कुलदीप सेंगर की छोटी बेटी बोली- थकी हूं, डरी हूं:मुझे हर दिन रेप-मर्डर की धमकी मिलती है; उन्नाव केस पर भावुक अपील

भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की छोटी बेटी इशिता सेंगर ने सोमवार को एक इमोशनल पोस्ट लिखी। उन्नाव रेप केस के 8 साल बाद इशिता सेंगर ने पहली बार अपनी पीड़ा एक खुले लेटर के जरिए देश के सामने रखी है। इशिता ने खुद को थकी हुई और डरी-सहमी बताया। कहा- मैंने 8 साल इंतजार किया। लेकिन अब धीरे-धीरे अपना विश्वास खो रही हूं। इसलिए लिख रही हूं। इन वर्षों में मुझे सोशल मीडिया पर कई बार टारगेट किया गया। कहा गया कि मेरा बलात्कार होना चाहिए। मार दिया जाना चाहिए। इशिता का यह लेटर तब आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें उनके पिता की आजीवन कारावास की सजा को सस्पेंड कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 23 दिसंबर के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। निर्देश दिया कि कुलदीप सिंह सेंगर को उन्नाव रेप केस में जेल से रिहा नहीं किया जाएगा। सेंगर की बड़ी बेटी ऐश्वर्या ने अपनी छोटी बहन इशिता के X पोस्ट को री-ट्वीट किया है। लिखा- लड़ेंगे, हारेंगे नहीं… अब इशिता सेंगर का लेटर हूबहू पढ़िए… मैं डरी और थकी हुई हूं। धीरे-धीरे विश्वास खो रही हूं। लेकिन उम्मीद नही छोड़ी। मैंने और मेरे परिवार ने धैर्य पूर्वक 8 साल से इंतजार किया। यह मानते हुए कि अगर हम सब कुछ सही तरीके से करेंगे, तो सच खुद-ब-खुद सामने आ जाएगा। हमने कानून-संविधान पर भरोसा किया। लेकिन मेरा यह विश्वास टूट रहा है। आज मैं इसलिए लिख रही हूं। मेरी बात सुने जाने से पहले ही मेरी पहचान एक ठप्पे में बदल दी जाती है- बीजेपी विधायक की बेटी। जैसे इससे मेरी इंसानियत मिट जाती हो। जिन लोगों ने मुझे कभी देखा नहीं, एक भी दस्तावेज नहीं पढ़ा, एक भी अदालती रिकॉर्ड नहीं देखा, उन्होंने तय कर लिया है कि मेरी जिंदगी की कोई कीमत नहीं है। इन वर्षों में सोशल मीडिया पर अनगिनत बार टारगेट किया गया। कहा गया कि मुझे बलात्कार का शिकार होना चाहिए, मार दिया जाना चाहिए। यह नफरत निरंतर है। जब आपको एहसास होता है कि इतने सारे लोग मानते हैं कि आप जीने के लायक भी नहीं हैं, तो यह आपको अंदर से तोड़ देता है। हमने मौन इसलिए नहीं चुना, क्योंकि हम शक्तिशाली थे, बल्कि इसलिए क्योंकि हम संस्थाओं में विश्वास रखते थे। हमने विरोध प्रदर्शन नहीं किए। हमने टेलीविजन बहसों में शोर नहीं मचाया। हमने पुतले नहीं जलाए और न ही हैश-टैग ट्रेंड किए। हमने प्रतीक्षा की क्योंकि हमारा मानना था कि सत्य को तमाशे की आवश्यकता नहीं होती। उस मौन की हमें क्या कीमत चुकानी पड़ी? हमारी गरिमा को धीरे-धीरे छीन लिया गया है। आठ वर्षों तक हर दिन हमारा अपमान किया गया, हमारा उपहास किया गया। हमें अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ा। एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर भागते-भागते, चिट्ठियां लिखते, फोन करते और अपनी बात सुनाने की गुहार लगाते हुए हम आर्थिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से पूरी तरह से थक चुके हैं। ऐसा कोई दरवाजा नहीं है जिस पर हमने दस्तक न दी हो। ऐसा कोई प्राधिकरण नहीं है जिससे हम संपर्क न कर चुके हों। ऐसा कोई मीडिया हाउस नहीं है जिसे हमने पत्र न लिखा हो। फिर भी किसी ने नहीं सुना। इसलिए नहीं कि तथ्य कमजोर थे। इसलिए नहीं कि सबूतों की कमी थी। बल्कि इसलिए कि हमारा सच असुविधाजनक था। लोग हमें ताकतवर कहते हैं। मैं पूछती हूं- किस तरह की ताकत आठ साल तक किसी परिवार को बे-आवाज छोड़ देती है? कैसी ताकत होती है, जिसमें आप रोज अपना नाम कीचड़ में घसीटते देखते हैं, चुपचाप बैठे रहते हैं। एक ऐसे सिस्टम पर भरोसा करते हुए, जो आपकी मौजूदगी को स्वीकार करने को भी तैयार नहीं दिखता? जानबूझकर डर पैदा किया गया, ताकि जज, पत्रकार, संस्थाएं और आम नागरिक सब खामोशी में धकेल दिए जाएं। एक ऐसा डर, ताकि कोई हमारे साथ खड़ा होने की हिम्मत न करे, कोई हमें सुनने की हिम्मत न करे। कोई यह कहने की हिम्मत न करे- आइए, तथ्यों को देखें। यह सब होते देखना मुझे गहराई से झकझोर गया है। अगर सच को इतनी आसानी से आक्रोश और गलत जानकारी में डुबो दिया जा सकता है, तो मेरे जैसी इंसान कहां जाए? अगर दबाव और सार्वजनिक उन्माद सबूतों और उचित प्रक्रिया पर हावी होने लगें, तो एक आम नागरिक के पास सचमुच कौन-सी सुरक्षा बचती है? मैं यह पत्र किसी