शपथ ग्रहण के बाद मेरी पत्नी कभी ब्लॉक ऑफिस नहीं आईं। हम ही सारा काम संभालते हैं…। (धनंजय कुमार तिवारी, कुशीनगर के सेवरही ब्लॉक प्रमुख, अनु तिवारी के पति) यह हाल केवल कुशीनगर का नहीं है। यूपी में कई पदों पर निर्वाचन तो महिलाओं का हुआ है, लेकिन उनके जिम्मे चूल्हा-चौका ही है। कुर्सी पर कहीं उनके पति तो कहीं बेटा कब्जा जमाए बैठे हैं। गांव की प्रधानी से लेकर नगर पालिका की बैठकों तक महिला जनप्रतिनिधियों की जगह पर इनके पति ही दिखाई दे रहे हैं। इनके चैंबर में अध्यक्ष की खाली कुर्सी से सटाकर अपनी कुर्सी लगाकर ये बैठते हैं। यदि महिला जनप्रतिनिधि को फोन लगाएं तो ये ही उठाते हैं। संवैधानिक पदों पर महिलाओं को आरक्षण देने के बाद महिलाएं कितनी एक्टिव हुई हैं? क्या ये अपने क्षेत्र का काम खुद संभाल रही हैं? इन सवालों के जवाब के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने कुशीनगर, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर में 10 दिन तक इन्वेस्टिगेशन किया। पढ़िए, पूरा खुलासा… हम कुशीनगर से 25 किमी दूर सेवरही ब्लॉक पहुंचे। ऑफिस में भीड़ थी। अंदर गए तो महिला ब्लॉक प्रमुख अनु तिवारी की कुर्सी खाली थी। हमने उन्हें कॉल किया तो पति धनंजय कुमार तिवारी ने उठाया। ऑफिस में पास के कमरे में वे बैठे थे। हमने क्षेत्र के बारे में अनु तिवारी की बाइट लेने की बात की तो वे खुद कैमरे पर आने को तैयार हो गए। इसके बाद हिडन कैमरे पर बात की तो कई राज खुल गए… रिपोर्टर: हम लोग महिला ब्लॉक प्रमुखों पर स्टोरी कर रहे हैं। इसलिए आपसे बात करनी है। धनंजय तिवारी: हम लोग तो प्रतिनिधि वाले हैं। रिपोर्टर: जो प्रमुख हैं, उनसे बात हो जाएगी। धनंजय: अब प्रमुख तो पत्नी हैं, वह बाहर हैं। वह गोरखपुर हैं। अच्छा, क्या–क्या सवाल रहेगा? रिपोर्टर: हम यहां से कवरेज करके गोरखपुर जाएंगे तो क्या गोरखपुर में ब्लॉक प्रमुख से मुलाकात हो जाएगी? धनंजय: अब क्या मुलाकात होगी? शपथ ग्रहण के बाद वह ब्लॉक आई ही नहीं हैं। रिपोर्टर: फाइलों पर सिग्नेचर कैसे होता होगा, जब वह रहती नहीं हैं? धनंजय: जब हम गोरखपुर जाते हैं तो फाइल चली जाती है। रिपोर्टर: फिर आप डेली अप-डाउन करते हैं क्या? धनंजय: नहीं, डेली अप-डाउन नहीं करता हूं, मैं यहीं गांव में रहता हूं। महीने में दो–तीन दिन बस वहां जाता हूं। बच्चों की पढ़ाई की वजह से गोरखपुर रहना होता है। अब मजबूरी है। उनका भी पीएचडी पूरा होने वाली है। रिपोर्टर: मीटिंग वगैरह कौन करता है और कौन मीटिंग में शामिल होता है? कोई शिकायत वगैरह तो नहीं हो जाती है? धनंजय: कौन शिकायत करेगा? बाकी ऐसी कोई जरूरत नहीं पड़ती है। यह सब दिक्कत विधानसभा वगैरह में होती है। यहां तो सब चीजें मैनेज हो जाती हैं। अधिकारियों को भी सब मालूम है, कोई आपत्ति तो है नहीं। हमारे यहां दिशा की बैठक में जाते हैं, लेकिन कोई टोक देगा तो जाएंगे भी नहीं। उसमे होता ही क्या है? अब तक की बातचीत से क्लियर हो चुका था कि यहां पर ब्लॉक प्रमुख की कमान अनु तिवारी के पति के हाथ में है। किरण जायसवाल