यूपी के रामपुर में CRPF कैंप पर 31 दिसंबर, 2007 की रात हुए आतंकी हमला हुआ। 29 अक्टूबर, 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट (HC) ने 4 दोषियों की फांसी की सजा और एक की उम्रकैद की सजा रद कर दी। इन लोगों को सिर्फ आर्म्स एक्ट में दोषी पाते हुए 10 साल की सजा दी है। ये सभी 18 साल से जेलों में बंद हैं। ऐसे में ये माना जा रहा है कि सभी जल्द ही जेलों से बाहर आ सकते हैं। हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में पूरी तरह विफल रहा। पुलिस ने इस केस में जो गवाह बनाए, वो न तो इन लोगों को पहले से जानते थे। न ही इनकी कभी शिनाख्त परेड करवाई। ऐसे में वो कैसे जानते थे कि यही आरोपी हैं? या फिर इन्होंने ही जुर्म किया है। HC ने पाया है कि घटनास्थल और दोषियों से जो गोला-बारूद रिकवर हुए, वो कई दिन तक पुलिस कस्टडी में कहां रखे रहे, ये कोई नहीं बता पाया। दोषियों के फिंगरप्रिंट वाला लिफाफा भी कोर्ट में आज तक पेश नहीं किया गया। यहां फिर से वही सवाल खड़ा हो जाता है कि जब ये सभी आरोपी हत्या के जुर्म में बरी हो गए, तो CRPF कैंप पर हमला करने वाले कौन थे? इस बार की संडे बिग स्टोरी में पढ़िए…31 दिसंबर 2007 की रात हुआ क्या था? कोर्ट में सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ? सजा होने से लेकर सजा रद होने की पूरी कहानी क्या है? इसके लिए ‘दैनिक भास्कर’ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 185 पेज के ऑर्डर की स्टडी की। अपीलकर्ताओं के वकीलों से अलग-अलग बात की। समझा कि अभियोजन पक्ष कहां-क्या साबित नहीं कर पाया? सबसे पहले 18 साल पुरानी FIR पढ़िए रामपुर पुलिस पर गोलियां बरसाईं, फिर CRPF सेंटर में घुसे आतंकी
यूपी पुलिस के सबइंस्पेक्टर ओमप्रकाश शर्मा ने 1 जनवरी, 2008 को रामपुर के सिविल लाइन पुलिस स्टेशन में FIR कराई। इसके मुताबिक, सबइंस्पेक्टर ओमप्रकाश शर्मा एक रिवॉल्वर लेकर कॉन्स्टेबल इंद्रपाल सिंह, जितेंद्र सिंह, होमगार्ड आफताब खान और ड्राइवर जसवंत सिंह के साथ थाने की जीप लेकर गश्त पर निकले थे। 31 दिसंबर, 2007 की रात करीब 12 बजकर 25 मिनट पर वो CRPF टोल बैरियर पर पहुंचे। उन्होंने CRPF ग्रुप सेंटर के गेट नंबर-1 की तरफ से गोलीबारी की आवाजें सुनी। रात ढाई बजे इसी पुलिस फोर्स ने बिजली के बल्ब की रोशनी में 4-5 लोगों को देखा, जिनके पास ऑटोमैटिक हथियार थे। वो लोग CRPF जवानों पर गोलीबारी कर रहे थे। इस दौरान कॉन्स्टेबल इंद्रपाल सिंह ने 8, जितेंद्र सिंह ने 7, वीरेंद्र राणा ने 5 और होमगार्ड आफताब खान ने अपनी राइफल से 5 राउंड फायरिंग की। जवाबी कार्रवाई में आतंकियों ने भी गोलियां दागीं। गोली लगने से कॉन्स्टेबल इंद्रपाल सिंह और होमगार्ड आफताब घायल हो गए। इंद्रपाल की राइफल भी क्षतिग्रस्त हो गई। पुलिस दल पर हावी होने के बाद आतंकी CRPF सेंटर में घुस गए और अंधाधुंध फायरिंग कर दी। हमले में CRPF कॉन्स्टेबल देवेंद्र, विकास कुमार, हवलदार ऋषिकेश राय, अफजल अहमद, रामजीत सरन मिश्रा, कॉन्स्टेबल आनंद कुमार, मनवीर सिंह शहीद हो गए। एक अज्ञात व्यक्ति की भी मौत हुई। रामपुर पुलिस स्टेशन ने इस घटना में IPC सेक्शन–147, 148, 149, 307, 302, 332, PDPP एक्ट की धारा 3/5 और विस्फोटक अधिनियम की धारा-3 के तहत FIR दर्ज की थी। एडिशनल DIG की इंटरनल रिपोर्ट आतंकी हमले में ग्रेनेड इस्तेमाल की आशंका
