‘सनक: यूपी के सीरियल किलर’ में आज एक ऐसे सीरियल किलर की कहानी, जो मर्डर के लिए हमेशा अपने शिकार की गर्दन में लेफ्ट साइड गांठ लगाता था। हत्या के बाद निशानी के तौर पर महिलाओं की चूड़ी और बिंदी साथ ले जाता था। 5 जून 2023, सोमवार। बरेली का शाही गांव। जेठ की तपती दोपहर। तापमान 38 डिग्री सेल्सियस। हवा ने जैसे न चलने की कसम खा ली हो। गांव की गलियां सुनसान थीं। भरी दोपहरी कोई बाहर निकलने को तैयार नहीं। इसके बाद भी 55 साल की कलावती खेतों की ओर बढ़ रही थी। उसके सिर पर पड़ा पल्लू पसीने से भीगा था। कलावती तेज कदमों से चल रही थी। पीछे से एक आवाज आई, जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो। “भाभी… कहां जा रही हो?” कलावती पलटी। देखा, उसके सामने 30-32 साल का एक भेंगा युवक खड़ा था। उसकी मुस्कान में कुछ अजीब था, जैसे भीतर छिपा जानवर बाहर झांक रहा हो।
वेस्टर्न यूपी वाली कलावती ने कड़क आवाज में जवाब दिया- “तेरे से मतलब?” युवक ने धीरे से हंसते हुए कहा- “अरे भाभी, बस इतना कह रहा हूं… तुम बहुत खबसूरत हो।” “जा रहा है कि गाली खाएगा?” कलावती ने तल्खी से जवाब दिया। उसने अपनी चाल और तेज कर दी। वो निडर दिखने की कोशिश कर रही थी, पर सांसें तेज हो चली थीं। युवक पीछे-पीछे चलने लगा। “अरे, नाराज क्यों होती हो? सुनो तो… तुम सच में बहुत सुंदर हो।” कलावती ने हिम्मत जुटाई और पलटकर चिल्लाई- “नासपीटे! तू जाता है या मार खाएगा?” वो तेजी से चल रही थी, गन्ने के खेत अब नजदीक थे। युवक और करीब आया। धीरे से, लेकिन जहरीली मुस्कान के साथ बोला- “करोगी मेरे साथ…?” ये सुनते ही कलावती का गुस्सा फूट पड़ा। वो पलटी और चीखी, “तू चप्पल खाए बगैर मानेगा नहीं!” इससे पहले कलावती चप्पल उठाती, युवक ने झटके से उसका हाथ पकड़ लिया। “छोड़…!” कलावती चीखी, लेकिन उसकी आवाज सुनसान खेत में गूंजकर खामोश हो गई। युवक उसे खींचकर गन्ने के खेतों में ले गया। कलावती कुछ समझ पाती, इससे पहले उसने कलावती की साड़ी का पल्लू खींचकर गले में लपेटा और पूरी ताकत से कस दिया। कलावती की सांसें थम गईं। उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं। दरिंदा यहीं नहीं रुका, उसने लाश के साथ घिनौनी हरकत की। अपना काम खत्म करने के बाद उसने कलावती की लाश को देखकर गंदी गाली दी “@#$%!” फिर मुस्कुराया, बोला, “मुझे मना करती है।” इतना कहकर लाश से नथनी, कान की बालियां और गले का हार उतारकर जेब में रखा और चलता बना। शाम 4 बजे के करीब धूप थोड़ी नरम पड़ चुकी थी। खेतों में काम करने वाले मजदूर आए। तभी एक मजदूर की नजर गन्ने के खेत में पड़ी। उसने देखा- एक औरत की लाश, कपड़े बिखरे हुए, चेहरा नीला पड़ चुका था। “अरे, ये तो कलावती है…!” उसकी आवाज सुनकर आसपास के लोग दौड़े आए। गांव में हल्ला मच गया। किसी ने फोन उठाया और पुलिस को खबर की। थोड़ी ही देर में पुलिस की जीप खेतों की पगडंडी पर पहुंची। पुलिस ने मौके का मुआयना किया। गन्ने के खेत में टूटी हुईं चूड़ियां, एक पुरानी चप्पल और मिट्टी में कुछ धुंधले से निशान मिले। केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई। पुलिस ने खूब जोर लगाया, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। पुलिस कातिल को खोजती, इससे पहले ही 19 जून को खेत में काम कर रही 40 साल की धनवती की ठीक इसी तरह से गला दबाकर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद 22 जून, 30 जून, 23 अगस्त को भी इसी पैटर्न में महिलाओं की हत्याएं हुईं। बरेली देहात के शाही थाना क्षेत्र के गांवों में खौफ का माहौल था। खासकर उन महिलाओं में, जो खेतों पर काम करने जाती थीं। लोग इतने डरे हुए थे कि अपनी औरतों को अकेले बाहर नहीं जाने देते थे। यहां तक कि ब्याह-शादी में भी भेजना बंद कर दिया था। पुलिस भी घूम-घूमकर लोगों से कहती थी कि महिलाएं अकेले घर से बाहर न निकलें। पुलिस ने हर तरीका अपना लिया था, लेकिन हत्याएं रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। तत्कालीन एसएसपी घुले सुशील चंद्रभान ने 2200 CCTV की फुटेज निकालकर जांच करवाई। किलर को पकड़ने के लिए 600 नए कैमरे भी लगाए गए। डेढ़ लाख से ज्यादा मोबाइल नंबर सर्विलांस पर थे। इस बीच, एसएसपी सुशील का तबादला हो गया। 