दिवाली की रात तांत्रिकों के लिए भी खास मानी जाती है। जब लोग दिवाली की रात आतिशबाजी कर रहे थे तो काशी, प्रयागराज, कानपुर के श्मशान घाटों पर तंत्र-मंत्र की गूंज रोंगटे खड़े कर रहे थे। अमावस्या की काली रात में तांत्रिक और अघोरी अपनी शक्तियों को सिद्ध करने में जुटे रहे। आधी रात के बाद काशी के हरिश्चंद्र घाट पर तांत्रिक और अघोरी अपनी तंत्र-मंत्र साधना में लिप्त हो गए। भोर होने तक यह प्रक्रिया चलती रही। अलग-अलग तरीके से सब अपनी शक्तियों को साधते रहे। कुछ तांत्रिक-अघोरी जलती आग के सामने बैठ अपनी पूजा कर रहे थे। कुछ ने मिर्च, मंदिरा और अन्य पूजा सामग्री के साथ हवन कुंड बनाकर साधना शुरू की। काफी संख्या में लोग इस पूजा को देखने के लिए पहुंचे लेकिन साधना शुरू करने के पहले वहां मौजूद शिष्यों ने लोगों को हटा दिया। तंत्र साधना से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया- तांत्रिकों ने भैरव पूजन, काली माता पूजन, लक्ष्मी प्राप्ति के लिए पूजन किया। कुछ ने कुबेर साधना और धन प्राप्ति के लिए अलग-अलग तंत्र क्रिया की। कई तांत्रिकों ने लक्ष्मी प्राप्ति के लिए तंत्र प्रयोग, मंत्र प्रयोग, यंत्र प्रयोग और टोटके जैसा इस्तेमाल किया। तंत्र साधना के दौरान कद्दू और लौकी जैसी सब्जियों की बलि भी दी गई। 2 तस्वीरें देखिए- कानपुर में चिता के पास बैठकर तांत्रिकों ने जाप किया
कानपुर के भैरव घाट में दीपावली की पूजा के बाद तांत्रिकों का जमावड़ा लगा। यहां श्मशान घाट पर चिताओं के पास बैठकर तांत्रिकों ने पूजा की। तांत्रिकों ने सबसे पहले दीए जलाए। उसके बाद ध्यान की मुद्रा में बैठकर मंत्रों का जाप शुरू कर दिया। इसी दौरान कुछ लोग श्मशान घाट में अलग-अलग जगहों पर बैठकर हाथ में माला लेकर भी जाप करते नजर आए। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आने वाले तांत्रिक, साधना का पूरा सामान एक झोले में लेकर आए थे। सभी के साथ में एक से दो सहयोगी थे, जो कि उनको जरूरत के मुताबिक सामान देते जा रहे थे। प्रयागराज में किन्नरों ने तंत्र पूजा की
प्रयागराज में दीपावली की आधी रात को किन्नर अखाड़े में तंत्र पूजा की गई। बैरहना स्थित किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरी उर्फ टीना मां की मौजूदगी में शिष्यों ने तंत्र पूजा की। मां काली के लिए सात्विक बलि दी। मंत्रोच्चार के साथ गन्ने को काट कर चढ़ाया। संध्या नंद गिरि ने मंत्रोच्चार किया। दिवाली की रात क्यों होती है तांत्रिकों के लिए खास
सालभर में 12 अमावस्या होती है, लेकिन कार्तिक मास की अमावस्या विशेष महत्व रखती है। कार्तिक अमावस्या से पांच दिन पहले ही तांत्रिक क्रिया शुरू हुई, जो अमावस्या की रात तक चली। इस तरह से लोग अपने-अपने तरीके से अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए पूजन करते रहे। तंत्र शास्त्रों में भी इसका जिक्र मिलता है कि कुछ दिनों में की गई तांत्रिक साधना विशेष फल देती हैं। इनमें दशहरा, नवरात्रि और दिवाली का महत्व है। दिवाली की अमावस्या की रात सबसे खास शक्तिशाली मानी जाती है। इसे तंत्र शास्त्र की महारात्रि कहा जाता है। गृहस्थ लोग इस पूजा को न देखें
