बरेली बवाल में पुलिस ने इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (IMC) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा को मुख्य आरोपी मानते हुए जेल भेजा है। तौकीर की शख्सियत इसलिए बड़ी है, क्योंकि उनके भाई सुब्हानी मियां आला हजरत दरगाह के प्रबंधक हैं। इस दरगाह को मानने वाले पूरी दुनिया में हैं। पिछले 41 सालों में तौकीर रजा पर जहां 10 मुकदमे दर्ज थे। वहीं बीते 24 घंटे में उन पर 7 नए मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। ये संख्या और बढ़ सकती है। तौकीर ने पॉलिटिक्स में आने के भरसक प्रयास किए। अपनी अलग पार्टी बनाई। 20 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारे, लेकिन जीत सिर्फ एक सीट पर हुई। एक हफ्ते पहले ही निर्वाचन आयोग ने जिन 121 राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन कैंसिल किया, उनमें IMC भी है। ऐसे में तौकीर रजा के सियासी वजूद पर भी संकट खड़ा हो गया। तौकीर रजा कौन हैं? वो कैसे पॉलिटिक्स में आए? उनकी क्राइम फाइल क्या है? कब-कब वो विवादों में रहे? कब-कब दंगों से उनका नाम जुड़ता रहा? इस रिपोर्ट में पढ़िए… बसपा सरकार में दंगा, 3 दिन में मिली जमानत
बरेली में साल-2010 में जुलूस-ए-मोहम्मदी निकला। इस दौरान कई जगह हिंसा हुई। 4 थाना क्षेत्र में कर्फ्यू लगा। पुलिस ने 8 मार्च, 2010 को मौलाना तौकीर रजा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उस वक्त यूपी में बसपा सरकार थी। रसूख इतना था कि तौकीर रजा को 3 दिन बाद ही यानी 11 मार्च को जमानत मिल गई। इसके बाद शहर फिर से धधक उठा था। 12 और 13 मार्च, 2010 को बरेली में फिर से कई जगह हिंसा और आगजनी हुई। मौलाना पर अब तक दंगे से जुड़े कुल 3 मुकदमे हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब तौकीर रजा को जमानत मिली, तो भाजपा से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने उनकी पैरवी की थी। यूपी में 2017 से पहले जिसकी सरकार, उसको तौकीर का समर्थन
56 साल के तौकीर रजा बरेली में आला हजरत दरगाह के पास रहते हैं। मोहल्ला सौदाग्रान की एक पतली गली में उनका दो मंजिला मकान बना है। तौकीर रजा ने साल-2001 में क्षेत्रीय दल के रूप में एक पार्टी बनाई। इसका नाम इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (IMC) रखा। 16वीं विधानसभा में इस पार्टी ने यूपी की 20 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा। इसमें पार्टी को कुल 1 लाख 90 हजार 844 वोट मिले। बरेली की भोजीपुरा सीट से पार्टी के प्रत्याशी शहजिल इस्लाम चुनाव जीत गए। हालांकि, बाद में वो समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। इसके अलावा इस पार्टी से बरेली नगर निगम में एक पार्षद अनीस भी रहे हैं। यूपी में जिसकी सरकार रही, तौकीर रजा ने उसको समर्थन दिया। फिर चाहे कांग्रेस-सपा हो या बसपा। हालांकि इस मामले में भाजपा अपवाद है। 2009 में तौकीर रजा कांग्रेस के साथ हुए। 2012 में उन्होंने सपा को समर्थन दिया। यूपी में सपा की सरकार बनी, तो तौकीर रजा को हथकरघा विभाग का उपाध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। तौकीर रजा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को समर्थन दिया था। बरेली में मुस्लिम कम्युनिटी की अच्छी-खासी तादाद है। इसलिए भाजपा छोड़ हर पार्टी ने तौकीर रजा को अपने साथ जोड़ने की भरपूर कोशिश की। सितंबर-2025 में चुनाव ने 121 राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन कैंसिल किया। वजह ये है कि इन्होंने 6 साल से कोई चुनाव नहीं लड़ा था। इन दलों की सूची में तौकीर रजा के IMC का नाम भी है। जिस दरगाह के फॉलोअर पूरी दुनिया में, उसके प्रबंधक के भाई हैं तौकीर रजा
