‘सनक: यूपी के सीरियल किलर’ में आज ऐसे सीरियल किलर की कहानी, जिसका मानना था कि अगर मैंने कायस्थ यानी लाला का खून पी लिया, तो मुझमें बुद्धि आ जाएगी। मुस्लिम का खून पी लिया, तो ताकत आ जाएगी। अपनी सनक के कारण उसने कई लोगों के सिर काटे और उनका खून पीया। लखनऊ का नाका टैक्सी स्टैंड, कड़क सर्दी की दोपहर… चाय की दुकानों पर लोग भट्ठी के आसपास खड़े थे। तारीख थी 23 जनवरी, 2000। मनोज सिंह और उनका ड्राइवर रवि श्रीवास्तव टाटा सूमो गाड़ी की सर्विसिंग कराकर स्टैंड पर पहुंचे ही थे कि सांवला सा एक आदमी उनके पास आया। बोला- “भइया, मध्य प्रदेश जाना है।” रवि ने पूछा- “अरे दादा! एमपी में कहां जाएंगे?”
आदमी ने कहा- “चाकघाट, रीवा”
मनोज बोला- “दो हजार लगेंगे।”
आदमी ने कहा- “अरे भइया! बीमार सवारी है। बड़ी मुसीबत में हैं। कुछ कम कर लो।”
मनोज ने कहा- “चलिए, 1500 दे दीजिएगा। इससे कम नहीं होगा।” सवारी तय हुई। मनोज और रवि गाड़ी लेकर निकल पड़े। सोचा सुबह तक वापस आ जाएंगे, लेकिन 3 दिन तक दोनों का कुछ पता नहीं चला। घरवाले परेशान होने लगे। टैक्सी स्टैंड पर पूछताछ की, लेकिन कुछ पता नहीं चला। लिहाजा, मनोज के पिता शिवहर्ष सिंह लखनऊ के नाका थाने पहुंचे। शिवहर्ष ने दरोगा नंदकिशोर बाजपेयी से कहा- “साब, मेरा बेटा मनोज और ड्राइवर रवि 3 दिन से गायब हैं।”
नंदकिशोर ने पूछा- “आखिरी बार कहां दिखे थे?”
शिवहर्ष बोले- “साब, 23 तारीख की शाम दोनों गाड़ी से घर आए थे। कह रहे थे, बुकिंग लेकर रीवा जा रहे हैं। हमने देखा भी था। गाड़ी में 6 लोग थे। एक औरत भी थी। उसके बाद से कुछ पता नहीं चल रहा।” छानबीन शुरू हुई। नंदकिशोर यूपी-एमपी बॉर्डर के चेकपोस्ट पर पहुंचे। उन्होंने कागज दिखाकर पूछा- “इस नंबर की टाटा सूमो के बारे में कुछ पता है?” कागज पर गाड़ी का नंबर UP 32 Z 2423 लिखा था। सिपाही रजिस्टर देखकर बोला- “साब, इस नंबर की गाड़ी तो यहां से पास ही नहीं हुई।” नंदकिशोर बोले- “मतलब ये लोग रीवा पहुंचे ही नहीं। जो भी हुआ, रायबरेली से इलाहाबाद के बीच ही हुआ है।” रवि और मनोज का गांव हरचंदपुर, रायबरेली जिले में था। 23 जनवरी की शाम रीवा जाते हुए दोनों कुछ ऊनी कपड़े लेने के लिए अपने घर गए थे। जांच का दायरा छोटा हुआ। रूट पर पड़ने वाली हर चौकी-थाने से एक्सीडेंट और लूट की रिपोर्ट मांगी गई। 30 जनवरी को पता चला कि प्रयागराज यानी तब के इलाहाबाद में शंकरगढ़ के जंगल में दो सिर कटी लाशें मिली हैं। दरोगा नंदकिशोर बाजपेयी, मनोज और रवि के घरवालों के साथ मौके पर पहुंचे। सभी घने जंगलों के बीच से जा रहे थे कि अचानक बदबू का तेज भभका महसूस हुआ। कुछ नजदीक आए, तो मक्खियों की भनभनाहट सुनाई देने लगी। कुछ ने रुमाल निकालकर नाक पर रख लिया। मौत हुए काफी दिन बीत चुके थे। जंगली जानवरों ने लाशों को बुरी तरह नोच डाला था। एक लाश के दोनों हाथ और पैर जानवर खा गए थे। यह रवि था। लाशें देखते ही शिवहर्ष चीख पड़े- “हाय राम! हमार लड़का… कमबखत एकौ कपड़ा नाय छोड़िन सरीर पर… गाड़ी लेहे जाता… लड़का काहे मारि दिहा…।” गला रेतकर हत्या की गई थी। दोनों के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। पुलिस पंचनामा भरने लगी। मौके पर खून की एक भी बूंद नहीं थी। दोनों को किसी और जगह मारकर लाशें जंगल में फेंकी गई थीं। नए सिरे से जांच शुरू हुई। दरोगा नंदकिशोर ने गांव और परिवारवालों से एक बार फिर पूछताछ की। घूम-फिरकर कहानी फिर उसी जगह अटक गई। न गाड़ी का कुछ पता चल रहा था और न ही उन 6 लोगों का कोई सुराग मिला। महीने, दो महीने, छह महीने, पूरा साल बीतने को आया, लेकिन कहीं कोई खबर नहीं। इसी बीच प्रयागराज में एक बड़ी घटना हुई। शहर के नामी पत्रकार धीरेंद्र सिंह 14 दिसंबर, 2000 को ऑफिस से अपने गांव के लिए निकले, लेकिन घर नहीं पहुंचे। 2 दिन तक कुछ पता नहीं चला। फोन भी लगातार बंद आ रहा था। जिले के पत्रकारों ने दबाव बनाना शुरू किया। धरना प्रदर्शन हुआ। पुलिस पर तमाम आरोप लगाते हुए रिपोर्ट्स छापी गईं। पुलिस तफ्तीश में जुटी थी। धीरेंद्र किराए के एक कमरे में अकेले रहते थे। जांच अधिकारी एसएन त्रिपाठी ने कमरे की तलाशी ली, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। धीरेंद्र के मोबाइल की कॉल डिटेल निकाली गई, जिसमें सिर्फ 3 नंबर थे। आखिरी बार मोबाइल से एक लैंडलाइन नंबर पर फोन किया गया था। ये नंबर ‘राम निरंजन’ के नाम से रजिस्टर था। जब कॉल डिटेल सामने आई, उस समय धीरेंद्र के बड़े भाई वीरेंद्र सिंह और चाचा थाने में मौजूद थे। राम निरंजन का नाम सुनते ही दोनों के कान खड़े हो गए। चेहरे पर चिंता की लकीरें उतर आईं। धीरेंद्र के चाचा बोले- “राम निरंजन