यूपी के जिला अस्पताल बनेंगे प्राइवेट जैसे:कैंसर-हार्ट का इलाज होगा, काबिल डॉक्टर तैनात होंगे, रांची मॉडल अपनाने की तैयारी

हार्ट की बीमारी और कैंसर का इलाज यूपी के जिला अस्पतालों में होने लगे। न्यूरोलॉजी, न्यूरो सर्जरी, आंखों का इलाज, हड्‌डी और घुटना प्रत्यारोपण जैसी सेवाएं मिलने लगें। तो जाहिर सी बात है कि लोगों को बहुत ज्यादा राहत मिलेगी। लेकिन, अब ऐसा होने वाला है। यूपी के जिला अस्पतालों का रांची मॉडल पर कायाकल्प करने की तैयारी है। जिला अस्पतालों में न सिर्फ डॉक्टरों की कमी दूर होगी, बल्कि सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर भी तैनात होंगे। हर तरह की जरूरी जांचों के लिए कहीं और भटकना नहीं पड़ेगा। आखिर क्या है रांची मॉडल? जिला अस्पतालों में इससे क्या बदलेगा? आम मरीजों को किस तरह की सुविधाएं मिलेंगी? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… रांची अस्पताल की टीम करेगी प्रजेंटेशन, फिर होगा फैसला
झारखंड की राजधानी रांची का सदर अस्पताल बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और मैनेजमेंट के लिए देशभर में चर्चा का विषय बना है। वहां के सिविल सर्जन डॉ. प्रभात कुमार के मुताबिक, यूपी के हेल्थ विभाग ने लेटर भेजकर इसका प्रजेंटेशन करने का आग्रह किया गया है। यूपी सरकार भी रांची मॉडल को अपने यहां के जिला अस्पतालों में लागू करना चाहती है। रांची सदर अस्पताल की टीम यूपी के मुख्य सचिव के सामने अपना प्रजेंटेशन देगी। इसके लिए 4 अगस्त की तारीख तय थी। लेकिन, यूपी सरकार ने पत्र भेजकर प्रजेंटेशन की तारीख बढ़ा दी गई है। अब यूपी हेल्थ विभाग अगली तारीख बाद में बताएगा। पहले जानते हैं रांची सदर अस्पताल कैसे बना मॉडल?
रांची का सदर अस्पताल 500 बेड वाला सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल है। इस जिला अस्पताल में लगभग सभी प्रमुख बीमारियों का इलाज हो रहा है। हृदय रोग, कैंसर, न्यूरोलॉजी, न्यूरो सर्जरी, नेत्र रोग, मूत्र रोग, अस्थि और घुटना प्रत्यारोपण जैसी जटिल चिकित्सा सेवाएं यहां उपलब्ध हैं। सिविल सर्जन डॉ. प्रभात कुमार कहते हैं- ये सारा बदलाव आयुष्मान भारत योजना से किया गया है। इसके तहत मिलने वाली क्लेम राशि का उपयोग करके रांची अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति की गई है। साथ ही अस्पताल में बेड की संख्या बढ़ाने, रेडियोलॉजी सेंटर स्थापित करने और अत्याधुनिक उपकरण खरीदने में भी किया गया। प्राइवेट स्पेशलिस्ट डॉक्टर देते हैं सेवा
रांची सदर अस्पताल देश का पहला जिला अस्पताल है, जहां प्राइवेट डॉक्टर भी सेवाएं दे रहे हैं। डॉ. प्रभात कुमार ने बताया- आयुष्मान भारत योजना के तहत एक साल पहले ही प्राइवेट डॉक्टरों के साथ एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) किया गया था। वर्तमान में 20 प्राइवेट स्पेशलिस्ट डॉक्टर ओपीडी में मरीज देखते हैं। इसके लिए इन डॉक्टरों को 400 से 800 रुपए प्रति मरीज भुगतान भी किया जाता है। इसी तरह सर्जरी के मामलों में आयुष्मान योजना के तहत मिलने वाली क्लेम राशि का 38% तक प्राइवेट डॉक्टरों को भुगतान किया जाता है। इसका फायदा दो तरह से हुआ। पहला- अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी दूर हुई। दूसरा- उनके भुगतान के लिए अलग से कोई बजट नहीं देना पड़ा। आयुष्मान योजना से ही ये सब कुछ हो गया। अब तक 2 लाख से ज्यादा लोगों का आयुष्मान योजना से हुआ इलाज