इस पूरी घटना के संबंध में CRPF के अतिरिक्त पुलिस उप-महानिरीक्षक कार्यालय से भी एक रिपोर्ट बनाई गई थी। इसके अनुसार, आतंकी हमले में 7 जवान शहीद और 3 घायल हुए। CRPF के जवानों ने SLR के करीब 68 राउंड और AKMK के 3 राउंड फायर किए थे। मुख्य गेट/गार्ड रूम पर 4, केंद्रीय नियंत्रण कक्ष में 2 और दूसरे नियंत्रण कक्ष में 1 जवान शहीद हुआ था। इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि आतंकी हमले में संभवत: ग्रेनेड का इस्तेमाल किया गया था। आतंकियों के पास से एके-47 की एक मैगजीन, 29 जिंदा कारतूस और 7 खाली कारतूस जब्त किए गए थे। एक हैंडग्रेनेड का एक लिवर भी बरामद हुआ था। इस घटना के अगले दिन यानी 2 जनवरी, 2008 को जब CRPF ने तलाशी अभियान चलाया तो एक हैंडग्रेनेड का सेफ्टी पिन, एके-47 के 4 खाली कारतूस, 6 फ्लैट बुलेट बरामद हुईं। रामपुर कोर्ट ने 6 साल पहले सुनाई थी फांसी की सजा
9 जनवरी, 2008 की रात को रामपुर के एडिशनल एसपी अशोक कुमार राघव ने आतंकी हमले में 3 आरोपियों बाबा उर्फ जंग बहादुर, मोहम्मद शरीफ उर्फ सोहेल उर्फ साजिद उर्फ अनवर और फहीम उर्फ अरशद उर्फ हसन अहमद उर्फ आकिल उर्फ अबू जर्रार को हथियारों सहित गिरफ्तार किया। अगले दिन 10 जनवरी, 2008 की सुबह बाकी आरोपी इमरान शहजाद, मोहम्मद फारुक और सबाउद्दीन पकड़े गए। रामपुर पुलिस ने चार्जशीट लगाई और फिर इसके बाद कई सप्लीमेंट्री चार्जशीट भी कोर्ट में दाखिल की थीं। अभियोजन पक्ष की तरफ से कुल 38 गवाह पेश किए गए। रामपुर कोर्ट ने 2 नवंबर, 2019 को मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद, मोहम्मद फारुक को हत्या का दोषी पाते हुए मौत की सजा सुनाई थी। वहीं, जंग बहादुर खान को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसी फैसले को दो आरोपियों ने हाईकोर्ट इलाहाबाद में चुनौती दी थी। उनकी तरफ से जमीयत उलेमा–ए–हिंद ने हाईकोर्ट में इस केस की पैरवी की। जानिए, किस-किस पॉइंट पर कमजोर हुआ केस 1- आरोपियों की उंगलियों के निशान सुरक्षित नहीं रखे गए
पुलिस ने कोर्ट को बताया कि हमने 1 जनवरी, 2008 की रात CRPF सेंटर से कुछ उंगलियों के निशान जांच के लिए भेजे। जो बाद में पकड़े गए आरोपी सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारुक के पाए गए। कोर्ट ने पूछा कि जो निशान उठाए थे, वो कहां सुरक्षित रखे गए? जांच अधिकारी ये बात नहीं बता पाए। एक अन्य गवाह ने इतना जरूर बताया कि जिस लिफाफे में ये निशान सुरक्षित रखे गए थे, उसका क्रमांक 34ख-17 था। हालांकि, ये लिफाफा कभी कोर्ट में पेश नहीं किया गया। साथ ही उंगलियों के निशान साबित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा- जब हमला करने वाले 5 आरोपी थे, तो उंगलियों के निशान भी पांचों के उपलब्ध हो सकते थे। लेकिन, निशान सिर्फ 3 के बताए गए हैं। जब 1 जनवरी, 2008 की रात उठाए गए उंगलियों के निशानों को सुरक्षित रखने का कोई सबूत नहीं है, तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जांच एजेंसियां गलत काम कर सकती थीं। 2- आरोपियों के नाम कैसे मालूम हुए, ये नहीं बता पाए