26 जून, 2024 को बरेली में नए एसएसपी अनुराग आर्य ने जॉइन किया। अनुराग के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन केसों को सॉल्व करने की थी। उनके पहले के एसएसपी इस सब्जेक्ट का अच्छा-खासा बैकग्राउंड तैयारी करके गए थे। अब उसी काम को एसएसपी अनुराग आर्य ने आगे बढ़ाया। अनुराग ने जॉइन करते ही मेज पर रखी घंटी बजाई। कुछ ही मिनटों में ड्यूटी इंस्पेक्टर सामने खड़े थे। एसएसपी ने कहा- “कल सुबह एक मीटिंग बुलाइए। मीटिंग में सभी थाना प्रभारी, स्पेशल ऑपरेटिंग ग्रुप, लोकल इंटेलिजेंस यूनिट, सर्विलांस के लोग, और हां… हर बीट का सिपाही भी होना चाहिए।” इंस्पेक्टर ने हैरानी से पूछा- “सर, बीट के सिपाही भी?” “हां, बीट के सिपाही। मुझे उनसे सीधे बात करनी है। उन्हें उन गांवों की नस-नस पता है। हम उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते।” किसी थाने के तहत आने वाले इलाके को छोटे-छोटे हिस्सों यानी ‘बीट’ में बांटा जाता है। इसकी निगरानी के लिए जिम्मेदार सिपाही को ‘बीट सिपाही’ कहते हैं। अगले दिन मीटिंग हुई, वॉर रूम बना। सारा डेटा वॉर रूम में रखकर नए सिरे से जांच शुरू हुई। एसएसपी आर्य ने हत्यारे की साइकोलॉजी समझने के लिए एक साइकोलॉजिस्ट को बुलाया, जो इस तरह के अपराधियों के दिमाग पढ़ने में माहिर था। आर्य ने फाइल बढ़ाते हुए कहा- “डॉक्टर साब, इन रिपोर्ट्स को देखिए। गला घोंटने का तरीका एक ही है… हमेशा गले में लेफ्ट साइड ही गांठ लगाता है।” साइकोलॉजिस्ट बोला- “सर ये कोई नॉर्मल किलर नहीं, एक सीरियल किलर है। हर घटना में गले पर लेफ्ट साइड कसने के निशान हैं। यह उसकी आदत बन चुकी है। कोई राइट-हैंडेड इंसान लेफ्ट साइड से ही ज्यादा दम लगा सकता है। यह दिखाता है कि हत्यारा बेहद फोकस्ड है। हत्याएं गुस्से में नहीं, बल्कि एक पैटर्न के तहत की जा रही हैं। मोडस ऑपरेंडी यानी मर्डर का तरीका फिक्स है।” 2 जुलाई 2024, अनुराग आर्य को जॉइन किए एक हफ्ता ही बीता था। वे एक जरूरी मीटिंग में थे। बाहर बारिश हो रही थी। शाम 7 बजे फोन बजा। उधर से आवाज आई-
“सर, खेतों में एक और लाश… बिल्कुल उसी तरीके से।” अनुराग आर्य की तैनाती के बाद सीरियल किलर की यह पहली हरकत थी। वे तुरंत मौके पर पहुंचे। कोबुझिया जागीर गांव में गन्ने के खेत में मजदूरों ने एक लाश देखी। 45 साल की अनीता, अस्त-व्यस्त हालत में पड़ी थी। अनीता अपने मायके फतेहगंज पश्चिमी से ससुराल लौट रही थी। एसएसपी अनुराग ने थाना प्रभारी से पूछा-“मामला क्या है?” थाना प्रभारी ने कहा- “मृतका का नाम अनीता है, मायके से घर लौट रही थी।” एसएसपी ने लाश की ओर देखा- “मोडस ऑपरेंडी क्या है?”
थाना प्रभारी ने हिचकिचाते हुए कहा- “सर, गला दबाकर मारा गया है। शायद लूट का मामला है।” “लूट…?” एसएसपी ने आंखें सिकोड़ते हुए कहा- “यह कहने की कोई वजह है तुम्हारे पास ?” थाना प्रभारी ने कहा- “जी, सर। पता चला है कि फतेहगंज पश्चिमी की एक बैंक में अनीता का अकाउंट है। कुछ रकम फिक्स डिपॉजिट में है। ये कुछ-कुछ महीनों में बैंक जाया करती थी। हो सकता है कि इसने बैंक जाकर रुपए निकाले हों और उन्हीं रुपए की खातिर इसकी हत्या की गई हो।” खबर नेशनल मीडिया में फैल गई थी कि हत्यारे ने पॉज लेकर फिर एक महिला को निशाना बनाया है। प्रेशर बढ़ता देख एडीजी रमित शर्मा और आईजी राकेश कुमार भी मौके पर पहुंच गए। एसएसपी की टेंशन बढ़ गई। 300 पुलिसकर्मी, स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप और लोकल इंटेलिजेंस यूनिट की टीमें तैनात की गईं। ड्रोन कैमरों और नावों से नदी किनारों की निगरानी शुरू हुई। शक के आधार पर पुलिस ने 150 जगहों पर दबिश दी, 1500 सीसीटीवी फुटेज खंगाले, लेकिन हत्यारा शातिर था। न वो मोबाइल इस्तेमाल करता, न एक जगह टिकता। सारी कोशिशें एक बार फिर नाकाम रहीं। शाही के आसपास के सभी गांवों में पुलिस लोगों को रोक-रोककर पूछताछ कर रही थी। सभी के आधार कार्ड और आईडी कार्ड चेक किए जा रहे थे। अब पुलिस गश्त से निकलकर खेतों में मजदूर बनकर काम करने लगी। महिला पुलिसकर्मियों को सीधे पल्ले की साड़ी और रिटायरमेंट के करीब पुरुष पुलिसवालों को कुर्ता-पायजामा या धोती-कुर्ता पहनकर खेतों में काम करने के लिए लगाया गया, ताकि सब असली लगे। मैदानी पुलिसवालों को बॉडी कैमरे दिए गए। उनसे हर संदिग्ध पर नजर रखने को कहा गया। लगातार निगरानी के बाद कुछ संदिग्धों के स्केच बने। पोस्टर बने, लिखा गया कि सूचना देने वाले का नाम सीक्रेट रहेगा। फिर भी कुछ पता नहीं चला। बीट के सिपाही सादे कपड़ों में खेतों में घूम रहे थे, गांववालों से बातचीत कर रहे थे। एक दिन, एक सिपाही ने एसएसपी को फोन पर खबर दी- “सर, एक आदमी है… जो अक्सर इन खेतों में घूमता है। महिलाओं से बात करता है। हम उसे दो-तीन दिन से देख रहे हैं। उसे यहां के रास्ते भी पता हैं।”
एसएसपी ने कहा- “तुरंत बॉडी कैमरा ऑन करके वीडियो बनाओ!” 7 अगस्त, 2025 की शाम, एक टिप ने पुलिस को चौंका दिया। शाही में छोटे से मंदिर के पास एक शख्स देखा गया। इसका चेहरा स्केच से मिलता-जुलता था। हाव-भाव से कुछ सिरफिरा सा लग रहा था। 4 सिपाही- सरफराज, उत्तम कुमार, शेखर वर्मा और अमित चौधरी। सादी वर्दी में उसकी तलाश में निकले। उसके दिखते ही वे पास पहुंचे और मेल-जोल बढ़ाने के लिए बातचीत शुरू की। सबसे पहले सरफराज ने बात शुरू की। सरफराज: “भैया, चाय पियोगे…?”
