तारीख- 17 जनवरी 2007। प्रयागराज में करेली का मेहमूदाबाद मदरसा। अचानक मदरसे के हॉस्टल के दरवाजे पर दस्तक हुई। 3 बंदूकधारी अंदर घुसे। तीनों सीधे हॉल में पहुंचे, जहां हॉस्टल की लड़कियां सोती थीं। धमकी देकर पहले लड़कियों के नकाब हटवाए गए। बंदूकधारी दरिंदों ने उनमें से 2 नाबालिग लड़कियों को चुना और साथ ले जाने लगे। लड़कियां उनके पैरों में गिर गईं, रहम की भीख मांगी। लेकिन, शैतानों का दिल नहीं पसीजा। दोनों को उठाकर ले गए। आगे नदी के किनारे दोनों लड़कियों से 5 लोगों ने कई बार रेप किया। सुबह दोनों को खून से लथपथ हालत में मदरसे के दरवाजे पर फेंक कर भाग निकले। बसपा सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ से ही ऐलान कर दिया कि इस कांड में सत्ता से जुड़े नेता और उनके गुर्गे शामिल हैं। उनका इशारा अतीक अहमद की तरफ था। बाद में जब वो सत्ता में लौटीं, तो सबसे पहले अतीक के कार्यालय पर बुलडोजर चलवा दिया। आज अतीक अहमद और मायावती की चर्चा बसपा सरकार में कायम कानून व्यवस्था को लेकर है। बसपा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी किया। इसमें यूपी की वर्तमान सरकार की कानून व्यवस्था पर हमला किया गया है। वीडियो का सांग है- बहन जी को आने दो, अपराध मिटाने दो। बसपा क्यों कानून व्यवस्था को मुद्दा बना रही? बसपा राज में कानून व्यवस्था के हालत क्या थे? पढ़िए ये रिपोर्ट… बसपा परिवार की ओर से जारी ड्रामेटिक वीडियो में क्या है
ये वीडियो बसपा परिवार की ओर से जारी किया गया है। वीडियो की लंबाई 1.10 मिनट की है। वीडियो में एक महिला अपनी बेटी के साथ दिखती है। वह बेटी को इशारे से एक प्लॉट दिखाते हुए कहती है कि ये है हमारी जमीन, पापा ने तुम्हारे लिए दिलाई थी। तभी वहां गुर्गों के साथ एक नेताजी आते हैं। महिला के प्लॉट पर कब्जा कर खुद का बोर्ड लगवा देते हैं। बेटी को लेकर महिला नेताजी के पास गुहार लगाने पहुंचती है, तो वे डांट कर भगा देते हैं। तभी वहां पुलिस पहुंचती है, लेकिन नेता को देखकर प्रणाम कर वह भी लौट जाती है। इसके बाद महिला कहती है कि बस कुछ दिन की बात और है बेटा। बहन जी को आने दो। इस पूरे ड्रामा के वीडियो के साथ एक सांग बजता है- जितना लूटना था, वो लूट चुके, सपने आंखों के टूट चुके। अपराध मिटाने को, बहन जी को आने दो। बसपा कानून व्यवस्था को क्यों मुद्दा बना रही
इसका जवाब वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम देते हैं। कहते हैं- प्रदेश में सपा-बसपा और वर्तमान भाजपा की सरकार लोगों ने देखा है। लेकिन, आज भी लोग बसपा सरकार की कानून व्यवस्था को याद करते हैं। बसपा सरकार में निष्पक्ष न्याय होता लोग महसूस भी करते थे। आज की तरह नौकरशाह या पुलिस निरंकुश नहीं थी। 