हाईकोर्ट ने कहा- अभियोजन पक्ष के गवाह पहले से आरोपियों को नहीं जानते थे। इससे ये संदेह पैदा होता है कि क्या उन गवाहों को कभी पता था कि वास्तव में इन्हीं आरोपियों ने अपराध किया है। कोर्ट ने सभी डॉक्यूमेंट्स पढ़ने और दलीलें सुनने के बाद पाया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों को मुकदमा दर्ज कराते वक्त और बयान दर्ज कराते वक्त आरोपियों के नाम मालूम नहीं थे। जिरह के दौरान भी वो ये बताने में नाकामयाब रहे कि उन्हें आरोपियों के नाम कब और कैसे पता चले? हाईकोर्ट ने फैसले की टिप्पणी में लिखा- इस मामले को समाप्त करने से पहले हम यह जरूर कहना चाहेंगे कि अगर जांच और अभियोजन पक्ष ज्यादा ट्रेंड पुलिस द्वारा किया गया होता तो इस मामले का नतीजा कुछ और होता। जब चश्मदीद गवाह अभियुक्तों को पहले से नहीं जानते थे। घटना रात के अंधेरे में हुई तो जांच एजेंसियों के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों को बापर्दा में रखना जरूरी था। साथ ही अभियोजन पक्ष को शिनाख्त परेड की मांग करनी चाहिए थी। 3- बरामद गोला-बारूद 3 दिन कहां रहा, नहीं पता
पुलिस ने पांचों संदिग्ध आरोपियों से जो गोला-बारूद बरामद दिखाए, उन्हें फोरेंसिक जांच के लिए 5 जनवरी, 2008 को भेज दिया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि 1 और 2 जनवरी को बरामद हुई वस्तुएं 5 जनवरी तक वास्तव में कहां रखी गई थीं, ये बड़ा रहस्य है। मालखाना रजिस्टर या जीडी एंट्री में कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं पाया गया है। किसी भी गवाह से पूछताछ नहीं की गई, जिसने बरामद माल को फोरेंसिक लैब तक पहुंचाया हो। एक कॉन्स्टेबल कल्लू ये वस्तुएं लेकर FSL लैब गया था। लेकिन, उसे कभी गवाह के कठघरे में पेश नहीं किया गया। जिससे वो ये विस्तार से बता सके कि उन्होंने ये वस्तुएं कहां से प्राप्त की थीं। HC ने CRPF कर्मियों द्वारा कैंप से बरामद की गईं गोलियों की फोरेंसिक रिपोर्ट देखते हुए पाया कि ये गोलियां पूर्व में परीक्षण गोलियों से मेल नहीं खातीं। इससे ये विश्वास नहीं होता कि गोलियां आरोपियों से बरामद बंदूकों से चलाई गई थीं। वहीं, जो कारतूस आरोपियों के हथियार से मैच हुए, उन्हें भी सुरक्षित कवर में नहीं रखा गया। इससे हमेशा उनके साथ छेड़छाड़ की आशंका मानी जा सकती है। 4- 98 से ज्यादा राउंड फायरिंग, एक भी हमलावर घायल नहीं
हाईकोर्ट ने पाया कि सीआरपीएफ कर्मियों ने अदालत में भी अभियुक्तों को नहीं पहचाना। इसके अलावा अभियुक्तों के नामों को लेकर प्रत्यक्षदर्शियों के बयान भी संदिग्ध पाए गए। क्योंकि, अभियुक्तों के मूल नाम समेत कई-कई उपनाम थे। निश्चित रूप से जब सीआरपीएफ कैंप पर हमला हुआ, तब एक हमलावर दूसरे हमलावर को उसके मूल नाम से नहीं बुलाएगा। हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीएफ ने जवाबी कार्रवाई में अपनी तरफ से 98 राउंड फायरिंग करना दिखाया। इसके अलावा पुलिस ने भी फायरिंग की। इसके बावजूद एक भी हमलावर घायल नहीं हुआ। अब पीड़ित परिवार की बात शहीद की बेटी बोली- आतंकियों को फांसी की सजा हो