अजनबी: “पिऊंगा। चीनी कम।”
उत्तम: “नाम क्या है आपका…?”
अजनबी: “कुलदीप…”
शेखर: “पूरा नाम…”
अजनबी: “कुलदीप गंगवार…”
अमित: “कहां रहते हो?”
कुलदीप: “पास में ही… कभी रिश्तेदारी में ठहर जाता हूं।” सरफराज: “काम-धंधा…”
कुलदीप: “अभी कुछ खास नहीं। गांव में ही था, घूम रहा था।”
उत्तम: “घबराए हुए लग रहे हो। डरने की जरूरत नहीं है हमसे।”
कुलदीप: “घबराया नहीं हूं, भैया।” अमित: “कुलदीप, शादी हो गई तुम्हारी?”
कुलदीप: “हां हुई थी, पर बीवी सही नहीं थी। छोड़कर चली गई। दूसरी शादी करनी है। कोई लड़की हो तो बताओ।” शेखर ने मोबाइल में एक महिला सिपाही की सादे कपड़ों में फोटो दिखाई। कुलदीप: “कौन है?”
शेखर: “हमारी पहचान की है। पसंद हो तो बात करें।”
कुलदीप (हंसकर): “हां भैया, करवा दो।” शेखर: “अरे ये तो कुछ नहीं है अगर तुम चाहों तो हम दो-तीन लड़कियों से तुम्हें फेस टू फेस मिला देंगे, लेकिन साथ चलना पड़ेगा।”
कुलदीप: “कहां”
शेखर: “अरे बस यहीं थाने पर वो हमारे जानने वाली हैं, वहीं काम करती हैं। तुम देख लेना जो पसंद आए बता देना।” चारों पुलिस वाले कुलदीप को शादी का लालच देकर शाही थाने ले आए और बातों ही बातों में उससे पूछता करने लगे। इस बार सिपाही उत्तम ने सबसे कुलदीप से कहा। “देखो, भैया कुलदीप… सच बताओगे तो ही बात आगे बढ़ेगी।”
कुलदीप: “ठीक है, भैया पूछो।” अमित चौधरी: “तुममें दम-वम है कि ना? तुम्हें देखकर नहीं लगता कि मच्छर भी मार सकते हो। कभी किसी को मारा है?”
कुलदीप: “हां… कई को! जो औरत मुझसे सही से बात नहीं करती, उसे मार डालता हूं।” सब हंसने लगे, जिससे उसे भरोसा हो जाए कि ये लोग उसे सीरियस नहीं ले रहे। शेखर: “अरे ऐसा क्यों करते हो कुलदीप भाई?”
कुलदीप: “भाई मैं तो प्यार से बात करता हूं। ये भी पूछता हूं कि मेरे साथ करेगी? कोई ऐसा पूछता है क्या? मैं भला आदमी हूं, पूछता हूं। अगर वो गाली या धक्का दे दे, तो मेरा खून खौल जाता है… गुस्सा आता है। मैं बर्दाश्त नहीं कर पाता और उसका गला दबा देता हूं।”
सरफराज: “अच्छा ये सब करते कहां हो, अपने घर में?” सरफराज ने ये घर वाला दांव इसलिए चला ताकि कन्फर्म हो जाए कि वो जिसे खोज रहे हैं ये वही है, कोई और नहीं। कुलदीप: “नहीं, खेतों में… जब वो रास्ते में अकेली मिलती हैं। बात करता हूं, मुस्कुराता हूं। जब उसकी ‘न’ सुनता हूं तो… गला…”
अमित: “तो गला कैसे दबाते हो?” कुलदीप: “उसने जो भी पहना हो… साड़ी हो तो पल्लू, सलवार सूट हो तो दुपट्टे से।”
उत्तम: “तो तुम ये लूटपाट के लिए करते हो?” कुलदीप: “अरे नहीं भाई! पैसे से क्या होगा। मुझे तो गुस्सा ठंडा करना होता है।”
शेखर: “अकेले कर लेते हो तुम या तुम्हारी टीम में कोई और भी है?”
कुलदीप: “नहीं, अकेला ही काफी हूं ऐसी @#$% के लिए।” सरफराज: “मैं नहीं मानता कि तुमने किसी को मारा है। अगर मारा है तो नाम बताओ?”
