राजीव कृष्ण 11 अफसरों को पीछे छोड़ बने UP डीजीपी:9 महीने तक कार्यवाहक रहेंगे, मार्च में बन सकते हैं स्थाई

राजीव कृष्ण 11 अफसरों को पीछे छोड़ते हुए कार्यवाहक DGP बने हैं। यानी राजीव कृष्ण 11 अफसरों से जूनियर हैं। इनमें 3 अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं। राजीव कृष्ण के पास सबसे लंबे समय तक के लिए प्रदेश के DGP बने रहने का मौका है। क्योंकि, अभी इनके रिटायरमेंट में 4 साल 1 महीने का वक्त है। ऐसे में उनके सामने क्या चुनौती रहेगी? इनसे सीनियर अफसर कौन-कौन हैं? इन्हें अभी कार्यवाहक DGP क्यों बनाया गया है? क्या ये स्थाई DGP हो सकते हैं? इन सब सवालों के जवाब इस खबर में तलाशेंगे। राजीव कृष्ण रिजल्ट ओरिएंटेड अफसर हैं। इन्हें जो भी टास्क मिलता है, उसे पूरी गंभीरता के साथ समय पर पूरा करने की कोशिश करते हैं। उनके सामने सबसे बड़ा चैलेंज अपने सीनियर के साथ समन्वय बैठाने का होगा। राजीव कृष्ण 1989 बैच के अफसर सफी अहसन रिजवी (केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर), आशीष गुप्ता, आदित्य मिश्रा, 1990 बैच के संदीप सालुंके, दलजीत चौधरी (केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर), रेणुका मिश्रा, विजय कुमार मौर्य, एमके बशाल, तिलोत्मा वर्मा, 1991 बैच के आलोक शर्मा (केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर), पीयूष आनंद (केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर) को पछाड़ कर डीजीपी बने हैं। क्यों राजीव कृष्ण ने रेस में मारी बाजी
सूत्रों का कहना है कि कुछ अफसर चाहते थे कि प्रदेश को पहली महिला डीजीपी मिले। इसके लिए तिलोत्मा वर्मा का नाम सबसे ऊपर था। लेकिन, तिलोत्मा वर्मा के नाम के साथ दो चीजें आड़े आ गईं। पहली- वह लंबे समय से फील्ड में नहीं रही हैं। वे साल- 2000 में सुल्तानपुर जिले की एसपी थीं। उसके बाद से कभी फील्ड में तैनाती नहीं मिली। उनका ज्यादातर समय केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बीता। दूसरी- इनके स्थाई डीजीपी बनने का अवसर नहीं था। यही वजह रही कि तिलोत्मा वर्मा रेस में पिछड़ गईं। करीब यही स्थिति बीके मौर्य के साथ भी हुई। बीके मौर्य जुलाई में रिटायर हो रहे हैं। इसके अलावा उनको उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का करीबी माना जाता है। यही बीके मौर्य के खिलाफ गया। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर मौजूद दलजीत चौधरी के नाम की भी चर्चा हुई। लेकिन, वे बीएसएफ जैसी अहम फोर्स की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। मौजूदा समय में पाकिस्तान से टकराव चल रहा है। वहीं, नक्सलियों पर कमरतोड़ कार्रवाई हो रही है। ऐसे में दलजीत को वापस बुलाने के लिए केंद्र सरकार से अनुरोध करना पड़ता। सपा-बसपा सरकार में भी अहम पदों पर रह चुके हैं राजीव कृष्ण
राजीव कृष्ण सपा सरकार में भी अहम पदों पर रह चुके हैं। मुलायम सिंह की सरकार में डेढ़ साल तक आगरा, लखनऊ और बरेली के एसएसपी रह चुके हैं। मायावती सरकार में लखनऊ जिले के डीआईजी के तौर पर कप्तान, लखनऊ रेंज के आईजी और मेरठ रेंज के आईजी रह चुके हैं। 2012 में जब प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार बनी तो पहले उन्हें पीटीएस गोरखपुर भेजा गया। बाद में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बीएसएफ में चले गए। 5 साल बाद सितंबर 2017 में लौटे तो पहले पुलिस अकादमी मुरादाबाद भेजे गए। फिर लखनऊ जोन के एडीजी बना दिए गए। ऐसे फाइनल हुआ नाम
राजीव कृष्ण को डीजीपी बनाए जाने से पहले प्रशांत कुमार के सेवा विस्तार की पूरी कोशिश की गई। डीजीपी मुख्यालय से लेकर गृह विभाग तक को सक्रिय रखा गया कि किसी भी समय केंद्र से सेवा विस्तार का आदेश आ सकता है। सूत्रों के मुताबिक, शाम 5 बजे तक आदेश का इंतजार होता रहा। लेकिन, जब बात नहीं बनी तो तुरंत नया नाम तय करने की कवायद शुरू हुई। शाम होते-होते प्रशांत कुमार, सीएम योगी से मिलने उनके कालिदास मार्ग स्थित आवास पहुंचे। वहीं, नए डीजीपी को लेकर मंथन हुआ। आखिरकार रेस में आगे रहे राजीव कृष्ण का नाम तय हो गया। क्यों राजीव कृष्ण पर जताया भरोसा?