2007 में बसपा यूपी की सत्ता में सपा सरकार की बदहाल कानून व्यवस्था को ही मुद्दा बनाकर काबिज हुई थी। तब मायावती ने नारा दिया था- चढ़ गुंडों की छाती पर, मोहर दबेगी हाथी पर। ये नारा इतना हिट हुआ कि यूपी की जनता ने 1993 के बाद पहली बार किसी सरकार को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता सौंपी थी। बसपा एक बार फिर अपने इसी आजमाए हुए फार्मूले पर लौटने की कोशिश में जुटी है। वर्तमान सरकार भले भी कानून-व्यवस्था को लेकर ही सत्ता में है। लेकिन, समाज में एक वर्ग ऐसा भी है, जो सरकार में बैठे नेता और उनके इशारे पर चलने वाली पुलिस-प्रशासन से परेशान है। ऐसे लोगों के लिए बसपा एक विकल्प हो सकती है। खासकर दलित और अति पिछड़े समाज के लोगों को लगता है कि सपा में यादवों, तो भाजपा में सवर्णों को अधिक तरजीह मिल रही। ऐसे में वे नए विकल्प के तौर पर बसपा को फिर से चुन सकते हैं। मायावती सरकार की कानून व्यवस्था की धाक इस समाज के लोग देख चुके हैं। बसपा के लोग भी अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से लोगों को ये समझाने में जुटे हैं। बसपा सरकार में कानून-व्यवस्था के क्या थे हालात
बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल कहते हैं- मायावती सरकार में ही अयोध्या का पहला फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया था। ये फैसला 15 दिन के अंतराल पर आया था। ऐसे में पूरे प्रदेश में 15 दिनों तक लोग आशंकाओं-कुशंकाओं के चलते दहशत में थे। लेकिन, बहन मायावती ने जिस तरीके से पुलिस की फील्डिंग लगाई थी कि कहीं कोई चूं तक नहीं हुआ। ऐसा सख्त कानून का राज बसपा सुप्रीमो मायावती की सरकार में था। अपराधी चाहे मंत्री विधायक ही क्यों न हो, सभी को एक तराजू पर तौला गया। आज कोई सीएम इतनी हिम्मत और दिलेरी दिखा सकता कि केस दर्ज होने पर खुद की पार्टी के सांसद-विधायक को घर बुलाकर गिरफ्तार करा दे। दबंग नेताओं में शामिल राजा भैया हों या फिर मित्रसेन यादव के बेटे आनंद सेन हों। बहन मायावती ने ही सबसे पहले अतीक अहमद को कानूनी शिकंजे में लाया था। अतीक अहमद- मायावती ने ही अतीक की राजनीति पर पूर्णविराम लगाने का काम किया था। अतीक से अदावत की बड़ी वजह थी बसपा विधायक राजू पाल की हत्या। 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में अतीक अहमद का नाम सामने आया था। राजू पाल ने पहली बार प्रयागराज पश्चिमी सीट पर अतीक अहमद के वर्चस्व को चुनौती दी थी। ये अतीक बर्दाश्त नहीं कर पाया। बाद में मायावती ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को उपचुनाव में प्रत्याशी बनाया, पर वे हार गईं। जब 2007 में आम चुनाव हुआ, तो इसी शहर पश्चिमी से पूजा पाल बसपा के टिकट पर पति राजू की तरह एक बार फिर अतीक के वर्चस्व को तोड़ते हुए उसके भाई अशरफ को हरा दिया। विधानसभा चुनाव से पहले अतीक का नाम करेली के मेहमूदाबाद मदरसा कांड में भी आ चुका था। मायावती ने 2007 में सत्ता में आते ही सबसे पहले और बड़ी कार्रवाई माफिया अतीक अहमद पर की थी। रघुराज प्रताप सिंह : 2002 में भाजपा-बसपा के गठबंधन में मायावती सीएम थीं। तब भाजपा और अन्य सहयोगियों में कुछ लोग मायावती की सरकार से नाराज हो गए थे। इसमें राजपूत विधायकों की संख्या अधिक थी। मायावती को तब बताया गया कि इसके पीछे कुंडा के निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह है। इसके बाद मायावती ने रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया पर लखनऊ के हजरतगंज थाने में भाजपा के एक विधायक को धमकाने का केस दर्ज कराया। इसके बाद उन पर पोटा तक लगाया। पिता उदय प्रताप सिंह समेत करीबी लोगों को भी जेल जाना पड़ा था। कुंडा की बेंती तालाब को उन्होंने राजसात करते हुए पक्षी विहार तक घोषित कर दिया था। राजा भैया मायावती की इस अदावत को आज तक नहीं भूले हैं। मायावती के मुद्दे पर ही उनकी अखिलेश यादव तक से दूरी बढ़ चुकी है। उमाकांत यादव : 2007 में सूबे में मायावती की सत्ता थी। मछली-शहर से बसपा के सांसद उमाकांत यादव पर जौनपुर की एक ब्राह्मण महिला की जमीन फर्जी तरीके से रजिस्ट्री कराने का आरोप लगा। बाद में गीता नाम की महिला की याचिका पर जौनपुर दीवानी न्यायालय ने उन्हें इस मामले में दोषी बताते हुए 7 साल की सजा सुना दी। उमाकांत यादव पुलिस की गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार चल रहे थे। पुलिस भी पशोपेश में थी कि बसपा सरकार में उसके सांसद को कैसे गिरफ्तार करे? इसकी जानकारी मायावती को हुई। उन्होंने उमाकांत यादव को मिलने बंगले बुलाया। मायावती ने तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह को पहले ही इसकी सूचना देते हुए अपने आवास के बाहर पुलिस बुला ली। जैसे ही उमाकांत वहां पहुंचे, पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के बाद उमाकांत फिर कभी राजनीति में वापसी नहीं कर पाए। आनंद सेन : फैजाबाद के साकेत महाविद्यालय से कानून की पढ़ाई कर रही शशि नाम की स्टूडेंट अचानक 22 अक्टूबर, 2007 को गायब हो गई। बाद में उसकी घड़ी बरामद हुई। आरोप लगा था बसपा सरकार में खाद्य मंत्री रहे आनंद सेन पर। 2007 में चुनाव प्रचार के दौरान शशि, आनंद सेन के करीब आई थी। बाद में पता चला कि शशि, आनंद सेन के बच्चे की मां बनने वाली है। इसके बाद आनंद सेन ने ड्राइवर विजय सेन और महिला सीमा आजाद की मदद से उसका अपहरण कराकर हत्या करा दी थी। मायावती ने न सिर्फ इस मामले में आनंद सेन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई, बल्कि कोर्ट में भी पैरवी कराकर उनको सजा तक दिलाई। हालांकि, पुलिस कभी उस स्टूडेंट की लाश बरामद नहीं कर पाई। इसी आधार पर 2014 में आनंद सेन हाईकोर्ट से बरी भी हो गए थे। मायावती ने अपने 16 विधायक-मंत्रियों पर भी सख्त कार्रवाई की थी 9 अक्टूबर के कार्यक्रम से प्रदेश में माहौल बनाने की तैयारी बसपा न सिर्फ अपनी सरकार की कानून-व्यवस्था के जरिए प्रदेश में अपना आधार फिर से खड़ा करने की जुगत में जुटी है। 9 अक्टूबर कांशीराम की पुण्यतिथि पर ऐतिहासिक भीड़ जुटा कर वह अपनी खोई ताकत भी फिर वापस पाना चाहती है। बसपा की तैयारियों को देखते हुए जिस तरीके से प्रदेश में एक माहौल बन रहा है। उसी का नतीजा है कि लगातार कई जिलों में सपा के स्थानीय नेता पार्टी छोड़कर बसपा का दामन थाम रहे हैं। खासकर पंचायत चुनाव में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने वाले चेहरे बसपा में तेजी से शामिल हो रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल दावा करते हुए कहते हैं कि अप्रैल 2026 के बाद बसपा में शामिल होने वालों का तांता लग जाएगा। ………….. ये खबर भी पढ़ें… हापुड़ में युवक ने निगले 29 चम्मच, 19 टूथब्रश, 4-6 कप पेट में आराम से समा सकते हैं हापुड़ में 40 साल के सचिन ने नशे के गुस्से में 29 चम्मच, 19 टूथब्रश और 2 पेन निगल लिए। पेट में दर्द बढ़ने पर अस्पताल पहुंचा। वहां 5 घंटे चली सर्जरी के बाद यह खतरनाक सामान बाहर निकाला गया। अब युवक सुरक्षित है। लेकिन, यह मामला मेडिकल साइंस के लिए भी बेहद हैरान करने वाला साबित हुआ। सवाल है कि कोई इंसान कैसे चम्मच, टूथब्रश और पेन जैसी चीजें निगल लेता है? इतनी बड़ी-बड़ी और कठोर चीजें पेट में कैसे समा सकती हैं? पेट और आंतों की संरचना कितनी जगह दे सकती है कि 60 से ज्यादा चीजें अंदर चली जाएं? मेडिकल साइंस में इस तरह की घटनाओं को किस तरह दर्ज किया जाता है ? पढ़िए पूरी खबर…
ये वीडियो बसपा परिवार की ओर से जारी किया गया है। वीडियो की लंबाई 1.10 मिनट की है। वीडियो में एक महिला अपनी बेटी के साथ दिखती है। वह बेटी को इशारे से एक प्लॉट दिखाते हुए कहती है कि ये है हमारी जमीन, पापा ने तुम्हारे लिए दिलाई थी। तभी वहां गुर्गों के साथ एक नेताजी आते हैं। महिला के प्लॉट पर कब्जा कर खुद का बोर्ड लगवा देते हैं। बेटी को लेकर महिला नेताजी के पास गुहार लगाने पहुंचती है, तो वे डांट कर भगा देते हैं। तभी वहां पुलिस पहुंचती है, लेकिन नेता को देखकर प्रणाम कर वह भी लौट जाती है। इसके बाद महिला कहती है कि बस कुछ दिन की बात और है बेटा। बहन जी को आने दो। इस पूरे ड्रामा के वीडियो के साथ एक सांग बजता है- जितना लूटना था, वो लूट चुके, सपने आंखों के टूट चुके। अपराध मिटाने को, बहन जी को आने दो। बसपा कानून व्यवस्था को क्यों मुद्दा बना रही
इसका जवाब वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम देते हैं। कहते हैं- प्रदेश में सपा-बसपा और वर्तमान भाजपा की सरकार लोगों ने देखा है। लेकिन, आज भी लोग बसपा सरकार की कानून व्यवस्था को याद करते हैं। बसपा सरकार में निष्पक्ष न्याय होता लोग महसूस भी करते थे। आज की तरह नौकरशाह या पुलिस निरंकुश नहीं थी। 2007 में बसपा यूपी की सत्ता में सपा सरकार की बदहाल कानून व्यवस्था को ही मुद्दा बनाकर काबिज हुई थी। तब मायावती ने नारा दिया था- चढ़ गुंडों की छाती पर, मोहर दबेगी हाथी पर। ये नारा इतना हिट हुआ कि यूपी की जनता ने 1993 के बाद पहली बार किसी सरकार को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता सौंपी थी। बसपा एक बार फिर अपने इसी आजमाए हुए फार्मूले पर लौटने की कोशिश में जुटी है। वर्तमान सरकार भले भी कानून-व्यवस्था को लेकर ही सत्ता में है। लेकिन, समाज में एक वर्ग ऐसा भी है, जो सरकार में बैठे नेता और उनके इशारे पर चलने वाली पुलिस-प्रशासन से परेशान है। ऐसे लोगों के लिए बसपा एक विकल्प हो सकती है। खासकर दलित और अति पिछड़े समाज के लोगों को लगता है कि सपा में यादवों, तो भाजपा में सवर्णों को अधिक तरजीह मिल रही। ऐसे में वे नए विकल्प के तौर पर बसपा को फिर से चुन सकते हैं। मायावती सरकार की कानून व्यवस्था की धाक इस समाज के लोग देख चुके हैं। बसपा के लोग भी अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से लोगों को ये समझाने में जुटे हैं। बसपा सरकार में कानून-व्यवस्था के क्या थे हालात
बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल कहते हैं- मायावती सरकार में ही अयोध्या का पहला फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया था। ये फैसला 15 दिन के अंतराल पर आया था। ऐसे में पूरे प्रदेश में 15 दिनों तक लोग आशंकाओं-कुशंकाओं के चलते दहशत में थे। लेकिन, बहन मायावती ने जिस तरीके से पुलिस की फील्डिंग लगाई थी कि कहीं कोई चूं तक नहीं हुआ। ऐसा सख्त कानून का राज बसपा सुप्रीमो मायावती की सरकार में था। अपराधी चाहे मंत्री विधायक ही क्यों न हो, सभी को एक तराजू पर तौला गया। आज कोई सीएम इतनी हिम्मत और दिलेरी दिखा सकता कि केस दर्ज होने पर खुद की पार्टी के सांसद-विधायक को घर बुलाकर गिरफ्तार करा दे। दबंग नेताओं में शामिल राजा भैया हों या फिर मित्रसेन यादव के बेटे आनंद सेन हों। बहन मायावती ने ही सबसे पहले अतीक अहमद को कानूनी शिकंजे में लाया था। अतीक अहमद- मायावती ने ही अतीक की राजनीति पर पूर्णविराम लगाने का काम किया था। अतीक से अदावत की बड़ी वजह थी बसपा विधायक राजू पाल की हत्या। 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में अतीक अहमद का नाम सामने आया था। राजू पाल ने पहली बार प्रयागराज पश्चिमी सीट पर अतीक अहमद के वर्चस्व को चुनौती दी थी। ये अतीक बर्दाश्त नहीं कर पाया। बाद में मायावती ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को उपचुनाव में प्रत्याशी बनाया, पर वे हार गईं। जब 2007 में आम चुनाव हुआ, तो इसी शहर पश्चिमी से पूजा पाल बसपा के टिकट पर पति राजू की तरह एक बार फिर अतीक के वर्चस्व को तोड़ते हुए उसके भाई अशरफ को हरा दिया। विधानसभा चुनाव से पहले अतीक का नाम करेली के मेहमूदाबाद मदरसा कांड में भी आ चुका था। मायावती ने 2007 में सत्ता में आते ही सबसे पहले और बड़ी कार्रवाई माफिया अतीक अहमद पर की थी। रघुराज प्रताप सिंह : 2002 में भाजपा-बसपा के गठबंधन में मायावती सीएम थीं। तब भाजपा और अन्य सहयोगियों में कुछ लोग मायावती की सरकार से नाराज हो गए थे। इसमें राजपूत विधायकों की संख्या अधिक थी। मायावती को तब बताया गया कि इसके पीछे कुंडा के निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह है। इसके बाद मायावती ने रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया पर लखनऊ के हजरतगंज थाने में भाजपा के एक विधायक को धमकाने का केस दर्ज कराया। इसके बाद उन पर पोटा तक लगाया। पिता उदय प्रताप सिंह समेत करीबी लोगों को भी जेल जाना पड़ा था। कुंडा की बेंती तालाब को उन्होंने राजसात करते हुए पक्षी विहार तक घोषित कर दिया था। राजा भैया मायावती की इस अदावत को आज तक नहीं भूले हैं। मायावती के मुद्दे पर ही उनकी अखिलेश यादव तक से दूरी बढ़ चुकी है। उमाकांत यादव : 2007 में सूबे में मायावती की सत्ता थी। मछली-शहर से बसपा के सांसद उमाकांत यादव पर जौनपुर की एक ब्राह्मण महिला की जमीन फर्जी तरीके से रजिस्ट्री कराने का आरोप लगा। बाद में गीता नाम की महिला की याचिका पर जौनपुर दीवानी न्यायालय ने उन्हें इस मामले में दोषी बताते हुए 7 साल की सजा सुना दी। उमाकांत यादव पुलिस की गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार चल रहे थे। पुलिस भी पशोपेश में थी कि बसपा सरकार में उसके सांसद को कैसे गिरफ्तार करे? इसकी जानकारी मायावती को हुई। उन्होंने उमाकांत यादव को मिलने बंगले बुलाया। मायावती ने तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह को पहले ही इसकी सूचना देते हुए अपने आवास के बाहर पुलिस बुला ली। जैसे ही उमाकांत वहां पहुंचे, पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के बाद उमाकांत फिर कभी राजनीति में वापसी नहीं कर पाए। आनंद सेन : फैजाबाद के साकेत महाविद्यालय से कानून की पढ़ाई कर रही शशि नाम की स्टूडेंट अचानक 22 अक्टूबर, 2007 को गायब हो गई। बाद में उसकी घड़ी बरामद हुई। आरोप लगा था बसपा सरकार में खाद्य मंत्री रहे आनंद सेन पर। 2007 में चुनाव प्रचार के दौरान शशि, आनंद सेन के करीब आई थी। बाद में पता चला कि शशि, आनंद सेन के बच्चे की मां बनने वाली है। इसके बाद आनंद सेन ने ड्राइवर विजय सेन और महिला सीमा आजाद की मदद से उसका अपहरण कराकर हत्या करा दी थी। मायावती ने न सिर्फ इस मामले में आनंद सेन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई, बल्कि कोर्ट में भी पैरवी कराकर उनको सजा तक दिलाई। हालांकि, पुलिस कभी उस स्टूडेंट की लाश बरामद नहीं कर पाई। इसी आधार पर 2014 में आनंद सेन हाईकोर्ट से बरी भी हो गए थे। मायावती ने अपने 16 विधायक-मंत्रियों पर भी सख्त कार्रवाई की थी 9 अक्टूबर के कार्यक्रम से प्रदेश में माहौल बनाने की तैयारी बसपा न सिर्फ अपनी सरकार की कानून-व्यवस्था के जरिए प्रदेश में अपना आधार फिर से खड़ा करने की जुगत में जुटी है। 9 अक्टूबर कांशीराम की पुण्यतिथि पर ऐतिहासिक भीड़ जुटा कर वह अपनी खोई ताकत भी फिर वापस पाना चाहती है। बसपा की तैयारियों को देखते हुए जिस तरीके से प्रदेश में एक माहौल बन रहा है। उसी का नतीजा है कि लगातार कई जिलों में सपा के स्थानीय नेता पार्टी छोड़कर बसपा का दामन थाम रहे हैं। खासकर पंचायत चुनाव में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने वाले चेहरे बसपा में तेजी से शामिल हो रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल दावा करते हुए कहते हैं कि अप्रैल 2026 के बाद बसपा में शामिल होने वालों का तांता लग जाएगा। ………….. ये खबर भी पढ़ें… हापुड़ में युवक ने निगले 29 चम्मच, 19 टूथब्रश, 4-6 कप पेट में आराम से समा सकते हैं हापुड़ में 40 साल के सचिन ने नशे के गुस्से में 29 चम्मच, 19 टूथब्रश और 2 पेन निगल लिए। पेट में दर्द बढ़ने पर अस्पताल पहुंचा। वहां 5 घंटे चली सर्जरी के बाद यह खतरनाक सामान बाहर निकाला गया। अब युवक सुरक्षित है। लेकिन, यह मामला मेडिकल साइंस के लिए भी बेहद हैरान करने वाला साबित हुआ। सवाल है कि कोई इंसान कैसे चम्मच, टूथब्रश और पेन जैसी चीजें निगल लेता है? इतनी बड़ी-बड़ी और कठोर चीजें पेट में कैसे समा सकती हैं? पेट और आंतों की संरचना कितनी जगह दे सकती है कि 60 से ज्यादा चीजें अंदर चली जाएं? मेडिकल साइंस में इस तरह की घटनाओं को किस तरह दर्ज किया जाता है ? पढ़िए पूरी खबर…