मथुरा के वृंदावन में बांके बिहारी कॉरिडोर बनना तय हो गया है। लेकिन, अभी भी गोस्वामी परिवार इसे स्वीकार नहीं पाया है। गोस्वामी परिवार की महिलाएं हर दिन मंदिर के बाहर बैठकर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। सीएम-पीएम को खून से पत्र लिख रही हैं। गोस्वामी परिवार के पुरुष सरकार के अफसरों से बात कर रहे हैं। कोशिश यही है कि कॉरिडोर के फैसले को बदला जाए। किसी दूसरे तरीके से भीड़ को कंट्रोल किया जाए। वृंदावन में कॉरिडोर बनने से श्रद्धालु बढ़ेंगे। गोस्वामी परिवार के जिन लोगों का विस्थापन होगा, उन्हें मुआवजा मिलेगा। फ्लैट मिलेगा और कॉरिडोर में दुकानें भी अलॉट होंगी। इसके बावजूद वो विरोध क्यों कर रहे? यह डर क्यों है कि कॉरिडोर बनने के बाद उनका अधिकार समाप्त होगा? क्यों वह मंदिर को अपनी निजी संपत्ति समझते हैं? दैनिक भास्कर की टीम इस वक्त मथुरा में है। टीम तमाम सवालों को लेकर गोस्वामी परिवार के प्रमुख लोगों तक पहुंची… 482 साल पहले प्रकट हुए थे बांके बिहारी
मथुरा से करीब 15 किलोमीटर दूर वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर है। इसकी एक कहानी है। आज से 513 साल पहले 1512 में अलीगढ़ (उस वक्त हरिगढ़) में आसधीर गोस्वामी के घर में एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम रखा गया हरिदास गोस्वामी। हरिदास महान संगीतज्ञ बने और कृष्ण की भक्ति में डूब गए। अपने 31वें जन्मदिवस पर साल- 1543 में उन्होंने अपने आराध्य प्रभु बांके बिहारी जी को संगीत के जरिए प्रकट किया। फिर इसके साथ वृंदावन भक्तिकाल में देश का सबसे प्रमुख स्थल बन गया। हमारी मुलाकात वृंदावन में श्री बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन समिति के पूर्व उपाध्यक्ष घनश्याम गोस्वामी से हुई। वह बताते हैं- स्वामी हरिदास जी 3 भाई थे। उनमें एक जगन्नाथ जी थे। जगन्नाथ जी के 3 बेटे हुए। फिर बांके बिहारी की सेवा इन्हीं 3 बेटों में बांट दी गई। पहले बेटे को सुबह की श्रृंगार आरती का जिम्मा मिला। दूसरे को दोपहर के राजभोग आरती का जिम्मा मिला। तीसरे बेटे को शाम की शयनभोग आरती का जिम्मा मिला। कुछ वक्त के बाद श्रृंगार आरती का जिम्मा संभालने वाले भाई का परिवार खत्म हो गया। इसके बाद वह जिम्मेदारी भी बाकी बचे दोनों परिवार को मिल गई। एक साल एक परिवार, दूसरे साल दूसरा परिवार इसे संभालता है। गोस्वामी परिवार की 18वीं पीढ़ी सेवा कर रही
बांके बिहारी मंदिर में रख-रखाव और पूजन की जिम्मेदारी हमेशा से गोस्वामी परिवार के पास रही है। इस वक्त 18वीं पीढ़ी इस जिम्मेदारी को संभाल रही है। गोस्वामी परिवार अब 200 परिवारों में बंट गया है। 80% लोग मंदिर से जुड़े हैं। बाकी के 20% लोग अलग-अलग कामों में जुट गए हैं। हमारी मुलाकात वरिष्ठ सेवायत गोपी गोस्वामी से हुई। मंदिर के इतिहास को लेकर वह कहते हैं- वृंदावन की खोज ही स्वामी हरिदास जी ने की थी। उन्होंने यमुना तट पर निधि वन में ठाकुर बिहारी जी को प्राकट्य किया था। गोपी कहते हैं- कुछ लोगों का कहना है कि हरिदास जी की शादी नहीं हुई थी, लेकिन ऐसा नहीं है। उनकी शादी हुई थी। उनकी पत्नी हरिमति जी की समाधि बांके बिहारी मंदिर से करीब 300 मीटर दूर विद्यापीठ चौराहे के पास है। जब भी मुंडन संस्कार होता है, लोग वहीं करवाते हैं। लोग कुछ भी कहने को आजाद हैं। जबकि हमारी परंपरा है, हमारा वंश है, इसलिए हम सब कुछ जानते हैं। तीन उपाय सुझाए, सरकार ने तीसरा चुना