बताया जा रहा है, इस पद की दौड़ में कई बड़े नाम शामिल थे। लेकिन, राजीव कृष्ण ने 11 अफसरों को सुपरसीड करते हुए बाजी मार ली। इसके पीछे कई वजहें रहीं। जैसे 60 हजार 244 सिपाहियों की भर्ती को पूरी पारदर्शिता से अंजाम दिया। पिछली बार परीक्षा लीक होने के कारण भर्ती प्रक्रिया रुकती रही थी, लेकिन इस बार उनकी निगरानी में प्रक्रिया बेदाग रही। उन्हें हाईटेक पुलिसिंग का मास्टरमाइंड माना जाता है। बतौर एडीजी उन्होंने ‘ऑपरेशन पहचान’ एप तैयार कराया, जिससे अपराधियों पर शिकंजा कसा गया। महिला बीट और एंटी रोमियो स्क्वॉड की ऑनलाइन मॉनिटरिंग सिस्टम भी इसी प्लेटफॉर्म से जोड़ी गई। ई-मालखाना, मुकदमों का डिजिटल रिकॉर्ड, और साइबर अपराधों पर व्यापक अभियान- ये सभी उनकी सोच की देन हैं। बतौर आगरा एसएसपी, बीहड़ में सक्रिय अपहरण गिरोहों के खिलाफ उन्होंने जमीनी स्तर पर प्रभावी कार्रवाई की थी। योगी को क्यों पसंद आए राजीव?
राजीव कृष्ण की छवि एक कड़क, फील्ड में एक्टिव और टेक्नोक्रेट पुलिस अधिकारी की रही है। यही कारण रहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भरोसेमंद और साफ छवि वाले अफसर की तलाश में आखिरकार उनकी ओर रुख किया। मार्च में बनेंगे स्थाई डीजीपी
राजीव कृष्ण फिलहाल कार्यवाहक डीजीपी के रूप में ही काम करेंगे, क्योंकि प्रदेश सरकार अभी यूपीएससी पैनल नहीं भेजेगी। फरवरी महीने तक इनसे सीनियर 7 डीजी रिटायर हो चुके होंगे। तब यह सीनियॉरिटी लिस्ट में चौथे नंबर पर आ जाएंगे। ऐसे में जब यूपीएससी को नाम भेजा जाएगा, तो राजीव कृष्णा को पैनल में शामिल किया जा सकता है। राजीव से सीनियर कौन अफसर कब रिटायर होगा? 5वें कार्यवाहक डीजीपी हैं राजीव कृष्ण राजीव कृष्ण यूपी आईपीएस अफसरों की कॉडर लिस्ट में 12वें नंबर पर हैं। ऐसे में संघ लोकसेवा आयोग (UPSC) से इन्हें स्थाई डीजीपी के रूप में फिलहाल मान्यता नहीं मिल पाएगी। इसके लिए इन्हें मार्च तक इंतजार करना पड़ेगा। क्योंकि तब तक डीजी रैंक के कई और अफसर रिटायर हो चुके होंगे। यहां-यहां रही तैनाती
1991 में आईपीएस बनने के बाद उनकी पहली तैनाती प्रशिक्षु आईपीएस के रूप में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुई थी। इसके बाद बरेली, कानपुर, अलीगढ़ में एएसपी के तौर पर तैनात रहे। 10 मार्च, 1997 को इन्हें पहली बार जिले की कमान सौंपी गई और फिरोजाबाद के एसपी बने। इसके बाद वह इटावा, मथुरा, फतेहगढ़, बुलंदशहर, गौतमबुद्धनगर, आगरा, लखनऊ, बरेली के एसएसपी रहे। मायावती के शासनकाल में जब बड़े जिलों में एसएसपी के स्थान पर डीआईजी की तैनाती हो रही थी, उस समय इन्हें लखनऊ जिले का डीआईजी बनाया गया था। राजीव कृष्ण मेरठ रेंज के आईजी भी बने थे। 2012 में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए। सितंबर, 2017 में लौटे तो पहले पुलिस अकादमी मुरादाबाद में तैनाती दी गई। फिर 5 फरवरी, 2018 को इन्हें लखनऊ जोन का एडीजी बनाया गया। राजीव कृष्ण आगरा जोन में भी ढाई साल तक एडीजी जोन रहे थे। मजबूत बैक ग्राउंड से आते हैं राजीव कृष्ण
