प्रयागराज पहुंचे CJI बीआर गवई ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को सच्चा देशभक्त बताया। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब का मानना था कि न्यायपालिका स्वतंत्र होनी चाहिए। पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में क्या हुआ सबने देखा। देश के बाहर और भीतर के कुछ इश्यूज के बावजूद भारत अखंड बना हुआ है, यह संविधान की ही देन है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, शनिवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आयोजित सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे। उन्होंने कहा- पिछले 75 सालों में हमने देखा है कि कई ऐसे अधिकार, जिन्हें संविधान निर्माताओं ने शुरू में मौलिक अधिकार के रूप में नहीं सोचा, अब न्यायपालिका द्वारा मौलिक अधिकार के रूप में उन्हें मान्यता दी गई। SC ने मौलिक अधिकारों में किया बदलाव CJI ने कहा कि पहले सुप्रीम कोर्ट का मत था कि केवल भाग 3 में दिए गए अधिकार ही मौलिक हैं। लेकिन समय के साथ कानून का विकास हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो भी अधिकार अनुच्छेद 14 और 21 की भावना से प्रवाहित होते हैं, वे भी मौलिक अधिकार माने जाएंगे। 75 सालों में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने कई अधिकारों को इसी आधार पर मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया। जीवन का अधिकार केवल जीवित रहने का अधिकार नहीं है, बल्कि मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। जीवन के अधिकार में आश्रय का, भोजन और वस्त्र का अधिकार शामिल है। प्रदूषण रहित पर्यावरण और स्वच्छता का अधिकार भी इसमें शामिल है। इसके अलावा उचित चिकित्सा सुविधा प्राप्त करने का अधिकार, जबरन श्रम से मुक्ति का अधिकार और इसी तरह के अन्य अधिकार भी इसमें निहित हैं। इसमें व्यक्ति की एकता और गरिमा पर विशेष बल दिया गया है। अब CJI के संबोधन की 7 बड़ी बातें पढ़िए… 1- संविधान के भाग 4 में शामिल नीति निदेशक तत्वों पर बल दिया गया है। संविधान के निर्माताओं ने पूरे संविधान को एक अहिंसक क्रांति का हथियार बताया था, ताकि देश में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय स्थापित किया जा सके। हमारे संविधान का भाग 3, नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है ताकि वे गरिमा के साथ जीवन जी सकें। वहीं, नीति निदेशक तत्व उस दिशा को दर्शाते हैं जिससे हम सामाजिक और आर्थिक न्याय के उद्देश्यों को प्राप्त कर सकें। 2- शुरुआती सालों में भारतीय न्यायालयों का झुकाव मौलिक अधिकारों की सर्वोच्चता की ओर था। जब भी मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्वों के बीच टकराव होता था, तो न्यायालय मौलिक अधिकारों को प्राथमिकता देते थे। कई कानून ऐसे भी आए जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करते थे, लेकिन 13 न्यायाधीशों की बेंच ने ऐतिहासिक केसवानंद भारती केस में यह तय किया कि संविधान संशोधन की शक्ति सीमित है। 3- शंकर प्रसाद मामले में यह कहा गया था कि संसद को संविधान संशोधन का असीमित अधिकार है, लेकिन बाद में इस पर पुनर्विचार हुआ। गोलकनाथ और केशवानंद भारती जैसे मामलों में यह मत रखा गया कि संसद की संशोधन शक्तियां असीमित नहीं हैं। संसद संविधान का ऐसा संशोधन नहीं कर सकती जो इसकी मूल संरचना को नष्ट करे। 4- केशवानंद भारती केस में न्यायालय 6-6 के अनुपात में विभाजित था, और अंततः एक निर्णायक मत ने यह तय किया कि संसद के संशोधन की शक्ति सीमित है। संसद संविधान को बदल सकती है, लेकिन उसकी बुनियादी संरचना को नहीं छू सकती। 5- इस निर्णय में न्यायालय ने संविधान की मूल विशेषताओं जैसे विधि का शासन (Rule of Law), संविधान की सर्वोच्चता, तीनों अंगों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संघीय ढांचे को संविधान के मूल तत्व घोषित किया। 6- जहां तक मौलिक अधिकारों और नीति निदेशक तत्वों का प्रश्न है, न्यायालय ने यह माना कि इनके बीच कोई टकराव नहीं है। वे एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों मिलकर ही संविधान को संपूर्ण बनाते हैं। न्यायालय ने कहा कि मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्व संविधान के दो पहिए हैं, जिनमें से एक भी रुका तो संविधान की गति ठहर जाएगी। 