19 अगस्त, 2022 को जन्माष्टमी के मौके पर बांके बिहारी मंदिर में इतनी भीड़ पहुंच गई कि भगदड़ की स्थिति बन गई। 2 लोगों की मौत हुई और 50 से ज्यादा की हालत गंभीर हो गई। यूपी सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लिया। पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह और अलीगढ़ के तत्कालीन कमिश्नर गौरव दयाल के रूप में 2 सदस्यीय कमेटी बनाई। इस कमेटी ने बांके बिहारी की घटना की हर एंगल से जांच की और फिर सरकार को रिपोर्ट सौंपी। गोपी गोस्वामी कहते हैं- सुलखान सिंह जी ने जो रिपोर्ट दी उसमें तात्कालिक, मध्यकालिक और दीर्घकालिक उपाय को लेकर बात कही। सरकार ने सीधे दीर्घकालिक उपाय को चुना और यहां कॉरिडोर बनाने का फैसला ले लिया। जबकि उनके सामने तात्कालिक और मध्यकालिक का भी उपाय था। सवाल यह भी है कि क्या कॉरिडोर बन जाने के बाद हादसे नहीं होंगे? गोस्वामी परिवार चाहता है कि सीमित लोग आएं
गोपी गोस्वामी कहते हैं- कॉरिडोर के बाद भीड़ स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी। काशी और उज्जैन में भी बढ़ी। अयोध्या में राम मंदिर बना, तो वहां भी भीड़ बढ़ी। अयोध्या में तो श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय खुलेआम कहते हैं कि अभी पब्लिक न आए। हम भी कहते हैं कि बांके बिहारी में सीमित दर्शन करवाए जाएं तो क्यों नहीं माना जाता? हमारे वृंदावन में गाड़ियों के लिए पार्किंग नहीं है। ब्रज तीर्थ संस्थान बने 10 साल हो गए, कितना विकास हुआ, कुछ तो बताया जाए, लेकिन ऐसा नहीं है। हमने पूछा कि क्या कॉरिडोर बनने के बाद मंदिर से आपके अधिकार खत्म हो जाएंगे? वह कहते हैं- यह तो तय है कि मंदिर कॉरिडोर बनने के बाद हमारे अधिकार सीधे-सीधे खत्म हो रहे। एक सीओ सीधे मंदिर का मालिक हो जाएगा। सरकार कहती है कि ये ट्रस्ट सरकारी नहीं है, जबकि 11 लोग सीधे सरकारी हैं। सीओ भी पीसीएस रैंक का अधिकारी होगा। सरकार हमें इस मामले में भ्रमित करती है। कोर्ट में कुछ बोलती है, गोस्वामियों से कुछ बोलती है। अधिकारियों को लगता है कि गोस्वामी पढ़े-लिखे हैं ही नहीं। 9 साल से मंदिर प्रबंध समिति का चुनाव नहीं हुआ
मंदिर की व्यवस्था कैसे चलती है, इसके बारे में हमने पता किया। जानकारी मिली कि इसमें कुल 7 सदस्य होते हैं। बांके बिहारी मंदिर कमेटी में गोस्वामी परिवार के 4 सदस्य स्थायी होते हैं। ये अगले दो सदस्य का चुनाव सहमति से कर लेते हैं। लेकिन, 7वें सदस्य के लिए हमेशा से विवाद रहता है। 24 साल पहले 2001 में इस कमेटी ने आपसी विवाद के चलते 7वें सदस्य का चुनाव नहीं किया। 