श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मामले में हाई कोर्ट में हुई सुनवाई:करीब डेढ़ घंटे तक चली सुनवाई, अब सुनवाई के लिए 12 दिसंबर की तारीख तय

मथुरा श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद को लेकर दाखिल याचिकाओं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में शुक्रवार को अहम सुनवाई हुई। हाईकोर्ट में करीब डेढ़ घंटे तक मामले की सुनवाई चली। हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल अमेंडमेंट एप्लीकेशन सुनवाई हुई। सुनवाई की अगली तिथि पर एएसआई की ओर से भी जवाब दाखिल किया जाएगा। पक्षकार माता रुक्मिणी देवी की वंशज नीतू चौहान की ओर से रिज्वाइंडर एफीडेविट दाखिल किया गया है। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 12 दिसंबर नियत की है। अब 12 दिसंबर को दोपहर 2:00 बजे जस्टिस अवनीश सक्सेना की सिंगल बेंच मामले की सुनवाई करेगी। केस जुड़े अधिवक्ता डॉ ए पी सिंह के मुताबिक अगली सुनवाई के बाद इस केस के बाद बिंदु भी अदालत तय कर सकती है। अक्टूबर 2023 से चल रही हैं हाईकोर्ट में सुनवाई बता दें कि मथुरा विवाद से जुड़ी याचिकाओं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में अक्टूबर 2023 से सुनवाई चल रही है। इन अर्जियों में शाही ईदगाह मस्जिद को अतिक्रमण बताते हुए मंदिर पक्ष को जमीन का कब्जा सौंपने की मांग की गई है। मंदिर के जीर्णोद्धार और स्थाई निषेधाज्ञा के लिए कुल 18 सिविल वाद दायर किए गए हैं। हाई कोर्ट अयोध्या विवाद की तर्ज पर सीधे तौर पर मुकदमे की सुनवाई कर रहा है। 2020 में डाली गई थी याचिका 25 सितंबर, 2020 को लखनऊ की वकील रंजना अग्निहोत्री ने 6 अन्य लोगों के साथ मिलकर सिविल कोर्ट में एक याचिका डाली थी। इसमें शाही ईदगाह मस्जिद को मंदिर परिसर से हटाने की मांग की गई थी। रंजना ने श्रीराम जन्मभूमि पर भी एक किताब लिखी है। उन्होंने श्रीकृष्ण विराजमान के परिजन की ओर से यह मुकदमा करने का दावा किया था। याचिकाकर्ताओं में से एक महेंद्र सिंह ने अपने तर्क में कहा कि जिस मूल कारागार, यानी जेल में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, वह ईदगाह मस्जिद मैनेजमेंट कमेटी की ओर से बनाए गए कंस्ट्रक्शन के नीचे है। उनका कहना है कि खुदाई के बाद कोर्ट के सामने सही तथ्य आ सकेंगे। 5 दिन बाद ही याचिका खारिज हुई 30 सितंबर 2020 को एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज छाया शर्मा ने इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि भगवान श्रीकृष्ण के पूरी दुनिया में असंख्य भक्त हैं। अगर हर भक्त की याचिका पर सुनवाई की इजाजत देंगे तो न्यायिक और सामाजिक व्यवस्था चरमरा जाएगी। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता न तो पक्षकार है और न ही ट्रस्टी, इसलिए याचिका खारिज की जाती है। बिना देर किए 30 सितंबर को ही इस मामले में पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया था। ————————
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