कुलदीप: “मुझे नाम याद नहीं रहते…उनके गांव के नाम याद हैं बस।” अमित: “अनीता याद है… वो फतेहगंज वाली?” कुलदीप: “जिसकी लाश कोबुझिया जागीर के पास गन्ने के खेत में मिली थी वही ना?” उत्तम: “हां, लेकिन तुम सच बोल रहे हो ना…?”
कुलदीप: “पक्का, भैया।”
शेखर: “तारीखें याद हैं?”
कुलदीप: “तारीख नहीं, जगह याद है। किस मेड़ के पास, किस गांव के बगल में।” सरफराज: “अच्छा कुलदीप, खाना खाओगे?”
कुलदीप: “हां, पूड़ी-सब्जी…”
अमित: “अभी मंगवाते हैं।” कुलदीप: “ठीक है, भैया पर शादी का क्या?”
शेखर (मुस्कुराकर): “बाहर जितने लोग (मीडियावाले) खड़े हैं न, सब तुम्हारे बाराती हैं।” कुलदीप (भोलेपन से हंसकर): “सच में, भैया?”
उत्तम: “हां… आज तुम्हारी शादी है, हथकड़ी से!” सरफराज: “लेकिन एक शर्त है… जहां-जहां किया है, सब जगह दिखाओगे।”
कुलदीप: “दिखा दूंगा…। गांव के नाम से याद है सब।” अब पूछताछ की बारी एसएसपी अनुराग आर्य की थी। उन्होंने कुलदीप से पूछा- “तुमने वो काम क्यों किया?” कुलदीप ने एसएसपी की तरफ देखा और मुस्कुराया। उसकी मुस्कुराहट में कोई पश्चाताप नहीं था, बस एक सुकून था।
कुलदीप ने पूछा- “कौन सा काम, साब?” एसएसपी ने उसे मरने वाली महिलाओं के फोटो दिखाए। फोटो देखते ही कुलदीप की आंखें बड़ी हो गईं। उसने कहा- “साब ये सब एक जैसी थीं।”
एसएसपी ने पूछा- “एक जैसी मतलब?” कुलदीप: “मेरी मां जैसी…”
एसएसपी ने कहा- “पहेलियां मत बुझा। सीधे बता।”
अब कुलदीप मासूम बच्चे की तरह बिलख पड़ा बोला- “मेरी सौतेली मां, साब। उसने मुझे बहुत दुख दिए। मेरे पापा ने 2 शादियां की थीं। सौतेली मां मेरे पापा के कान भरती थी और पापा रोज मेरी सगी मां को पीटते थे। कुछ साल बाद मेरी मां मर गई। उसी कुतिया की वजह से मेरी मां मर गई साब। उसके बाद भी उस !@#$% का मन नहीं भरा। वो मुझे रोज पिटवाती। घर के काम कराती।” एसएसपी और पूछताछ करने वाली टीम समझ गई थी कि सख्ती की गई तो ये कुछ नहीं बताएगा। इससे इमोशनली बात की जाए तो सब उगल देगा। पूछताछ वाली टीम ने कुलदीप से कहा तो तुम्हारी शादी हो गई थी न। कुलदीप बोला- “अरे, शादी क्या हुई वो भी !@#$% थी। मुझे छोड़कर चली गई। बहुत मनाया, लेकिन लौटकर नहीं आई।” ये दो घटनाएं थीं, जिसकी वजह से कुलदीप औरतों से नफरत करने लगा था। खासतौर से 40-50 साल की औरतों में उसे अपनी सौतेली मां नजर आती थी। एसएसपी ने पूछा- “तो तुम महिलाओं को मारकर अपनी नफरत मिटाते थे?”
कुलदीप ने गर्व से कहा- “हां साब। वो सब सजा की हकदार थीं और मैं उन्हें सजा देता था।” एसएसपी ने पूछा- “तुमने बीच में कत्ल करना बंद क्यों कर दिए थे? और हां, तुम इतनी जल्दी गायब कैसे हो जाते थे?” कुलदीप बोला- “साब, खेतों से फसलें कटने के बाद काम बंद कर देता था। कुछ करता तो पकड़ा जाता। फसल खड़ी होने पर ही अपना काम करता हूं। यहां शाही गांव में मेरी बहन रहती है, रिश्तेदारियां हैं। बरसों से आ-जा रहा हूं। गली–गली देखी है। मेन रोड से जाता तो पकड़ा जाता। मेड़ और गलियों के रास्ते कोई पकड़ नहीं पाता।” एसएसपी ने कहा- “अच्छा तो इसलिए नहीं पकड़े गए अभी तक।”
गर्वित मुस्कान के साथ कुलदीप बोला- “हां साब।” एसएसपी ने ब्रेक लिया और एक महिला अफसर ने सवाल दागा। “तुम तो कह रहे थे कि तुम लूटपाट नहीं करते, लेकिन कई औरतों के जेवर गायब थे।”
कुलदीप बोला- “जेवर तो निशानी के तौर पर रख लेता था। मैंने किसी के सारे गहने नहीं लिए… वो कोई और होगा। मैं ऐसा नहीं करता। मैं तो बस यादगार के लिए किसी की बिंदी, किसी की चूड़ी ले जाता था। मैं लुटेरा नहीं हूं।” महिला अफसर: “मतलब तूने सब की सब 10 औरतों को मारा है?”
महिला अफसर से आंख मिलाते हुए कुलदीप बोला- “नहीं मैडम मैंने सिर्फ 6 #@$% को सजा दी है।”
एसएसपी ने एक डमी मंगवाई और बोले- “चल बता, तू दुपट्टे से कैसे मारता था?” कुलदीप ने डमी के गले में दुपट्टा लपेटा और लेफ्ट साइड गांठ लगाकर पूरी ताकत से कस दिया। वही पैटर्न, जो उसने सारी विक्टिम्स के साथ दोहराया था। इसके बाद पुलिस ने स्पॉट पर जाकर सभी घटनाओं का रीक्रिएशन कराया। उसने बेझिझक सब बताया। कुलदीप की गिरफ्तारी के बाद से बरेली में लेफ्ट गांठ लगाकर हत्या करने वाले का आतंक थम गया है। अभी वो बरेली जेल में बंद है और केस चल रहा है। **** (यह रियल स्टोरी पुलिस चार्जशीट, केस से जुड़े पुलिस ऑफिसर, वकील और स्थानीय लोगों से बातचीत पर आधारित है। कहानी को रोचक बनाने के लिए क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए लिखा गया है।)
वेस्टर्न यूपी वाली कलावती ने कड़क आवाज में जवाब दिया- “तेरे से मतलब?” युवक ने धीरे से हंसते हुए कहा- “अरे भाभी, बस इतना कह रहा हूं… तुम बहुत खबसूरत हो।” “जा रहा है कि गाली खाएगा?” कलावती ने तल्खी से जवाब दिया। उसने अपनी चाल और तेज कर दी। वो निडर दिखने की कोशिश कर रही थी, पर सांसें तेज हो चली थीं। युवक पीछे-पीछे चलने लगा। “अरे, नाराज क्यों होती हो? सुनो तो… तुम सच में बहुत सुंदर हो।” कलावती ने हिम्मत जुटाई और पलटकर चिल्लाई- “नासपीटे! तू जाता है या मार खाएगा?” वो तेजी से चल रही थी, गन्ने के खेत अब नजदीक थे। युवक और करीब आया। धीरे से, लेकिन जहरीली मुस्कान के साथ बोला- “करोगी मेरे साथ…?” ये सुनते ही कलावती का गुस्सा फूट पड़ा। वो पलटी और चीखी, “तू चप्पल खाए बगैर मानेगा नहीं!” इससे पहले कलावती चप्पल उठाती, युवक ने झटके से उसका हाथ पकड़ लिया। “छोड़…!” कलावती चीखी, लेकिन उसकी आवाज सुनसान खेत में गूंजकर खामोश हो गई। युवक उसे खींचकर गन्ने के खेतों में ले गया। कलावती कुछ समझ पाती, इससे पहले उसने कलावती की साड़ी का पल्लू खींचकर गले में लपेटा और पूरी ताकत से कस दिया। कलावती की सांसें थम गईं। उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं। दरिंदा यहीं नहीं रुका, उसने लाश के साथ घिनौनी हरकत की। अपना काम खत्म करने के बाद उसने कलावती की लाश को देखकर गंदी गाली दी “@#$%!” फिर मुस्कुराया, बोला, “मुझे मना करती है।” इतना कहकर लाश से नथनी, कान की बालियां और गले का हार उतारकर जेब में रखा और चलता बना। शाम 4 बजे के करीब धूप थोड़ी नरम पड़ चुकी थी। खेतों में काम करने वाले मजदूर आए। तभी एक मजदूर की नजर गन्ने के खेत में पड़ी। उसने देखा- एक औरत की लाश, कपड़े बिखरे हुए, चेहरा नीला पड़ चुका था। “अरे, ये तो कलावती है…!” उसकी आवाज सुनकर आसपास के लोग दौड़े आए। गांव में हल्ला मच गया। किसी ने फोन उठाया और पुलिस को खबर की। थोड़ी ही देर में पुलिस की जीप खेतों की पगडंडी पर पहुंची। पुलिस ने मौके का मुआयना किया। गन्ने के खेत में टूटी हुईं चूड़ियां, एक पुरानी चप्पल और मिट्टी में कुछ धुंधले से निशान मिले। केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई। पुलिस ने खूब जोर लगाया, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। पुलिस कातिल को खोजती, इससे पहले ही 19 जून को खेत में काम कर रही 40 साल की धनवती की ठीक इसी तरह से गला दबाकर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद 22 जून, 30 जून, 23 अगस्त को भी इसी पैटर्न में महिलाओं की हत्याएं हुईं। बरेली देहात के शाही थाना क्षेत्र के गांवों में खौफ का माहौल था। खासकर उन महिलाओं में, जो खेतों पर काम करने जाती थीं। लोग इतने डरे हुए थे कि अपनी औरतों को अकेले बाहर नहीं जाने देते थे। यहां तक कि ब्याह-शादी में भी भेजना बंद कर दिया था। पुलिस भी घूम-घूमकर लोगों से कहती थी कि महिलाएं अकेले घर से बाहर न निकलें। पुलिस ने हर तरीका अपना लिया था, लेकिन हत्याएं रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। तत्कालीन एसएसपी घुले सुशील चंद्रभान ने 2200 CCTV की फुटेज निकालकर जांच करवाई। किलर को पकड़ने के लिए 600 नए कैमरे भी लगाए गए। डेढ़ लाख से ज्यादा मोबाइल नंबर सर्विलांस पर थे। इस बीच, एसएसपी सुशील का तबादला हो गया। 