‘हम पिछले 16 साल से रोज कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा कर रहे हैं। यह हमारी आस्था का प्रतीक है। यहां आने के बाद हम एक विशेष ऊर्जा से भर जाते हैं। हम सामाजिक और जनहित में जो भी काम करते हैं। ऐसा लगता है कि उसमें हमें यहां की ईश्वरीय शक्ति सहयोग करती है। आगे हमेशा ऐसे ही करते रहेंगे।’ ये कहना है श्रद्धालु अक्षांश पंडित का। अक्षांश की ही तरह ही हजारों लोग चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा कर रहे हैं। दीपावली तक इस परिक्रमा में शामिल होने वाले लोगों की संख्या 40 लाख तक पहुंच जाती है। आखिर इसका महत्व क्या है, इतिहास क्या है? शुरुआत कहां से होती है? किन मनोकामनाओं के साथ यहां लोग पहुंच रहे हैं? इन सारे सवालों के जवाब तलाशते हुए दैनिक भास्कर की टीम चित्रकूट पहुंची। आइए इस ऐतिहासिक और पवित्र परिक्रमा के बारे में जानते हैं… दीपावली तक 40 लाख श्रद्धालु आएंगे
चित्रकूट…वही नगरी, जहां त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने अपने 14 साल के वनवास में साढ़े 11 साल निवास किया था। दीपावली पर इस जगह का महत्व बढ़ जाता है। इसीलिए यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचने लगे हैं। इसमें जितने श्रद्धालु यूपी के होते हैं, उतने ही मध्यप्रदेश के भी होते हैं। चित्रकूट दोनों प्रदेशों को जोड़ता है। प्रशासन का दावा है कि यहां 18 अक्टूबर से 20 अक्टूबर तक 40 लाख श्रद्धालु आएंगे। उनके दर्शन-पूजन और परिक्रमा के लिए प्रशासन मुस्तैदी से लगा है। हम सबसे पहले रामघाट पहुंचे। यहां से मंदाकिनी नदी गुजरी है। दोनों तरफ पक्के घाट बने हैं। एक तरफ का हिस्सा यूपी, दूसरी तरफ का हिस्सा मध्यप्रदेश है। जो भी श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं, वो सबसे पहले यहां आते हैं और मंदाकिनी नदी में स्नान करते हैं। एक प्रसिद्ध दोहा है- ‘चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करे रघुवीर’। मान्यता है कि यहीं तुलसीदास जी को प्रभु श्रीराम के दर्शन मिले थे। वह चंदन घिस रहे थे और श्रीराम उसे लगा रहे थे। कामदगिरि को देखने मात्र से दुख खत्म होते हैं
दीपावली को देखते हुए घाट को साफ-सुथरा कर दिया गया है। रामघाट पर ही हमें विष्णुदत्त मिश्रा मिले। वह कहते हैं- जो भी लोग यहां आते हैं, वो पहले यहीं स्नान करते हैं। यहां भगवान शिव के दर्शन करते हैं। फिर 2 किलोमीटर दूर कामद गिरि पर्वत की परिक्रमा के लिए चले जाते हैं। उनके बगल में बैठे शिवाकांत कहते हैं- त्रेता युग में जब भगवान राम यहां आए थे, तो मंदाकिनी में स्नान के बाद ही कामदगिरि पर्वत की तरफ गए थे। परिक्रमा के चलते गरीबी हट गई