तंत्र-मंत्र साधना पर काशी के पंचमहा भूतेश्वर मंदिर के सचिन कुमार ने बताया- अघोरी घाट के इस तरफ या गंगा उस पार रेत पर जाकर अपने विशेष पूजन पद्धति से तंत्र-मंत्र साधना को पूरा करते हैं। इससे गृहस्थ लोगों को दूर रहने की सलाह दी जाती है। उन्होंने बताया- पूर्व जन्म से लेकर अगले जन्म तक, बुरे कर्म से लेकर अच्छे कर्म और प्रेत योनि से जुड़े अनेक विषय इसमें शामिल होते हैं। जो लोग गृहस्थ में अपना जीवन बिताते हैं, उन्हें भूलकर भी रात में हो रहे घाट के तंत्र-मंत्र पूजन में शामिल नहीं होना चाहिए। हर साल दीपावली के दिन रात करीब 12 बजे से सुबह 4 बजे तक पूजा होती है। लोग दुष्प्रचार कर जीवों की बलि जैसी बातें जोड़ते हैं
काशी अघोर पीठ के कपाली बाबा बताते हैं- दीपावली की रात को तंत्र साधना और पूजा के कई प्रकार होते हैं। लेकिन, वर्तमान में सोशल मीडिया और लोक कथाओं में कई भ्रांतियां फैल रही हैं। तांत्रिक परंपरा के विशेषज्ञों के अनुसार, दीपावली की रात के तंत्र प्रयोग शास्त्रीय और अहिंसात्मक होते हैं। इसमें कभी भी जीव हत्या या उल्लू की बलि शामिल नहीं होती। कपाली बाबा बताते हैं- दीपावली की रात 3 तरह के तांत्रिक प्रयोग होते हैं। आम का बांदा, कद्दू और लौकी जैसी वनस्पतियां त्रयोदशी की रात लाकर चतुर्दशी को पूजा में प्रयोग की जाती हैं। इसका उद्देश्य व्यापार और आर्थिक वृद्धि होता है। बंगाली तंत्र और कामाख्या तंत्र में पीला सिंदूर और प्रतीकात्मक सियार की सींग का प्रयोग लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसमें श्रीयंत्र या श्री चक्र की पूजा की जाती है। देवी की अर्चना 8 प्रकार से की जाती है। कपाली बाबा बताते हैं- काली कुल के याचक और यम द्वितीया पूजा अगले दिन तक चलती हैं। कई अबोध लोग इन प्रयोगों का गलत विवरण फैलाते हैं और जीवों की बलि देने जैसी बातें जोड़ते हैं। यह केवल सनसनी फैलाने और फेमस होने के लिए किया जाता है। शास्त्रीय और वैदिक परंपरा में दीपावली की रात का तंत्र प्रयोग सुरक्षित, प्रतीकात्मक और अहिंसात्मक होता है। इसका मुख्य उद्देश्य धन, वैभव और लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करना है। यूपी में प्रमुख तांत्रिक केंद्र अब जानिए ज्योतिष के विद्वान क्या कहते हैं? बलि से नहीं, सच्ची शुभता सही कर्म, पूजा, दान और भक्ति से आती है
बीएचयू के ज्योतिषशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पांडेय बताते हैं- कुछ तांत्रिक मानते हैं कि किसी जीव की बलि देने से मंत्र या जादुई शक्तियां बढ़ती हैं। वे सोचते हैं कि यह राक्षस या नकारात्मक ऊर्जा को नियंत्रित करने का तरीका है। कुछ लोग कहते हैं कि बलि देने से धन, प्रेम, काम या शक्ति संबंधी इच्छाएं पूरी होती हैं। यह पूरी तरह से मानसिक और आस्था पर आधारित होता है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। तांत्रिक