26 जून, 2024 को बरेली में नए एसएसपी अनुराग आर्य ने जॉइन किया। अनुराग के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन केसों को सॉल्व करने की थी। उनके पहले के एसएसपी इस सब्जेक्ट का अच्छा-खासा बैकग्राउंड तैयारी करके गए थे। अब उसी काम को एसएसपी अनुराग आर्य ने आगे बढ़ाया। अनुराग ने जॉइन करते ही मेज पर रखी घंटी बजाई। कुछ ही मिनटों में ड्यूटी इंस्पेक्टर सामने खड़े थे। एसएसपी ने कहा- “कल सुबह एक मीटिंग बुलाइए। मीटिंग में सभी थाना प्रभारी, स्पेशल ऑपरेटिंग ग्रुप, लोकल इंटेलिजेंस यूनिट, सर्विलांस के लोग, और हां… हर बीट का सिपाही भी होना चाहिए।” इंस्पेक्टर ने हैरानी से पूछा- “सर, बीट के सिपाही भी?” “हां, बीट के सिपाही। मुझे उनसे सीधे बात करनी है। उन्हें उन गांवों की नस-नस पता है। हम उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते।” किसी थाने के तहत आने वाले इलाके को छोटे-छोटे हिस्सों यानी ‘बीट’ में बांटा जाता है। इसकी निगरानी के लिए जिम्मेदार सिपाही को ‘बीट सिपाही’ कहते हैं। अगले दिन मीटिंग हुई, वॉर रूम बना। सारा डेटा वॉर रूम में रखकर नए सिरे से जांच शुरू हुई। एसएसपी आर्य ने हत्यारे की साइकोलॉजी समझने के लिए एक साइकोलॉजिस्ट को बुलाया, जो इस तरह के अपराधियों के दिमाग पढ़ने में माहिर था। आर्य ने फाइल बढ़ाते हुए कहा- “डॉक्टर साब, इन रिपोर्ट्स को देखिए। गला घोंटने का तरीका एक ही है… हमेशा गले में लेफ्ट साइड ही गांठ लगाता है।” साइकोलॉजिस्ट बोला- “सर ये कोई नॉर्मल किलर नहीं, एक सीरियल किलर है। हर घटना में गले पर लेफ्ट साइड कसने के निशान हैं। यह उसकी आदत बन चुकी है। कोई राइट-हैंडेड इंसान लेफ्ट साइड से ही ज्यादा दम लगा सकता है। यह दिखाता है कि हत्यारा बेहद फोकस्ड है। हत्याएं गुस्से में नहीं, बल्कि एक पैटर्न के तहत की जा रही हैं। मोडस ऑपरेंडी यानी मर्डर का तरीका फिक्स है।” 2 जुलाई 2024, अनुराग आर्य को जॉइन किए एक हफ्ता ही बीता था। वे एक जरूरी मीटिंग में थे। बाहर बारिश हो रही थी। शाम 7 बजे फोन बजा। उधर से आवाज आई-
“सर, खेतों में एक और लाश… बिल्कुल उसी तरीके से।” अनुराग आर्य की तैनाती के बाद सीरियल किलर की यह पहली हरकत थी। वे तुरंत मौके पर पहुंचे। कोबुझिया जागीर गांव में गन्ने के खेत में मजदूरों ने एक लाश देखी। 45 साल की अनीता, अस्त-व्यस्त हालत में पड़ी थी। अनीता अपने मायके फतेहगंज पश्चिमी से ससुराल लौट रही थी। एसएसपी अनुराग ने थाना प्रभारी से पूछा-“मामला क्या है?” थाना प्रभारी ने कहा- “मृतका का नाम अनीता है, मायके से घर लौट रही थी।” एसएसपी ने लाश की ओर देखा- “मोडस ऑपरेंडी क्या है?”
थाना प्रभारी ने हिचकिचाते हुए कहा- “सर, गला दबाकर मारा गया है। शायद लूट का मामला है।” “लूट…?” एसएसपी ने आंखें सिकोड़ते हुए कहा- “यह कहने की कोई वजह है तुम्हारे पास ?” थाना प्रभारी ने कहा- “जी, सर। पता चला है कि फतेहगंज पश्चिमी की एक बैंक में अनीता का अकाउंट है। कुछ रकम फिक्स डिपॉजिट में है। ये कुछ-कुछ महीनों में बैंक जाया करती थी। हो सकता है कि इसने बैंक जाकर रुपए निकाले हों और उन्हीं रुपए की खातिर इसकी हत्या की गई हो।” खबर नेशनल मीडिया में फैल गई थी कि हत्यारे ने पॉज लेकर फिर एक महिला को निशाना बनाया है। प्रेशर बढ़ता देख एडीजी रमित शर्मा और आईजी राकेश कुमार भी मौके पर पहुंच गए। एसएसपी की टेंशन बढ़ गई। 300 पुलिसकर्मी, स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप और लोकल इंटेलिजेंस यूनिट की टीमें तैनात की गईं। ड्रोन कैमरों और नावों से नदी किनारों की निगरानी शुरू हुई। शक के आधार पर पुलिस ने 150 जगहों पर दबिश दी, 1500 सीसीटीवी फुटेज खंगाले, लेकिन हत्यारा शातिर था। न वो मोबाइल इस्तेमाल करता, न एक जगह टिकता। सारी कोशिशें एक बार फिर नाकाम रहीं। शाही के आसपास के सभी गांवों में पुलिस लोगों को रोक-रोककर पूछताछ कर रही थी। सभी के आधार कार्ड और आईडी कार्ड चेक किए जा रहे थे। अब पुलिस गश्त से निकलकर खेतों में मजदूर बनकर काम करने लगी। महिला पुलिसकर्मियों को सीधे पल्ले की साड़ी और रिटायरमेंट के करीब पुरुष पुलिसवालों को कुर्ता-पायजामा या धोती-कुर्ता पहनकर खेतों में काम करने के लिए लगाया गया, ताकि सब असली लगे। मैदानी पुलिसवालों को बॉडी कैमरे दिए गए। उनसे हर संदिग्ध पर नजर रखने को कहा गया। लगातार निगरानी के बाद कुछ संदिग्धों के स्केच बने। पोस्टर बने, लिखा गया कि सूचना देने वाले का नाम सीक्रेट रहेगा। फिर भी कुछ पता नहीं चला। बीट के सिपाही सादे कपड़ों में खेतों में घूम रहे थे, गांववालों से बातचीत कर रहे थे। एक दिन, एक सिपाही ने एसएसपी को फोन पर खबर दी- “सर, एक आदमी है… जो अक्सर इन खेतों में घूमता है। महिलाओं से बात करता है। हम उसे दो-तीन दिन से देख रहे हैं। उसे यहां के रास्ते भी पता हैं।”
एसएसपी ने कहा- “तुरंत बॉडी कैमरा ऑन करके वीडियो बनाओ!” 7 अगस्त, 2025 की शाम, एक टिप ने पुलिस को चौंका दिया। शाही में छोटे से मंदिर के पास एक शख्स देखा गया। इसका चेहरा स्केच से मिलता-जुलता था। हाव-भाव से कुछ सिरफिरा सा लग रहा था। 4 सिपाही- सरफराज, उत्तम कुमार, शेखर वर्मा और अमित चौधरी। सादी वर्दी में उसकी तलाश में निकले। उसके दिखते ही वे पास पहुंचे और मेल-जोल बढ़ाने के लिए बातचीत शुरू की। सबसे पहले सरफराज ने बात शुरू की। सरफराज: “भैया, चाय पियोगे…?”
अजनबी: “पिऊंगा। चीनी कम।”
उत्तम: “नाम क्या है आपका…?”
अजनबी: “कुलदीप…”
शेखर: “पूरा नाम…”
अजनबी: “कुलदीप गंगवार…”
अमित: “कहां रहते हो?”
कुलदीप: “पास में ही… कभी रिश्तेदारी में ठहर जाता हूं।” सरफराज: “काम-धंधा…”
कुलदीप: “अभी कुछ खास नहीं। गांव में ही था, घूम रहा था।”
उत्तम: “घबराए हुए लग रहे हो। डरने की जरूरत नहीं है हमसे।”
कुलदीप: “घबराया नहीं हूं, भैया।” अमित: “कुलदीप, शादी हो गई तुम्हारी?”
कुलदीप: “हां हुई थी, पर बीवी सही नहीं थी। छोड़कर चली गई। दूसरी शादी करनी है। कोई लड़की हो तो बताओ।” शेखर ने मोबाइल में एक महिला सिपाही की सादे कपड़ों में फोटो दिखाई। कुलदीप: “कौन है?”
शेखर: “हमारी पहचान की है। पसंद हो तो बात करें।”
कुलदीप (हंसकर): “हां भैया, करवा दो।” शेखर: “अरे ये तो कुछ नहीं है अगर तुम चाहों तो हम दो-तीन लड़कियों से तुम्हें फेस टू फेस मिला देंगे, लेकिन साथ चलना पड़ेगा।”
कुलदीप: “कहां”
शेखर: “अरे बस यहीं थाने पर वो हमारे जानने वाली हैं, वहीं काम करती हैं। तुम देख लेना जो पसंद आए बता देना।” चारों पुलिस वाले कुलदीप को शादी का लालच देकर शाही थाने ले आए और बातों ही बातों में उससे पूछता करने लगे। इस बार सिपाही उत्तम ने सबसे कुलदीप से कहा। “देखो, भैया कुलदीप… सच बताओगे तो ही बात आगे बढ़ेगी।”
कुलदीप: “ठीक है, भैया पूछो।” अमित चौधरी: “तुममें दम-वम है कि ना? तुम्हें देखकर नहीं लगता कि मच्छर भी मार सकते हो। कभी किसी को मारा है?”
कुलदीप: “हां… कई को! जो औरत मुझसे सही से बात नहीं करती, उसे मार डालता हूं।” सब हंसने लगे, जिससे उसे भरोसा हो जाए कि ये लोग उसे सीरियस नहीं ले रहे। शेखर: “अरे ऐसा क्यों करते हो कुलदीप भाई?”
कुलदीप: “भाई मैं तो प्यार से बात करता हूं। ये भी पूछता हूं कि मेरे साथ करेगी? कोई ऐसा पूछता है क्या? मैं भला आदमी हूं, पूछता हूं। अगर वो गाली या धक्का दे दे, तो मेरा खून खौल जाता है… गुस्सा आता है। मैं बर्दाश्त नहीं कर पाता और उसका गला दबा देता हूं।”
सरफराज: “अच्छा ये सब करते कहां हो, अपने घर में?” सरफराज ने ये घर वाला दांव इसलिए चला ताकि कन्फर्म हो जाए कि वो जिसे खोज रहे हैं ये वही है, कोई और नहीं। कुलदीप: “नहीं, खेतों में… जब वो रास्ते में अकेली मिलती हैं। बात करता हूं, मुस्कुराता हूं। जब उसकी ‘न’ सुनता हूं तो… गला…”
अमित: “तो गला कैसे दबाते हो?” कुलदीप: “उसने जो भी पहना हो… साड़ी हो तो पल्लू, सलवार सूट हो तो दुपट्टे से।”
उत्तम: “तो तुम ये लूटपाट के लिए करते हो?” कुलदीप: “अरे नहीं भाई! पैसे से क्या होगा। मुझे तो गुस्सा ठंडा करना होता है।”
शेखर: “अकेले कर लेते हो तुम या तुम्हारी टीम में कोई और भी है?”
कुलदीप: “नहीं, अकेला ही काफी हूं ऐसी @#$% के लिए।” सरफराज: “मैं नहीं मानता कि तुमने किसी को मारा है। अगर मारा है तो नाम बताओ?”
कुलदीप: “मुझे नाम याद नहीं रहते…उनके गांव के नाम याद हैं बस।” अमित: “अनीता याद है… वो फतेहगंज वाली?” कुलदीप: “जिसकी लाश कोबुझिया जागीर के पास गन्ने के खेत में मिली थी वही ना?” उत्तम: “हां, लेकिन तुम सच बोल रहे हो ना…?”
कुलदीप: “पक्का, भैया।”
शेखर: “तारीखें याद हैं?”
कुलदीप: “तारीख नहीं, जगह याद है। किस मेड़ के पास, किस गांव के बगल में।” सरफराज: “अच्छा कुलदीप, खाना खाओगे?”
