शास्त्रीय गायक और पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र का गुरुवार तड़के निधन हो गया। वे 89 साल के थे। उन्होंने सुबह 4.15 बजे बेटी नम्रता मिश्रा के मिर्जापुर स्थित घर पर अंतिम सांस ली। शास्त्रीय संगीत से लोगों के दिलों में जगह बनाई। उनका ‘खेले मसाने में होली…’ गीत आज भी हर किसी की जुबां पर है। नम्रता ने बताया- अंतिम संस्कार आज शाम काशी के मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा। पंडित छन्नूलाल मिश्र 2014 लोकसभा चुनाव में PM मोदी के प्रस्तावक रहे थे। पंडित छन्नूलाल मिश्र की तबीयत 7 महीने से खराब थी। हाल ही में वो 17 दिन हॉस्पिटल में एडमिट रहे थे। 11 सितंबर को मिर्जापुर में बेटी के घर तबीयत बिगड़ी। सीने में दर्द की शिकायत के बाद उन्हें रामकृष्ण सेवाश्रम हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। 13 सितंबर की रात BHU के सर सुंदरलाल अस्पताल लाया गया। तबीयत में सुधार होने पर उन्हें 27 सितंबर को डिस्चार्ज किया गया। फिर वह बेटी के घर मिर्जापुर चले गए थे। BHU की मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद डॉक्टरों ने बताया था- पंडित छन्नूलाल को एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (ARDS) है। फेफड़ों में गंभीर सूजन है। उन्हें टाइप-2 डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, ऑस्टियोआर्थराइटिस और प्रोस्टेट बढ़ा है। आजमगढ़ के हरिहरपुर में जन्मे
पंडित छन्नूलाल मिश्र का जन्म 3 अगस्त 1936 को यूपी के आजमगढ़ स्थित हरिहरपुर में हुआ था। उनके दादा गुदई महाराज शांता प्रसाद एक प्रसिद्ध तबला वादक थे। छन्नूलाल ने छह साल की उम्र से ही अपने पिता बद्री प्रसाद मिश्र से संगीत की बारीकियां सीखनी शुरू कीं। 9 साल की उम्र में उनके पहले गुरु किराना घराने के ‘उस्ताद अब्दुल गनी खान’ ने खयाल सिखाया। इसके बाद ठाकुर जयदेव सिंह ने उन्हें प्रशिक्षित किया। बिहार में संगीत की पढ़ाई, 4 दशक पहले वाराणसी आए
पंडित छन्नूलाल को खयाल, ठुमरी, भजन, दादरा, कजरी और चैती के लिए जाना जाता था। इनकी संगीत की शिक्षा बिहार के मुजफ्फरपुर में हुई। करीब 4 दशक पहले वाराणसी आए। यहां संगीत साधना की धार को और तेज किया। शास्त्रीय-लोक विधाओं के अनूठे संगम के लिए देश-दुनिया में विख्यात थे। मोदी के प्रस्तावक रहे, पद्मभूषण और पद्मविभूषण से सम्मानित हुए
पंडित छन्नूलाल मिश्र ने धर्म नगरी काशी को अपनी कर्मभूमि बनाया। उन्होंने यहीं रहकर शास्त्रीय संगीत में महारथ हासिल की। साल 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2010 में पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। 2014 में वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक बने। वहीं, 2021 में उन्हें पद्मविभूषण सम्मान से नवाजा गया। 4 दिन में कोरोना से पत्नी और बेटी ने दम तोड़ दिया था
पंडित छन्नूलाल मिश्रा की पत्नी और बेटी का निधन कोरोना संक्रमण की वजह से हुआ था। पत्नी मनोरमा मिश्रा ने 26 अप्रैल 2021 को अंतिम सांस ली थी। इसके बाद 29 अप्रैल 2021 को बड़ी बेटी संगीता मिश्रा ने मैदागिन स्थित निजी अस्पताल में दम तोड़ दिया था।
पंडित छन्नूलाल मिश्र का जन्म 3 अगस्त 1936 को यूपी के आजमगढ़ स्थित हरिहरपुर में हुआ था। उनके दादा गुदई महाराज शांता प्रसाद एक प्रसिद्ध तबला वादक थे। छन्नूलाल ने छह साल की उम्र से ही अपने पिता बद्री प्रसाद मिश्र से संगीत की बारीकियां सीखनी शुरू कीं। 9 साल की उम्र में उनके पहले गुरु किराना घराने के ‘उस्ताद अब्दुल गनी खान’ ने खयाल सिखाया। इसके बाद ठाकुर जयदेव सिंह ने उन्हें प्रशिक्षित किया। बिहार में संगीत की पढ़ाई, 4 दशक पहले वाराणसी आए
पंडित छन्नूलाल को खयाल, ठुमरी, भजन, दादरा, कजरी और चैती के लिए जाना जाता था। इनकी संगीत की शिक्षा बिहार के मुजफ्फरपुर में हुई। करीब 4 दशक पहले वाराणसी आए। यहां संगीत साधना की धार को और तेज किया। शास्त्रीय-लोक विधाओं के अनूठे संगम के लिए देश-दुनिया में विख्यात थे। मोदी के प्रस्तावक रहे, पद्मभूषण और पद्मविभूषण से सम्मानित हुए
पंडित छन्नूलाल मिश्र ने धर्म नगरी काशी को अपनी कर्मभूमि बनाया। उन्होंने यहीं रहकर शास्त्रीय संगीत में महारथ हासिल की। साल 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2010 में पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। 2014 में वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक बने। वहीं, 2021 में उन्हें पद्मविभूषण सम्मान से नवाजा गया। 4 दिन में कोरोना से पत्नी और बेटी ने दम तोड़ दिया था
पंडित छन्नूलाल मिश्रा की पत्नी और बेटी का निधन कोरोना संक्रमण की वजह से हुआ था। पत्नी मनोरमा मिश्रा ने 26 अप्रैल 2021 को अंतिम सांस ली थी। इसके बाद 29 अप्रैल 2021 को बड़ी बेटी संगीता मिश्रा ने मैदागिन स्थित निजी अस्पताल में दम तोड़ दिया था।