‘ये देखिए… उल्लू, पैर बंधा नही है, निकालते समय सावधानी बरतिए। पैर बांध देना… नहीं तो उड़ जाएगा। उल्लू से बहुत बड़ी पूजा होती हैं। अपनी बलाएं लोग इसको दे देते हैं।’ ये कहना है शिकारियों का। दीपावली पर बलि के लिए ये उल्लू की तस्करी कर रहे हैं। तांत्रिक और अमीर लोग इनके बड़े ग्राहक हैं। ये एक उल्लू के 2000 से लेकर 1 लाख रुपए तक ले लेते हैं। हालांकि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत उल्लू पकड़ना, बेचना-खरीदना और बलि देना गैरकानूनी है। ऐसा करने पर 7 साल तक की सजा का प्रावधान है। इसके बाद भी यूपी में उल्लू की तस्करी दीपावली के 1 महीने पहले से शुरू हो गई। यह दिवाली पर महालक्ष्मी पूजा तक चलती रहेगी। उल्लुओं की तस्करी के इस खेल को समझने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने कुशीनगर, लखनऊ, उन्नाव, गोरखपुर, बनारस में 10 दिन तक इन्वेस्टिगेशन किया। पढ़िए, पूरा खुलासा… हमने सबसे पहले उल्लुओं की बिक्री को लेकर यूपी के महराजगंज, कुशीनगर और गोरखपुर के साथ बिहार के बगहा तक पता किया। कुशीनगर से 35 किमी दूर रामकोला में पक्षियों का शिकार करने वाले कुछ बहेलियों से हमने बात की… शिकारी ने हमें मेहंदीगंज (कुशीनगर) बुलाया… रिपोर्टर: भाई जी… नमस्कार, पक्षी चाहिए… मिल जाएगा क्या? मंजूर: आप कौन, कहां से…? रिपोर्टर: मैं शिवम पडरौना से…। मंजूर: हां, मिल जाएगा… 9 बजे मेहंदीगंज पहुंचिए… वहीं मिलकर बात होगी। हम 9 बजे पहुंचे। 1 घंटे चौराहे पर इंतजार के बाद मंजूर आया। उसने चौक पर लगे RO के पास बुलाया। वह हमें चाय की दुकान पर ले गया। मंजूर (दुकान पर बैठते हुए): तब का कह रहे हैं? रिपोर्टर: हमारे रिश्तेदार हैं, उनको पूजापाठ करना है। उल्लू की डिमांड है… मिल जाएगा क्या…? मंजूर: मिल जाएगा… लेकिन पैसा ज्यादा लगेगा। रिपोर्टर: कितना…? मंजूर: 1000 रुपए से कम नहीं लेंगे… 100-200 ज्यादा भी हो सकता है। रिपोर्टर: ठीक है दे दिया जाएगा। मंजूर: ठीक है… चलिए, आज ही करा देता हूं। रिपोर्टर: भैया, जल्दी करिएगा… क्योंकि संतकबीरनगर रिश्तेदार के यहां पहुंचाना है। मंजूर: ठीक है… हम बतिया ले रहे… मिल जाएगा। रिपोर्टर: पूजा में और क्या लगता है? मंजूर: पूजा-पाठ में परेवा (कबूतर), उल्लू लगते हैं। (फिर उसने किसी को फोन लगाया) मंजूर (फोन पर): सद्दाम हैं क्या…? बाबू, जो उल्लू पकड़े थे… वे हैं कि भाग गए….? एक भाई आए हैं… अर्जेंट है…। शाम तक पकड़कर दे दो… 100% मान लें… ठीक है…। रिपोर्टर: हो जाएगा? मंजूर: हां, आप जाइए…। जब फोन करेंगे तो आ जाइएगा, शाम को… हमने उससे कह दिया है कि एडवांस मिल गया है। जब आएगा, तो दे दिया जाएगा। रिपोर्टर: कहां मिलता है… बाहर से आएगा क्या? मंजूर: यहीं मिलेगा, लेकर आप चले जाइएगा… बोरे में व्यवस्था हो जाएगी। रिपोर्टर: कोई दिक्कत तो नहीं होगी…? मंजूर: नहीं, इतना बड़ा-बड़ा काम करते हैं, कोई दिक्कत नहीं होती। आपका तो छोटा-सा काम है…। जाइए, शाम को आइएगा। मंजूर के बताए समय पर हमने शाम को फोन किया तो उसने बताया- लड़का काम करने गया है, थोड़ी देर में आइए। जब थोड़ी देर बाद हम मौके पर पहुंचे तो मंजूर नहीं मिला। फोन पर बोला कि उल्लू पकड़ा नहीं जा सका है। आप वापस जाइए…। कल सुबह आपको उल्लू मिल जाएगा। इसके बाद रात 9:30 बजे मंजूर ने फोन किया। बोला- उल्लू मिल गया है, ले जाइए। नहीं तो सुबह 6 बजे ले जाना। 