छठ महापर्व पर महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाया:यूपी के शहरों में बेदी तैयार, महिलाओं ने भगवान को अर्घ देकर शाम का पूजन शुरू किया

छठ महापर्व नहाय-खाय के बाद शुरू हो गई है। आज खरना पूजा के बाद से 36 घंटे का व्रत शुरू हो जाएगा। वहीं रविवार को नदियों और तालाबों के घाटों पर छठी माता की आराधना करने के लिए चिह्नित स्थान की गोबर से लिपाई की और पूजा की बेदी बनाई गई। रंगोली से घाट सजाए गए। जबकि वाराणसी कैंट स्टेशन पर छठ के गीत गूंजे। कानपुर में घाट किनारे करीब 1 हजार के ऊपर वेदियां बनी हैं। वहीं शाम के समय काशी के घाट पर महिलाएं पहुंची और वेदी की पूजा की और एक-दूसरे को सिंदूर लगाया। 2 तस्वीरें देखिए… यह पर्व क्यों है खास… छठ पर्व में किस दिन क्या होता है…. पहला दिन- नहाय खाय। जिसमें घर की सफाई, फिर स्नान और शाकाहारी भोजन से व्रत की शुरुआत होती है। दूसरा दिन- व्रती दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। तीसरा दिन- छठ का प्रसाद बनाता है। प्रसाद में ठेकुआ, चावल के लड्डू और चढ़ावे के रूप में फल आदि होता है। शाम को बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और तालाब या नदी किनारे डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। चौथा दिन- कार्तिक शुक्ल सप्तमी को उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। व्रतधारी दोबारा वहीं जाते हैं, जहां शाम को अर्घ्य दिया था। छठ पर्व का इतिहास भी जान लीजिए… स्कंद पुराण के मुताबिक, राजा प्रियव्रत (मनु के पुत्र) को कोई संतान नहीं था। उन्होंने महर्षि कश्यप से वरदान मांगा। ऋषि के यज्ञ से उन्हें एक बेटा हुआ, लेकिन उसमें जान नहीं थी। इससे दुखी राजा-रानी आत्महत्या की सोचने लगे। तभी एक देवी प्रकट हुईं। उन्होंने कहा, ‘मैं उषा की ज्येष्ठा बहन षष्ठी देवी हूं, बच्चों की रक्षा मेरी जिम्मेदारी है। यदि तुम मेरी विधि से पूजा करोगे तो तुम्हें संतान सुख मिलेगा।’ राजा-रानी ने देवी की पूजा की और बेटे का जन्म हुआ। इसके बाद से इस पूजा की शुरुआत हो गई। ऋग्वेद में लिखा गया है कि सूर्य और उसकी किरणों की आराधना से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं। मोदी सरकार ने छठ को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल कराने की पहल की है। छठ महापर्व से जुड़े अपडेट्स के लिए नीचे ब्लॉग से गुजर जाइए…