आतंकी हमले में CRPF जवान मनवीर सिंह चौधरी भी शहीद हुए थे। फिलहाल उनका परिवार मेरठ में रहता है। हमने हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद शहीद के परिवार से बात की। मनवीर सिंह की 26 साल की बेटी दीपा चौधरी कहती हैं- मैंने तो अपने पापा को खो दिया। अब हम उन्हें दोबारा वापस नहीं पा सकते। हमने अपनी पूरी जिंदगी उनके बिना कैसे बिताई है, ये हमें ही पता है। इतना बड़ा जुर्म करने के बाद भी आतंकवादियों को छोड़ दिया गया। ये हमारे लिए बिल्कुल बर्दाश्त से बाहर है। हम चाहते हैं कि उन्हें फांसी की सजा हो। दीपा चौधरी कहती हैं कि हमने अपना सब कुछ खो दिया। हमें पता है कि हम अपने अंदर की भावना शब्दों में बयां नहीं कर सकते कि हमारे दिल पर क्या बीतती है। हमें नहीं पता कि जांच में क्या गड़बड़ हुई है। मेरे पापा कंट्रोल रूम में ड्यूटी दे रहे थे। आतंकी इतना अंदर तक कैसे पहुंच गए। आतंकियों ने इतना अंदर पहुंचकर मेरे पापा को मार डाला। बचाव पक्ष के अधिवक्ता बोले- इन्वेस्टिगेशन सही नहीं हुई, कोर्ट का फैसला सही
रामपुर कोर्ट में बचाव पक्ष के अधिवक्ता जमीर रिजवी कहते हैं- रामपुर सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील डाली गई थी। सेशन कोर्ट के फैसले और इस केस की इन्वेस्टिगेशन में काफी लचर व्यवस्था अपनाई गई थी। हाईकोर्ट ने बहुत बारीकी से इस केस का अध्ययन किया। इस फैसले का हम स्वागत करते हैं। अभियुक्तों को गिरफ्तारी के बापर्दा नहीं किया गया था। फिंगर प्रिंट सुरक्षित नहीं रखे गए। आरोपियों से बरामद हथियारों को भी सही तरीके से नहीं रखा गया। कुल मिलाकर इस केस में सही तरीके से विवेचना नहीं की गई। हाईकोर्ट ने हर पॉइंट बारीकि से देखा और जेल में बंद 5 अभियुक्तों की मौत की सजा रद कर दी। —————————– ये खबर भी पढ़ें… मां बोलीं- बेटी पर इश्क का भूत, बदतर मौत मिले, बरेली में फूट-फूट रोईं, कहा- दामाद को इतना टॉर्चर किया कि जान दे दी ‘मेरी बेटी ने बहुत बुरा किया है। उसे फांसी हो…बद से बदतर मौत मिलनी चाहिए। उसने दामाद को धोखा दिया। उसे इतना टॉर्चर किया कि वह टूट गया। आखिरकार उसने जान दे दी। इंस्टाग्राम से मेरी बेटी बिगड़ गई। हमारा अब उससे कोई रिश्ता नहीं है।’ यह कहते हुए बरेली की आशा रानी फूट-फूट रोने लगीं। दरअसल, 26 अक्टूबर को उनके वकील दामाद कमल ने पत्नी कोमल के प्रेमी के साथ भाग जाने के बाद सुसाइड कर लिया था। मरने से पहले एक सुसाइड नोट भी लिखा था। पढ़ें पूरी खबर
यूपी पुलिस के सबइंस्पेक्टर ओमप्रकाश शर्मा ने 1 जनवरी, 2008 को रामपुर के सिविल लाइन पुलिस स्टेशन में FIR कराई। इसके मुताबिक, सबइंस्पेक्टर ओमप्रकाश शर्मा एक रिवॉल्वर लेकर कॉन्स्टेबल इंद्रपाल सिंह, जितेंद्र सिंह, होमगार्ड आफताब खान और ड्राइवर जसवंत सिंह के साथ थाने की जीप लेकर गश्त पर निकले थे। 