रामघाट के बाद हम 2 किलोमीटर दूर कामदगिरि पर्वत की तरफ बढ़े। यहीं प्रसिद्ध भगवान कामतानाथ का मंदिर है। लोग उनका दर्शन करने के बाद अपनी परिक्रमा की शुरुआत करते हैं। रीवा से आई शकुंतला, सुशीला और रानी मिलीं। सुशीला कहती हैं- हम भगवान से चाहते हैं कि हमारे बच्चे आगे बढ़ें, मंजिल तक पहुंचे। शकुंतला और रानी कहती हैं- हम सब भी यही सोचकर आते हैं कि हमारा परिवार आगे बढ़े। हमारी मुलाकात यहीं अक्षांश पंडित से हुई। अक्षांश भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव हैं। वह कहते हैं- मैं पिछले साढ़े 16 साल से रोज परिक्रमा कर रहा हूं। परिक्रमा करने से हमारे मन में एक विशेष ऊर्जा का प्रवाह होता है। एक प्रसिद्ध दोहा है- चित्रकूट चिंता हरण, आए सुख के चैन, पाप कटै युग चार के, देख कामता नैन। मतलब यहां 4-4 युग के पाप कट रहे हैं। कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा 4 स्थानों से शुरू होती है। उत्तर द्वार पर कुबेर, दक्षिणी द्वार पर धर्मराज, पूर्वी द्वार पर इंद्र और पश्चिमी द्वार पर वरुण देव द्वारपाल हैं। इन्हीं चार स्थानों से परिक्रमा की शुरुआत होती है। नियम यह है कि जहां से परिक्रमा शुरू होगी, वहीं आकर खत्म भी होती है। पूरी परिक्रमा 5 किलोमीटर लंबी होती है। इसमें ढाई-ढाई किलोमीटर यूपी और एमपी का हिस्सा पड़ता है। प्रशासन ने पूरे रास्ते को पक्का बनाया है। जगह-जगह पर टीन शेड लगाए गए हैं। करीब 200 मंदिर रास्ते में पड़ते हैं, जहां लोग दर्शन करते हुए आगे बढ़ते हैं। बहुत चलना पड़ा, अब नहीं आएंगे
परिक्रमा मार्ग पर हमें रायबरेली से आया एक ग्रुप मिला। इस ग्रुप में कई महिलाएं शामिल हैं। इसी में से एक 65 साल की राजपत्ता देवी पहली बार चित्रकूट आई हैं। कहती हैं- चलते-चलते एकदम थक गए। पांव से हम चल नहीं पाते, बहुत दिक्कत होती है। हम यह सोच के आए थे कि प्रभु ठीक कर देंगे, लेकिन इतना ज्यादा थक गए कि अब नहीं आएंगे। अगर भगवान ठीक कर देंगे, तो आ जाएंगे। राजपत्ता के ही साथ राजरानी और सुबोधा आई थीं। राजरानी कहती हैं- हमारा घर-परिवार अच्छा रहे, हमारी तबीयत ठीक रहे, बस यही भगवान से कहने आते हैं। सुबोधा कहती हैं- यहां सब अच्छा लग रहा, लेकिन चलते-चलते थक गए। अब भगवान अगर सुन लें तो सब ठीक हो जाएगा। लड़के-बच्चे अच्छे रहें, उनको रोटी मिलती रहे, इससे ज्यादा क्या ही चाहिए। धर्म के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए आ रहे
परिक्रमा के दौरान कई ऐसे लोग मिले, जो अलग-अलग जिलों और राज्यों से आए थे। प्रतापगढ़ के कुंडा से आए अभिषेक तिवारी कहते हैं- हमारी कोशिश है कि लोग भी जागरूक हों। भगवान राम ने जो कुछ किया, वो लोग देखें और उसका अनुसरण करें। साथ आए मिथिलेश शुक्ला कहते हैं- हर बार की तरह इस बार भी भगवान का दर्शन करने आए हैं। भगवान ने यहीं कामदगिरि में पूजा-अर्चना की थी। उसी का महत्व है, इसीलिए यहां की दीपावली खास है। रास्ते में हमें औघड़ बाबा मिले। वह दावा करते हैं कि यह विश्व प्रसिद्ध पर्वत है। इसकी परिक्रमा कर लेने से आम लोगों का उद्धार हो जाता है। जो कहते हैं कि यह पत्थर का पर्वत है, वह गलत कहते हैं, क्योंकि यह तो सोने का पर्वत है। इस पर जो वृक्ष हैं, वह सामान्य नहीं, बल्कि ऋषि-मुनि हैं, जो तपस्या में लीन हैं। भगवान राम के वरदान के चलते आते हैं लोग