कभी-कभी लोगों को डराकर या भय दिखाकर बलि देने को कहते हैं। जिससे लोग उनका सम्मान या पालन करें। पुराने समय में कुछ संस्कृतियों में बलि होती थी, लेकिन आज इसे गैरकानूनी और अमानवीय माना जाता है। डॉ. विनय कुमार पांडेय बताते हैं- आधुनिक तंत्र में बलि की जरूरत नहीं, बल्कि मंत्र, पूजा और ध्यान से ही कार्य सिद्ध हो सकते हैं। बलि देना गलत है, क्योंकि उल्लू को लक्ष्मी का वाहन बताते हैं। इसी वजह से कुछ लोगों को लगता है कि उल्लू को रख लेंगे तो लक्ष्मी हमेशा रहेंगी। लेकिन, ऐसा करने से लक्ष्मी रहती नहीं, चली जाती हैं। कुछ जगहों पर मान्यता है कि दीपावली की रात उल्लू की बलि देने से घर में धन, सौभाग्य और बुरी आत्माओं से सुरक्षा मिलती है। लेकिन, यह कानूनी और नैतिक रूप से गलत है। किसी जानवर की बलि देने से सकारात्मक ऊर्जा या शुभता नहीं आती। सच्ची शुभता सही कर्म, पूजा, दान और भक्ति से आती है। दीपावली की रात जीवित कछुए को अपने घर में रखने से लक्ष्मी ठहर जाती हैं। इसे लेकर डॉ. विनय कुमार पांडेय का कहना है कि यह मान्यता अंधविश्वास और शास्त्र विरुद्ध है। जीवित प्राणी को कैद या कष्ट देना पाप और कानूनी अपराध दोनों है। शास्त्रों में वर्णित सात्विक विधि-विधान सभी सामान्य जन के लिए उपयोगी हितकारक एंव प्रकृति के अनुकूल है। ग्रंथों में उल्लू की बलि का कोई विधान नहीं
कामाख्या संप्रदाय में अभिषिक्त तांत्रिक साकेत कुमार मिश्रा के अनुसार, इंद्रजाल के आधार पर टोना-टोटका और तांत्रिक प्रयोगों का उल्लेख मिलता है। दीपावली की रात को कुछ तांत्रिक लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए उल्लू की बलि देते हैं। ऐसा माना जाता है कि उल्लू माता लक्ष्मी का वाहन है। इसलिए उसकी बलि से तंत्र सिद्धि या धन प्राप्ति होती है। हालांकि, शास्त्रीय दृष्टि से यह पूरी तरह अमान्य और अनुचित है। वैदिक या धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में उल्लू की बलि का कोई विधान नहीं है। यह प्रथा केवल इंद्रजाल तंत्र जैसी लोक-मान्य और अप्रामाणिक पुस्तकों में वर्णित है। जिनमें सोखा, ओझा या तांत्रिक रात्रि के निशा काल (रात 11 बजे के बाद) में ऐसे कर्म करते हैं। वास्तव में, शास्त्रीय ग्रंथों में केवल भैंसे या बकरी की बलि का उल्लेख है। वह भी विशिष्ट देवताओं की उपासना या तंत्र साधना के संदर्भ में, न कि लक्ष्मी पूजन के लिए। बलि प्रतीकात्मक इसका मतलब भेंट-अर्पण
तांत्रिक आयुष रुद्रा बताते हैं- तंत्र के तीन अलग-अलग तरीके हैं। टीवी पर जो तंत्र दिखाया जाता है, ऐसे होता नहीं है। दीपावली के दिन दो तरह की पूजा होती है। इच्छा पूर्ति के लिए और सिद्धि के लिए। इच्छा की कामना के लिए बलि दी जाती है। लेकिन बलि का मतलब भेंट-अर्पण होता है। दीपावली के लिए दिन जो धन वैभव के लिए पूजा की जो भेंट दी जाती है, उसमें फल कद्दू लौकी की बलि दी जाती है। कामाख्या तारापीठ में बलि का प्रावधान है। हालांकि, वहां के तरीके अलग हैं। कहीं भी नरबलि या जानवर बलि का प्रावधान नहीं है। जिनको जानकारी नहीं है, वो ऐसी चीजों को बढ़ावा देकर लाइम लाइट में रहते हैं। तंत्र एक विज्ञान है। लेकिन, लोगों ने इसको गलत तरीके से पेश करके गलत बना दिया है। तंत्र विद्या को लेकर क्या कहता है साइंस
