे बताए गए हैं। वेंडी डोनिगर और ब्रायन स्मिथ अपनी किताब ‘द लॉज ऑफ मनु’ में लिखते हैं, ‘मनुस्मृति का सार यह है कि दुनिया और वास्तव में जीवन कैसे जिया जाता है, और इसे कैसे जीना चाहिए।’ वेंडी और ब्रायन का मानना है कि ये किताब धर्म के बारे में है, जो कर्तव्य, कानून, अर्थशास्त्र और व्यवहार से भी जुड़ी है।’ सवाल- क्या ये किताब वाकई महिला और दलित विरोधी है?
जवाब: पैट्रिक ओलिवेल के मुताबिक, ‘इस ग्रंथ का मकसद ‘राजा की संप्रभुता और ब्राह्मणों के मार्गदर्शन में एक बेहतर समाज का ब्लूप्रिंट’ पेश करना है। शायद इसे युवा ब्राह्मणों को पढ़ाया भी जाता होगा।’ वेंडी और ब्रायन के मुताबिक, इस किताब के लेखक ब्राह्मण को मानव जाति का आदर्श प्रतिनिधि मानते हैं। जबकि क्रम में सबसे नीचे रखे गए शूद्र को ‘ऊंची’ जातियों की सेवा करने का इकलौता कर्तव्य दिया गया है। कुछ श्लोकों में महिलाओं के खिलाफ उनके पूर्वाग्रह दिखते हैं। मनुस्मृति में महिलाओं के कर्तव्यों और जीने के तरीकों के बारे में बताया गया है, जो मौजूदा समय में सही नहीं माना जाता है। सवाल- अंबेडकर ने क्यों और कैसे जलाई थी मनुस्मृति?
जवाब: समाज सुधारक और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर मनुस्मृति की मुखालफत करते थे। 25 दिसंबर 1927 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले (अब रायगढ़) के महाड में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर मनुस्मृति को जलाया था। ऐसा कर अंबेडकर ने जातिवाद और सामाजिक भेदभाव का विरोध किया था। इसके लिए महाड में एक खास वेदी तैयार की गई, जिसमें 6 इंच गहरा और 1.5 फुट चौकोर गड्ढा खोदा गया था। वेदी में चंदन की लकड़ियां रखी गईं। 25 दिसंबर 1927 को सुबह 9 बजे समाज सुधारक गंगाधर नीलकंठ सहस्त्रबुद्धे और 6 दलित साधुओं के साथ डॉ. अंबेडकर ने मनुस्मृति का एक-एक पन्ना फाड़कर आग में डालना शुरू किया। उस वक्त इस घटना का पूरे देश में विरोध भी हुआ, लेकिन आज भी 94 साल बाद, इस घटना की याद में मनुस्मृति दहन दिवस मनाया जाता है। ————————— ये खबर भी पढ़ें- धीरेंद्र शास्त्री बोले- जिसे दिक्कत, वो हवेली पर आ जाए:आई सपोर्ट योगीजी बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने काशी में कहा- जब इस देश में चोर, उचक्के और मर्डरर राजनेता हो सकते हैं, तो भगवाधारी क्यों नहीं हो सकता। यूपी में योगी बाबा भगवाधारी हैं। बहुत अच्छे हैं। आई सपोर्ट, जिसे दिक्कत हो, मेरी हवेली पर आ जाए। पढ़ें पूरी खबर…
सपा प्रमुख ने मनु महाराज को लेकर कहा था- यह हजारों साल पुरानी लड़ाई है, एक कोई मनु महाराज आए थे, जिन्होंने गड़बड़ कर दी, जिनकी वजह से हम लोग बंट गए। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए रामभद्राचार्य ने कहा था- अखिलेश को संस्कृत का एक भी अक्षर का ज्ञान नहीं है। उन्हें संस्कृत आती तो मनु महाराज पर उल्टा-सीधा कमेंट नहीं करते। अब सवाल-जवाब में मनुस्मृति को जानिए… सवाल- आखिर इस किताब में लिखा क्या है?