को धमकाने के लिए नहीं लिख रही हूं। मैं यह पत्र सहानुभूति पाने के लिए नहीं लिख रही हूं। मैं इसलिए लिख रही हूं, क्योंकि मैं डरी हुई हूं। क्योंकि मुझे अब भी विश्वास है कि कहीं न कहीं कोई ऐसा होगा, जो सुनने की परवाह करेगा। हम किसी एहसान की मांग नहीं कर रहे। हम यह नहीं कह रहे कि हमारी पहचान के कारण हमें संरक्षण मिले। हम न्याय मांग रहे हैं, क्योंकि हम इंसान हैं। कृपया कानून को बिना डर के बोलने दीजिए। कृपया सबूतों को बिना दबाव के परखा जाने दीजिए। कृपया सच को सच माना जाए। मैं एक बेटी हूं, जिसे अब भी इस देश पर भरोसा है। कृपया मुझे उस भरोसे पर पछताने के लिए मजबूर मत कीजिए। सादर
न्याय की प्रतीक्षा में एक बेटी भास्कर पोल में हिस्सा लेकर अपनी राय दे सकते हैं… सेंगर की दो बेटियां, भांजा संभाल रहा राजनीतिक विरासत
कुलदीप सिंह सेंगर के परिवार में पत्नी संगीता सिंह सेंगर और दो बेटियां हैं। संगीता सिंह उन्नाव की जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। बड़ी बेटी ऐश्वर्या सेंगर वकील हैं। जबकि छोटी बेटी इशिता दिल्ली में पढ़ रही हैं। सेंगर की राजनीतिक विरासत उनके भांजे अंतरांजय सिंह (गोल्डी राजा) संभाल रहे हैं। वकील बेटी ने कहा- पिता ने नार्को टेस्ट की मांग की, लड़की ने ठुकरा दिया
कुलदीप सिंह सेंगर की बेटी ऐश्वर्या सेंगर ने कहा, मेरे पास पक्का सबूत है, और आपने मीडिया में भी देखा होगा कि जब जांच शुरू हुई थी, तो मेरे पिता ने नार्को टेस्ट की मांग की थी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उस समय, मेरे पिता के CDR और तस्वीरों से साफ पता चलता है कि वह उस दिन उस जगह पर मौजूद नहीं थे। हमारे पास सारे सबूत हैं जो साबित करते हैं कि जिस दिन वह घटना होने का दावा कर रही है, उस दिन वह वहां नहीं थे। शुरुआत से लेकर अभी तक कहानियां बदलती जा रही है। अब उन्नाव रेप केस और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जानिए… कुलदीप सेंगर की जमानत पर रोक, पीड़ित रोई, कहा- फांसी दिलाऊंगी उन्नाव रेप केस में रेपिस्ट पूर्व BJP विधायक कुलदीप सेंगर की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। कोर्ट ने सेंगर को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा। मामले में 4 हफ्ते बाद सुनवाई होगी। सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर को जमानत दी थी। जमानत के खिलाफ CBI ने सुप्रीम कोर्ट में 3 दिन पहले याचिका लगाई थी। सोमवार को चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच में सुनवाई हुई। बेंच ने दोनों पक्षों की करीब 40 मिनट तक दलीलें सुनीं। CJI ने कहा- हाईकोर्ट के जिन जजों ने सजा सस्पेंड की, वे बेहतरीन जजों में गिने जाते हैं, लेकिन गलती किसी से भी हो सकती है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा- कोर्ट को लगता है कि मामले में अहम सवालों पर विस्तार से विचार जरूरी है। आमतौर पर कोर्ट का सिद्धांत है कि किसी दोषी या विचाराधीन कैदी को रिहा कर दिया गया हो, तो बिना उसे सुने ऐसे आदेशों पर रोक नहीं लगाई जाती, लेकिन इस मामले में परिस्थितियां अलग हैं। क्योंकि आरोपी दूसरे मामले में पहले से दोषी ठहराया जा चुका है। ऐसे में दिल्ली हाईकोर्ट के 23 दिसंबर 2025 के आदेश पर रोक लगाई जाती है। इससे पहले, कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- ये भयावह मामला है। धारा-376 और पॉक्सो के तहत आरोप तय हुए थे। ऐसे मामलों में न्यूनतम सजा 20 साल की कैद हो सकती है, जो पूरी उम्र की जेल तक बढ़ाई जा सकती है। पढ़ें पूरी खबर… 4 पॉइंट में जानिए उन्नाव गैंगरेप केस ————– यह खबर भी पढ़िए… क्या यूपी में चुनाव लड़ पाएगा कुलदीप सेंगर:रेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर लगाई रोक, हत्या के आरोप में पहले से जेल में है सेंगर उन्नाव रेप केस में भाजपा नेता और बांगरमऊ से तत्कालीन विधायक कुलदीप सेंगर की सजा सस्पेंड कर दी गई। हालांकि, इसके बाद भी वो जेल से बाहर नहीं आ पाया। क्योंकि, रेप पीड़ित के पिता की हत्या के मामले में सेंगर उम्रकैद की सजा काट रहा। सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या कुलदीप सेंगर 2027 का विधानसभा चुनाव लड़ सकता है? दिल्ली हाईकोर्ट से राहत मिलने का क्या कोई मतलब है? सीबीआई अब क्या करेगी? दूसरे कौन-कौन से मामले चल रहे हैं, उनमें क्या सजा हो सकती है? सीबीआई के पास ऐसे क्या सबूत थे, जिससे सजा हुई थी? पढ़ें पूरी खबर…