कसया नगर पालिका अध्यक्ष हैं। शाम 4 बजे हम यहां पहुंचे। अंदर अध्यक्ष की कुर्सी खाली थी। बगल की कुर्सी पर भाजपा नेता और अध्यक्ष पति राकेश कुमार जायसवाल बैठे थे। बोले– कभी–कभी बैठ जाते हैं। राकेश ने नगर पालिका में अध्यक्ष के तौर पर पत्नी ने जो काम किया, उसको गिनाया। सच जानने के लिए हमने उनसे हिडन कैमरे पर बातचीत की… रिपोर्टर: आप लोगों को सपोर्ट तो करना ही पड़ता होगा? राकेश जायसवाल: कार्यालय का सारा काम पत्नी देखती हैं। बाहर का काम हम देखते हैं। ऐसा कुछ नहीं है कि कोई गलत फाइल पर सिग्नेचर हो जाए या कुछ भी हो जाए। यह सब चीजे नहीं होती हैं। बहरहाल, जिस कुर्सी पर अध्यक्ष बैठती हैं उस पर भगवा रंग का तौलिया पड़ा हुआ था। साथ ही बगल में जिस कुर्सी पर राकेश बैठे थे। उस कुर्सी के पीछे ही रिंग लगी थी। जिसे दबा कर वह चपरासी को बुलाते थे। यही नहीं वह किसी कागज पर साइन करते हुए भी मिले। अगले दिन हम नगर पालिका अध्यक्ष किरन जायसवाल से मिलने के लिए उनके घर पहुंचे तो उनके साथ रहने वालों ने हिडन कैमरा पर कबूल किया कि किरन जायसवाल अगर सुबह जाती हैं तो ऑफिस जाती हैं। हालांकि, यह रोजाना नहीं होता है। किचन में खाना बना रही थीं नगर पालिका अध्यक्ष किरन जायसवाल किचन में खाना बना रही थीं। घर के कामों से फारिग होकर वह जब आईं तो उनसे हमारा सवाल था कि कैसे ऑफिस के साथ घर-परिवार मैनेज करती हैं? इस सवाल के जवाब में किरन कहती हैं कि हमारी जॉइंट फैमिली है। मैं नहीं रहती हूं तो देवरानी या सास काम संभाल लेती हैं। ऑफिस में कुछ समझ नहीं आता है तो पति को या फिर अधिकारियों को फोन कर लेती हूं। हम गोरखपुर के कैंपियरगंज के पीपीगंज वार्ड नंबर 15 से जिला पंचायत सदस्य सरोज देवी के घर पहुंचे। वहां घर के सामने ही भाजपा के रंग में रंगा बोर्ड लगा हुआ था। बोर्ड पर राजीव रंजन चौधरी उर्फ रिंकू लिखा था। नीचे लिखा था– जिला पंचायत सदस्य प्रतिनिधि वार्ड नंबर 15, बोर्ड पर कहीं भी जिला पंचायत सदस्य सरोज देवी का नाम नहीं था। राजीव ने बताया– जिला पंचायत का 60% काम हम ही करते हैं। बाकी जहां जरूरत होती है, वहां माता जी ही जाती हैं। राजीव हमसे बात करने के बाद किसी से मिलने के लिए जिला पंचायत सदस्य लिखी गाड़ी से निकल गए। हम घर के अंदर सरोज देवी से मिलने के लिए पहुंचे। जहां वह किचन में चाय बना रही थीं। काम खत्म कर वह हमसे मुखातिब हुईं। वह कहती हैं– मैं भी बाहर निकलती हूं। महिलाओं से मिलने-जुलने का काम मेरा हाेता है। बाकी का काम बेटा संभालता है। हालांकि, इसके बाद हमने हिडन कैमरे पर बात की तो सारी बातें खुलकर सामने आ गईं… रिपोर्टर: चुनाव आया तो कैसे तय हुआ कि आप चुनाव लड़ेंगी? सरोज देवी का बेटा: जब सीट महिलाओं के लिए रिजर्व हो गई तो फिर तय किया कि माता जी चुनाव लड़ेंगी। इसके बाद चुनाव लड़ाया। रिपोर्टर: अगर महिला चुनाव जीती है तो कोई पुरुष उसका काम क्यों देखता है? आप क्यों नहीं देख रहीं। सरोज देवी: मेरी तबीयत खराब रहती है। इसलिए मेरा बेटा काम देखता है। बीच में बात काटता हुआ बेटा