7- कभी-कभी ऐसे कदम मौलिक अधिकारों से टकराते हैं, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने सदैव यह माना है कि यदि कोई कानून या कार्य नीति निदेशक तत्वों में निहित सामाजिक न्याय के वायदे को पूरा करता है, तो उसे संवैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए। इलाहाबाद विवि में साइंस फैकल्टी की न्यू बिल्डिंग का किया उद्घाटन चीफ जस्टिस ने सेमिनार के पहले साइंस फैकल्टी में नवनिर्मित बिल्डिंग का भी उद्घाटन किया। इसमें न्यू केमेस्ट्री बिल्डिंग, लेक्चर थियेटर कांप्लेक्स व न्यू लाइब्रेरी बिल्डिंग शामिल हैं। उन्होंने प्रयागराज शहर की प्रशंसा की। कहा- पालिटिकल, साेशल मूवमेंट व शिक्षा तीनों का त्रिवेणी प्रयागराज है। CJI ने अपने सम्मान के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन का आभार जताया। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव की तारीफ करते हुए उन्हें डिसप्लिन्ड कुलपति बताया। संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं- जस्टिस विक्रम नाथ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ बोले- “हम भारतीयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम संविधान को केवल एक दस्तावेज के रूप में न देखें, बल्कि उसे एक ऐसे माध्यम के रूप में अपनाएं, जो समाज में परिवर्तन लाने का साधन बने। संविधान वह शक्ति है जो वर्ग, जाति और लिंग के आधार पर चली आ रही, असमानताओं को समाप्त करने का मार्ग दिखाती है। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने जिस संविधान की कल्पना की थी, वह केवल कानून की पुस्तक नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता का सशक्त प्रतीक है। मैं आज उन्हें स्मरण करता हूं कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम और अटूट विश्वास से भारत को नई दिशा दी। सर्वोच्च न्यायालय तक की उनकी यात्रा केवल पेशेवर उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह डॉ. अंबेडकर के सपनों का सजीव प्रतीक है- उनकी शिक्षा, उनकी बुद्धिमत्ता और उनके दृढ़ निश्चय का प्रमाण। न्यायमूर्ति गवई का न्यायिक करियर उनकी संविधान की गहरी समझ, नियमों के प्रति सम्मान, न्याय के प्रति संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण को दर्शाता है। वे केवल एक न्यायाधीश नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनमें बुद्धिमत्ता और करुणा दोनों का अद्भुत संगम है। आज मैं केवल एक सहकर्मी के रूप में नहीं, बल्कि एक मित्र के रूप में उनके बारे में बोलना चाहता हूं। पिछले सात सालों से उन्हें जानने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है। इस अवधि में मैंने उनमें न केवल असाधारण ईमानदारी और बुद्धि देखी है, बल्कि एक ऐसे सच्चे मित्र को पाया है जो विनम्रता, विवेक और संवेदना से भरा हुआ है। कौशांबी भी पहुंचे CJI भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई शुक्रवार शाम प्रयागराज पहुंचे। वह शाम करीब 5:15 बजे विशेष विमान से बमरौली एयरपोर्ट पहुंचे। एयरपोर्ट से वह सीधे हाईकोर्ट गेस्ट हाउस गए। हाईकोर्ट गेस्ट हाउस में उन्होंने न्यायिक अधिकारियों से मुलाकात की। इससे पहले एयरपोर्ट पर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने उनका स्वागत किया। सीजेआई, कौशाम्बी भी पहुंचे थे। जस्टिस विक्रमनाथ के न्यौता पर वह मूरतगंज में माहेश्वरी प्रसाद इंटरमीडिएट कॉलेज के वार्षिकोत्सव में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने छात्रों के साथ भी संवाद किया। जस्टिस विक्रम नाथ इस विद्यालय के संरक्षक हैं। —————————– यह खबर भी पढ़ें…. बांके बिहारी के दर्शन टाइम पर फिर विवाद:सेवायत बोले- VIP कल्चर खत्म करें, संतों ने कहा- तहखाने में खाली डिब्बे क्यों मिले, CBI जांच हो बांके बिहारी मंदिर में दर्शन समय में फिर बदलाव की तैयारी है। 3 नवंबर से 45 मिनट पहले ठाकुरजी के कपाट खोले जाएंगे। 8 बजे से शुरू होने वाले दर्शन की खिलाफत मंदिर के सेवायत कर रहे हैं। दूसरी तरफ, बांके बिहारी के तहखाने में कोई खास खजाना कमेटी को नहीं मिला है, ऐसे में 12 बैंकों में जमा 350 करोड़ रुपए का पूरा ब्योरा बैंकों से मांग लिया गया है। तैयारी है कि हर दिन मंदिर में आने वाले फंड की लिस्टिंग की जाए। ये रुपया कैसे खर्च किया जा रहा है? इसका ब्योरा भी तैयार हो। हर महीने की 30 तारीख को इसका ऑडिट किया जाएगा। पढ़िए पूरी खबर…