चित्रकूट को लेकर एक कहानी प्रचलित है। त्रेतायुग में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण यहां साढ़े 11 साल तक रहे। एक वक्त के बाद भगवान राम ने इस नगरी को छोड़ने का फैसला किया। उस वक्त चित्रकूट पर्वत दुखी हो गया। भगवान राम से कहा कि जब तक आप यहां थे, तब तक यह भूमि पवित्र मानी जाती थी। लेकिन, आपके चले जाने के बाद इसे कौन पूछेगा? भगवान राम ने पर्वत को वरदान दिया कि अब आप कामद हो जाएंगे, जो भी आपकी परिक्रमा कर लेगा उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाएगीं। हमारी कृपा भी उसके ऊपर बनी रहेगी। इसके बाद से ही पर्वत को कामदगिरि कहा जाने लगा। पर्वत के नीचे विराजमान कामतानाथ भगवान राम का ही एक स्वरूप हैं। इस पर्वत की एक खासियत यह भी है कि इसे किधर से भी देखा जाए, यह धनुष की तरह ही नजर आता है। ————————— ये खबर भी पढ़ें… राजा भैया ने खरीदी ढाई करोड़ की कार, यूपी की पहली रेंज रोवर डिफेंडर भी काफिले में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने 4 सीटर Lexus LM350h लग्जरी गाड़ी खरीदी है। इस गाड़ी की कीमत है, ₹2.15 करोड़ से शुरू होती है, जो 7-सीटर VIP वेरिएंट के लिए है। वहीं, 4-सीटर अल्ट्रा लग्जरी वेरिएंट की एक्स-शोरूम कीमत ₹2.69 करोड़ है। 16 अक्टूबर को खरीदी गई यह गाड़ी 4-सीटर अल्ट्रा लग्जरी वेरिएंट है। दरअसल, राजा भैया लग्जरी गाड़ियों के शौकीन हैं। उनकी कुंडा की हवेली से लेकर लखनऊ के बंगले तक में करोड़ों की कीमत की गाड़ियां खड़ी हैं। इसके साथ ही उन्हें गाड़ी के नंबर में भी खासी दिलचस्पी है। उनके काफिले की गाड़ियों का नंबर 0001 ही रहता है। इससे पहले पूर्वांचल के बाहुबली नेता धनंजय सिंह ने भी लैंड क्रूजर और वेलफायर गाड़ियां खरीदी थीं। पढ़िए पूरी खबर…
चित्रकूट…वही नगरी, जहां त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने अपने 14 साल के वनवास में साढ़े 11 साल निवास किया था। दीपावली पर इस जगह का महत्व बढ़ जाता है। इसीलिए यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचने लगे हैं। इसमें जितने श्रद्धालु यूपी के होते हैं, उतने ही मध्यप्रदेश के भी होते हैं। चित्रकूट दोनों प्रदेशों को जोड़ता है। प्रशासन का दावा है कि यहां 18 अक्टूबर से 20 अक्टूबर तक 40 लाख श्रद्धालु आएंगे। उनके दर्शन-पूजन और परिक्रमा के लिए प्रशासन मुस्तैदी से लगा है। हम सबसे पहले रामघाट पहुंचे। यहां से मंदाकिनी नदी गुजरी है। दोनों तरफ पक्के घाट बने हैं। एक तरफ का हिस्सा यूपी, दूसरी तरफ का हिस्सा मध्यप्रदेश है। जो भी श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं, वो सबसे पहले यहां आते हैं और मंदाकिनी नदी में स्नान करते हैं। एक प्रसिद्ध दोहा है- ‘चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करे रघुवीर’। मान्यता है कि यहीं तुलसीदास जी को प्रभु श्रीराम के दर्शन मिले थे। वह चंदन घिस रहे थे और श्रीराम उसे लगा रहे थे। कामदगिरि को देखने मात्र से दुख खत्म होते हैं