बोला– जहां, इनकी आवश्यकता होती है यही जाती हैं। जैसे बोर्ड मीटिंग। जहां महिलाओं से संबंधित काम होता है। वहां जाती हैं। बाकी काम भैया देखते हैं। हम पीपीगंज में सभासद शैलेंद्र यादव से मिलने पहुंचे। वह हाईवे के पास अपना कार्यालय बनवा रहे थे। हम वहां पहुंचे तो पति–पत्नी दोनों मौजूद थे। शैलेंद्र बताते हैं– मैं जिला पंचायत सदस्य प्रतिनिधि हूं। हम दोनों मिलकर मैनेज कर लेते हैं। पत्नी थोड़ा बहुत हाथ बंटा लेती हैं, लेकिन मैं दिन–रात जनता की सेवा करता हूं। पहले जनता को शिकायत रहती थी कि जो जीत कर जाता है, वह वापस नहीं लौट कर आता। उनकी शिकायत दूर करते हुए मैं उनके बीच इतना रहता हूं कि जनता हमसे ऊब गई है। हमने रेनू यादव से बात की। रेनू बताती हैं– घर भी देखती हूं। हफ्ते में एक दिन बाद निकलती हूं, बाकी समय बच्चों के साथ बिताती हूं। मैं गोरखपुर रहती हूं। ऑफिशियल काम मैं करती हूं, बाकी बाहर का काम पति करते हैं। जब मेरा मन करता है मैं निकलती हूं बाकी समय पति देखते हैं। सिद्वार्थनगर का नेपाल बॉर्डर के किनारे बसा गांव धनौरा बुजुर्ग। गांव की प्रधान महमूदा खातून हैं। हमने उनसे बातचीत के लिए जब नंबर लिया तो हमें उनके पति अलीमउल्लाह का नंबर मिला। हम गांव पहुंचे तो वहां प्रधान महमूदा खातून से मुलाकात नहीं हुई। अलीमउल्लाह ने बताया– महमूदा मायके गई हैं। पति ने गांव घुमाकर दिखाया कितना विकास किया है। अलीमउल्लाह ने प्रधान पत्नी से मिलाने के लिए अगले दिन बुलाया। जब हमने दूसरे दिन फोन किया तो उन्होंने अटैंड नहीं किया। हम घर पहुंचे तो प्रधान महमूदा खातून के बेटे असगुल्लाह खान मिले। उसने बताया– मां सारा काम करती हैं, पिताजी प्रतिनिधि हैं तो कुछ मदद कर देते हैं। इसके बाद सच जानने के लिए हमने हिडन कैमरे का इस्तेमाल किया। जानिए… रिपोर्टर: मीटिंग वगैरह में कौन जाता है? असगुल्लाह: मीटिंग में मम्मी जाती हैं। रिपोर्टर: बाकी का काम कौन देखता है? असगुल्लाह: बाहर का काम तो प्रतिनिधि ही करते हैं, यह काम अब्बू ही करते हैं। इसके बाद प्रधान के बेटे से उनकी मां का फोटो मांगा, लेकिन उसने देने से इनकार कर दिया। वहीं प्रधान के घर में नए वोटर लिस्ट के सर्वेक्षण के लिए बीएलओ शिव नारायण पांडेय बैठे थे। हमने उन दोनों से भी हिडन कैमरे पर बातचीत की… रिपोर्टर: अखबार में खबर छपती है तो किसकी फोटो जाती है? असगुल्लाह: वैसे तो अम्मी का ही जाता है लेकिन अखबार वगैरह में अब्बू का ही फोटो जाता है। बीएलओ: अलीमउल्लाह नाम है न प्रधान का। असगुल्लाह: महिलाओं का नाम ज्यादा चर्चित नहीं होता है न। बीएलओ: प्रधान से नहीं मिले हैं। उनके पति से मिले हैं। आप प्रधान का नाम पूछे जो हमको नहीं मालूम है। कुशीनगर में कसया ब्लॉक प्रमुख रीना यादव हैं। ब्लॉक में उनके बैठने के लिए ऑफिस बना है। कुर्सी लगी है। यहां पता चला कि ब्लॉक प्रमुख प्रतिनिधि अमरजीत यादव हैं। ये रिश्तेदार हैं। ब्लॉक प्रमुख के पति मंदीप यादव पीडब्ल्यूडी में जॉब करते हैं। ऐसा यहां बैठे बीडीसी (जिनके वोट से ब्लॉक प्रमुख चुने जाते हैं) जनार्दन