कुलदीप: “हां, पूड़ी-सब्जी…”
अमित: “अभी मंगवाते हैं।” कुलदीप: “ठीक है, भैया पर शादी का क्या?”
शेखर (मुस्कुराकर): “बाहर जितने लोग (मीडियावाले) खड़े हैं न, सब तुम्हारे बाराती हैं।” कुलदीप (भोलेपन से हंसकर): “सच में, भैया?”
उत्तम: “हां… आज तुम्हारी शादी है, हथकड़ी से!” सरफराज: “लेकिन एक शर्त है… जहां-जहां किया है, सब जगह दिखाओगे।”
कुलदीप: “दिखा दूंगा…। गांव के नाम से याद है सब।” अब पूछताछ की बारी एसएसपी अनुराग आर्य की थी। उन्होंने कुलदीप से पूछा- “तुमने वो काम क्यों किया?” कुलदीप ने एसएसपी की तरफ देखा और मुस्कुराया। उसकी मुस्कुराहट में कोई पश्चाताप नहीं था, बस एक सुकून था।
कुलदीप ने पूछा- “कौन सा काम, साब?” एसएसपी ने उसे मरने वाली महिलाओं के फोटो दिखाए। फोटो देखते ही कुलदीप की आंखें बड़ी हो गईं। उसने कहा- “साब ये सब एक जैसी थीं।”
एसएसपी ने पूछा- “एक जैसी मतलब?” कुलदीप: “मेरी मां जैसी…”
एसएसपी ने कहा- “पहेलियां मत बुझा। सीधे बता।”
अब कुलदीप मासूम बच्चे की तरह बिलख पड़ा बोला- “मेरी सौतेली मां, साब। उसने मुझे बहुत दुख दिए। मेरे पापा ने 2 शादियां की थीं। सौतेली मां मेरे पापा के कान भरती थी और पापा रोज मेरी सगी मां को पीटते थे। कुछ साल बाद मेरी मां मर गई। उसी कुतिया की वजह से मेरी मां मर गई साब। उसके बाद भी उस !@#$% का मन नहीं भरा। वो मुझे रोज पिटवाती। घर के काम कराती।” एसएसपी और पूछताछ करने वाली टीम समझ गई थी कि सख्ती की गई तो ये कुछ नहीं बताएगा। इससे इमोशनली बात की जाए तो सब उगल देगा। पूछताछ वाली टीम ने कुलदीप से कहा तो तुम्हारी शादी हो गई थी न। कुलदीप बोला- “अरे, शादी क्या हुई वो भी !@#$% थी। मुझे छोड़कर चली गई। बहुत मनाया, लेकिन लौटकर नहीं आई।” ये दो घटनाएं थीं, जिसकी वजह से कुलदीप औरतों से नफरत करने लगा था। खासतौर से 40-50 साल की औरतों में उसे अपनी सौतेली मां नजर आती थी। एसएसपी ने पूछा- “तो तुम महिलाओं को मारकर अपनी नफरत मिटाते थे?”
कुलदीप ने गर्व से कहा- “हां साब। वो सब सजा की हकदार थीं और मैं उन्हें सजा देता था।” एसएसपी ने पूछा- “तुमने बीच में कत्ल करना बंद क्यों कर दिए थे? और हां, तुम इतनी जल्दी गायब कैसे हो जाते थे?” कुलदीप बोला- “साब, खेतों से फसलें कटने के बाद काम बंद कर देता था। कुछ करता तो पकड़ा जाता। फसल खड़ी होने पर ही अपना काम करता हूं। यहां शाही गांव में मेरी बहन रहती है, रिश्तेदारियां हैं। बरसों से आ-जा रहा हूं। गली–गली देखी है। मेन रोड से जाता तो पकड़ा जाता। मेड़ और गलियों के रास्ते कोई पकड़ नहीं पाता।” एसएसपी ने कहा- “अच्छा तो इसलिए नहीं पकड़े गए अभी तक।”
गर्वित मुस्कान के साथ कुलदीप बोला- “हां साब।” एसएसपी ने ब्रेक लिया और एक महिला अफसर ने सवाल दागा। “तुम तो कह रहे थे कि तुम लूटपाट नहीं करते, लेकिन कई औरतों के जेवर गायब थे।”
कुलदीप बोला- “जेवर तो निशानी के तौर पर रख लेता था। मैंने किसी के सारे गहने नहीं लिए… वो कोई और होगा। मैं ऐसा नहीं करता। मैं तो बस यादगार के लिए किसी की बिंदी, किसी की चूड़ी ले जाता था। मैं लुटेरा नहीं हूं।” महिला अफसर: “मतलब तूने सब की सब 10 औरतों को मारा है?”
महिला अफसर से आंख मिलाते हुए कुलदीप बोला- “नहीं मैडम मैंने सिर्फ 6 #@$% को सजा दी है।”
एसएसपी ने एक डमी मंगवाई और बोले- “चल बता, तू दुपट्टे से कैसे मारता था?” कुलदीप ने डमी के गले में दुपट्टा लपेटा और लेफ्ट साइड गांठ लगाकर पूरी ताकत से कस दिया। वही पैटर्न, जो उसने सारी विक्टिम्स के साथ दोहराया था। इसके बाद पुलिस ने स्पॉट पर जाकर सभी घटनाओं का रीक्रिएशन कराया। उसने बेझिझक सब बताया। कुलदीप की गिरफ्तारी के बाद से बरेली में लेफ्ट गांठ लगाकर हत्या करने वाले का आतंक थम गया है। अभी वो बरेली जेल में बंद है और केस चल रहा है। **** (यह रियल स्टोरी पुलिस चार्जशीट, केस से जुड़े पुलिस ऑफिसर, वकील और स्थानीय लोगों से बातचीत पर आधारित है। कहानी को रोचक बनाने के लिए क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए लिखा गया है।)