2013 तक 7वें सदस्य के रूप में इसमें मथुरा मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने बतौर रिसीवर मंदिर की व्यवस्था को संभाला। पूरा मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहा था। 2013 में कोर्ट ने नए सिरे से बांके बिहारी कमेटी में चुनाव करने की इजाजत दी। उस साल गौरव गोस्वामी इसके अध्यक्ष बने। कुछ दिन बाद ही कमेटी में फिर से विवाद पनपने लगा। 2016 में गौरव गोस्वामी ने प्रबंध समिति से अपना इस्तीफा सिविल जज जूनियर डिवीजन को सौंप दिया। इसके बाद फिर से इसकी देखरेख मथुरा मुंसिफ मजिस्ट्रेट के पास चली गई। 9 साल हो गए अब तक किसी भी तरह का चुनाव नहीं हुआ। कॉरिडोर बनने के बाद नए सिरे से कमेटी का गठन होने की बात कही जा रही है। कॉरिडोर बना, तो पिकनिक मनाने वाले बढ़ेंगे
हमारी मुलाकात गोस्वामी परिवार के ही बुजुर्ग सेवायत मदन मोहन गोस्वामी से हुई। वह कहते हैं- वृंदावन प्राचीनतम है। अगर कॉरिडोर बनाकर इसे खत्म किया गया तो लोग दर्शन करने नहीं, पिकनिक मनाने आएंगे। जहां भी कॉरिडोर बना है वहां सहूलियत नहीं मिली है, बल्कि 2 से 3 किलोमीटर तक लाइन लगनी शुरू हो गई है। हमने कहा कि यहां भीड़ के चलते घटना हुई। घटनाओं की संभावना बनी रहती है, इसलिए ऐसा हो रहा। मदन गोस्वामी कहते हैं- पहले यहां किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं थी। जब से यहां पुलिस लगी, तभी से दिक्कत होने लगी। जिस घटना की बात हो रही है, उसमें 4-5 गेट एक साथ खोल दिए गए। फिर कुछ लोग निकलने लगे। जो बाहर थे, वो अंदर आने लगे। इससे घटना हो गई। ये लोग सुनियोजित ढंग से मंदिर को अपने हाथ में लेना चाहते हैं। यहां के भी कुछ लोग इसी काम में लगे हैं। मदन मोहन कहते हैं- सरकार चाहती है कि ठाकुर जी का दर्शन 24 घंटे चले। अरे, ठाकुर जी का यह भाव ही नहीं है। आप 18 घंटे रोज नहीं खड़े हो सकते, भगवान को भगवान ही समझिए। लेकिन वो लोग नहीं समझ रहे, उन्हें तो पैसा चाहिए। हमने कहा कि प्रशासन से आपकी क्या बातचीत हुई? मदन कहते हैं- हमने तो साफ कहा कि कॉरिडोर का ऑर्डिनेंस हटा दीजिए। ये हमारा प्राइवेट मंदिर है, किसी और का नहीं। इसे हमारे पूर्वजों ने अपने पैसे और मेहनत से बनाकर खड़ा किया है। आप उस पर अपना अधिकार जमा रहे हो। ये जो कॉरिडोर का आदेश आया है, उसका उद्देश्य यही है। वरना इसकी क्या ही जरूरत है? आप ठाकुर जी की सेवा में किसी को भी लगा देंगे, जबकि ऐसा नहीं होता। गोस्वामी परिवार पिछले 500 साल से बांके बिहारी जी की सेवा करता आ रहा है। मदन मोहन कॉरिडोर के आदेश से नाराज हैं। वह आखिर में कहते हैं- लोग सिर्फ बांके बिहारी के दर्शन करने नहीं आते, वृंदावन की गलियों के भी दर्शन करने आते हैं। कुंज गलियों की पूजा करते हैं। इटली में भी लोग छोटी-छोटी गलियों को देखने जाते हैं, क्योंकि इनका महत्व है। कॉरिडोर बनेगा तो इनका महत्व ही खत्म हो जाएगा। भीड़ को कंट्रोल करना है, लेकिन आप इसका ध्यान नहीं दे रहे। वृंदावन में कितने नक्शे पास कर दिए, इतने फ्लैट बना दिए हैं। ऐसा करके तो इसे खत्म ही कर रहे हैं ना। हम ऐसा एकदम नहीं चाहते। ————————– ये खबर भी पढ़ें… जिसे मां कहा, उसे जहरीला नाला बना दिया, कानपुर से