ज्योतिषाचार्य श्रीधर पांडेय बताते हैं- तंत्र विद्या को अक्सर रहस्यमय और अंधविश्वासी माना जाता है। लेकिन, इसके पीछे वास्तविक विज्ञान और मनोविज्ञान मौजूद हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, तंत्र केवल मंत्र, यंत्र और पूजन का समूह नहीं है। यह ऊर्जा, मानसिक एकाग्रता और वातावरणीय संतुलन पर आधारित प्रणाली है। तंत्र में इस्तेमाल मंत्र और यंत्र, हमारे मस्तिष्क और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा और कंपन पैदा करते हैं। ध्यान और विजुलाइजेशन जैसी क्रियाएं मानसिक शक्ति और फोकस बढ़ाती हैं। वहीं दीपक, धूप और जल के प्रयोग से शरीर में मूड सुधारने वाले हार्मोन सक्रिय होते हैं और तनाव कम होता है। वन विभाग के डीएफओ सितांशु पांडेय कहते हैं दीपावली पर तांत्रिक क्रियाओं के नाम पर प्रतिबंधित प्रजातियों का अवैध शिकार और व्यापार चरम पर पहुंच जाता है। हमने रेंज के सभी वन कर्मियों को स्थानीय सूचना तंत्र मजबूत करने, सघन गश्त और रात्रि निगरानी के सख्त निर्देश जारी किए हैं। …………….. ये खबर भी पढ़ें… बागपत में चिताओं से अस्थियां गायब हो रहीं:8 महीने से गांववाले परेशान; क्या दिवाली पर तंत्र–मंत्र के लिए तांत्रिक चुरा रहे यूपी में बागपत के हिम्मतपुर सूजती गांव में लोग डरे हुए हैं। श्मशान घाट से अस्थियां गायब हो रही हैं। कुछ दिन पहले एक व्यक्ति का अंतिम संस्कार हुआ। परिवार जब तीसरे दिन अस्थियां लेने गया, तो चिता के पास दीपक जल रहा था, उपले सुलग रहे थे और तंत्र-मंत्र का सामान बिखरा हुआ था। अस्थियां गायब थीं। पिछले आठ महीनों से श्मशान में ऐसी ही घटनाएं हो रही हैं। गांव वाले बताते हैं- पहले लगता था किसी जानवर का काम होगा, लेकिन हर बार चिता के पास पूजा-सामग्री, अगरबत्ती, नींबू और राख मिलती है। प्रशासन का कहना है कि ऐसी शिकायतें मिल रही हैं, हमारी टीम जांच कर रही है। पढ़िए पूरी खबर…
कानपुर के भैरव घाट में दीपावली की पूजा के बाद तांत्रिकों का जमावड़ा लगा। यहां श्मशान घाट पर चिताओं के पास बैठकर तांत्रिकों ने पूजा की। तांत्रिकों ने सबसे पहले दीए जलाए। उसके बाद ध्यान की मुद्रा में बैठकर मंत्रों का जाप शुरू कर दिया। इसी दौरान कुछ लोग श्मशान घाट में अलग-अलग जगहों पर बैठकर हाथ में माला लेकर भी जाप करते नजर आए। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आने वाले तांत्रिक, साधना का पूरा सामान एक झोले में लेकर आए थे। सभी के साथ में एक से दो सहयोगी थे, जो कि उनको जरूरत के मुताबिक सामान देते जा रहे थे। प्रयागराज में किन्नरों ने तंत्र पूजा की