31 दिसंबर, 2007 की रात करीब 12 बजकर 25 मिनट पर वो CRPF टोल बैरियर पर पहुंचे। उन्होंने CRPF ग्रुप सेंटर के गेट नंबर-1 की तरफ से गोलीबारी की आवाजें सुनी। रात ढाई बजे इसी पुलिस फोर्स ने बिजली के बल्ब की रोशनी में 4-5 लोगों को देखा, जिनके पास ऑटोमैटिक हथियार थे। वो लोग CRPF जवानों पर गोलीबारी कर रहे थे। इस दौरान कॉन्स्टेबल इंद्रपाल सिंह ने 8, जितेंद्र सिंह ने 7, वीरेंद्र राणा ने 5 और होमगार्ड आफताब खान ने अपनी राइफल से 5 राउंड फायरिंग की। जवाबी कार्रवाई में आतंकियों ने भी गोलियां दागीं। गोली लगने से कॉन्स्टेबल इंद्रपाल सिंह और होमगार्ड आफताब घायल हो गए। इंद्रपाल की राइफल भी क्षतिग्रस्त हो गई। पुलिस दल पर हावी होने के बाद आतंकी CRPF सेंटर में घुस गए और अंधाधुंध फायरिंग कर दी। हमले में CRPF कॉन्स्टेबल देवेंद्र, विकास कुमार, हवलदार ऋषिकेश राय, अफजल अहमद, रामजीत सरन मिश्रा, कॉन्स्टेबल आनंद कुमार, मनवीर सिंह शहीद हो गए। एक अज्ञात व्यक्ति की भी मौत हुई। रामपुर पुलिस स्टेशन ने इस घटना में IPC सेक्शन–147, 148, 149, 307, 302, 332, PDPP एक्ट की धारा 3/5 और विस्फोटक अधिनियम की धारा-3 के तहत FIR दर्ज की थी। एडिशनल DIG की इंटरनल रिपोर्ट आतंकी हमले में ग्रेनेड इस्तेमाल की आशंका
इस पूरी घटना के संबंध में CRPF के अतिरिक्त पुलिस उप-महानिरीक्षक कार्यालय से भी एक रिपोर्ट बनाई गई थी। इसके अनुसार, आतंकी हमले में 7 जवान शहीद और 3 घायल हुए। CRPF के जवानों ने SLR के करीब 68 राउंड और AKMK के 3 राउंड फायर किए थे। मुख्य गेट/गार्ड रूम पर 4, केंद्रीय नियंत्रण कक्ष में 2 और दूसरे नियंत्रण कक्ष में 1 जवान शहीद हुआ था। इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि आतंकी हमले में संभवत: ग्रेनेड का इस्तेमाल किया गया था। आतंकियों के पास से एके-47 की एक मैगजीन, 29 जिंदा कारतूस और 7 खाली कारतूस जब्त किए गए थे। एक हैंडग्रेनेड का एक लिवर भी बरामद हुआ था। इस घटना के अगले दिन यानी 2 जनवरी, 2008 को जब CRPF ने तलाशी अभियान चलाया तो एक हैंडग्रेनेड का सेफ्टी पिन, एके-47 के 4 खाली कारतूस, 6 फ्लैट बुलेट बरामद हुईं। रामपुर कोर्ट ने 6 साल पहले सुनाई थी फांसी की सजा
9 जनवरी, 2008 की रात को रामपुर के एडिशनल एसपी अशोक कुमार राघव ने आतंकी हमले में 3 आरोपियों बाबा उर्फ जंग बहादुर, मोहम्मद शरीफ उर्फ सोहेल उर्फ साजिद उर्फ अनवर और फहीम उर्फ अरशद उर्फ हसन अहमद उर्फ आकिल उर्फ अबू जर्रार को हथियारों सहित गिरफ्तार किया। अगले दिन 10 जनवरी, 2008 की सुबह बाकी आरोपी इमरान शहजाद, मोहम्मद फारुक और सबाउद्दीन पकड़े गए। रामपुर पुलिस ने चार्जशीट लगाई और फिर इसके बाद कई सप्लीमेंट्री चार्जशीट भी कोर्ट में दाखिल की थीं। अभियोजन पक्ष की तरफ से कुल 38 गवाह पेश किए गए। रामपुर कोर्ट ने 2 नवंबर, 2019 को मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद, मोहम्मद फारुक को हत्या का दोषी पाते हुए मौत की सजा सुनाई थी। वहीं, जंग बहादुर खान को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसी फैसले को दो आरोपियों ने हाईकोर्ट इलाहाबाद में चुनौती दी थी। उनकी तरफ से जमीयत उलेमा–ए–हिंद ने हाईकोर्ट में इस केस की पैरवी की। जानिए, किस-किस पॉइंट पर कमजोर हुआ केस 1- आरोपियों की उंगलियों के निशान सुरक्षित नहीं रखे गए