4 शिकारी एक झोला लेकर उल्लू डिलीवर करने आए सुबह 6 बजे हम कुशीनगर से 25 किलोमीटर दूर पहुंचे और मंजूर को फोन लगाया। वह बोला- वहीं रुकिए, सामान भेज रहा हूं। फिर उसने एक लड़के को कॉन्फ्रेंस पर लिया और उससे बात कराई। उसने चाय की दुकान पर बुलाया, हमने पूछा कि कोई दिक्कत होगी तो… क्योंकि भीड़ अधिक होती है। उसने कहा- कोई दिक्कत नहीं होगी। हम चाय की दुकान से कुछ दूर खड़े हो गए। तभी 4 लोग एक झोला लेकर हमारी तरफ आते दिखे। एक ने अपना नाम आमिर हसन बताया। रिपोर्टर: अरे भाई, कोई दिक्कत हो जाएगी…? आमिर: कोई दिक्कत नहीं होगी। रिपोर्टर: दिखाइए…। आमिर : पैर बंधा नहीं है, निकालते समय सावधानी बरतिए। साथ आया व्यक्ति बोला पैर बांध दो… नहीं तो इन लोगों से उड़ जाएगा। रिपोर्टर: इसका होता क्या हैं. बलि दी जाती हैं क्या..? आमिर का साथी: इससे बहुत बड़ी पूजा होती है। आमिर: अपनी बलाएं लोग इसको देकर पूजा कर उड़ा देते… इसको पूजा में सम्मिलित करना बड़ा ही कारगर होता है। आमिर: पैसा दीजिए…। रिपोर्टर: कितना…? आमिर: 2000 रुपए। रिपोर्टर: बात तो 1000 रुपए की हुई थी…? आमिर: अरे, बड़ी मेहनत और रिस्क होता है, साथ ही यह अपने पंजे से मारकर घायल कर देता है। रिपोर्टर: पकड़ते कैसे हो…? आमिर का साथी: बहुत बड़ी जाल है… चवर इलाके में लगा दिया जाता… ये दिन में नहीं, सिर्फ रात को मिलते हैं। पूरी रात 5 लोग जागते रहे। आमिर: सबकी मजदूरी भी देंगे तो 400 रुपए प्रति आदमी के हिसाब से 2000 रुपए हुए। रिपोर्टर: क्या आस-पास कोई जंगल है…? आमिर: नहीं, 7 किलोमीटर का चवर (लो-लैंड की ऊसर भूमि) है। वहां बहुत से बाहरी पक्षी आते हैं… खतरा तो है लेकिन लालधर और अन्य जो भी बाहरी पक्षी खाने के शौकीन हैं, उनके लिए कुछ मायने नहीं रखता… इधर उनकी डिमांड भी है। हमने 2000 रुपए दिए लेकिन उल्लू नहीं लिया स्टिंग कर हमारा उद्देश्य यह बताना था कि बलि देने के लिए उल्लुओं को बेचा और खरीदा जा रहा है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 का पालन करते हुए हमने उल्लू नहीं खरीदा। हालांकि शिकारियों को 2000 रुपए दे दिए। इस पर आमिर ने कहा– पैसे वापस नही होंगे और शाम तक आप नहीं आए तो इसे उड़ा दूंगा। इस पूरी बातचीत से यह साफ हो गया कि प्रतिबंधित पक्षियों का शिकार जाल और अन्य तरीके से हो रहा है। दीपावली पर उल्लुओं की डिमांड है। क्या उल्लू की तस्करी यूपी में और जिलों में भी हो रही है? इसके जवाब के लिए हमने राजधानी लखनऊ में इन्वेस्टिगेशन किया। यहां हम पुराने लखनऊ में पक्षी बेचने वालों और एक्वेरियम बेचने वालों की दुकानों पर पहुंचे। यहां कुछ दुकानदारों ने उल्लू दिलाने की बात कही। रिपोर्टर: उल्लू चाहिए? दुकानदार 1: मिल जाएगा। 