डॉ. प्रभात कुमार बताते हैं- रांची जिला अस्पताल में पूरे झारखंड से मरीज इलाज कराने आते हैं। अब तक 2 लाख से ज्यादा लोगों का इलाज आयुष्मान योजना से हो चुका है। इसमें सामान्य बीमारी से लेकर जटिल सर्जरी तक शामिल है। ये सब कुछ मरीजों को बिना किसी आर्थिक बोझ डाले सिर्फ आयुष्मान कार्ड से हुआ है। मौजूदा समय में देश में सभी जिला अस्पतालों में रांची नंबर एक पर है। झारखंड के स्वास्थ्य विभाग ने भी सिविल सर्जनों की वित्तीय शक्तियों को बढ़ाया है। इसके लिए हर जिला अस्पताल के सिविल सर्जन को हर साल 75 लाख रुपए का अनटाइड फंड दिया जा रहा है। ये अस्पताल की दैनिक जरूरत पर खर्च किया जा सकता है। डॉ. प्रभात कुमार बताते हैं- आयुष्मान क्लेम से मिली राशि से रेडियोलॉजी सेंटर, मॉडर्न मशीनें और अन्य उपकरणों की खरीद की गई है। यूपी के लिए क्यों जरूरी है रांची मॉडल
यूपी के जिला अस्पताल बदहाल स्थिति में हैं। जिला अस्पताल डॉक्टरों की कमी, बुनियादी ढांचे का अभाव, जांच उपकरणों की अनुपलब्धता और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। प्रदेश के सीएचसी और पीएचसी का हाल तो और भी बुरा है। आलम ये है कि सामान्य बीमारियों का इलाज कराने के लिए भी लोगों को मेडिकल कॉलेज की दौड़ लगानी पड़ती है। थोड़ी-सी गंभीर बीमारी होने पर लोगों को गोरखपुर, लखनऊ, वाराणसी, प्रयागराज, कानपुर, आगरा, मेरठ, बरेली, मुरादाबाद जैसे बड़े शहरों में जाना पड़ता है। ऐसे में रांची मॉडल प्रदेश के जिला अस्पतालों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं होगा। डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी
उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पताल डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं। प्रदेश में 19,011 स्थायी पदों की तुलना में 10,500 डॉक्टर ही तैनात हैं। 2,237 विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए यूपी लोक सेवा आयोग में रिक्वेस्ट भेजी गई है। इंटरव्यू के जरिए 678 पदों के लिए आवेदन भी मांगे गए हैं। डॉक्टरों की कमी को पूरा करने के लिए हेल्थ विभाग ने रिटायरमेंट की उम्र 65 साल कर दी है। राष्ट्रीय हेल्थ कमीशन (एनएचएम) के अंतर्गत रिवर्स बिड (मुंहमांगे वेतन पर प्राइवेट प्रैक्टिशनर्स) के जरिए 1100 पदों पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की भर्ती का भी कोई असर नहीं दिख रहा। 5-5 लाख रुपए प्रतिमाह वेतन तय होने के बाद भी इसमें से कई डॉक्टरों ने अभी तक जॉइन नहीं किया। पिछले दिनों 1,056 पदों के सापेक्ष 355 विशेषज्ञ डॉक्टरों का चयन हुआ है। लेकिन, अभी तक 10 प्रतिशत भी डॉक्टरों ने भी ज्वॉइनिंग नहीं दी है। संविदा पर डॉक्टरों की चल रही भर्ती