और रोहित कुमार सिंह ने बताया। इसके बाद हम कसया ब्लॉक के बीडीओ से मिलने के लिए उनके दफ्तर में पहुंचते हैं। जहां हमारी मुलाकात हरिशंकर मिश्र से हुई। हरिशंकर मिश्र पहले पडरौना में पोस्टेड थे। उन्हें एक महीने पहले ही यहां ट्रांसफर कर बीडीओ का चार्ज दिया है… रिपोर्टर: आपको तो बड़ी दिक्कत होती होगी, प्रमुख तो रहते ही नहीं हैं। हरिशंकर मिश्र: प्रमुख साहब से बात करनी होती है। हमेशा तो वह नहीं रहते हैं। एक तो महिला प्रमुख हैं। इससे और ज्यादा दिक्कत रहती है, लेकिन काम नहीं रूकता। रिपोर्टर: फिर कैसे काम होता होगा? हरिशंकर मिश्र: ज्यादातर काम उनके प्रतिनिधि देखते हैं। रिपोर्टर: फिर फाइल वगैरह कैसे साइन होता है? हरिशंकर मिश्र: फाइल वगैरह उनके पास चला जाता है। रिपोर्टर: क्या ब्लॉक प्रमुख का सीधा नंबर आपके पास नहीं है ? हरिशंकर मिश्र: नहीं, अब उन्हीं (प्रतिनिधि) का नंबर है। रिपोर्टर: रीना यादव से आपकी मुलाकात है या नहीं? हरिशंकर मिश्र (हंसते हुए): नहीं, अभी मुलाकात नहीं हुई है। रिपोर्टर: आप लोग टोकते नहीं हैं क्या? हरिशंकर मिश्र: क्या करें, अब उसमें महिला का मैटर आ जाता है। वह भी अगर यंग महिला है। खासकर जब कहीं न्यूली मैरिड महिला है तो उसके लिए दिक्कत है। इस तरह से यहां भी क्लियर हो गया कि कसया ब्लॉक प्रमुख महिला हैं लेकिन सारे काम उनके पुरुष प्रतिनिधि या फिर उनके पति ही देखते हैं, जोकि सरकारी कर्मचारी हैं। दुदही ब्लॉक में महिला ब्लॉक प्रमुख रमावती देवी हैं। यहां हम उनसे मिलने पहुंचे तो पता चला कि वह हैं नहीं। हमें जो नंबर मिला वह उनके पति लल्लन सिंह गौड़ का था। फोन पर बातचीत में उन्होंने कहा कि वह बाहर हैं। इसके बाद हमारी मुलाकात ब्लॉक के एक कर्मचारी से हुई… रिपोर्टर: यहां ब्लॉक प्रमुख क्या रमावती देवी हैं? कर्मचारी: हां, लेकिन उनके पति बैठते हैं। वही देखते हैं। रिपोर्टर: अच्छा, वह नहीं आती हैं क्या? कर्मचारी: आती हैं लेकिन कभी–कभी। विशेष अवसर पर आती हैं। रिपोर्टर: बाकी काम फिर वही देखते हैं? कर्मचारी: यह परिपाटी तो हर जगह की है। रिपोर्टर: मतलब वह रबर स्टैंप की तरह ही काम कर रही हैं। कर्मचारी: यह रबर स्टैंप आपको जिला पंचायत अध्यक्ष में ज्यादा दिखेगा। प्रमुख में तो मान कर चलिए सब रबर स्टैंप हैं। लगभग 99% और प्रधानों में भी यही हाल है। अब समझते हैं राजनीति में आरक्षण कितना सार्थक? सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी) के निदेशक और कानपुर यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस के पूर्व प्रोफेसर एके वर्मा से हमने यह समझने की कोशिश की कि राजनीति में महिलाओं को आरक्षण देना कितना सार्थक हुआ है। पढ़िए, उनके तर्क… एके वर्मा: राजनीति में जितना आरक्षण महिलाओं को दिया, उतनी सहभागिता नहीं है। हालांकि, महिलाओं को राजनीति में आरक्षण भारत में है। विश्व में और किसी देश में नहीं। 