2 हजार रुपए लगेंगे। अभी नहीं है, अगर होगा तो करा देंगे। रिपोर्टर: आज ही मिल जाएगा? दुकानदार 1: हम कह देंगे किसी से, तो वो घर पहुंचा देगा। दुकानदार 2: कितने चाहिए…? एक या दो। रिपोर्टर: एक ही चाहिए। दुकानदार 1: हम पूछकर देख लेते हैं, अगर रखा होगा तो आज ही दे देंगे। रिपोर्टर: कितना बड़ा होता है? दुकानदार 1: इतना बड़ा होता है। हल्की-सी सफेदी होती है। रिपोर्टर: पहले तो आसानी से मिलते थे? दुकानदार 2: कोई दुकानदार आपको जानता है, तो फट से दे देगा। रिपोर्टर: एडवांस दे दें। दुकानदार 1: एडवांस की बात नहीं। हम आपको सामान लाकर दे देंगे, आप पैसा दे दीजिए। बातचीत के बाद जब हम जाने लगे तो दुकानदारों ने हमें फिर बुलाया। हम वापस पहुंचे तो उन्होंने कहा- एक के पास उल्लू है। हम देखकर आते हैं, अगर होगा तो अभी दे देंगे। इसके बाद रात को फोन आया। दुकानदार ने कहा- उल्लू है, लेकिन 20 हजार रुपए लगेंगे। हमने लेने से इनकार कर दिया। उन्नाव में 5000 रुपए में बिक रहे उल्लू हम उन्राव जिले के आसीवन के मोहल्ला पीरजादा पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात कल्लू, जाबिद, लियाकत और दानिश से हुई। इन्होंने उल्लुओं की तस्करी के बारे में विस्तार से बताया। कल्लू: उल्लू ऑर्डर पर मिलता है। ऑर्डर देने पर मंगवा दिया जाएगा। हमको ऑर्डर दे दो, हम मंगवा देंगे। रिपोर्टर: कब तक मिल जाएगा? कल्लू: कम से कम 8 से 10 दिन तो लगेंगे। उल्लू बहुत काम में आता है। नाखून बहुत काम में आते हैं। रिपोर्टर: कितने तक का मिल जाएगा? कल्लू: कम से कम 5 हजार का। हम यहीं मिलेंगे, यहीं मेरा मकान है। अपना एड्रेस, फोन नंबर और कुछ एडवांस पैसे दे दो। रिपोर्टर: देख लीजिए आप। कल्लू: अभी एक उल्लू था। एक औरत आई थी, उसके कहने पर पकड़ा था। वह 8 हजार का खरीद कर ले गई। उसने 5 हजार एडवांस दिए थे। बातचीत से साफ हो गया कि यहां उल्लू बिक रहे हैं। हम 5000 रुपए में उल्लू खरीदने की डील फाइनल किए बगैर ही यहां से निकल लिए। वाराणसी के पंडित ने कहा- उल्लू है, लेकिन किसी और के लिए हमें वाराणसी के पंडित का मोबाइल नंबर मिला, जो दिवाली पर उल्लू की पूजा कराते हैं। जब हमने उनसे वॉट्सऐप पर कॉल किया तो पहले तो उन्होंने इनकार किया। फिर बोले- हमारे बहुत कांटेक्ट हैं, लेकिन दो-चार दिन का समय चाहिए। बहेलिया लोग हैं, वे पकड़ते हैं। उनसे संपर्क करना पड़ेगा। अभी हमारे पास है, लेकिन वो किसी और के लिए है। हमने मंगवाया है। अब जानिए, मान्यता और अंधविश्वास मान्यता है, महालक्ष्मी की सवारी उल्लू है। दीपावली की रात मां लक्ष्मी उल्लू पर सवार होकर आती हैं। शास्त्रों में उल्लू की पूजा का विधान है, लेकिन कुछ लोग अंधविश्वास के चलते लोग इसकी बलि देने लगे, जो गलत है। यह गलत धारणा है कि दीपावली के दिन उल्लू की बलि देने से धन-संपत्ति में वृद्धि होती है। इसलिए दुर्लभ प्रजाति है उल्लू