तौकीर रजा का नाम बड़ी शख्सियत में इसलिए शामिल हो जाता है, क्योंकि उनके भाई सुब्हानी मियां बरेली की आला हजरत दरगाह के प्रबंधक हैं। पूरी दुनिया के मुसलमान दो विचाराधाराओं को फॉलो करते हैं। इसमें एक देवबंदी और दूसरी बरेलवी है। यूपी के बरेली में आला हजरत दरगाह, इमाम अहमद रजा खान (1865-1921) की दरगाह है। वो 19वीं शताब्दी के हनफी विद्वान थे। उन्हें बरेलवी आंदोलन की शुरुआत के लिए जाना जाता है। इस दरगाह में साल-2014 में मौलवियों ने तालिबान के प्रचलित आतंकवाद और वहाबी संप्रदाय की विचारधारा की निंदा की थी। इस दरगाह का उर्स अब भारत समेत 12 से ज्यादा देशों में मनाया जाता है। बरेली में होने वाले सालाना उर्स में पूरी दुनिया के मुसलमान जुटते हैं, जो पिछले दिनों ही संपन्न हुआ है। तौकीर रजा के 5 विवादित बयान 1- साल- 2022 में बरेली में मुसलमानों को संबोधित करते हुए उन्होंने हिंदुओं को कथित तौर पर धमकी दी थी। उन्होंने कहा था- मैं अपने हिंदू भाइयों को चेतावनी देना चाहता हूं, मुझे डर है कि जिस दिन मेरे मुस्लिम युवाओं को कानून हाथ में लेने को मजबूर किया जाएगा, आपको भारत में कहीं भी छिपने की जगह नहीं मिलेगी। 2- ज्ञानवापी में कथित शिवलिंग मिलने पर तौकीर रजा ने कहा था- फव्वारे को शिवलिंग समझकर धर्म और कानून का मजाक उड़ाया जा रहा है। अयोध्या मसले पर सारे झूठ सहन कर लिए गए थे, अब नहीं करेंगे। सरकार हर मस्जिद को मंदिर बनाना चाहती है। ऐसा ही रहा, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। 3- दिल्ली के जहांगीरपुरी में हिंसा के बाद तौकीर रजा ने मोदी सरकार पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाया था। कहा था- अगर सरकार धृतराष्ट्र बनी रही, तो देश में महाभारत जरूर होगा। मुसलमान अगर सड़कों पर उतर आया, तो उसे कोई रोक नहीं पाएगा। 4- तौकीर रजा ने जेल से छूटने के बाद आजम खान से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने कहा था- योगी सरकार ने आजम खान पर बहुत जुल्म किए हैं। सरकार से एक-एक करके सभी जुल्मों का हिसाब लिया जाएगा। 5- CAA के खिलाफ चल रहे प्रोटेस्ट के दौरान तौकीर रजा ने कहा था- हिंदुस्तान की हुकूमत ने नागरिकता संशोधन बिल वापस नहीं लिया, तो गलियों में खून बह जाएगा। सबसे पहले वह गोली खाएंगे। दंगे-फसाद हो जाएंगे और इसमें मुस्लिम और दलित भी उनका साथ देंगे। सपा नेता बोले- माहौल बिगड़ता है, तो भाजपा को फायदा पहुंचता है तौकीर रजा की विवादित बयानबाजी को लेकर लोग क्या सोचते हैं, इसे लेकर हमने अलग-अलग पक्षों से बात की। समाजवादी पार्टी के जिला उपाध्यक्ष हैदर अली कहते हैं- कभी भी विवादित बयान हो। देश-प्रदेश का सांप्रदायिक माहौल खराब होता है, तो उससे वोटों का ध्रुवीकरण जरूर होता है। इसमें संदेह जैसी कोई बात नहीं। लेकिन, मौलाना तौकीर रजा भाजपा की बी टीम हैं, बिना सबूत के ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। हां, ये बिल्कुल सच है कि अगर बरेली या फिर किसी दूसरे शहर का माहौल बिगड़ता है तो उसका फायदा सीधे-सीधे भाजपा को मिलता है। ‘तौकीर रजा के भाजपा से पुराने संबंध’
बरेली के सामाजिक कार्यकर्ता चौधरी अनवार अहमद कहते हैं- तौकीर मियां एक ऐसे खानदान से जुड़े हुए हैं, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। आला हजरत दरगाह विश्व के सुन्नी मुस्लिमों का बड़ा मरकज है। उसी परिवार से तौकीर रजा आते हैं। जब भी इनका बयान आता है, तो तबके में एक मैसेज जाता है कि कोई बड़ी वजह होगी। राजनीतिक परिदृश्य की बात करें, तो तौकीर रजा के भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से अच्छे संबंध रहे हैं। 8 बार के भाजपा सांसद रहे संतोष गंगवार से उनके पुराने संबंध हैं। हमने इन संबंधों के बारे में न केवल सुना, बल्कि देखा भी है। 