यूपी पुलिस के 12 आईपीएस अफसर केंद्र में प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) पर जाना चाहते हैं। इसमें एडीजी से लेकर एसपी रैंक तक के अफसर शामिल हैं। जो अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के इच्छुक हैं, उनमें से अधिकतर फील्ड में तैनात हैं। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के क्या फायदे हैं? किन-किन अफसरों ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन किया है? किन अफसरों को इजाजत मिल चुकी है? क्या ये अफसर मौजूदा सरकार के करीबी होने की वजह से केंद्र में जाना चाहते हैं? जिससे प्रदेश में अगर 2027 में सत्ता परिवर्तन हो, तो उसका खामियाजा न भुगतना पड़े। इन सब सवालों के जवाब जानिए… पहले 5 कारण जिनकी वजह से केंद्र में तैनाती चाहते हैं अफसर पूर्व डीजीपी और केंद्र में अलग-अलग फोर्स में डीजी रह चुके ओम प्रकाश सिंह बताते हैं कि केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने से अधिकारियों को कई तरह के फायदे होते हैं। कई कारणों से वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं। इसमें परिवार की जरूरत, बेहतर करियर, बेहतर रहन-सहन जैसी वजहें होती हैं। 1- करियर के लिहाज से अहम
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति अधिकारी के करियर के लिए भी अहम मानी जाती है। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर ऐसी फोर्स या यूनिट में काम करने का मौका मिलता है, जो राज्यों से अलग होती हैं। पूरे देश में काम करती है। जैसे सीबीआई, एनआईए, ईडी, आईबी या इसी तरह की दूसरी इकाई में काम करने का मौका मिलता है। इससे न सिर्फ एक्सपोजर होता है, बल्कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किस तरह काम किया जा रहा, यह सीखने का मौका भी मिलता है। 2- गृह राज्य या नजदीक तैनाती
कई बार अफसर अपने गृह राज्य के नजदीक तैनाती के लिए भी प्रतिनियुक्ति पर जाते हैं। जैसे किसी अधिकारी का गृह राज्य पश्चिम बंगाल है। वह अधिकारी उस फोर्स में जा सकता है, जिसकी ब्रांच पश्चिम बंगाल में हो। 3- पति या पत्नी की केंद्र में तैनाती
कई बार वे अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की इच्छा जताते हैं, जिनका जीवनसाथी केंद्र में किसी पद पर तैनात हो। मौजूदा समय में कई ऐसे अफसर हैं, जिनकी पत्नी प्रतिनियुक्त पर हैं। पति यूपी में काम कर रहे हैं। जैसे आईजी कार्मिक शलभ माथुर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के इच्छुक हैं। लेकिन, उनकी पत्नी पुष्पांजलि सिंह की तैनाती पश्चिम बंगाल में है। ऐसे में वे तभी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाएंगे, जब उन्हें पश्चिम बंगाल में तैनाती मिले। 4- बेहतर रहन-सहन
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को रहन-सहन के लिहाज से लखनऊ या यूपी के मुकाबले ज्यादा वरीयता दी जाती है। वहां के रहन-सहन, माहौल और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए बेहतर विकल्प के साथ 5 दिनों की वर्किंग भी कारण बनता है। 5- राजनीतिक कारण
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए राजनीतिक कारण भी अहम होता है। कई अफसर जिन्हें राज्य में प्राइम पोस्टिंग नहीं मिलती या साइड लाइन रहते हैं, वे भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की इच्छा जताते हैं। कई बार ऐसा भी होता है, जब राज्य सरकार खुद कुछ नाम केंद्र सरकार को भेज देती है। चाहे वह अफसर की इच्छा हो या न हो। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं- केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए राजनीतिक कारण भी होते हैं। केंद्र में कांग्रेस सरकार के दौरान बड़ी संख्या में यूपी के लोगों को अहम पदों पर तैनाती मिलती थी। लेकिन, भाजपा सरकार आने के बाद से यह संख्या लगातार कम होती चली गई। वहीं, राज्य से केंद्र में जो अफसर जाना चाहते हैं, वो भी कहीं न कहीं माहौल का अंदाजा लगा रहे हैं। इसमें ऐसे लोग भी होंगे, जिन्हें बिल्कुल ही किनारे रखा जाता है। वे अफसर भी केंद्र में जाकर नौकरी करना चाहते हैं। क्या है नियम तीन IPS अफसर को मिल चुकी है इजाजत