पुलिस ने कोर्ट को बताया कि हमने 1 जनवरी, 2008 की रात CRPF सेंटर से कुछ उंगलियों के निशान जांच के लिए भेजे। जो बाद में पकड़े गए आरोपी सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारुक के पाए गए। कोर्ट ने पूछा कि जो निशान उठाए थे, वो कहां सुरक्षित रखे गए? जांच अधिकारी ये बात नहीं बता पाए। एक अन्य गवाह ने इतना जरूर बताया कि जिस लिफाफे में ये निशान सुरक्षित रखे गए थे, उसका क्रमांक 34ख-17 था। हालांकि, ये लिफाफा कभी कोर्ट में पेश नहीं किया गया। साथ ही उंगलियों के निशान साबित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा- जब हमला करने वाले 5 आरोपी थे, तो उंगलियों के निशान भी पांचों के उपलब्ध हो सकते थे। लेकिन, निशान सिर्फ 3 के बताए गए हैं। जब 1 जनवरी, 2008 की रात उठाए गए उंगलियों के निशानों को सुरक्षित रखने का कोई सबूत नहीं है, तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जांच एजेंसियां गलत काम कर सकती थीं। 2- आरोपियों के नाम कैसे मालूम हुए, ये नहीं बता पाए
हाईकोर्ट ने कहा- अभियोजन पक्ष के गवाह पहले से आरोपियों को नहीं जानते थे। इससे ये संदेह पैदा होता है कि क्या उन गवाहों को कभी पता था कि वास्तव में इन्हीं आरोपियों ने अपराध किया है। कोर्ट ने सभी डॉक्यूमेंट्स पढ़ने और दलीलें सुनने के बाद पाया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों को मुकदमा दर्ज कराते वक्त और बयान दर्ज कराते वक्त आरोपियों के नाम मालूम नहीं थे। जिरह के दौरान भी वो ये बताने में नाकामयाब रहे कि उन्हें आरोपियों के नाम कब और कैसे पता चले? हाईकोर्ट ने फैसले की टिप्पणी में लिखा- इस मामले को समाप्त करने से पहले हम यह जरूर कहना चाहेंगे कि अगर जांच और अभियोजन पक्ष ज्यादा ट्रेंड पुलिस द्वारा किया गया होता तो इस मामले का नतीजा कुछ और होता। जब चश्मदीद गवाह अभियुक्तों को पहले से नहीं जानते थे। घटना रात के अंधेरे में हुई तो जांच एजेंसियों के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों को बापर्दा में रखना जरूरी था। साथ ही अभियोजन पक्ष को शिनाख्त परेड की मांग करनी चाहिए थी। 3- बरामद गोला-बारूद 3 दिन कहां रहा, नहीं पता
पुलिस ने पांचों संदिग्ध आरोपियों से जो गोला-बारूद बरामद दिखाए, उन्हें फोरेंसिक जांच के लिए 5 जनवरी, 2008 को भेज दिया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि 1 और 2 जनवरी को बरामद हुई वस्तुएं 5 जनवरी तक वास्तव में कहां रखी गई थीं, ये बड़ा रहस्य है। मालखाना रजिस्टर या जीडी एंट्री में कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं पाया गया है। किसी भी गवाह से पूछताछ नहीं की गई, जिसने बरामद माल को फोरेंसिक लैब तक पहुंचाया हो। एक कॉन्स्टेबल कल्लू ये वस्तुएं लेकर FSL लैब गया था। लेकिन, उसे कभी गवाह के कठघरे में पेश नहीं किया गया। जिससे वो ये विस्तार से बता सके कि उन्होंने ये वस्तुएं कहां से प्राप्त की थीं। HC ने CRPF कर्मियों द्वारा कैंप से बरामद की गईं गोलियों की फोरेंसिक रिपोर्ट देखते हुए पाया कि ये गोलियां पूर्व में परीक्षण गोलियों से मेल नहीं खातीं। इससे ये विश्वास नहीं होता कि गोलियां आरोपियों से बरामद बंदूकों से चलाई गई थीं। वहीं, जो कारतूस आरोपियों के हथियार से मैच हुए, उन्हें भी सुरक्षित कवर में नहीं रखा गया। इससे हमेशा उनके साथ छेड़छाड़ की आशंका मानी जा सकती है। 4- 98 से ज्यादा राउंड फायरिंग, एक भी हमलावर घायल नहीं