प्रयाग तक हर घाट पर बदबू, हर धार में मौत सुबह के 9 बजे हैं। कानपुर का अटल घाट, गंगा दशहरा की भीड़ से गुलजार है। श्रद्धालु डुबकी लगा रहे हैं, मंत्रोच्चार गूंज रहा है, लेकिन पास ही परमिया नाले का काला, बदबूदार पानी गंगा में समा रहा है। हमारे ड्रोन कैमरे ने साफ दिखाया—14 MLD (मिलियन लीटर प्रतिदिन) क्षमता का पंपिंग स्टेशन इस नाले की गंदगी को रोकने में नाकाम है। नाले का बहाव इतना ज्यादा है कि सीवेज सीधे गंगा में जा रहा है। पढ़िए पूरी खबर…
मथुरा से करीब 15 किलोमीटर दूर वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर है। इसकी एक कहानी है। आज से 513 साल पहले 1512 में अलीगढ़ (उस वक्त हरिगढ़) में आसधीर गोस्वामी के घर में एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम रखा गया हरिदास गोस्वामी। हरिदास महान संगीतज्ञ बने और कृष्ण की भक्ति में डूब गए। अपने 31वें जन्मदिवस पर साल- 1543 में उन्होंने अपने आराध्य प्रभु बांके बिहारी जी को संगीत के जरिए प्रकट किया। फिर इसके साथ वृंदावन भक्तिकाल में देश का सबसे प्रमुख स्थल बन गया। हमारी मुलाकात वृंदावन में श्री बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन समिति के पूर्व उपाध्यक्ष घनश्याम गोस्वामी से हुई। वह बताते हैं- स्वामी हरिदास जी 3 भाई थे। उनमें एक जगन्नाथ जी थे। जगन्नाथ जी के 3 बेटे हुए। फिर बांके बिहारी की सेवा इन्हीं 3 बेटों में बांट दी गई। पहले बेटे को सुबह की श्रृंगार आरती का जिम्मा मिला। दूसरे को दोपहर के राजभोग आरती का जिम्मा मिला। तीसरे बेटे को शाम की शयनभोग आरती का जिम्मा मिला। कुछ वक्त के बाद श्रृंगार आरती का जिम्मा संभालने वाले भाई का परिवार खत्म हो गया। इसके बाद वह जिम्मेदारी भी बाकी बचे दोनों परिवार को मिल गई। एक साल एक परिवार, दूसरे साल दूसरा परिवार इसे संभालता है। गोस्वामी परिवार की 18वीं पीढ़ी सेवा कर रही
बांके बिहारी मंदिर में रख-रखाव और पूजन की जिम्मेदारी हमेशा से गोस्वामी परिवार के पास रही है। इस वक्त 18वीं पीढ़ी इस जिम्मेदारी को संभाल रही है। गोस्वामी परिवार अब 200 परिवारों में बंट गया है। 80% लोग मंदिर से जुड़े हैं। बाकी के 20% लोग अलग-अलग कामों में जुट गए हैं। हमारी मुलाकात वरिष्ठ सेवायत गोपी गोस्वामी से हुई। मंदिर के इतिहास को लेकर वह कहते हैं- वृंदावन की खोज ही स्वामी हरिदास जी ने की थी। उन्होंने यमुना तट पर निधि वन में ठाकुर बिहारी जी को प्राकट्य किया था। गोपी कहते हैं- कुछ लोगों का कहना है कि हरिदास जी की शादी नहीं हुई थी, लेकिन ऐसा नहीं है। उनकी शादी हुई थी। उनकी पत्नी हरिमति जी की समाधि बांके बिहारी मंदिर से करीब 300 मीटर दूर विद्यापीठ चौराहे के पास है। जब भी मुंडन संस्कार होता है, लोग वहीं करवाते हैं। लोग कुछ भी कहने को आजाद हैं। जबकि हमारी परंपरा है, हमारा वंश है, इसलिए हम सब कुछ जानते हैं। तीन उपाय सुझाए, सरकार ने तीसरा चुना