2010 के दंगों में जब तौकीर रजा को कोर्ट से जमानत मिली, तो उनके जमानती पूर्व सांसद संतोष गंगवार के करीबी लोग ही थे। —————————— ये खबर भी पढ़ें… बरेली में जहां बवाल, वहां आसपास 390 मस्जिदें, बच्चों को आगे किया गया, 40 हजार लोग जुटाकर दंगे का प्लान था बरेली में बवाल की शुरुआत कैसे हुई? माहौल भड़काने में किसकी क्या भूमिका रही? ऐन वक्त पर भीड़ क्यों बेकाबू होती गई? दैनिक भास्कर ने ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर ये सब समझा। पढ़िए ये रिपोर्ट…
बरेली में साल-2010 में जुलूस-ए-मोहम्मदी निकला। इस दौरान कई जगह हिंसा हुई। 4 थाना क्षेत्र में कर्फ्यू लगा। पुलिस ने 8 मार्च, 2010 को मौलाना तौकीर रजा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उस वक्त यूपी में बसपा सरकार थी। रसूख इतना था कि तौकीर रजा को 3 दिन बाद ही यानी 11 मार्च को जमानत मिल गई। इसके बाद शहर फिर से धधक उठा था। 12 और 13 मार्च, 2010 को बरेली में फिर से कई जगह हिंसा और आगजनी हुई। मौलाना पर अब तक दंगे से जुड़े कुल 3 मुकदमे हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब तौकीर रजा को जमानत मिली, तो भाजपा से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने उनकी पैरवी की थी। यूपी में 2017 से पहले जिसकी सरकार, उसको तौकीर का समर्थन
56 साल के तौकीर रजा बरेली में आला हजरत दरगाह के पास रहते हैं। मोहल्ला सौदाग्रान की एक पतली गली में उनका दो मंजिला मकान बना है। तौकीर रजा ने साल-2001 में क्षेत्रीय दल के रूप में एक पार्टी बनाई। इसका नाम इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (IMC) रखा। 16वीं विधानसभा में इस पार्टी ने यूपी की 20 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा। इसमें पार्टी को कुल 1 लाख 90 हजार 844 वोट मिले। बरेली की भोजीपुरा सीट से पार्टी के प्रत्याशी शहजिल इस्लाम चुनाव जीत गए। हालांकि, बाद में वो समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। इसके अलावा इस पार्टी से बरेली नगर निगम में एक पार्षद अनीस भी रहे हैं। यूपी में जिसकी सरकार रही, तौकीर रजा ने उसको समर्थन दिया। फिर चाहे कांग्रेस-सपा हो या बसपा। हालांकि इस मामले में भाजपा अपवाद है। 2009 में तौकीर रजा कांग्रेस के साथ हुए। 2012 में उन्होंने सपा को समर्थन दिया। यूपी में सपा की सरकार बनी, तो तौकीर रजा को हथकरघा विभाग का उपाध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। तौकीर रजा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को समर्थन दिया था। बरेली में मुस्लिम कम्युनिटी की अच्छी-खासी तादाद है। इसलिए भाजपा छोड़ हर पार्टी ने तौकीर रजा को अपने साथ जोड़ने की भरपूर कोशिश की। सितंबर-2025 में चुनाव ने 121 राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन कैंसिल किया। वजह ये है कि इन्होंने 6 साल से कोई चुनाव नहीं लड़ा था। इन दलों की सूची में तौकीर रजा के IMC का नाम भी है। जिस दरगाह के फॉलोअर पूरी दुनिया में, उसके प्रबंधक के भाई हैं तौकीर रजा
तौकीर रजा का नाम बड़ी शख्सियत में इसलिए शामिल हो जाता है, क्योंकि उनके भाई सुब्हानी मियां बरेली की आला हजरत दरगाह के प्रबंधक हैं। पूरी दुनिया के मुसलमान दो विचाराधाराओं को फॉलो करते हैं। इसमें एक देवबंदी और दूसरी बरेलवी है। यूपी के बरेली में आला हजरत दरगाह, इमाम अहमद रजा खान (1865-1921) की दरगाह है। वो 19वीं शताब्दी के हनफी विद्वान थे। उन्हें बरेलवी आंदोलन की शुरुआत के लिए जाना जाता है। इस दरगाह में साल-2014 में मौलवियों ने तालिबान के प्रचलित आतंकवाद और वहाबी संप्रदाय की विचारधारा की निंदा की थी। इस दरगाह