जवाब: मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं, जिनमें 2,684 श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2,964 है। यह हिंदुओं को धर्म और उनके कर्तव्यों के बारे में बताते हैं।’ मनुस्मृति में किसी का ‘वर्ण’ तय करने के लिए उसके कामकाज, हुनर और योग्यता को आधार बनाया गया, न कि जन्म को। इसमें जातियों और जीवन के अलग-अलग हालातों में सामाजिक दायित्व और कर्तव्य की जानकारी दी गई है। साथ ही अलग-अलग जातियों के पुरुष और महिला से जुड़े पर्सनल और प्रोफेशनल नियम-कायदे बताए गए हैं। वेंडी डोनिगर और ब्रायन स्मिथ अपनी किताब ‘द लॉज ऑफ मनु’ में लिखते हैं, ‘मनुस्मृति का सार यह है कि दुनिया और वास्तव में जीवन कैसे जिया जाता है, और इसे कैसे जीना चाहिए।’ वेंडी और ब्रायन का मानना है कि ये किताब धर्म के बारे में है, जो कर्तव्य, कानून, अर्थशास्त्र और व्यवहार से भी जुड़ी है।’ सवाल- क्या ये किताब वाकई महिला और दलित विरोधी है?
जवाब: पैट्रिक ओलिवेल के मुताबिक, ‘इस ग्रंथ का मकसद ‘राजा की संप्रभुता और ब्राह्मणों के मार्गदर्शन में एक बेहतर समाज का ब्लूप्रिंट’ पेश करना है। शायद इसे युवा ब्राह्मणों को पढ़ाया भी जाता होगा।’ वेंडी और ब्रायन के मुताबिक, इस किताब के लेखक ब्राह्मण को मानव जाति का आदर्श प्रतिनिधि मानते हैं। जबकि क्रम में सबसे नीचे रखे गए शूद्र को ‘ऊंची’ जातियों की सेवा करने का इकलौता कर्तव्य दिया गया है। कुछ श्लोकों में महिलाओं के खिलाफ उनके पूर्वाग्रह दिखते हैं। मनुस्मृति में महिलाओं के कर्तव्यों और जीने के तरीकों के बारे में बताया गया है, जो मौजूदा समय में सही नहीं माना जाता है। सवाल- अंबेडकर ने क्यों और कैसे जलाई थी मनुस्मृति?
जवाब: समाज सुधारक और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर मनुस्मृति की मुखालफत करते थे। 25 दिसंबर 1927 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले (अब रायगढ़) के महाड में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर मनुस्मृति को जलाया था। ऐसा कर अंबेडकर ने जातिवाद और सामाजिक भेदभाव का विरोध किया था। इसके लिए महाड में एक खास वेदी तैयार की गई, जिसमें 6 इंच गहरा और 1.5 फुट चौकोर गड्ढा खोदा गया था। वेदी में चंदन की लकड़ियां रखी गईं। 25 दिसंबर 1927 को सुबह 9 बजे समाज सुधारक गंगाधर नीलकंठ सहस्त्रबुद्धे और 6 दलित साधुओं के साथ डॉ. अंबेडकर ने मनुस्मृति का एक-एक पन्ना फाड़कर आग में डालना शुरू किया। उस वक्त इस घटना का पूरे देश में विरोध भी हुआ, लेकिन आज भी 94 साल बाद, इस घटना की याद में मनुस्मृति दहन दिवस मनाया जाता है। ————————— ये खबर भी पढ़ें- धीरेंद्र शास्त्री बोले- जिसे दिक्कत, वो हवेली पर आ जाए:आई सपोर्ट योगीजी बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने काशी में कहा- जब इस देश में चोर, उचक्के और मर्डरर राजनेता हो सकते हैं, तो भगवाधारी क्यों नहीं हो सकता। यूपी में योगी बाबा भगवाधारी हैं। बहुत अच्छे हैं। आई सपोर्ट, जिसे दिक्कत हो, मेरी हवेली पर आ जाए। पढ़ें पूरी खबर…