दीपावली को देखते हुए घाट को साफ-सुथरा कर दिया गया है। रामघाट पर ही हमें विष्णुदत्त मिश्रा मिले। वह कहते हैं- जो भी लोग यहां आते हैं, वो पहले यहीं स्नान करते हैं। यहां भगवान शिव के दर्शन करते हैं। फिर 2 किलोमीटर दूर कामद गिरि पर्वत की परिक्रमा के लिए चले जाते हैं। उनके बगल में बैठे शिवाकांत कहते हैं- त्रेता युग में जब भगवान राम यहां आए थे, तो मंदाकिनी में स्नान के बाद ही कामदगिरि पर्वत की तरफ गए थे। परिक्रमा के चलते गरीबी हट गई
रामघाट के बाद हम 2 किलोमीटर दूर कामदगिरि पर्वत की तरफ बढ़े। यहीं प्रसिद्ध भगवान कामतानाथ का मंदिर है। लोग उनका दर्शन करने के बाद अपनी परिक्रमा की शुरुआत करते हैं। रीवा से आई शकुंतला, सुशीला और रानी मिलीं। सुशीला कहती हैं- हम भगवान से चाहते हैं कि हमारे बच्चे आगे बढ़ें, मंजिल तक पहुंचे। शकुंतला और रानी कहती हैं- हम सब भी यही सोचकर आते हैं कि हमारा परिवार आगे बढ़े। हमारी मुलाकात यहीं अक्षांश पंडित से हुई। अक्षांश भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव हैं। वह कहते हैं- मैं पिछले साढ़े 16 साल से रोज परिक्रमा कर रहा हूं। परिक्रमा करने से हमारे मन में एक विशेष ऊर्जा का प्रवाह होता है। एक प्रसिद्ध दोहा है- चित्रकूट चिंता हरण, आए सुख के चैन, पाप कटै युग चार के, देख कामता नैन। मतलब यहां 4-4 युग के पाप कट रहे हैं। कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा 4 स्थानों से शुरू होती है। उत्तर द्वार पर कुबेर, दक्षिणी द्वार पर धर्मराज, पूर्वी द्वार पर इंद्र और पश्चिमी द्वार पर वरुण देव द्वारपाल हैं। इन्हीं चार स्थानों से परिक्रमा की शुरुआत होती है। नियम यह है कि जहां से परिक्रमा शुरू होगी, वहीं आकर खत्म भी होती है। पूरी परिक्रमा 5 किलोमीटर लंबी होती है। इसमें ढाई-ढाई किलोमीटर यूपी और एमपी का हिस्सा पड़ता है। प्रशासन ने पूरे रास्ते को पक्का बनाया है। जगह-जगह पर टीन शेड लगाए गए हैं। करीब 200 मंदिर रास्ते में पड़ते हैं, जहां लोग दर्शन करते हुए आगे बढ़ते हैं। बहुत चलना पड़ा, अब नहीं आएंगे
परिक्रमा मार्ग पर हमें रायबरेली से आया एक ग्रुप मिला। इस ग्रुप में कई महिलाएं शामिल हैं। इसी में से एक 65 साल की राजपत्ता देवी पहली बार चित्रकूट आई हैं। कहती हैं- चलते-चलते एकदम थक गए। पांव से हम चल नहीं पाते, बहुत दिक्कत होती है। हम यह सोच के आए थे कि प्रभु ठीक कर देंगे, लेकिन इतना ज्यादा थक गए कि अब नहीं आएंगे। अगर भगवान ठीक कर देंगे, तो आ जाएंगे। राजपत्ता के ही साथ राजरानी और सुबोधा आई थीं। राजरानी कहती हैं- हमारा घर-परिवार अच्छा रहे, हमारी तबीयत ठीक रहे, बस यही भगवान से कहने आते हैं। सुबोधा कहती हैं- यहां सब अच्छा लग रहा, लेकिन चलते-चलते थक गए। अब भगवान अगर सुन लें तो सब ठीक हो जाएगा। लड़के-बच्चे अच्छे रहें, उनको रोटी मिलती रहे, इससे ज्यादा क्या ही चाहिए। धर्म के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए आ रहे