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए 3 आईपीएस अफसरों को इजाजत मिल चुकी है। इनमें कानपुर जोन के एडीजी आलोक सिंह, कानपुर नगर के पुलिस आयुक्त अखिल कुमार और हाल ही में सहारनपुर से हटे एसपी रोहित साजवाण का नाम शामिल है। रोहित मौजूदा समय में डीजीपी मुख्यालय पर एसपी के पद पर तैनात हैं। हर 5 साल में होता है कैडर रिव्यू
आईपीएस अफसरों का हर राज्य में हर 5 साल पर कैडर रिव्यू किया जाता है। इसमें उनकी जरूरतों के हिसाब से पदों का सृजन, पदों को घटाया जाना या नया पद जोड़ा जाना शामिल होता है। जैसे यूपी में पहले जोन में आईजी की तैनाती होती थी। लेकिन, भाजपा सरकार आने के बाद यह व्यवस्था बदली। एडीजी रैंक के अफसर को एडीजी जोन बनाया जाने लगा। कैडर रिव्यू हुआ तो यह पद आईजी स्तर से हटाकर और एडीजी स्तर में जोड़ दिया गया। इसी तरह यूपी में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू हुई, तो बहुत से नए पद सृजित किए गए। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर मौजूदा तैनाती एक तिहाई से भी कम
आईपीएस अफसरों की ग्रेडेशन सूची 2025 के अनुसार, केंद्र सरकार में तैनाती के लिए यूपी का कोटा 117 अफसरों का है। लेकिन, मौजूदा समय में मात्र 34 अफसर ही केंद्रीय प्रतिनियुक्त पर तैनात हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है केंद्र सरकार का 360 डिग्री फॉर्मूला। इस फॉर्मूले के तहत बड़ी संख्या में अफसरों की छंटनी हो जाती है और केंद्र सरकार के तय किए गए पैमाने पर वे खरे नहीं उतर पाते। जो खरे उतरते हैं, उन्हें राज्य सरकार छोड़ना नहीं चाहती। इसलिए इस संख्या में लगातार कमी आ रही है। ——————— ये खबर भी पढ़ें… यूपी सरकार ने पुल नहीं बनाया तो महिलाएं बनाने लगीं, प्रशासन ने खतरा बता काम रोका यूपी के फतेहपुर जिले का कृपालपुर गांव। आबादी करीब 6 हजार। यहां पहुंचने के लिए रिंद नदी पार करनी होती है। इस नदी पर आज तक पुल नहीं बन सका। करीब 200 स्कूली बच्चे रोज सुबह नाव से इसे पार करते हैं। कोई बीमार हुआ तो भी उसे नाव से दूसरी तरफ लाना होता है। पढ़ें पूरी खबर
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति अधिकारी के करियर के लिए भी अहम मानी जाती है। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर ऐसी फोर्स या यूनिट में काम करने का मौका मिलता है, जो राज्यों से अलग होती हैं। पूरे देश में काम करती है। जैसे सीबीआई, एनआईए, ईडी, आईबी या इसी तरह की दूसरी इकाई में काम करने का मौका मिलता है। इससे न सिर्फ एक्सपोजर होता है, बल्कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किस तरह काम किया जा रहा, यह सीखने का मौका भी मिलता है। 2- गृह राज्य या नजदीक तैनाती
कई बार अफसर अपने गृह राज्य के नजदीक तैनाती के लिए भी प्रतिनियुक्ति पर जाते हैं। जैसे किसी अधिकारी का गृह राज्य पश्चिम बंगाल है। वह अधिकारी उस फोर्स में जा सकता है, जिसकी ब्रांच पश्चिम बंगाल में हो। 3- पति या पत्नी की केंद्र में तैनाती
कई बार वे अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की इच्छा जताते हैं, जिनका जीवनसाथी केंद्र में किसी पद पर तैनात हो। मौजूदा समय में कई ऐसे अफसर हैं, जिनकी पत्नी प्रतिनियुक्त पर हैं। पति यूपी में काम कर रहे हैं। जैसे आईजी कार्मिक शलभ माथुर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के इच्छुक हैं। लेकिन, उनकी पत्नी पुष्पांजलि सिंह की तैनाती पश्चिम बंगाल में है। ऐसे में वे तभी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाएंगे, जब उन्हें पश्चिम बंगाल में तैनाती मिले। 4- बेहतर रहन-सहन