90 के दशक में एक्ट तो बना दिया लेकिन ऑपरेशनल लेवल पर कायदे से लागू नहीं हो सका। एके वर्मा: 4 दशक बीत जाने के बाद भी हमने कोई ऐसा अवेयरनेस प्रोग्राम नहीं चलाया, जिससे महिलाएं राजनीति में एक्टिव हो सकें। इस वजह से जो स्थिति पहले थी, वही अब भी बनी हुई है। सरकारी लेवल पर जो प्रयास होता है, वह भरसक तरीके से नहीं हो रहा है। केवल कागजी खानापूर्ति है। एके वर्मा: यदि महिलाओं के अधिकारों को लेकर लोकल लेवल पर अधिकारी रोकना, टोकना शुरू करें तो महिलाओं का राजनीति में प्रभाव बढ़ना शुरू होने लगेगा। इसके लिए अधिकारियों को सख्त निर्देश जारी करना होगा। साथ ही अगर महिला का प्रतिनिधि उसके काम में हस्तक्षेप करता पाया गया तो उसके खिलाफ एक्शन का प्रावधान होना चाहिए। साथ ही अधिकारियों को भी दंडित करने का प्रावधान करना चाहिए। यह सरकार के लिए आसान भी है। इससे हर जिले में महिलाओं के लिए एक माहौल बनेगा। एके वर्मा: आम जनता को अधिकार नहीं है लेकिन ग्राम व ब्लॉक स्तर पर चुने गए लोगों को वापस बुलाने का प्रावधान है। जो समितियां है वह उन्हें असंतुष्ट होने पर वापस बुला सकते हैं, लेकिन कोई बुलाएगा भी किस बेस पर क्योंकि उनके पुरूष प्रतिनिधि तो उनका काम कर ही रहे हैं। हमें महिलाओं को ही सचेत करना होगा। उनके अंदर जो डर, झिझक है। उसे दूर करना होगा। —————— भास्कर इन्वेस्टिगेशन की ये खबरें भी पढ़ें- मंत्री-विधायकों के गांवों में भी नहीं पहुंचा ‘हर घर जल’:विधायक की मां हैंडपंप से भर रहीं पानी; यूपी के जलशक्ति मंत्री का गांव भी प्यासा ‘रामप्यारी देवी। उम्र 75 साल, लेकिन जोर लगाकर हैंडपंप से पानी भरने को मजबूर। रामप्यारी देवी कोई आम महिला नहीं। हमीरपुर के भाजपा विधायक डॉ. मनोज कुमार प्रजापति की मां हैं। इनके घर में जल जीवन मिशन की टोटी है, लेकिन पानी नहीं। पौथिया बुजुर्ग गांव विधायक डॉ. मनोज प्रजापति का पैतृक गांव है। सरकारी रिकॉर्ड में यहां जल जीवन मिशन का काम 100% हो गया है। अफसरों का दावा है कि यहां हर घर में पानी आ रहा है। पढ़ें पूरी खबर यूपी में कैमरे पर लाशों का सौदा, पोस्टमॉर्टम कर्मचारी-पुलिस की डील, बोले- एक लाश डेढ़ लाख में ‘महीने में 30 से 40 लाशें निकल जाती हैं। आप बहुत कम दे रहे हैं। अभी पुराना रिकॉर्ड देखा जाए… उस समय डेढ़ लाख का रेट चल रहा था। राममूर्ति वाले डेढ़ लाख रुपए देकर जाते थे।’ यह दावा है बरेली के पोस्टमॉर्टम हाउस के कर्मचारी सुनील का। यूपी के बरेली में लाशों का सौदा हो रहा है। पढ़ें पूरी खबर यूपी में दांत-हड्डी के डॉक्टर उगा रहे बाल:दो मौतों के बाद भी जान से खिलवाड़, जज-अफसरों का भी हेयर ट्रांसप्लांट पॉलिटिशियन, जज, एसीपी, डीसीपी समेत कई अफसरों के बाल लगाए हैं। डरने की कोई बात नहीं, महीने में 30 से 40 केस करते हैं। ये दावा है हड्डियों के डॉक्टर वीके सिंह का। यूपी में ये हाल तब है, जब कानपुर में हेयर ट्रांसप्लांट के बाद 2 लोगों की मौत हो चुकी है। दैनिक भास्कर ने कानपुर में एक महीने तक 10 क्लिनिक और अस्पतालों की सर्चिंग की। इनमें सामने आया कि डेंटिस्ट, हड्डियों के डॉक्टर और ब्यूटीपार्लर चलाने वाले कस्टमर फंसा रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर