बांके बिहारी मंदिर के पास 360 करोड़ रुपए:महीने में एक बार खुलती है दान पेटी; 110 गोस्वामी परिवार देते हैं ड्यूटी, पार्ट-4

मथुरा के वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर में कॉरिडोर बनना लगभग तय हो गया है। सर्वे का काम करीब-करीब पूरा हो गया है। लेकिन विरोध जारी है। गोस्वामी परिवार विरोध में है, लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके मन में कई तरह की आशंका है। डर इस बात का भी है कि कॉरिडोर बनने के बाद कहीं मंदिर की जिम्मेदारी उनके हाथ से न निकल जाए। दैनिक भास्कर की टीम इस वक्त वृंदावन में है। बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन इस वक्त कैसा है? गोस्वामी परिवार कैसे संभालता है? दान कैसे और कितना आता है? दान का पैसा कहां जाता है? खाते में कितना पैसा है, जो सुप्रीम कोर्ट ने उसी पैसे से कॉरिडोर के लिए जमीन खरीदने का फैसला सुनाया? ऐसे ही कई सवाल हैं। आइए आज बांके बिहारी मंदिर के आर्थिक गणित को समझते हैं… 5500 मंदिरों में खास है बांके बिहारी
मथुरा का वृंदावन। पूरी दुनिया में किसी भी एक जगह पर इतने मंदिर नहीं, जितने वृंदावन में हैं। यहां करीब 5500 मंदिर हैं। इनमें प्रेम मंदिर, कृष्ण-बलराम मंदिर (इस्कॉन मंदिर), राधा रमण मंदिर, निधिवन मंदिर, रंगनाथ मंदिर, प्रियकांत जू मंदिर, राधा मदन मोहन मंदिर और बांके बिहारी मंदिर जैसे प्रमुख मंदिर शामिल हैं। इन सब जगहों पर हर साल 1 करोड़ से ज्यादा लोग आते हैं। सबसे ज्यादा श्रद्धालु बांके बिहारी मंदिर आते हैं। यहां हर दिन 40 से 50 हजार श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। विशेष दिनों पर यह संख्या 1 से 5 लाख तक हो जाती है। बांके बिहारी मंदिर का मौजूदा स्वरूप 1864 में बना। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को संकरी कुंज गलियों से होते हुए जाना होता है। यहां भीड़ इस कदर बढ़ी कि अब कॉरिडोर बनाने का फैसला लिया गया है। श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ी तो दान में भी बढ़ोतरी हुई। अब ये दान करोड़ों रुपए का बैंक बैलेंस बन गया है। 200 परिवार जिम्मेदारी संभाल रहे
बांके बिहारी मंदिर में कुल 3 तरह की सेवा होती है। पहली- श्रृंगार भोग आरती, दूसरी- राजभोग आरती, तीसरी- शयन भोग आरती। ये तीनों ही गोस्वामी परिवार के लोग संभालते आ रहे हैं। श्री बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन समिति के पूर्व उपाध्यक्ष घनश्याम कहते हैं- हम सब स्वामी हरिदास के वंश हैं। बांके बिहारी की सेवा उनके भाई जगन्नाथ को मिली। उनके 3 पुत्र हुए। एक पुत्र को श्रृंगार भोग आरती, दूसरे को राजभोग और तीसरे पुत्र को शयन भोग आरती की जिम्मेदारी मिली। एक समय के बाद पहले पुत्र का परिवार समाप्त हो गया, तो उनके हिस्से की आरती दोनों पुत्रों के परिवार वालों ने संभाल लिया। गोस्वामी परिवार की 18वीं