हाईकोर्ट ने पाया कि सीआरपीएफ कर्मियों ने अदालत में भी अभियुक्तों को नहीं पहचाना। इसके अलावा अभियुक्तों के नामों को लेकर प्रत्यक्षदर्शियों के बयान भी संदिग्ध पाए गए। क्योंकि, अभियुक्तों के मूल नाम समेत कई-कई उपनाम थे। निश्चित रूप से जब सीआरपीएफ कैंप पर हमला हुआ, तब एक हमलावर दूसरे हमलावर को उसके मूल नाम से नहीं बुलाएगा। हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीएफ ने जवाबी कार्रवाई में अपनी तरफ से 98 राउंड फायरिंग करना दिखाया। इसके अलावा पुलिस ने भी फायरिंग की। इसके बावजूद एक भी हमलावर घायल नहीं हुआ। अब पीड़ित परिवार की बात शहीद की बेटी बोली- आतंकियों को फांसी की सजा हो
आतंकी हमले में CRPF जवान मनवीर सिंह चौधरी भी शहीद हुए थे। फिलहाल उनका परिवार मेरठ में रहता है। हमने हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद शहीद के परिवार से बात की। मनवीर सिंह की 26 साल की बेटी दीपा चौधरी कहती हैं- मैंने तो अपने पापा को खो दिया। अब हम उन्हें दोबारा वापस नहीं पा सकते। हमने अपनी पूरी जिंदगी उनके बिना कैसे बिताई है, ये हमें ही पता है। इतना बड़ा जुर्म करने के बाद भी आतंकवादियों को छोड़ दिया गया। ये हमारे लिए बिल्कुल बर्दाश्त से बाहर है। हम चाहते हैं कि उन्हें फांसी की सजा हो। दीपा चौधरी कहती हैं कि हमने अपना सब कुछ खो दिया। हमें पता है कि हम अपने अंदर की भावना शब्दों में बयां नहीं कर सकते कि हमारे दिल पर क्या बीतती है। हमें नहीं पता कि जांच में क्या गड़बड़ हुई है। मेरे पापा कंट्रोल रूम में ड्यूटी दे रहे थे। आतंकी इतना अंदर तक कैसे पहुंच गए। आतंकियों ने इतना अंदर पहुंचकर मेरे पापा को मार डाला। बचाव पक्ष के अधिवक्ता बोले- इन्वेस्टिगेशन सही नहीं हुई, कोर्ट का फैसला सही
रामपुर कोर्ट में बचाव पक्ष के अधिवक्ता जमीर रिजवी कहते हैं- रामपुर सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील डाली गई थी। सेशन कोर्ट के फैसले और इस केस की इन्वेस्टिगेशन में काफी लचर व्यवस्था अपनाई गई थी। हाईकोर्ट ने बहुत बारीकी से इस केस का अध्ययन किया। इस फैसले का हम स्वागत करते हैं। अभियुक्तों को गिरफ्तारी के बापर्दा नहीं किया गया था। फिंगर प्रिंट सुरक्षित नहीं रखे गए। आरोपियों से बरामद हथियारों को भी सही तरीके से नहीं रखा गया। कुल मिलाकर इस केस में सही तरीके से विवेचना नहीं की गई। हाईकोर्ट ने हर पॉइंट बारीकि से देखा और जेल में बंद 5 अभियुक्तों की मौत की सजा रद कर दी। —————————– ये खबर भी पढ़ें… मां बोलीं- बेटी पर इश्क का भूत, बदतर मौत मिले, बरेली में फूट-फूट रोईं, कहा- दामाद को इतना टॉर्चर किया कि जान दे दी ‘मेरी बेटी ने बहुत बुरा किया है। उसे फांसी हो…बद से बदतर मौत मिलनी चाहिए। उसने दामाद को धोखा दिया। उसे इतना टॉर्चर किया कि वह टूट गया। आखिरकार उसने जान दे दी। इंस्टाग्राम से मेरी बेटी बिगड़ गई। हमारा अब उससे कोई रिश्ता नहीं है।’ यह कहते हुए बरेली की आशा रानी फूट-फूट रोने लगीं। दरअसल, 26 अक्टूबर को उनके वकील दामाद कमल ने पत्नी कोमल के प्रेमी के साथ भाग जाने के बाद सुसाइड कर लिया था। मरने से पहले एक सुसाइड नोट भी लिखा था। पढ़ें पूरी खबर