परिक्रमा के दौरान कई ऐसे लोग मिले, जो अलग-अलग जिलों और राज्यों से आए थे। प्रतापगढ़ के कुंडा से आए अभिषेक तिवारी कहते हैं- हमारी कोशिश है कि लोग भी जागरूक हों। भगवान राम ने जो कुछ किया, वो लोग देखें और उसका अनुसरण करें। साथ आए मिथिलेश शुक्ला कहते हैं- हर बार की तरह इस बार भी भगवान का दर्शन करने आए हैं। भगवान ने यहीं कामदगिरि में पूजा-अर्चना की थी। उसी का महत्व है, इसीलिए यहां की दीपावली खास है। रास्ते में हमें औघड़ बाबा मिले। वह दावा करते हैं कि यह विश्व प्रसिद्ध पर्वत है। इसकी परिक्रमा कर लेने से आम लोगों का उद्धार हो जाता है। जो कहते हैं कि यह पत्थर का पर्वत है, वह गलत कहते हैं, क्योंकि यह तो सोने का पर्वत है। इस पर जो वृक्ष हैं, वह सामान्य नहीं, बल्कि ऋषि-मुनि हैं, जो तपस्या में लीन हैं। भगवान राम के वरदान के चलते आते हैं लोग
चित्रकूट को लेकर एक कहानी प्रचलित है। त्रेतायुग में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण यहां साढ़े 11 साल तक रहे। एक वक्त के बाद भगवान राम ने इस नगरी को छोड़ने का फैसला किया। उस वक्त चित्रकूट पर्वत दुखी हो गया। भगवान राम से कहा कि जब तक आप यहां थे, तब तक यह भूमि पवित्र मानी जाती थी। लेकिन, आपके चले जाने के बाद इसे कौन पूछेगा? भगवान राम ने पर्वत को वरदान दिया कि अब आप कामद हो जाएंगे, जो भी आपकी परिक्रमा कर लेगा उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाएगीं। हमारी कृपा भी उसके ऊपर बनी रहेगी। इसके बाद से ही पर्वत को कामदगिरि कहा जाने लगा। पर्वत के नीचे विराजमान कामतानाथ भगवान राम का ही एक स्वरूप हैं। इस पर्वत की एक खासियत यह भी है कि इसे किधर से भी देखा जाए, यह धनुष की तरह ही नजर आता है। ————————— ये खबर भी पढ़ें… राजा भैया ने खरीदी ढाई करोड़ की कार, यूपी की पहली रेंज रोवर डिफेंडर भी काफिले में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने 4 सीटर Lexus LM350h लग्जरी गाड़ी खरीदी है। इस गाड़ी की कीमत है, ₹2.15 करोड़ से शुरू होती है, जो 7-सीटर VIP वेरिएंट के लिए है। वहीं, 4-सीटर अल्ट्रा लग्जरी वेरिएंट की एक्स-शोरूम कीमत ₹2.69 करोड़ है। 16 अक्टूबर को खरीदी गई यह गाड़ी 4-सीटर अल्ट्रा लग्जरी वेरिएंट है। दरअसल, राजा भैया लग्जरी गाड़ियों के शौकीन हैं। उनकी कुंडा की हवेली से लेकर लखनऊ के बंगले तक में करोड़ों की कीमत की गाड़ियां खड़ी हैं। इसके साथ ही उन्हें गाड़ी के नंबर में भी खासी दिलचस्पी है। उनके काफिले की गाड़ियों का नंबर 0001 ही रहता है। इससे पहले पूर्वांचल के बाहुबली नेता धनंजय सिंह ने भी लैंड क्रूजर और वेलफायर गाड़ियां खरीदी थीं। पढ़िए पूरी खबर…