प्रयागराज में दीपावली की आधी रात को किन्नर अखाड़े में तंत्र पूजा की गई। बैरहना स्थित किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरी उर्फ टीना मां की मौजूदगी में शिष्यों ने तंत्र पूजा की। मां काली के लिए सात्विक बलि दी। मंत्रोच्चार के साथ गन्ने को काट कर चढ़ाया। संध्या नंद गिरि ने मंत्रोच्चार किया। दिवाली की रात क्यों होती है तांत्रिकों के लिए खास
सालभर में 12 अमावस्या होती है, लेकिन कार्तिक मास की अमावस्या विशेष महत्व रखती है। कार्तिक अमावस्या से पांच दिन पहले ही तांत्रिक क्रिया शुरू हुई, जो अमावस्या की रात तक चली। इस तरह से लोग अपने-अपने तरीके से अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए पूजन करते रहे। तंत्र शास्त्रों में भी इसका जिक्र मिलता है कि कुछ दिनों में की गई तांत्रिक साधना विशेष फल देती हैं। इनमें दशहरा, नवरात्रि और दिवाली का महत्व है। दिवाली की अमावस्या की रात सबसे खास शक्तिशाली मानी जाती है। इसे तंत्र शास्त्र की महारात्रि कहा जाता है। गृहस्थ लोग इस पूजा को न देखें
तंत्र-मंत्र साधना पर काशी के पंचमहा भूतेश्वर मंदिर के सचिन कुमार ने बताया- अघोरी घाट के इस तरफ या गंगा उस पार रेत पर जाकर अपने विशेष पूजन पद्धति से तंत्र-मंत्र साधना को पूरा करते हैं। इससे गृहस्थ लोगों को दूर रहने की सलाह दी जाती है। उन्होंने बताया- पूर्व जन्म से लेकर अगले जन्म तक, बुरे कर्म से लेकर अच्छे कर्म और प्रेत योनि से जुड़े अनेक विषय इसमें शामिल होते हैं। जो लोग गृहस्थ में अपना जीवन बिताते हैं, उन्हें भूलकर भी रात में हो रहे घाट के तंत्र-मंत्र पूजन में शामिल नहीं होना चाहिए। हर साल दीपावली के दिन रात करीब 12 बजे से सुबह 4 बजे तक पूजा होती है। लोग दुष्प्रचार कर जीवों की बलि जैसी बातें जोड़ते हैं
काशी अघोर पीठ के कपाली बाबा बताते हैं- दीपावली की रात को तंत्र साधना और पूजा के कई प्रकार होते हैं। लेकिन, वर्तमान में सोशल मीडिया और लोक कथाओं में कई भ्रांतियां फैल रही हैं। तांत्रिक परंपरा के विशेषज्ञों के अनुसार, दीपावली की रात के तंत्र प्रयोग शास्त्रीय और अहिंसात्मक होते हैं। इसमें कभी भी जीव हत्या या उल्लू की बलि शामिल नहीं होती। कपाली बाबा बताते हैं- दीपावली की रात 3 तरह के तांत्रिक प्रयोग होते हैं। आम का बांदा, कद्दू और लौकी जैसी वनस्पतियां त्रयोदशी की रात लाकर चतुर्दशी को पूजा में प्रयोग की जाती हैं। इसका उद्देश्य व्यापार और आर्थिक वृद्धि होता है। बंगाली तंत्र और कामाख्या तंत्र में पीला सिंदूर और प्रतीकात्मक सियार की सींग का प्रयोग लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसमें श्रीयंत्र या श्री चक्र की पूजा की जाती है। देवी की अर्चना 8 प्रकार से की जाती है। कपाली बाबा बताते हैं- काली कुल के याचक और यम द्वितीया पूजा अगले दिन तक चलती हैं। कई अबोध लोग इन प्रयोगों का गलत विवरण फैलाते हैं और जीवों की बलि देने जैसी बातें जोड़ते हैं। यह केवल सनसनी फैलाने और फेमस होने के लिए किया जाता है। शास्त्रीय और वैदिक परंपरा में दीपावली की रात का तंत्र प्रयोग सुरक्षित, प्रतीकात्मक और अहिंसात्मक होता है। इसका मुख्य उद्देश्य धन, वैभव और लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करना है। यूपी में प्रमुख तांत्रिक केंद्र अब जानिए ज्योतिष के विद्वान क्या कहते हैं? बलि से नहीं, सच्ची शुभता सही कर्म, पूजा, दान और भक्ति से आती है
बीएचयू के ज्योतिषशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पांडेय बताते हैं- कुछ तांत्रिक मानते हैं कि किसी जीव की बलि देने से मंत्र या जादुई शक्तियां बढ़ती हैं। वे सोचते हैं कि यह राक्षस या नकारात्मक ऊर्जा को नियंत्रित करने का तरीका है। कुछ लोग कहते हैं कि बलि देने से धन, प्रेम, काम या शक्ति संबंधी इच्छाएं पूरी होती हैं। यह पूरी तरह से मानसिक और आस्था पर आधारित होता है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। तांत्रिक कभी-कभी लोगों को डराकर या भय दिखाकर बलि देने को कहते हैं। जिससे लोग उनका सम्मान या पालन करें। पुराने समय में कुछ संस्कृतियों में बलि होती थी, लेकिन आज इसे गैरकानूनी और अमानवीय माना जाता है। डॉ. विनय कुमार पांडेय बताते हैं- आधुनिक तंत्र में बलि की जरूरत नहीं, बल्कि मंत्र, पूजा और ध्यान से ही कार्य सिद्ध हो सकते हैं। बलि देना गलत है, क्योंकि उल्लू को लक्ष्मी का वाहन बताते हैं। इसी वजह से कुछ लोगों को लगता है कि उल्लू को रख लेंगे तो लक्ष्मी हमेशा रहेंगी। लेकिन, ऐसा करने से लक्ष्मी रहती नहीं, चली जाती हैं। कुछ जगहों पर मान्यता है कि दीपावली की रात उल्लू की बलि देने से घर में धन, सौभाग्य और बुरी आत्माओं से सुरक्षा मिलती है। लेकिन, यह कानूनी और नैतिक रूप से गलत है। किसी जानवर की बलि देने से सकारात्मक ऊर्जा या शुभता नहीं आती। सच्ची शुभता सही कर्म, पूजा, दान और भक्ति से आती है। दीपावली की रात जीवित कछुए को अपने घर में रखने से लक्ष्मी ठहर जाती हैं। इसे लेकर डॉ. विनय कुमार पांडेय का कहना है कि यह मान्यता अंधविश्वास और शास्त्र विरुद्ध है। जीवित प्राणी को कैद या कष्ट देना पाप और कानूनी अपराध दोनों है। शास्त्रों में वर्णित सात्विक विधि-विधान सभी सामान्य जन के लिए उपयोगी हितकारक एंव प्रकृति के अनुकूल है। ग्रंथों में उल्लू की बलि का कोई विधान नहीं
कामाख्या संप्रदाय में अभिषिक्त तांत्रिक साकेत कुमार मिश्रा के अनुसार, इंद्रजाल के आधार पर टोना-टोटका और तांत्रिक प्रयोगों का उल्लेख मिलता है। दीपावली की रात को कुछ तांत्रिक लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए उल्लू की बलि देते हैं। ऐसा माना जाता है कि उल्लू माता लक्ष्मी का वाहन है। इसलिए उसकी बलि से तंत्र सिद्धि या धन प्राप्ति होती है। हालांकि, शास्त्रीय दृष्टि से यह पूरी तरह अमान्य और अनुचित है। वैदिक या धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में उल्लू की बलि का कोई विधान नहीं है। यह प्रथा केवल इंद्रजाल तंत्र जैसी लोक-मान्य और अप्रामाणिक पुस्तकों में वर्णित है। जिनमें सोखा, ओझा या तांत्रिक रात्रि के निशा काल (रात 11 बजे के बाद) में ऐसे कर्म करते हैं। वास्तव में, शास्त्रीय ग्रंथों में केवल भैंसे या बकरी की बलि का उल्लेख है। वह भी विशिष्ट देवताओं की उपासना या तंत्र साधना के संदर्भ में, न कि लक्ष्मी पूजन के लिए। बलि प्रतीकात्मक इसका मतलब भेंट-अर्पण
