विकास दिव्यकीर्ति बोले-मोदीजी 18 घंटे, ममता दिन-रात काम करती हैं:मस्क मंगल पर भेज रहे; लखनऊ PGI के डॉक्टरों को समझाया वर्क-लाइफ बैलेंस

लखनऊ में कोचिंग संस्थान के संचालक विकास दिव्यकीर्ति ने डॉक्टरों को वर्क-लाइफ बैलेंस समझाया। उन्होंने डॉक्टरों से कहा- काम करो लेकिन आराम भी। जीवन का सार है- बैलेंस में रहना। बैलेंस में रहिए। लोग आप से जलन करते हैं, आप उसी का रोना रो रहे हैं, जो छूट गया। यह ऐसा समय है जब ज्यादा काम करने वालों का महिमा मंडन होता है। जैसे मोदीजी 18 घंटे काम करते हैं। योगीजी दिन-रात काम करते हैं। ममता बनर्जी दिन-रात काम करती हैं। एलन मस्क सोते ही नहीं हैं। उन्हें सबको मंगल पर ले जाना है। लेकिन, हमें यह देखना है कि काम कितना जरूरी है। देश के एक उद्योगपति ने पिछले साल कहा कि वीक में 70 घंटे काम करना चाहिए। इसके बाद एक अति उत्साही इंडस्ट्रियलिस्ट ने कहा कि वीक में 90 घंटे काम करना है। हाल ही में जापान की पहली पीएम बनी हैं। उन्होंने पहले भाषण में कहा- सिर्फ वर्क,वर्क, वर्क, वर्क और वर्क करना है। विकास दिव्यकीर्ति के संबोधन की 5 बड़ी बातें… 1- साहित्य पढ़ोगे तो दिमाग ठिकाने रहेगा
अमेरिका में जो सबसे ज्यादा हैप्पी माने जाते हैं, वे 3 तरह के लोग हैं। एक- जो जंगल में काम करते हैं, दूसरे- जो किसान और तीसरे- जो कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं। अन्य जितने भी हैं उनकी मनोस्थिति वही जानते होंगे। ऐसे लोगों के लिए पढ़ना जरूरी है। दर्शन, साहित्य और समाजशास्त्र पढ़ोगे तो दिमाग ठिकाने पर रहेगा। 2 किताब जरूर पढ़ें- एकिगाई और मैन सर्च फॉर मीनिंग…। 2- दिल्ली-NCR की हवा सबसे जहरीली
मैं सोचकर आया था कहूंगा कि खेल लिया करो, पर यहां आकर देखा कि यहां तो सबकुछ मौजूद है। 550 एकड़ के कैंपस में 6000 लोग रहते हैं। इतनी ऑक्सीजन तो पूरे देश में किसी को नहीं मिलती। क्या रखा है बीड़ी-सिगरेट, सिगार में। कुछ दिन सांस लीजिए, दिल्ली-NCR में। आप में से कोई गारंटी ले कि मेरी एलर्जिक खांसी ठीक कर दे तो मैं 2-3 दिन और रुक सकता हूं। 3- जो छूट गया, उसी के पीछे परेशान हैं
गंभीरता का मतलब आत्मा से बीमार है। बेशक जिंदगी ठीक चल रही हो, पर तब भी हम वर्क-लाइफ का रोना रोते हैं। 99% सफल लोग फ्रस्टेड होकर मरते हैं। आप दुनिया हासिल कर लेंगे, पर जो चीज छूट जाती हैं, आप उसी को लेकर परेशान रहते हैं। दुनिया भले ही आप पर रश्क करे पर आप उसी एक चीज के लिए परेशान रहते हैं। 4- आलसी लोगों का बैलेंस बिगड़ जाता है
पहले 6 दिन काम के बाद एक दिन पूजा का विधान था। बाद में बताया गया कि वर्क इज वर्शिप। कैपिटलिज्म जबसे आया तबसे खूब काम करने का तर्क दिया जाता है। हिंदी के कवि मैथलीशरण ने लिखा- नर हो, न निराश करो मन को…। इसके जवाब में गोपाल दास व्यास ने लिखा- आराम करो, आराम करो। मलूक दास ने कहा- अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, सबके दाता राम…। ऐसे लोगों यानी इसे अच्छा मानकर आलस्य करने वालों का सबसे पहले वर्क-लाइफ बैलेंस बिगड़ जाता है। वे लोग खुद के लिए कहते हैं कि उन्हें सॉफ्ट टारगेट बनाया जा रहा है। 5- जिस उम्मीद से मुझे बुलाया, मैंने उसका उल्टा बोला