19 अगस्त, 2022 को जन्माष्टमी के मौके पर बांके बिहारी मंदिर में इतनी भीड़ पहुंच गई कि भगदड़ की स्थिति बन गई। 2 लोगों की मौत हुई और 50 से ज्यादा की हालत गंभीर हो गई। यूपी सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लिया। पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह और अलीगढ़ के तत्कालीन कमिश्नर गौरव दयाल के रूप में 2 सदस्यीय कमेटी बनाई। इस कमेटी ने बांके बिहारी की घटना की हर एंगल से जांच की और फिर सरकार को रिपोर्ट सौंपी। गोपी गोस्वामी कहते हैं- सुलखान सिंह जी ने जो रिपोर्ट दी उसमें तात्कालिक, मध्यकालिक और दीर्घकालिक उपाय को लेकर बात कही। सरकार ने सीधे दीर्घकालिक उपाय को चुना और यहां कॉरिडोर बनाने का फैसला ले लिया। जबकि उनके सामने तात्कालिक और मध्यकालिक का भी उपाय था। सवाल यह भी है कि क्या कॉरिडोर बन जाने के बाद हादसे नहीं होंगे? गोस्वामी परिवार चाहता है कि सीमित लोग आएं
गोपी गोस्वामी कहते हैं- कॉरिडोर के बाद भीड़ स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी। काशी और उज्जैन में भी बढ़ी। अयोध्या में राम मंदिर बना, तो वहां भी भीड़ बढ़ी। अयोध्या में तो श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय खुलेआम कहते हैं कि अभी पब्लिक न आए। हम भी कहते हैं कि बांके बिहारी में सीमित दर्शन करवाए जाएं तो क्यों नहीं माना जाता? हमारे वृंदावन में गाड़ियों के लिए पार्किंग नहीं है। ब्रज तीर्थ संस्थान बने 10 साल हो गए, कितना विकास हुआ, कुछ तो बताया जाए, लेकिन ऐसा नहीं है। हमने पूछा कि क्या कॉरिडोर बनने के बाद मंदिर से आपके अधिकार खत्म हो जाएंगे? वह कहते हैं- यह तो तय है कि मंदिर कॉरिडोर बनने के बाद हमारे अधिकार सीधे-सीधे खत्म हो रहे। एक सीओ सीधे मंदिर का मालिक हो जाएगा। सरकार कहती है कि ये ट्रस्ट सरकारी नहीं है, जबकि 11 लोग सीधे सरकारी हैं। सीओ भी पीसीएस रैंक का अधिकारी होगा। सरकार हमें इस मामले में भ्रमित करती है। कोर्ट में कुछ बोलती है, गोस्वामियों से कुछ बोलती है। अधिकारियों को लगता है कि गोस्वामी पढ़े-लिखे हैं ही नहीं। 9 साल से मंदिर प्रबंध समिति का चुनाव नहीं हुआ
मंदिर की व्यवस्था कैसे चलती है, इसके बारे में हमने पता किया। जानकारी मिली कि इसमें कुल 7 सदस्य होते हैं। बांके बिहारी मंदिर कमेटी में गोस्वामी परिवार के 4 सदस्य स्थायी होते हैं। ये अगले दो सदस्य का चुनाव सहमति से कर लेते हैं। लेकिन, 7वें सदस्य के लिए हमेशा से विवाद रहता है। 24 साल पहले 2001 में इस कमेटी ने आपसी विवाद के चलते 7वें सदस्य का चुनाव नहीं किया। 2013 तक 7वें सदस्य के रूप में इसमें मथुरा मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने बतौर रिसीवर मंदिर की व्यवस्था को संभाला। पूरा मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहा था। 2013 में कोर्ट ने नए सिरे से बांके बिहारी कमेटी में चुनाव करने की इजाजत दी। उस साल गौरव गोस्वामी इसके अध्यक्ष बने। कुछ दिन बाद ही कमेटी में फिर से विवाद पनपने लगा। 2016 में गौरव गोस्वामी ने प्रबंध समिति से अपना इस्तीफा सिविल जज जूनियर डिवीजन को सौंप दिया। इसके बाद फिर से इसकी देखरेख मथुरा मुंसिफ मजिस्ट्रेट के पास चली गई। 9 साल हो गए अब तक किसी भी तरह का चुनाव नहीं हुआ। कॉरिडोर बनने के बाद नए सिरे से कमेटी का गठन होने की बात कही जा रही है। कॉरिडोर बना, तो पिकनिक मनाने वाले बढ़ेंगे