का उर्स अब भारत समेत 12 से ज्यादा देशों में मनाया जाता है। बरेली में होने वाले सालाना उर्स में पूरी दुनिया के मुसलमान जुटते हैं, जो पिछले दिनों ही संपन्न हुआ है। तौकीर रजा के 5 विवादित बयान 1- साल- 2022 में बरेली में मुसलमानों को संबोधित करते हुए उन्होंने हिंदुओं को कथित तौर पर धमकी दी थी। उन्होंने कहा था- मैं अपने हिंदू भाइयों को चेतावनी देना चाहता हूं, मुझे डर है कि जिस दिन मेरे मुस्लिम युवाओं को कानून हाथ में लेने को मजबूर किया जाएगा, आपको भारत में कहीं भी छिपने की जगह नहीं मिलेगी। 2- ज्ञानवापी में कथित शिवलिंग मिलने पर तौकीर रजा ने कहा था- फव्वारे को शिवलिंग समझकर धर्म और कानून का मजाक उड़ाया जा रहा है। अयोध्या मसले पर सारे झूठ सहन कर लिए गए थे, अब नहीं करेंगे। सरकार हर मस्जिद को मंदिर बनाना चाहती है। ऐसा ही रहा, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। 3- दिल्ली के जहांगीरपुरी में हिंसा के बाद तौकीर रजा ने मोदी सरकार पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाया था। कहा था- अगर सरकार धृतराष्ट्र बनी रही, तो देश में महाभारत जरूर होगा। मुसलमान अगर सड़कों पर उतर आया, तो उसे कोई रोक नहीं पाएगा। 4- तौकीर रजा ने जेल से छूटने के बाद आजम खान से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने कहा था- योगी सरकार ने आजम खान पर बहुत जुल्म किए हैं। सरकार से एक-एक करके सभी जुल्मों का हिसाब लिया जाएगा। 5- CAA के खिलाफ चल रहे प्रोटेस्ट के दौरान तौकीर रजा ने कहा था- हिंदुस्तान की हुकूमत ने नागरिकता संशोधन बिल वापस नहीं लिया, तो गलियों में खून बह जाएगा। सबसे पहले वह गोली खाएंगे। दंगे-फसाद हो जाएंगे और इसमें मुस्लिम और दलित भी उनका साथ देंगे। सपा नेता बोले- माहौल बिगड़ता है, तो भाजपा को फायदा पहुंचता है तौकीर रजा की विवादित बयानबाजी को लेकर लोग क्या सोचते हैं, इसे लेकर हमने अलग-अलग पक्षों से बात की। समाजवादी पार्टी के जिला उपाध्यक्ष हैदर अली कहते हैं- कभी भी विवादित बयान हो। देश-प्रदेश का सांप्रदायिक माहौल खराब होता है, तो उससे वोटों का ध्रुवीकरण जरूर होता है। इसमें संदेह जैसी कोई बात नहीं। लेकिन, मौलाना तौकीर रजा भाजपा की बी टीम हैं, बिना सबूत के ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। हां, ये बिल्कुल सच है कि अगर बरेली या फिर किसी दूसरे शहर का माहौल बिगड़ता है तो उसका फायदा सीधे-सीधे भाजपा को मिलता है। ‘तौकीर रजा के भाजपा से पुराने संबंध’
बरेली के सामाजिक कार्यकर्ता चौधरी अनवार अहमद कहते हैं- तौकीर मियां एक ऐसे खानदान से जुड़े हुए हैं, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। आला हजरत दरगाह विश्व के सुन्नी मुस्लिमों का बड़ा मरकज है। उसी परिवार से तौकीर रजा आते हैं। जब भी इनका बयान आता है, तो तबके में एक मैसेज जाता है कि कोई बड़ी वजह होगी। राजनीतिक परिदृश्य की बात करें, तो तौकीर रजा के भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से अच्छे संबंध रहे हैं। 8 बार के भाजपा सांसद रहे संतोष गंगवार से उनके पुराने संबंध हैं। हमने इन संबंधों के बारे में न केवल सुना, बल्कि देखा भी है। 2010 के दंगों में जब तौकीर रजा को कोर्ट से जमानत मिली, तो उनके जमानती पूर्व सांसद संतोष गंगवार के करीबी लोग ही थे। —————————— ये खबर भी पढ़ें… बरेली में जहां बवाल, वहां आसपास 390 मस्जिदें, बच्चों को आगे किया गया, 40 हजार लोग जुटाकर दंगे का प्लान था बरेली में बवाल की शुरुआत कैसे हुई? माहौल भड़काने में किसकी क्या भूमिका रही? ऐन वक्त पर भीड़ क्यों बेकाबू होती गई? दैनिक भास्कर ने ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर ये सब समझा। पढ़िए ये रिपोर्ट…