यूपी हेल्थ विभाग ने वॉक-इन-इंटरव्यू के जरिए संविदा पर डॉक्टरों की नियुक्ति करने की प्रक्रिया में जुटा है। विभाग ने सेवानिवृत्त होने वाले डॉक्टरों को पुनर्नियोजन योजना के तहत नियुक्ति का मौका दिया है। लेकिन, इन 1000 पदों के सापेक्ष महज 450 डॉक्टर ही सेवा में फिर से आए। अब रांची मॉडल के जरिए प्रदेश के जिला अस्पतालों में स्थानीय निजी चिकित्सकों से ओएम-यू किया जा सकता है। इससे उनकी सेवाएं उपलब्ध होंगी और विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी दूर हो सकेगी। जिला अस्पतालों में बुनियादी सुविधाएं बढ़ाना क्यों जरूरी
रूरल हेल्थ स्टैटिस्टिक्स-2025 के अनुसार, यूपी में 36 हजार की आबादी पर एक सीएचसी है। सीएचसी में 21,964 विशेषज्ञ डॉक्टरों में से केवल 4,413 ही तैनात हैं। मतलब 79.9% डॉक्टरों की कमी है। सीएचसी में 4 प्रमुख डॉक्टर सर्जन, प्रसूति रोग विशेषज्ञ, फिजिशियन और बाल रोग विशेषज्ञ होने चाहिए। लेकिन, सर्जन (83.2%), प्रसूति रोग विशेषज्ञ/स्त्री रोग विशेषज्ञ (74.2%), फिजिशियन (79.1%), और बाल रोग विशेषज्ञ (81.6%) कम हैं। सिर्फ 541 सीएचसी में ही ये चारों विशेषज्ञ उपलब्ध हैं। ये कुल 5,480 सीएचसी का सिर्फ 9.8% है। यही वजह है कि जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों पर मरीजों का काफी दबाव रहता है। सरकार रांची मॉडल से जिला अस्पताल के साथ सीएचसी का भी कायाकल्प कर सकती है। जिला अस्पतालों में बेड की भारी कमी है। कई बार हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि एक ही बेड पर 2-3 मरीज लेटने को मजबूर रहते हैं। यूपी में प्रति मरीज इलाज का औसत खर्च 660 रुपए
सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी के कारण मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। जहां इलाज की लागत राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। एक आंकड़े के अनुसार, यूपी में प्रति मरीज इलाज का औसत खर्च 660 रुपए है। जबकि राष्ट्रीय औसत 312 रुपए है। रांची मॉडल अपनाने से प्रदेश के जिला अस्पताल बेहतर होंगे, लोगों को बेहतर इलाज की सुविधाएं मिल सकेंगी। सभी इलाज आयुष्मान योजना से कवर होता है। इसके अलावा सामान्य लोगों को भी सस्ते में इलाज की सुविधा यहां उपलब्ध है। ————————— ये खबर भी पढ़ें… यूपी में 100 में सिर्फ 5 लोग भर रहे चालान, ढाई साल में 5 हजार करोड़ का काटा, वसूली सिर्फ 5% यूपी में हर साल सवा करोड़ से ज्यादा गाड़ियों के चालान होते हैं। चालान की ये रकम करीब एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है। लेकिन वसूली नाम मात्र ही हो पाती है। बीते ढाई साल में यूपी में 5,239 करोड़ रुपए का चालान हुआ है। इसके मुकाबले यातायात विभाग सिर्फ 333 करोड़ रुपए ही वसूल सका है। यानी लगभग 5 हजार करोड़ रुपए बकाया है। ‘दैनिक भास्कर’ की इस खास रिपोर्ट में जानिए आखिर क्यों लोग चालान जमा नहीं कर रहे? ऑनलाइन चालान करने के बाद क्या खुद की जिम्मेदारी से बरी हो जा रहे यातायात पुलिस कर्मी? साल-दर-साल चालान की संख्या कितनी बढ़ी और वसूली में गिरावट कितनी आ रही? पढ़ें पूरी खबर