पीढ़ी इस वक्त मंदिर के कामकाज में जुड़ी है। अब तक करीब 200 परिवार हो गए हैं। ड्यूटी कैसे लगती है? इस सवाल के जवाब में घनश्याम कहते हैं- सबको अपनी-अपनी ड्यूटी पता है। कोई मैनेजमेंट बॉडी यह तय नहीं करती। गोस्वामियों में तारीख के हिसाब से बंटवारा नहीं होता, बल्कि तिथिवार क्रम में बंटवारा होता है। जैसे किसी गोस्वामी परिवार के मुखिया को शयन भोग आरती के लिए 10 दिन दिया गया। उस 10 दिन में उन्हें अपने परिवार के लड़कों के लिए फैसला करना है कि किसे कितने दिन मंदिर में सेवा का अवसर दिया जाएगा। इसी तरह से किसी को 15 दिन मिले तो वह अपने परिवार में यह बांटें। कभी 2 तो कभी 20 लाख दान मिलता है
मंदिर में दो तरह का दान होता है। पहला- बांके बिहारी की सेवा में लगे सेवायत को देना, दूसरा- मंदिर परिसर में लगी दान पेटिका में डालना। बांके बिहारी मंदिर के गर्भगृह में हर दिन गोस्वामी परिवार के अलग-अलग लोग होते हैं। श्रद्धालु माला-फूल और प्रसाद के साथ अंदर जाते हैं। फिर बांके बिहारी के पूजन के बाद सेवायत को दक्षिणा देते हैं। यह पैसा उस दिन सेवा में लगे गोस्वामी परिवार का होता है। एक अनुमान के मुताबिक, हर दिन 2 लाख रुपए से ज्यादा सीधा दान मिलता है। छुट्टियों के दिन और विशेष मौकों पर यह दान 5 से 20 लाख तक पहुंच जाता है। मंदिर में वीआईपी दर्शन की भी व्यवस्था है। जब भी कोई नेता-मंत्री, अभिनेता या फिर व्यापारी दर्शन करने आता है, उसे वीआईपी ट्रीटमेंट मिलता है। दबी जबान लोग यह स्वीकारते हैं कि यह सब पैसे से ही तय होता है। वृंदावन में बड़ी संख्या में होटल वाले बुकिंग लेते वक्त कहते हैं कि हम आपको बांके बिहारी का स्पेशल दर्शन करवा देंगे। उनके लोग बाइक से सीधा मंदिर के गेट तक पहुंचते हैं और दर्शन करवाते हैं। इसके लिए वह प्रति व्यक्ति कभी 500 तो कभी 1 हजार रुपए चार्ज करते हैं। गुप्त दान सीधे बांके बिहारी को मिलता है
बांके बिहारी मंदिर में दान का दूसरा तरीका गुप्त दान है। मंदिर के अंदर दान पेटियां लगी हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालु इसी में अपनी श्रद्धा के अनुसार पैसा डाल देते हैं। ये दान पेटियां महीने में एक बार खुलती है। उस वक्त बांके बिहारी मंदिर कमेटी के सारे प्रमुख लोग होते हैं। पैसा गिना जाता है। फिर उसी दिन बांके बिहारी के अकाउंट में जमा करा दिया जाता है। हर महीने 80 लाख से 1 करोड़ रुपए तक निकलते हैं। गोस्वामी परिवार के ही एक व्यक्ति कहते हैं कि साल में करीब 10 करोड़ रुपए दान में आते हैं। बांके बिहारी के अकाउंट में इस वक्त 360 करोड़ रुपए हैं। हमने यह पता करने की कोशिश की कि पिछले 2-3 सालों में कितना पैसा दान में मिला। जानकारी मिली कि ऑडिट रिपोर्ट पिछले 8 साल से CA (चार्टर्ड अकाउंटेंट) के यहां बंद लिफाफा में आती है और सीधे कोर्ट में जमा हो जाती है। इस वक्त अकाउंट में जो 360 करोड़ रुपए हैं, उसमें से 250 करोड़ में कॉरिडोर के लिए जमीन ली जाएगी। जमीन बांके बिहारी के ही नाम से होगी। बाकी जो 110 करोड़ रुपए हैं, उसके ब्याज से ही बांके बिहारी का रखरखाव जारी रहेगा। 9 साल से मंदिर का प्रबंधन मजिस्ट्रेट के हवाले
बांके बिहारी मंदिर के रखरखाव के लिए श्री बांके बिहारी प्रबंधन कमेटी है, जो पिछले कई दशक से व्यवस्था देखती चली आती थी। इसमें कुल 7 सदस्य होते हैं। गोस्वामी वर्ग से 4 लोग परमानेंट होते हैं। यही लोग अपनी सहमति से गोस्वामी समाज के ही अगले दो सदस्यों का चुनाव कर लेते हैं। लेकिन, सातवें सदस्य के चुनाव में हमेशा विवाद हो जाता है। 2001 में तय समय पर चुनाव नहीं हो पाया, तो मामला कोर्ट चला गया। उस वक्त मंदिर का रखरखाव मथुरा मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने बतौर रिसीवर मंदिर की व्यवस्था संभाली। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद 2013 में दोबारा चुनाव हुआ। उस साल गौरव गोस्वामी इसके अध्यक्ष बने। 3 साल तक सब कुछ सही चला, लेकिन फिर से विवाद शुरू हो गया। इसके बाद गौरव गोस्वामी ने अपना इस्तीफा सिविल जज जूनियर डिवीजन को सौंप दिया। इसके बाद फिर से मंदिर की जिम्मेदारी मथुरा मुंसिफ मजिस्ट्रेट के पास पहुंच गई। पिछले 9 साल से वही मंदिर का रखरखाव कर रहे हैं। गोस्वामियों को डर- कॉरिडोर के बाद अधिकार खत्म होगा
कॉरिडोर बनने के बाद मंदिर प्रबंधन की क्या व्यवस्था होगी, इसे लेकर अभी तक कुछ भी क्लियर नहीं है। हमने इसे लेकर गोस्वामी परिवार के वरिष्ठ सेवायत गोपी गोस्वामी से बात की। वह कहते हैं- मंदिर कॉरिडोर बनने के बाद हमारे अधिकार सीधे-सीधे खत्म हो रहे हैं। एक सीओ सीधे मंदिर का मालिक हो जाएगा। सरकार कहती है कि यह ट्रस्ट सरकारी नहीं है, जबकि इसमें 11 लोग सीधे सरकारी हैं। सीओ भी पीसीएस रैंक का अधिकारी होगा। ———————– ये खबर भी पढ़ें… बांके बिहारी हमारा मंदिर, सरकार का नहीं, गोस्वामी बोले- 18वीं पीढ़ी कर रही सेवा, कॉरिडोर बना तो अधिकार खत्म हो जाएगा, पार्ट- 3 मथुरा के वृंदावन में बांके बिहारी कॉरिडोर बनना तय हो गया है। लेकिन, अभी भी गोस्वामी परिवार इसे स्वीकार नहीं पाया है। गोस्वामी परिवार की महिलाएं हर दिन मंदिर के बाहर बैठकर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। सीएम-पीएम को खून से पत्र लिख रही हैं। गोस्वामी परिवार के पुरुष सरकार के अफसरों से बात कर रहे हैं। कोशिश यही है कि कॉरिडोर के फैसले को बदला जाए। किसी दूसरे तरीके से भीड़ को कंट्रोल किया जाए। वृंदावन में कॉरिडोर बनने से श्रद्धालु बढ़ेंगे। गोस्वामी परिवार के जिन लोगों का विस्थापन होगा, उन्हें मुआवजा मिलेगा। फ्लैट मिलेगा और कॉरिडोर में दुकानें भी अलॉट होंगी। इसके बावजूद वो विरोध क्यों कर रहे? यह डर क्यों है कि कॉरिडोर बनने के बाद उनका अधिकार समाप्त होगा? क्यों वह मंदिर को अपनी निजी संपत्ति समझते हैं? पढ़ें पूरी खबर…