तांत्रिक आयुष रुद्रा बताते हैं- तंत्र के तीन अलग-अलग तरीके हैं। टीवी पर जो तंत्र दिखाया जाता है, ऐसे होता नहीं है। दीपावली के दिन दो तरह की पूजा होती है। इच्छा पूर्ति के लिए और सिद्धि के लिए। इच्छा की कामना के लिए बलि दी जाती है। लेकिन बलि का मतलब भेंट-अर्पण होता है। दीपावली के लिए दिन जो धन वैभव के लिए पूजा की जो भेंट दी जाती है, उसमें फल कद्दू लौकी की बलि दी जाती है। कामाख्या तारापीठ में बलि का प्रावधान है। हालांकि, वहां के तरीके अलग हैं। कहीं भी नरबलि या जानवर बलि का प्रावधान नहीं है। जिनको जानकारी नहीं है, वो ऐसी चीजों को बढ़ावा देकर लाइम लाइट में रहते हैं। तंत्र एक विज्ञान है। लेकिन, लोगों ने इसको गलत तरीके से पेश करके गलत बना दिया है। तंत्र विद्या को लेकर क्या कहता है साइंस
ज्योतिषाचार्य श्रीधर पांडेय बताते हैं- तंत्र विद्या को अक्सर रहस्यमय और अंधविश्वासी माना जाता है। लेकिन, इसके पीछे वास्तविक विज्ञान और मनोविज्ञान मौजूद हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, तंत्र केवल मंत्र, यंत्र और पूजन का समूह नहीं है। यह ऊर्जा, मानसिक एकाग्रता और वातावरणीय संतुलन पर आधारित प्रणाली है। तंत्र में इस्तेमाल मंत्र और यंत्र, हमारे मस्तिष्क और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा और कंपन पैदा करते हैं। ध्यान और विजुलाइजेशन जैसी क्रियाएं मानसिक शक्ति और फोकस बढ़ाती हैं। वहीं दीपक, धूप और जल के प्रयोग से शरीर में मूड सुधारने वाले हार्मोन सक्रिय होते हैं और तनाव कम होता है। वन विभाग के डीएफओ सितांशु पांडेय कहते हैं दीपावली पर तांत्रिक क्रियाओं के नाम पर प्रतिबंधित प्रजातियों का अवैध शिकार और व्यापार चरम पर पहुंच जाता है। हमने रेंज के सभी वन कर्मियों को स्थानीय सूचना तंत्र मजबूत करने, सघन गश्त और रात्रि निगरानी के सख्त निर्देश जारी किए हैं। …………….. ये खबर भी पढ़ें… बागपत में चिताओं से अस्थियां गायब हो रहीं:8 महीने से गांववाले परेशान; क्या दिवाली पर तंत्र–मंत्र के लिए तांत्रिक चुरा रहे यूपी में बागपत के हिम्मतपुर सूजती गांव में लोग डरे हुए हैं। श्मशान घाट से अस्थियां गायब हो रही हैं। कुछ दिन पहले एक व्यक्ति का अंतिम संस्कार हुआ। परिवार जब तीसरे दिन अस्थियां लेने गया, तो चिता के पास दीपक जल रहा था, उपले सुलग रहे थे और तंत्र-मंत्र का सामान बिखरा हुआ था। अस्थियां गायब थीं। पिछले आठ महीनों से श्मशान में ऐसी ही घटनाएं हो रही हैं। गांव वाले बताते हैं- पहले लगता था किसी जानवर का काम होगा, लेकिन हर बार चिता के पास पूजा-सामग्री, अगरबत्ती, नींबू और राख मिलती है। प्रशासन का कहना है कि ऐसी शिकायतें मिल रही हैं, हमारी टीम जांच कर रही है। पढ़िए पूरी खबर…