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को रहन-सहन के लिहाज से लखनऊ या यूपी के मुकाबले ज्यादा वरीयता दी जाती है। वहां के रहन-सहन, माहौल और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए बेहतर विकल्प के साथ 5 दिनों की वर्किंग भी कारण बनता है। 5- राजनीतिक कारण
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए राजनीतिक कारण भी अहम होता है। कई अफसर जिन्हें राज्य में प्राइम पोस्टिंग नहीं मिलती या साइड लाइन रहते हैं, वे भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की इच्छा जताते हैं। कई बार ऐसा भी होता है, जब राज्य सरकार खुद कुछ नाम केंद्र सरकार को भेज देती है। चाहे वह अफसर की इच्छा हो या न हो। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं- केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए राजनीतिक कारण भी होते हैं। केंद्र में कांग्रेस सरकार के दौरान बड़ी संख्या में यूपी के लोगों को अहम पदों पर तैनाती मिलती थी। लेकिन, भाजपा सरकार आने के बाद से यह संख्या लगातार कम होती चली गई। वहीं, राज्य से केंद्र में जो अफसर जाना चाहते हैं, वो भी कहीं न कहीं माहौल का अंदाजा लगा रहे हैं। इसमें ऐसे लोग भी होंगे, जिन्हें बिल्कुल ही किनारे रखा जाता है। वे अफसर भी केंद्र में जाकर नौकरी करना चाहते हैं। क्या है नियम तीन IPS अफसर को मिल चुकी है इजाजत
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए 3 आईपीएस अफसरों को इजाजत मिल चुकी है। इनमें कानपुर जोन के एडीजी आलोक सिंह, कानपुर नगर के पुलिस आयुक्त अखिल कुमार और हाल ही में सहारनपुर से हटे एसपी रोहित साजवाण का नाम शामिल है। रोहित मौजूदा समय में डीजीपी मुख्यालय पर एसपी के पद पर तैनात हैं। हर 5 साल में होता है कैडर रिव्यू
आईपीएस अफसरों का हर राज्य में हर 5 साल पर कैडर रिव्यू किया जाता है। इसमें उनकी जरूरतों के हिसाब से पदों का सृजन, पदों को घटाया जाना या नया पद जोड़ा जाना शामिल होता है। जैसे यूपी में पहले जोन में आईजी की तैनाती होती थी। लेकिन, भाजपा सरकार आने के बाद यह व्यवस्था बदली। एडीजी रैंक के अफसर को एडीजी जोन बनाया जाने लगा। कैडर रिव्यू हुआ तो यह पद आईजी स्तर से हटाकर और एडीजी स्तर में जोड़ दिया गया। इसी तरह यूपी में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू हुई, तो बहुत से नए पद सृजित किए गए। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर मौजूदा तैनाती एक तिहाई से भी कम
आईपीएस अफसरों की ग्रेडेशन सूची 2025 के अनुसार, केंद्र सरकार में तैनाती के लिए यूपी का कोटा 117 अफसरों का है। लेकिन, मौजूदा समय में मात्र 34 अफसर ही केंद्रीय प्रतिनियुक्त पर तैनात हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है केंद्र सरकार का 360 डिग्री फॉर्मूला। इस फॉर्मूले के तहत बड़ी संख्या में अफसरों की छंटनी हो जाती है और केंद्र सरकार के तय किए गए पैमाने पर वे खरे नहीं उतर पाते। जो खरे उतरते हैं, उन्हें राज्य सरकार छोड़ना नहीं चाहती। इसलिए इस संख्या में लगातार कमी आ रही है। ——————— ये खबर भी पढ़ें… यूपी सरकार ने पुल नहीं बनाया तो महिलाएं बनाने लगीं, प्रशासन ने खतरा बता काम रोका यूपी के फतेहपुर जिले का कृपालपुर गांव। आबादी करीब 6 हजार। यहां पहुंचने के लिए रिंद नदी पार करनी होती है। इस नदी पर आज तक पुल नहीं बन सका। करीब 200 स्कूली बच्चे रोज सुबह नाव से इसे पार करते हैं। कोई बीमार हुआ तो भी उसे नाव से दूसरी तरफ लाना होता है। पढ़ें पूरी खबर