उस छोटू से खुद की तुलना करें जो होटल में काम करता है। उससे डोमेस्टिक हेल्प के बारे में पूछें जो आपके घर में रहता है। घर में काम करने वाली हाउस मेड एवरेज सातों दिन 14 घंटे काम करती है। पुलिस के आदमी को होली-दीवाली में बिना घर जाए ड्यूटी पर लगातार 36 घंटे बिताना पड़ता है। सियाचीन पर सैनिक -60 डिग्री पर काम करते हैं। इतना काम भी नहीं करना चाहिए। जिंदगी का सार है- बैलेंस में रहना है। आप लोग सोच रहे होंगे कि किस उम्मीद से बुलाया था और क्या सुन रहे। आपने जिस उम्मीद से मुझे बुलाया, मैंने उसका उल्टा बोला। डॉक्टर का वर्क-लाइफ बैलेंस बिगड़ना समाज के हित में आपका प्रोफेशन ऐसा है कि आपका वर्क-लाइफ बैलेंस बिगड़ना समाज के हित में है। इससे दो मरीज ज्यादा ठीक हो जाएंगे। महात्मा बुद्ध को जब मुक्ति मिल गई यानी मोक्ष मिल गया तो उन्होंने मोक्ष लेने से मना कर दिया और उन्होंने कहा कि मुझे बोधी शत्रु बना दीजिए। किताबें कहती हैं कि जब इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जब तक इस धरती पर कोई एक भी दुखी है तो मुझे मोक्ष मिलने से क्या फायदा। जब तक दुनिया में एक भी मरीज है तो डॉक्टर का वर्क-लाइफ बैलेंस ठीक नहीं हो सकता। आप एक ऐसे देश में है जहां पापुलेशन ज्यादा है, रिसोर्सेस कम हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर काम है तो यह बैलेंस ठीक नहीं हो सकता। भगवान को धन्यवाद दीजिए कि आपको इस लायक बनाया कि आप लोगों की जिंदगी बचा सकते हैं। मैंने पहला वाक्य बोला था कि यदि मुझे फिर से जिंदगी लिखने का मौका मिले तो मैं डॉक्टर बनना चाहूंगा। आप लोगों को दूसरे भगवान का दर्जा मिला है आप लोग ऐसे व्यक्ति हैं जिसे दूसरे भगवान का दर्जा हासिल है क्योंकि जिंदगी बचाना और जिंदगी देना लगभग एक ही बात है। इसलिए थोड़ा-सा झेल लीजिए। इतना सुंदर कैंपस है, क्रिकेट खेलते रहिए, हंसी मजाक करते रहिए। कभी कभार मेरे जैसे लोगों को बुलाकर सुनते रहिए। वर्क लाइफ बैलेंस बिगड़ने दीजिए पर खूब बढ़िया से काम कीजिए। पेशेंट को देखते रहिए। एक पेशेंट ऐसा ढूंढ लीजिए जो बचेगा ही नहीं आपके एक्स्ट्रा एफर्ट के बगैर। उसका इलाज करवाइए, उसके बच्चों की चिंता कीजिए और उसको मौत के दरवाजे से खींच कर वापस ले आइए। लगातार खाली रहना ज्यादा मुश्किल काम है मैं यह दावे से कह रहा हूं कि इतना सेटिस्फेक्शन मिलेगा जो आपको छुट्टियों से नहीं मिलता है। छुट्टी की सबसे खास बात है कि जब तक छुट्टी नहीं मिलती है तब तक मन करता है कि कब छुट्टी मिलेगी? कब छुट्टी मिलेगी और मिलते ही समझ में आता है कि अब क्या करें। अगर दो कामों में से एक को चुनना हो – लगातार व्यस्त रहना या लगातार खाली रहना तो ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि लगातार खाली रहना ज्यादा मुश्किल काम है। काम है तो सुख है। अंत में मैं यही कहूंगा कि आपका काम बहुत महान है इसलिए उसमें थोड़ा झेल लीजिए, समाज के हित में है। एनेस्थीसिया विभाग के स्थापना दिवस पर पहुंचे थे
विकास दिव्यकीर्ति SGPGI के एनेस्थीसिया विभाग के स्थापना दिवस पर पहुंचे थे। यहां उन्हें इस मौके पर डॉक्टरों को वर्क-लाइफ बैलेंस के बारे में समझाने के लिए आमंत्रित किया गया था। SGPGI में एनेस्थीसियोलॉजी डिपार्टमेंट सबसे बड़ा विभाग माना जाता है। इस विभाग में HOD समेत कुल 29 फैकल्टी मेंबर हैं जिनमें में 10 प्रोफेसर, 6 एडिशनल प्रोफेसर, 8 एसोसिएट प्रोफेसर और 5 अस्सिटेंट प्रोफेसर शामिल हैं। इसके अलावा 80 से ज्यादा रेजिडेंट डॉक्टर भी काम कर रहे हैं। एक नजर – SGPGI में एनेस्थीसिया की वर्किंग डोमेन… ————————-
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