उल्लू की प्रजनन दर कम होती है। एक बार अंडा देने के बाद पालन-पोषण में वक्त लगता है, इसलिए आबादी जल्दी नहीं बढ़ती। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की सूची में उल्लू शामिल है। इसलिए ये दुर्लभ प्रजाति हैं। उल्लू की आबादी बढ़ना जरूरी है, क्योंकि ये कीड़े और चूहे खाकर इनकी संख्या को नियंत्रित रखते हैं। उल्लू की तस्करी अपराध है
सीनियर एडवोकेट रवि शंकर पांडेय का कहना है कि उल्लू को पकड़ना, बेचना या मारना भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत पूरी तरह से गैरकानूनी है। इस कानून के उल्लंघन पर 7 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। वनरक्षक और रेंजर की टीम बनाई
लखनऊ वन विभाग के डीएफओ सितांशु पांडेय ने बताया- हमने आदेश बनवाया और मीटिंग भी की। इसमें सभी रेंजर्स को बताया कि उल्लू से संबंधित गतिविधियों को रोका जाए। इसके लिए दो वनरक्षक और रेंजर की टीम बनाई है। ये सूचना मिलते ही जाकर देखेंगे और जरूरी कार्रवाई करेंगे। ———————— ये खबर भी पढ़ें… दीपावली पर तांत्रिक परंपराएं और जीव बलि, उल्लू-कछुए जैसे जीवों के लिए क्यों काल बन जाती है अमावस्या की रात? दीपावली की रात तांत्रिक सिद्धियों के लिए जानी जाती है। मान्यता है, अमावस्या की रात तंत्र क्रियाओं से मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया जा सकता है। यही वजह है कि कुछ खास जीव-जंतुओं के लिए यह रात जानलेवा साबित होती है। विशेषकर उल्लू और कछुए जैसे जीवों के लिए। इनको मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। पढ़ें पूरी खबर
उल्लू की प्रजनन दर कम होती है। एक बार अंडा देने के बाद पालन-पोषण में वक्त लगता है, इसलिए आबादी जल्दी नहीं बढ़ती। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की सूची में उल्लू शामिल है। इसलिए ये दुर्लभ प्रजाति हैं। उल्लू की आबादी बढ़ना जरूरी है, क्योंकि ये कीड़े और चूहे खाकर इनकी संख्या को नियंत्रित रखते हैं। उल्लू की तस्करी अपराध है
सीनियर एडवोकेट रवि शंकर पांडेय का कहना है कि उल्लू को पकड़ना, बेचना या मारना भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत पूरी तरह से गैरकानूनी है। इस कानून के उल्लंघन पर 7 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। वनरक्षक और रेंजर की टीम बनाई
लखनऊ वन विभाग के डीएफओ सितांशु पांडेय ने बताया- हमने आदेश बनवाया और मीटिंग भी की। इसमें सभी रेंजर्स को बताया कि उल्लू से संबंधित गतिविधियों को रोका जाए। इसके लिए दो वनरक्षक और रेंजर की टीम बनाई है। ये सूचना मिलते ही जाकर देखेंगे और जरूरी कार्रवाई करेंगे। ———————— ये खबर भी पढ़ें… दीपावली पर तांत्रिक परंपराएं और जीव बलि, उल्लू-कछुए जैसे जीवों के लिए क्यों काल बन जाती है अमावस्या की रात? दीपावली की रात तांत्रिक सिद्धियों के लिए जानी जाती है। मान्यता है, अमावस्या की रात तंत्र क्रियाओं से मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया जा सकता है। यही वजह है कि कुछ खास जीव-जंतुओं के लिए यह रात जानलेवा साबित होती है। विशेषकर उल्लू और कछुए जैसे जीवों के लिए। इनको मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। पढ़ें पूरी खबर