हमारी मुलाकात गोस्वामी परिवार के ही बुजुर्ग सेवायत मदन मोहन गोस्वामी से हुई। वह कहते हैं- वृंदावन प्राचीनतम है। अगर कॉरिडोर बनाकर इसे खत्म किया गया तो लोग दर्शन करने नहीं, पिकनिक मनाने आएंगे। जहां भी कॉरिडोर बना है वहां सहूलियत नहीं मिली है, बल्कि 2 से 3 किलोमीटर तक लाइन लगनी शुरू हो गई है। हमने कहा कि यहां भीड़ के चलते घटना हुई। घटनाओं की संभावना बनी रहती है, इसलिए ऐसा हो रहा। मदन गोस्वामी कहते हैं- पहले यहां किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं थी। जब से यहां पुलिस लगी, तभी से दिक्कत होने लगी। जिस घटना की बात हो रही है, उसमें 4-5 गेट एक साथ खोल दिए गए। फिर कुछ लोग निकलने लगे। जो बाहर थे, वो अंदर आने लगे। इससे घटना हो गई। ये लोग सुनियोजित ढंग से मंदिर को अपने हाथ में लेना चाहते हैं। यहां के भी कुछ लोग इसी काम में लगे हैं। मदन मोहन कहते हैं- सरकार चाहती है कि ठाकुर जी का दर्शन 24 घंटे चले। अरे, ठाकुर जी का यह भाव ही नहीं है। आप 18 घंटे रोज नहीं खड़े हो सकते, भगवान को भगवान ही समझिए। लेकिन वो लोग नहीं समझ रहे, उन्हें तो पैसा चाहिए। हमने कहा कि प्रशासन से आपकी क्या बातचीत हुई? मदन कहते हैं- हमने तो साफ कहा कि कॉरिडोर का ऑर्डिनेंस हटा दीजिए। ये हमारा प्राइवेट मंदिर है, किसी और का नहीं। इसे हमारे पूर्वजों ने अपने पैसे और मेहनत से बनाकर खड़ा किया है। आप उस पर अपना अधिकार जमा रहे हो। ये जो कॉरिडोर का आदेश आया है, उसका उद्देश्य यही है। वरना इसकी क्या ही जरूरत है? आप ठाकुर जी की सेवा में किसी को भी लगा देंगे, जबकि ऐसा नहीं होता। गोस्वामी परिवार पिछले 500 साल से बांके बिहारी जी की सेवा करता आ रहा है। मदन मोहन कॉरिडोर के आदेश से नाराज हैं। वह आखिर में कहते हैं- लोग सिर्फ बांके बिहारी के दर्शन करने नहीं आते, वृंदावन की गलियों के भी दर्शन करने आते हैं। कुंज गलियों की पूजा करते हैं। इटली में भी लोग छोटी-छोटी गलियों को देखने जाते हैं, क्योंकि इनका महत्व है। कॉरिडोर बनेगा तो इनका महत्व ही खत्म हो जाएगा। भीड़ को कंट्रोल करना है, लेकिन आप इसका ध्यान नहीं दे रहे। वृंदावन में कितने नक्शे पास कर दिए, इतने फ्लैट बना दिए हैं। ऐसा करके तो इसे खत्म ही कर रहे हैं ना। हम ऐसा एकदम नहीं चाहते। ————————– ये खबर भी पढ़ें… जिसे मां कहा, उसे जहरीला नाला बना दिया, कानपुर से प्रयाग तक हर घाट पर बदबू, हर धार में मौत सुबह के 9 बजे हैं। कानपुर का अटल घाट, गंगा दशहरा की भीड़ से गुलजार है। श्रद्धालु डुबकी लगा रहे हैं, मंत्रोच्चार गूंज रहा है, लेकिन पास ही परमिया नाले का काला, बदबूदार पानी गंगा में समा रहा है। हमारे ड्रोन कैमरे ने साफ दिखाया—14 MLD (मिलियन लीटर प्रतिदिन) क्षमता का पंपिंग स्टेशन इस नाले की गंदगी को रोकने में नाकाम है। नाले का बहाव इतना ज्यादा है कि सीवेज सीधे गंगा में जा रहा है। पढ़िए पूरी खबर…