राजीव कृष्ण के परिवार में दो पीढ़ियों से सिविल सेवाओं (आईपीएस, आईआरएस) और राजनीति में प्रभावशाली उपस्थिति है। पत्नी मीनाक्षी सिंह नोएडा में CBDT में डिप्टी सेक्रेटरी हैं। सरोजनीनगर से विधायक राजेश्वर सिंह इनके साले हैं। राजेश्वर यूपी पुलिस के 1996 बैच के अफसर रहे हैं। बाद में वे प्रतिनियुक्ति पर प्रवर्तन निदेशालय चले गए और उसी कॉडर में मर्ज हो गए। 2022 के चुनाव से ठीक पहले राजेश्वर सिंह ने VRS लेकर राजनीति में कदम रखा। वे मौजूदा समय में लखनऊ की सरोजनीनगर सीट से विधायक हैं। राजेश्वर की पत्नी लक्ष्मी सिंह गौतमबुद्धनगर की पुलिस आयुक्त हैं। इसके अलावा इनके ससुर भी डीआईजी रहे हैं। क्या है डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया?
उत्तर प्रदेश में डीजीपी की नियुक्ति के लिए 6 माह पहले नियमावली बनाई गई थी। हालांकि कैबिनेट से पास इस नियमावली को अब तक लागू नहीं किया गया है। इस नियमावली के तहत एक छह सदस्यीय समिति डीजीपी की नियुक्ति करेगी। इस समिति की अध्यक्षता हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे, और इसमें मुख्य सचिव, यूपीएससी का एक सदस्य, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या उनका नामित व्यक्ति, अपर मुख्य सचिव (गृह), और एक पूर्व डीजीपी शामिल होंगे। यह कमेटी सेवा रिकॉर्ड, अनुभव, और न्यूनतम छह महीने की शेष सेवा अवधि जैसे मानदंडों के आधार पर डीजीपी का चयन करेगी। डीजीपी की नियुक्ति दो वर्ष या रिटायरमेंट की अवधि तक इसमें जो पहले हो, की जा सकती है। साथ ही असंतोषजनक प्रदर्शन की स्थिति में सरकार उन्हें हटा भी सकती है। पहले की प्रक्रिया में, राज्य सरकार वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की सूची संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को भेजती थी, जो तीन वरिष्ठतम अधिकारियों का पैनल तैयार करता था। केंद्र के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ट्रेनिंग (डीओपीटी) और गृह मंत्रालय की सलाह के बाद अंतिम चयन होता था। ———————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी के नए डीजीपी बने राजीव कृष्ण, बेदाग पुलिस भर्ती परीक्षा कराई थी; प्रशांत कुमार को नहीं मिला एक्सटेंशन यूपी के DGP का ऐलान हो गया है। राजीव कृष्ण नए DGP बनाए गए हैं। इन्हें भी कार्यवाहक DGP बनाया गया है। ये लगातार 5वें कार्यवाहक DGP हैं। अभी तक प्रशांत कुमार कार्यवाहक DGP थे, जो आज रिटायर हो गए। राजीव कृष्ण की गिनती तेज-तर्रार अफसरों में होती है। पढ़ें पूरी खबर