नहीं, राजा कोलंदर कहिए साब… न जाने क्या गोरखधंधा करता है। छिवकी ऑर्डिनेंस डिपो में फोर्थ क्लास नौकर है और गाड़ी, जीप, टीवी-वीसीआर सब कुछ है। हो न हो साहब, धीरेंद्र को गायब करने में इसी का हाथ है।” वीरेंद्र ने कहा- “कोलंदर की बीवी हमारे गांव की है। उसने बीवी का नाम गोमती देवी से बदलकर फूलन देवी रखा है। जिला पंचायत सदस्य है उसकी बीवी।” जांच अधिकारी त्रिपाठी ने वीरेंद्र से कहा- “आप इसके घर जाकर धीरेंद्र के बारे में पूछताछ कीजिए। हम लोग आपके पीछे रहेंगे।” वीरेंद्र नैनी के रामसागर इलाके में राजा कोलंदर के घर पहुंचे। उसकी बीवी से पूछा तो वो साफ मुकर गई। बोली- “भइया, धीरेंदर इहां आए ही नहीं हैं।” इधर, एसएन त्रिपाठी पूरे दस्ते के साथ मेन रोड पर खड़े थे। तभी हरे रंग की एक टाटा सूमो उन्हें आती दिखी। उस वक्त टाटा सूमो कम थीं और ज्यादातर सफेद रंग की ही होती थीं। त्रिपाठी को शक हुआ, तो उन्होंने गाड़ी रुकवाई। गाड़ी के बंपर पर बोर्ड लगा था- ‘फूलन देवी, जिला पंचायत सदस्य…।’ त्रिपाठी ने पूछताछ की तो पता चला गाड़ी में राजा कोलंदर और उसका साला बच्छराज है। पुलिस दोनों को थाने उठा लाई। पूछताछ शुरू हुई, लेकिन कोलंदर कुछ बोलने को तैयार ही नहीं था। हालांकि, कोलंदर का साला डरा हुआ था। चेहरा एकदम फक्क सफेद पड़ा था। पुलिस ने एक और पैंतरा आजमाया। पुलिस ने बच्छराज को धमकाना शुरू किया। अचानक पुलिस की नजर उसके जूतों पर गई। जूते थोड़े से बड़े थे। एक सिपाही ने पूछा, “ये जूता किसका पहने हो?” बच्छराज थोड़ा सा सकपका गया। लड़खड़ाते हुए बोला, “मेरा है साब…” “तुम्हारा है या धीरेंद्र का?” इतना कहते ही बच्छराज की सांसें अटक गईं। पुलिस का शक गहरा गया। पुलिस ने अपने स्टाइल में पूछताछ शुरू की। एसएन त्रिपाठी बोले- “तुम लोगों ने ही धीरेंद्र के मोबाइल से अपने घर फोन लगाया था। सच-सच बताओ, तुम लोगों ने धीरेंद्र के साथ क्या किया। नहीं तो खाल खींचकर भूसा भरवा दूंगा।” आखिरकार बच्छराज ने चुप्पी तोड़ी। बोला- “साब, धीरेंद्र का मोबाइल गाड़ी में पड़ा है।” इतना सुनते ही कोलंदर की ‘सेवा’ शुरू हुई। रात करीब 3 बजे उसने मुंह खोला। कोलंदर ने बताना शुरू किया- “हमने धीरेंद्र का मर्डर कर दिया है। ये टाटा सूमो चोरी की है। धीरेंद्र को ये पता चल गया था। मुझे डर लग रहा था, कहीं पुलिस में न बता दे। मैंने उन्हें अपने पिगरी फॉर्म पर बुलाया। वे सवेरे-सवेरे आए थे। उन्हें अलाव के पास बैठाया और बच्छराज से चाय लाने को कहा। धीरेंद्र का मुंह मेरी तरफ था। बच्छराज उठकर धीरेंद्र के पीछे गया और गोली मार दी।” त्रिपाठी ने आंख तरेरकर पूछा, “गोली चली और किसी ने सुना भी नहीं?” कोलंदर निश्चिंत होकर बोला- “अरे साब, ऐसे पटाखे तो चलते रहते हैं। पूरे दिन लाश फॉर्म पर थी…।” इतना सुनते ही रिमांड रूम में सन्नाटा छा गया। कुछ देर रुककर एसएन त्रिपाठी ने पूछा, “लाश अभी भी फॉर्म में है?” “नहीं, साब… लाश तो रीवा में फेंक आए।” उधर, मध्यप्रदेश पुलिस को रीवा जिले के रायपुर करचुलियान थाने क्षेत्र में एक सिर कटी लाश मिली थी। बॉडी पर कपड़े भी नहीं थे। न लाश की पहचान हुई और न ही किसी ने क्लेम किया, सो पुलिस ने फोटो वगैरह खींचकर लाश दफना दी। उसी रात रीवा पुलिस के पास इलाहाबाद से कॉल आई कि यूपी पुलिस कुछ दिनों से एक लापता पत्रकार को ढूंढ रही है। एसएन त्रिपाठी, धीरेंद्र के परिजन और राजा कोलंदर को साथ लेकर रीवा पहुंचे। फोटो देखे, बॉडी के रंग और कद-काठी से शिनाख्त हुई कि धड़ धीरेंद्र का ही है। खबर घर पहुंची, तो कोहराम मच गया। धीरेंद्र की पत्नी की सिसकियों से पूरा इलाहाबाद कराह उठा। वो कभी अपने 3 साल के बेटे को सीने से लगाकर रोती, तो कभी गर्भ में पल रहे बच्चे की दुहाई देकर गंगा मइया से सवाल पूछती। उधर, यूपी पुलिस बॉडी लेने के लिए माथापच्ची में जुटी थी। दूसरे दिन रीवा मजिस्ट्रेट के ऑर्डर पर लाश खुदवाई गई। इलाहाबाद में धीरेंद्र के धड़ का अंतिम संस्कार हुआ। उनका सिर अभी तक बरामद नहीं हुआ था। राजा ने बताया कि सिर नैनी के आगे रामसागर तालाब में फेंका था। गोताखोर पानी में उतारे गए, जाल डाल गया। काफी मशक्कत के बाद धीरेंद्र का सिर मिला। वीरेंद्र ने अपने भाई का सिर देखा, तो वहीं बैठ गए। आंख के आंसू सूख चुके थे, दर्द का एहसास होना बंद हो गया था। पूरी तरह से बदहवास वीरेंद्र किसी तरह घर पहुंचे। लाडले छोटे भाई का दूसरी बार अंतिम संस्कार हुआ। फिर वही चीखें, फिर वही हाहाकार… पूरा इलाका थर्रा गया। उधर, पुलिस ने एक बार फिर राजा कोलंदर से पूछताछ शुरू की। धीरेंद्र को जिस तमंचे से गोली मारी गई थी, उसकी बरामदगी जरूरी थी। राजा ने बताया- तमंचा फॉर्म पर गोबर के उपलों में छिपा रखा है। फॉर्म पर दबिश हुई, तमंचा बरामद हुआ। धीरेंद्र की मोटरसाइकिल के कुछ पार्ट भी मिले। साथ ही मिला एक सूटकेस… उसमें कई गाड़ियों के कागजात थे। एक छोटी-सी डायरी भी थी, जिस पर लिखा था… ‘राजा की डायरी’। इसके खुलते ही एक तूफान खड़ा होने वाला था। डायरी में कुछ नाम लिखे थे। पहला नाम था, काली प्रसाद श्रीवास्तव और सबसे आखिर यानी 14वें नंबर पर लिखा था- धीरेंद्र सिंह। यह देखते ही जांच अधिकारी एसएन त्रिपाठी के दिमाग में उठा-पटक शुरू हो गई। “क्या धीरेंद्र राजा का 14वां शिकार था? मतलब ये 13 और लोगों को मार चुका है… अगर ऐसा है तो ये अब-तक पकड़ा कैसे नहीं गया? आखिर चक्कर क्या है…?” त्रिपाठी इसी उधेड़-बुन में थे कि एक कॉन्स्टेबल चिल्लाया, “सर… इधर आइए…!” सब दौड़कर उधर पहुंचे और जो देखा, उसके बाद आंखें फटी रह गईं। एक अलमारी में इंसानों की खोपड़ियां लाइन से लगी हुई थीं। कोलंदर ने कबूल किया, उन सबको उसने मारा है। त्रिपाठी सन्न रह गए। अब सिलसिलेवार पूछताछ जरूरी थी। रात के 10 बजे… पूरा इलाहाबाद रजाई की कुनकुनाहट में दुबक चुका था। सिविल लाइन पुलिस थाने में एसएन त्रिपाठी अपनी टेबल पर लिखा-पढ़ी कर रहे थे। कुछ देर बाद उन्होंने डायरी उठाई और रिमांड रूम की ओर चल दिए। भीतर राजा कोलंदर एक कुर्सी पर बैठा था। सामने एक मेज पड़ी थी। त्रिपाठी ने डायरी मेज पर पटकते हुए पूछा- “क्या है ये…” कोलंदर मुस्कुराया। बोला- “राजा की डायरी” एसएन त्रिपाठी- “अंगरेजी न बतावा… एकइ कंटाप में सारी मसखरी निकल जाई। काली प्रसाद कौन है?” कोलंदर- “हमारे साथ छिवकी में काम करत रहे। 50 हजार रुपए लिए थे हमसे… लौटाए का नामइ नहीं ले रहा रहै… ऊपर से तकनीकी बतियात रहे। एक दिन गर्दन हिलाय-हिलाय के बोला- ‘लाला की खोपड़ी है, आसान नहीं है पैसा लेना।’” अचानक कोलंदर का चेहरा सख्त हो गया। तनकर कुर्सी पर सीधा बैठ गया और तमककर बोला- “राजा से धोखा कर रहा था… राजा कोलंदर से। सजा तो मिलनी ही थी। एक दिन फॉर्म पर बुलाया, बातचीत की और उसी समय सिर धड़ से अलग कर दिया…। वहीं, पीपल के नीचे गड़ा है ससुरा। फिर हम दोनों साला-बहनोई ने उसकी खोपड़ी उबाली और उसके सिर का रस पिया।” इतना कहकर कोलंदर चुप हो गया। पूरे रिमांड रूम में सन्नाटा छा गया। दूर कहीं से कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी। अचानक जांच अधिकारी त्रिपाठी की ध्यान टूटा। बोले- “क्या हो तुम… इंसान तो नहीं हो सकते? नरपिशाच हो, आदमखोर वहशी हो… आखिर क्या हो?” कोलंदर ने धीरे से सिर उठाया और बोला- “राजा… राजा कोलंदर हैं हम” एसएन त्रिपाठी का दिमाग चकराने लगा था। उन्होंने पूछताछ वहीं रोक दी। पुलिसवाले की हिम्मत जवाब दे गई थी। अगले दिन एसएसपी पीके तिवारी, एसपी सिटी लालजी शुक्ला, इंस्पेक्टर कोतवाली राधेश्याम त्रिवेदी और जांच अधिकारी एसएन त्रिपाठी पूरे दल-बल के साथ राजा कोलंदर के पिगरी फॉर्म पहुंचे। उसकी निशानदेही पर खुदाई हुई, तो जमीन ने राज उगलने शुरू कर दिए… नरकंकाल मिले, 2 लाशें मिलीं। एक इंसानी खोपड़ी को लाल रंग से रंगा था। ये काली प्रसाद श्रीवास्तव की थी। ‘लाला की खोपड़ी, लाल रंग से रंगी थी।’ दूसरी खोपड़ी सफेद थी। राजा ने मुंह खोला- “ये मोइन है… हमारे साथ ही काम करता था, छिवकी में… 25 हजार लिए थे। जब वापस मांगे, तो कहने लगा- ‘मैं सम्मोहन विद्या जानता हूं। कोई मुझसे पैसे वापस नहीं ले सकता।’ एक दिन ले गए साले को यमुना पुल पे… काट के उंहीं बहाय दिए, जमुना जी में…। खोपड़िया में सम्मोहन बिद्या रहे न… सो काटि के लिए आए। उबालि के पी गए…” त्रिपाठी बुदबुदाए- “नर नहीं, नरपिशाच है ये आदमी…।” फॉर्म से कई नरकंकाल मिले। एक कोट भी बरामद हुआ। कोट पर चिट लगी थी- अप्सरा टेलर्स, रायबरेली… एसपी सिटी लालजी शुक्ला के दिमाग में अचानक से कुछ कौंधा। उन्होंने सारी कड़ियां जोड़ीं और ऑफिस आकर फोन घुमाया… मार्च 2001, लखनऊ एसपी सिटी पूर्वी राजेश कुमार पांडेय अपने ऑफिस में बैठे किसी केस की फाइल देख रहे थे। तभी फोन की घंटी बनी… उन्होंने फोन उठाया। उधर से आवाज आई- “हां, राजेश… लालजी शुक्ला बोल रहा हूं। एसपी सिटी इलाहाबाद…” राजेश पांडेय- “जय हिंद साब…” लालजी शुक्ला- “जय हिंद, जय हिंद… भई आपके यहां पिछले साल एक टाटा सूमो गायब हुई थी। कुछ दिन बाद उसके मालिक और ड्राइवर की डेडबॉडी मिली थी। वो केस का क्या हुआ…?” राजेश पांडेय- “कुछ पता नहीं चला साहब… सारी जांच-पड़ताल घूम-फिरकर एक ही जगह अटक जाती है।” लालजी शुक्ला- “हूं… अच्छा, एक लीड मिली है। वो पत्रकार धीरेंद्र सिंह का केस तो सुना होगा तुमने। उसके कातिल के यहां से एक कोट मिला है रायबरेली का… चोरी की एक टाटा सूमो भी है। एक टीम भेजकर दिखवालो इसे…” राजेश पांडेय- “जी, ठीक है… मैं फौरन एक टीम रवाना करता हूं।” एक सब-इंस्पेक्टर और 2 सिपाहियों की टीम इलाहाबाद रवाना हुई। सबसे पहले कोलंदर से बरामद टाटा सूमो की चेकिंग हुई। गाड़ी का नंबर और रंग FIR की डिटेल से मैच नहीं कर रहा था। शायद बदल दिए गए थे। इंजन नंबर और चेचिस नंबर चेक किया गया तो FIR कॉपी से मैच कर गए। अब कोलंदर से पूछताछ की बारी थी। टीम थाने पहुंची। पूछताछ शुरू हुई… इंस्पेक्टर ने पूछा- “रवि और मनोज को क्यों मारा? इन लोगों ने भी पैसे उधार लिए थे?” कोलंदर- “अरे नहीं साब, जिनके पास टाटा सूमो होगी, वो हमसे उधार क्यों लेगा? हमें तो गाड़ी चाहिए थी। अब बिना मारे तो गाड़ी मिलती नहीं… सो मार दिए दोनों को।” ‘राजा की डायरी’ के पन्ने पलटते गए और एक-एक मर्डर की कहानी सामने आती गई… 1998 – काली प्रसाद श्रीवास्तव, पवन यादव, मोहम्मद मोईन, त्रिभुवन सिंह
1999 – अशोक कुमार, संतोष, हेरिया, शंकरलाल, राजू
2000 – रवि श्रीवास्तव, मनोज सिंह, पप्पू पासी, सुल्ताना और धीरेंद्र सिंह कुल 14 हत्याएं… पत्रकार धीरेंद्र के दोस्त और वरिष्ठ पत्रकार रतिभान त्रिपाठी बताते हैं- जब उसे हमारे सामने पेश किया तो यकीन नहीं हो रहा था कि उसने ही हमारे दोस्त धीरेंद्र को मारा है। न जाने कितने कत्ल किए हैं। राजा कोलंदर साधारण अपराधी नहीं, सीरियल किलर था। ऐसे किलर अलग-अलग मकसद के लिए हत्याएं करते हैं। कोलंदर का मकसद ताकत हासिल करना था। राजा कोलंदर ने कायस्थ यानी लाला को मारकर उसकी खोपड़ी का सूप पिया। वो मानता था कि लाला के पास दिमाग बहुत होता है। अगर मैं उसकी खोपड़ी का सूप पीयूंगा तो उसकी बुद्धि मुझमें आ जाएगी। मुस्लिम की खोपड़ी के बारे में उसका कहना था कि ये खुराफाती होते हैं। इनके पास बहुत ताकत होती है। अगर हम इनका सूप पीएंगे तो मुस्लिमों की तरह ताकतवर हो जाएंगे। इसी तरह उसने कई जातियों के लोगों के सिर उबालकर पिए थे, ताकि वो ऐसा इंसान बन जाए, जिसके पास बल, विद्या, बुद्धि, धूर्तता सब कुछ हो। कुल मिलाकर वो अपने आप को भगवान बनाना चाहता था। पत्नी का नाम बदलकर फूलन देवी करना, बच्चों के नाम ‘अदालत, जमानत और आंदोलन’ रखना, पैसे उधार देकर महाजनी करना, चुनाव लड़ना-जीतना, इलाके की राजनीति में दखल रखना- ये सब ताकत और रुतबे के लिए उसके अंधी भूख की ओर इशारा करते हैं। 23 मई 2025… लखनऊ की एडिशनल जज कोर्ट। कटघरे में करीब 65 साल का एक बुजुर्ग खड़ा है। सिर पर लंबी शिखा, सफेद कुर्ता-पायजामा, कांधे पर गमछा। सामने बैठे जज रोहित सिंह ने फैसला पढ़ना शुरू किया। “अभियुक्त ने साजिश के तहत रवि श्रीवास्तव और मनोज सिंह की हत्या की। ये पेशेवर अपराधी है। आईपीसी के तहत अभियुक्त राम निरंजन उर्फ राजा कोलंदर और बच्छराज को उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है।” कटघरे में खड़ा राजा कोलंदर खिलखिलाकर हंस पड़ा… चेहरे पर शिकन की एक लकीर तक नहीं। कोर्ट से जेल जाते वक्त कोलंदर और बच्छराज आपस में हंसी-ठिठोली करते रहे। दिसंबर, 2000 में गिरफ्तार होने के बाद 16 साल तक राजा कोलंदर नैनी सेंट्रल जेल में बंद रहा। इस बीच 1 दिसंबर, 2012 को पत्रकार धीरेंद्र सिंह के मर्डर केस का फैसला आया। इलाहाबाद जिला अदालत ने राजा कोलंदर और बच्छराज दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई। 2016 में कोलंदर को लखनऊ जेल और फिर 2019 में उन्नाव जेल शिफ्ट कर दिया गया। इस वक्त कोलंदर वहीं बंद है। कई केसों का ट्रायल अभी भी चल रहा है। धीरेंद्र सिंह, रवि श्रीवास्तव और मनोज सिंह के परिवारों ने राजा कोलंदर को फांसी की सजा दिलाने के लिए हाईकोर्ट में अपील की है। **** (यह रियल स्टोरी पुलिस चार्जशीट, केस से जुड़े पुलिस ऑफिसर, वकील, जर्नलिस्ट और स्थानीय लोगों से बातचीत पर आधारित है। कहानी को रोचक बनाने के लिए क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए लिखा गया है।)
आदमी ने कहा- “चाकघाट, रीवा”
मनोज बोला- “दो हजार लगेंगे।”
आदमी ने कहा- “अरे भइया! बीमार सवारी है। बड़ी मुसीबत में हैं। कुछ कम कर लो।”
मनोज ने कहा- “चलिए, 1500 दे दीजिएगा। इससे कम नहीं होगा।” सवारी तय हुई। मनोज और रवि गाड़ी लेकर निकल पड़े। सोचा सुबह तक वापस आ जाएंगे, लेकिन 3 दिन तक दोनों का कुछ पता नहीं चला। घरवाले परेशान होने लगे। टैक्सी स्टैंड पर पूछताछ की, लेकिन कुछ पता नहीं चला। लिहाजा, मनोज के पिता शिवहर्ष सिंह लखनऊ के नाका थाने पहुंचे। शिवहर्ष ने दरोगा नंदकिशोर बाजपेयी से कहा- “साब, मेरा बेटा मनोज और ड्राइवर रवि 3 दिन से गायब हैं।”
नंदकिशोर ने पूछा- “आखिरी बार कहां दिखे थे?”
शिवहर्ष बोले- “साब, 23 तारीख की शाम दोनों गाड़ी से घर आए थे। कह रहे थे, बुकिंग लेकर रीवा जा रहे हैं। हमने देखा भी था। गाड़ी में 6 लोग थे। एक औरत भी थी। उसके बाद से कुछ पता नहीं चल रहा।” छानबीन शुरू हुई। नंदकिशोर यूपी-एमपी बॉर्डर के चेकपोस्ट पर पहुंचे। उन्होंने कागज दिखाकर पूछा- “इस नंबर की टाटा सूमो के बारे में कुछ पता है?” कागज पर गाड़ी का नंबर UP 32 Z 2423 लिखा था। सिपाही रजिस्टर देखकर बोला- “साब, इस नंबर की गाड़ी तो यहां से पास ही नहीं हुई।” नंदकिशोर बोले- “मतलब ये लोग रीवा पहुंचे ही नहीं। जो भी हुआ, रायबरेली से इलाहाबाद के बीच ही हुआ है।” रवि और मनोज का गांव हरचंदपुर, रायबरेली जिले में था। 23 जनवरी की शाम रीवा जाते हुए दोनों कुछ ऊनी कपड़े लेने के लिए अपने घर गए थे। जांच का दायरा छोटा हुआ। रूट पर पड़ने वाली हर चौकी-थाने से एक्सीडेंट और लूट की रिपोर्ट मांगी गई। 30 जनवरी को पता चला कि प्रयागराज यानी तब के इलाहाबाद में शंकरगढ़ के जंगल में दो सिर कटी लाशें मिली हैं। दरोगा नंदकिशोर बाजपेयी, मनोज और रवि के घरवालों के साथ मौके पर पहुंचे। सभी घने जंगलों के बीच से जा रहे थे कि अचानक बदबू का तेज भभका महसूस हुआ। कुछ नजदीक आए, तो मक्खियों की भनभनाहट सुनाई देने लगी। कुछ ने रुमाल निकालकर नाक पर रख लिया। मौत हुए काफी दिन बीत चुके थे। जंगली जानवरों ने लाशों को बुरी तरह नोच डाला था। एक लाश के दोनों हाथ और पैर जानवर खा गए थे। यह रवि था। लाशें देखते ही शिवहर्ष चीख पड़े- “हाय राम! हमार लड़का… कमबखत एकौ कपड़ा नाय छोड़िन सरीर पर… गाड़ी लेहे जाता… लड़का काहे मारि दिहा…।” गला रेतकर हत्या की गई थी। दोनों के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। पुलिस पंचनामा भरने लगी। मौके पर खून की एक भी बूंद नहीं थी। दोनों को किसी और जगह मारकर लाशें जंगल में फेंकी गई थीं। नए सिरे से जांच शुरू हुई। दरोगा नंदकिशोर ने गांव और परिवारवालों से एक बार फिर पूछताछ की। घूम-फिरकर कहानी फिर उसी जगह अटक गई। न गाड़ी का कुछ पता चल रहा था और न ही उन 6 लोगों का कोई सुराग मिला। महीने, दो महीने, छह महीने, पूरा साल बीतने को आया, लेकिन कहीं कोई खबर नहीं। इसी बीच प्रयागराज में एक बड़ी घटना हुई। शहर के नामी पत्रकार धीरेंद्र सिंह 14 दिसंबर, 2000 को ऑफिस से अपने गांव के लिए निकले, लेकिन घर नहीं पहुंचे। 2 दिन तक कुछ पता नहीं चला। फोन भी लगातार बंद आ रहा था। जिले के पत्रकारों ने दबाव बनाना शुरू किया। धरना प्रदर्शन हुआ। पुलिस पर तमाम आरोप लगाते हुए रिपोर्ट्स छापी गईं। पुलिस तफ्तीश में जुटी थी। धीरेंद्र किराए के एक कमरे में अकेले रहते थे। जांच अधिकारी एसएन त्रिपाठी ने कमरे की तलाशी ली, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। धीरेंद्र के मोबाइल की कॉल डिटेल निकाली गई, जिसमें सिर्फ 3 नंबर थे। आखिरी बार मोबाइल से एक लैंडलाइन नंबर पर फोन किया गया था। ये नंबर ‘राम निरंजन’ के नाम से रजिस्टर था। जब कॉल डिटेल सामने आई, उस समय धीरेंद्र के बड़े भाई वीरेंद्र सिंह और चाचा थाने में मौजूद थे। राम निरंजन का नाम सुनते ही दोनों के कान खड़े हो गए। चेहरे पर चिंता की लकीरें उतर आईं। धीरेंद्र के चाचा बोले- “राम निरंजन नहीं, राजा कोलंदर कहिए साब… न जाने क्या गोरखधंधा करता है। छिवकी ऑर्डिनेंस डिपो में फोर्थ क्लास नौकर है और गाड़ी, जीप, टीवी-वीसीआर सब कुछ है। हो न हो साहब, धीरेंद्र को गायब करने में इसी का हाथ है।” वीरेंद्र ने कहा- “कोलंदर की बीवी हमारे गांव की है। उसने बीवी का नाम गोमती देवी से बदलकर फूलन देवी रखा है। जिला पंचायत सदस्य है उसकी बीवी।” जांच अधिकारी त्रिपाठी ने वीरेंद्र से कहा- “आप इसके घर जाकर धीरेंद्र के बारे में पूछताछ कीजिए। हम लोग आपके पीछे रहेंगे।” वीरेंद्र नैनी के रामसागर इलाके में राजा कोलंदर के घर पहुंचे। उसकी बीवी से पूछा तो वो साफ मुकर गई। बोली- “भइया, धीरेंदर इहां आए ही नहीं हैं।” इधर, एसएन त्रिपाठी पूरे दस्ते के साथ मेन रोड पर खड़े थे। तभी हरे रंग की एक टाटा सूमो उन्हें आती दिखी। उस वक्त टाटा सूमो कम थीं और ज्यादातर सफेद रंग की ही होती थीं। त्रिपाठी को शक हुआ, तो उन्होंने गाड़ी रुकवाई। गाड़ी के बंपर पर बोर्ड लगा था- ‘फूलन देवी, जिला पंचायत सदस्य…।’ त्रिपाठी ने पूछताछ की तो पता चला गाड़ी में राजा कोलंदर और उसका साला बच्छराज है। पुलिस दोनों को थाने उठा लाई। पूछताछ शुरू हुई, लेकिन कोलंदर कुछ बोलने को तैयार ही नहीं था। हालांकि, कोलंदर का साला डरा हुआ था। चेहरा एकदम फक्क सफेद पड़ा था। पुलिस ने एक और पैंतरा आजमाया। पुलिस ने बच्छराज को धमकाना शुरू किया। अचानक पुलिस की नजर उसके जूतों पर गई। जूते थोड़े से बड़े थे। एक सिपाही ने पूछा, “ये जूता किसका पहने हो?” बच्छराज थोड़ा सा सकपका गया। लड़खड़ाते हुए बोला, “मेरा है साब…” “तुम्हारा है या धीरेंद्र का?” इतना कहते ही बच्छराज की सांसें अटक गईं। पुलिस का शक गहरा गया। पुलिस ने अपने स्टाइल में पूछताछ शुरू की। एसएन त्रिपाठी बोले- “तुम लोगों ने ही धीरेंद्र के मोबाइल से अपने घर फोन लगाया था। सच-सच बताओ, तुम लोगों ने धीरेंद्र के साथ क्या किया। नहीं तो खाल खींचकर भूसा भरवा दूंगा।” आखिरकार बच्छराज ने चुप्पी तोड़ी। बोला- “साब, धीरेंद्र का मोबाइल गाड़ी में पड़ा है।” इतना सुनते ही कोलंदर की ‘सेवा’ शुरू हुई। रात करीब 3 बजे उसने मुंह खोला। कोलंदर ने बताना शुरू किया- “हमने धीरेंद्र का मर्डर कर दिया है। ये टाटा सूमो चोरी की है। धीरेंद्र को ये पता चल गया था। मुझे डर लग रहा था, कहीं पुलिस में न बता दे। मैंने उन्हें अपने पिगरी फॉर्म पर बुलाया। वे सवेरे-सवेरे आए थे। उन्हें अलाव के पास बैठाया और बच्छराज से चाय लाने को कहा। धीरेंद्र का मुंह मेरी तरफ था। बच्छराज उठकर धीरेंद्र के पीछे गया और गोली मार दी।” त्रिपाठी ने आंख तरेरकर पूछा, “गोली चली और किसी ने सुना भी नहीं?” कोलंदर निश्चिंत होकर बोला- “अरे साब, ऐसे पटाखे तो चलते रहते हैं। पूरे दिन लाश फॉर्म पर थी…।” इतना सुनते ही रिमांड रूम में सन्नाटा छा गया। कुछ देर रुककर एसएन त्रिपाठी ने पूछा, “लाश अभी भी फॉर्म में है?” “नहीं, साब… लाश तो रीवा में फेंक आए।” उधर, मध्यप्रदेश पुलिस को रीवा जिले के रायपुर करचुलियान थाने क्षेत्र में एक सिर कटी लाश मिली थी। बॉडी पर कपड़े भी नहीं थे। न लाश की पहचान हुई और न ही किसी ने क्लेम किया, सो पुलिस ने फोटो वगैरह खींचकर लाश दफना दी। उसी रात रीवा पुलिस के पास इलाहाबाद से कॉल आई कि यूपी पुलिस कुछ दिनों से एक लापता पत्रकार को ढूंढ रही है। एसएन त्रिपाठी, धीरेंद्र के परिजन और राजा कोलंदर को साथ लेकर रीवा पहुंचे। फोटो देखे, बॉडी के रंग और कद-काठी से शिनाख्त हुई कि धड़ धीरेंद्र का ही है। खबर घर पहुंची, तो कोहराम मच गया। धीरेंद्र की पत्नी की सिसकियों से पूरा इलाहाबाद कराह उठा। वो कभी अपने 3 साल के बेटे को सीने से लगाकर रोती, तो कभी गर्भ में पल रहे बच्चे की दुहाई देकर गंगा मइया से सवाल पूछती। उधर, यूपी पुलिस बॉडी लेने के लिए माथापच्ची में जुटी थी। दूसरे दिन रीवा मजिस्ट्रेट के ऑर्डर पर लाश खुदवाई गई। इलाहाबाद में धीरेंद्र के धड़ का अंतिम संस्कार हुआ। उनका सिर अभी तक बरामद नहीं हुआ था। राजा ने बताया कि सिर नैनी के आगे रामसागर तालाब में फेंका था। गोताखोर पानी में उतारे गए, जाल डाल गया। काफी मशक्कत के बाद धीरेंद्र का सिर मिला। वीरेंद्र ने अपने भाई का सिर देखा, तो वहीं बैठ गए। आंख के आंसू सूख चुके थे, दर्द का एहसास होना बंद हो गया था। पूरी तरह से बदहवास वीरेंद्र किसी तरह घर पहुंचे। लाडले छोटे भाई का दूसरी बार अंतिम संस्कार हुआ। फिर वही चीखें, फिर वही हाहाकार… पूरा इलाका थर्रा गया। उधर, पुलिस ने एक बार फिर राजा कोलंदर से पूछताछ शुरू की। धीरेंद्र को जिस तमंचे से गोली मारी गई थी, उसकी बरामदगी जरूरी थी। राजा ने बताया- तमंचा फॉर्म पर गोबर के उपलों में छिपा रखा है। फॉर्म पर दबिश हुई, तमंचा बरामद हुआ। धीरेंद्र की मोटरसाइकिल के कुछ पार्ट भी मिले। साथ ही मिला एक सूटकेस… उसमें कई गाड़ियों के कागजात थे। एक छोटी-सी डायरी भी थी, जिस पर लिखा था… ‘राजा की डायरी’। इसके खुलते ही एक तूफान खड़ा होने वाला था। डायरी में कुछ नाम लिखे थे। पहला नाम था, काली प्रसाद श्रीवास्तव और सबसे आखिर यानी 14वें नंबर पर लिखा था- धीरेंद्र सिंह। यह देखते ही जांच अधिकारी एसएन त्रिपाठी के दिमाग में उठा-पटक शुरू हो गई। “क्या धीरेंद्र राजा का 14वां शिकार था? मतलब ये 13 और लोगों को मार चुका है… अगर ऐसा है तो ये अब-तक पकड़ा कैसे नहीं गया? आखिर चक्कर क्या है…?” त्रिपाठी इसी उधेड़-बुन में थे कि एक कॉन्स्टेबल चिल्लाया, “सर… इधर आइए…!” सब दौड़कर उधर पहुंचे और जो देखा, उसके बाद आंखें फटी रह गईं। एक अलमारी में इंसानों की खोपड़ियां लाइन से लगी हुई थीं। कोलंदर ने कबूल किया, उन सबको उसने मारा है। त्रिपाठी सन्न रह गए। अब सिलसिलेवार पूछताछ जरूरी थी। रात के 10 बजे… पूरा इलाहाबाद रजाई की कुनकुनाहट में दुबक चुका था। सिविल लाइन पुलिस थाने में एसएन त्रिपाठी अपनी टेबल पर लिखा-पढ़ी कर रहे थे। कुछ देर बाद उन्होंने डायरी उठाई और रिमांड रूम की ओर चल दिए। भीतर राजा कोलंदर एक कुर्सी पर बैठा था। सामने एक मेज पड़ी थी। त्रिपाठी ने डायरी मेज पर पटकते हुए पूछा- “क्या है ये…” कोलंदर मुस्कुराया। बोला- “राजा की डायरी” एसएन त्रिपाठी- “अंगरेजी न बतावा… एकइ कंटाप में सारी मसखरी निकल जाई। काली प्रसाद कौन है?” कोलंदर- “हमारे साथ छिवकी में काम करत रहे। 50 हजार रुपए लिए थे हमसे… लौटाए का नामइ नहीं ले रहा रहै… ऊपर से तकनीकी बतियात रहे। एक दिन गर्दन हिलाय-हिलाय के बोला- ‘लाला की खोपड़ी है, आसान नहीं है पैसा लेना।’” अचानक कोलंदर का चेहरा सख्त हो गया। तनकर कुर्सी पर सीधा बैठ गया और तमककर बोला- “राजा से धोखा कर रहा था… राजा कोलंदर से। सजा तो मिलनी ही थी। एक दिन फॉर्म पर बुलाया, बातचीत की और उसी समय सिर धड़ से अलग कर दिया…। वहीं, पीपल के नीचे गड़ा है ससुरा। फिर हम दोनों साला-बहनोई ने उसकी खोपड़ी उबाली और उसके सिर का रस पिया।” इतना कहकर कोलंदर चुप हो गया। पूरे रिमांड रूम में सन्नाटा छा गया। दूर कहीं से कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी। अचानक जांच अधिकारी त्रिपाठी की ध्यान टूटा। बोले- “क्या हो तुम… इंसान तो नहीं हो सकते? नरपिशाच हो, आदमखोर वहशी हो… आखिर क्या हो?” कोलंदर ने धीरे से सिर उठाया और बोला- “राजा… राजा कोलंदर हैं हम” एसएन त्रिपाठी का दिमाग चकराने लगा था। उन्होंने पूछताछ वहीं रोक दी। पुलिसवाले की हिम्मत जवाब दे गई थी। अगले दिन एसएसपी पीके तिवारी, एसपी सिटी लालजी शुक्ला, इंस्पेक्टर कोतवाली राधेश्याम त्रिवेदी और जांच अधिकारी एसएन त्रिपाठी पूरे दल-बल के साथ राजा कोलंदर के पिगरी फॉर्म पहुंचे। उसकी निशानदेही पर खुदाई हुई, तो जमीन ने राज उगलने शुरू कर दिए… नरकंकाल मिले, 2 लाशें मिलीं। एक इंसानी खोपड़ी को लाल रंग से रंगा था। ये काली प्रसाद श्रीवास्तव की थी। ‘लाला की खोपड़ी, लाल रंग से रंगी थी।’ दूसरी खोपड़ी सफेद थी। राजा ने मुंह खोला- “ये मोइन है… हमारे साथ ही काम करता था, छिवकी में… 25 हजार लिए थे। जब वापस मांगे, तो कहने लगा- ‘मैं सम्मोहन विद्या जानता हूं। कोई मुझसे पैसे वापस नहीं ले सकता।’ एक दिन ले गए साले को यमुना पुल पे… काट के उंहीं बहाय दिए, जमुना जी में…। खोपड़िया में सम्मोहन बिद्या रहे न… सो काटि के लिए आए। उबालि के पी गए…” त्रिपाठी बुदबुदाए- “नर नहीं, नरपिशाच है ये आदमी…।” फॉर्म से कई नरकंकाल मिले। एक कोट भी बरामद हुआ। कोट पर चिट लगी थी- अप्सरा टेलर्स, रायबरेली… एसपी सिटी लालजी शुक्ला के दिमाग में अचानक से कुछ कौंधा। उन्होंने सारी कड़ियां जोड़ीं और ऑफिस आकर फोन घुमाया… मार्च 2001, लखनऊ एसपी सिटी पूर्वी राजेश कुमार पांडेय अपने ऑफिस में बैठे किसी केस की फाइल देख रहे थे। तभी फोन की घंटी बनी… उन्होंने फोन उठाया। उधर से आवाज आई- “हां, राजेश… लालजी शुक्ला बोल रहा हूं। एसपी सिटी इलाहाबाद…” राजेश पांडेय- “जय हिंद साब…” लालजी शुक्ला- “जय हिंद, जय हिंद… भई आपके यहां पिछले साल एक टाटा सूमो गायब हुई थी। कुछ दिन बाद उसके मालिक और ड्राइवर की डेडबॉडी मिली थी। वो केस का क्या हुआ…?” राजेश पांडेय- “कुछ पता नहीं चला साहब… सारी जांच-पड़ताल घूम-फिरकर एक ही जगह अटक जाती है।” लालजी शुक्ला- “हूं… अच्छा, एक लीड मिली है। वो पत्रकार धीरेंद्र सिंह का केस तो सुना होगा तुमने। उसके कातिल के यहां से एक कोट मिला है रायबरेली का… चोरी की एक टाटा सूमो भी है। एक टीम भेजकर दिखवालो इसे…” राजेश पांडेय- “जी, ठीक है… मैं फौरन एक टीम रवाना करता हूं।” एक सब-इंस्पेक्टर और 2 सिपाहियों की टीम इलाहाबाद रवाना हुई। सबसे पहले कोलंदर से बरामद टाटा सूमो की चेकिंग हुई। गाड़ी का नंबर और रंग FIR की डिटेल से मैच नहीं कर रहा था। शायद बदल दिए गए थे। इंजन नंबर और चेचिस नंबर चेक किया गया तो FIR कॉपी से मैच कर गए। अब कोलंदर से पूछताछ की बारी थी। टीम थाने पहुंची। पूछताछ शुरू हुई… इंस्पेक्टर ने पूछा- “रवि और मनोज को क्यों मारा? इन लोगों ने भी पैसे उधार लिए थे?” कोलंदर- “अरे नहीं साब, जिनके पास टाटा सूमो होगी, वो हमसे उधार क्यों लेगा? हमें तो गाड़ी चाहिए थी। अब बिना मारे तो गाड़ी मिलती नहीं… सो मार दिए दोनों को।” ‘राजा की डायरी’ के पन्ने पलटते गए और एक-एक मर्डर की कहानी सामने आती गई… 1998 – काली प्रसाद श्रीवास्तव, पवन यादव, मोहम्मद मोईन, त्रिभुवन सिंह
1999 – अशोक कुमार, संतोष, हेरिया, शंकरलाल, राजू
2000 – रवि श्रीवास्तव, मनोज सिंह, पप्पू पासी, सुल्ताना और धीरेंद्र सिंह कुल 14 हत्याएं… पत्रकार धीरेंद्र के दोस्त और वरिष्ठ पत्रकार रतिभान त्रिपाठी बताते हैं- जब उसे हमारे सामने पेश किया तो यकीन नहीं हो रहा था कि उसने ही हमारे दोस्त धीरेंद्र को मारा है। न जाने कितने कत्ल किए हैं। राजा कोलंदर साधारण अपराधी नहीं, सीरियल किलर था। ऐसे किलर अलग-अलग मकसद के लिए हत्याएं करते हैं। कोलंदर का मकसद ताकत हासिल करना था। राजा कोलंदर ने कायस्थ यानी लाला को मारकर उसकी खोपड़ी का सूप पिया। वो मानता था कि लाला के पास दिमाग बहुत होता है। अगर मैं उसकी खोपड़ी का सूप पीयूंगा तो उसकी बुद्धि मुझमें आ जाएगी। मुस्लिम की खोपड़ी के बारे में उसका कहना था कि ये खुराफाती होते हैं। इनके पास बहुत ताकत होती है। अगर हम इनका सूप पीएंगे तो मुस्लिमों की तरह ताकतवर हो जाएंगे। इसी तरह उसने कई जातियों के लोगों के सिर उबालकर पिए थे, ताकि वो ऐसा इंसान बन जाए, जिसके पास बल, विद्या, बुद्धि, धूर्तता सब कुछ हो। कुल मिलाकर वो अपने आप को भगवान बनाना चाहता था। पत्नी का नाम बदलकर फूलन देवी करना, बच्चों के नाम ‘अदालत, जमानत और आंदोलन’ रखना, पैसे उधार देकर महाजनी करना, चुनाव लड़ना-जीतना, इलाके की राजनीति में दखल रखना- ये सब ताकत और रुतबे के लिए उसके अंधी भूख की ओर इशारा करते हैं। 23 मई 2025… लखनऊ की एडिशनल जज कोर्ट। कटघरे में करीब 65 साल का एक बुजुर्ग खड़ा है। सिर पर लंबी शिखा, सफेद कुर्ता-पायजामा, कांधे पर गमछा। सामने बैठे जज रोहित सिंह ने फैसला पढ़ना शुरू किया। “अभियुक्त ने साजिश के तहत रवि श्रीवास्तव और मनोज सिंह की हत्या की। ये पेशेवर अपराधी है। आईपीसी के तहत अभियुक्त राम निरंजन उर्फ राजा कोलंदर और बच्छराज को उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है।” कटघरे में खड़ा राजा कोलंदर खिलखिलाकर हंस पड़ा… चेहरे पर शिकन की एक लकीर तक नहीं। कोर्ट से जेल जाते वक्त कोलंदर और बच्छराज आपस में हंसी-ठिठोली करते रहे। दिसंबर, 2000 में गिरफ्तार होने के बाद 16 साल तक राजा कोलंदर नैनी सेंट्रल जेल में बंद रहा। इस बीच 1 दिसंबर, 2012 को पत्रकार धीरेंद्र सिंह के मर्डर केस का फैसला आया। इलाहाबाद जिला अदालत ने राजा कोलंदर और बच्छराज दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई। 2016 में कोलंदर को लखनऊ जेल और फिर 2019 में उन्नाव जेल शिफ्ट कर दिया गया। इस वक्त कोलंदर वहीं बंद है। कई केसों का ट्रायल अभी भी चल रहा है। धीरेंद्र सिंह, रवि श्रीवास्तव और मनोज सिंह के परिवारों ने राजा कोलंदर को फांसी की सजा दिलाने के लिए हाईकोर्ट में अपील की है। **** (यह रियल स्टोरी पुलिस चार्जशीट, केस से जुड़े पुलिस ऑफिसर, वकील, जर्नलिस्ट और स्थानीय लोगों से बातचीत पर आधारित है। कहानी को रोचक बनाने के लिए क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए लिखा गया है।)