बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने पिछले एक महीने के अंदर ताबड़तोड़ 5 बड़े आयोजन कर डाले। उन्होंने इन आयोजनों से 5 बड़े सियासी संदेश देने की कोशिश की है। तीन आयोजनों में उनके साथ भतीजे आकाश भी शामिल रहे। बीमारी और बिहार चुनाव की वजह से आकाश सिर्फ दो में शामिल नहीं हुए। बैठकों में आकाश की मौजूदगी दिखाकर बसपा प्रमुख ने साफ संकेत दे चुकी हैं कि पार्टी में अब उनके बाद आकाश ही प्रमुख चेहरा होंगे। 9 अक्टूबर को कांशीराम की पुण्यतिथि पर लाखों की भीड़ जुटाकर सियासी दलों को भी संदेश दे दिया है कि बेस कैडर अब भी बसपा के साथ है। तीन दिन के अंदर मुस्लिम और पिछड़े समाज की भाईचारा कमेटियों की प्रदेश स्तरीय बैठक लेकर मायावती ने पार्टी का कोर एजेंडा भी साफ कर दिया है। 2027 विधानसभा चुनाव को लेकर बसपा की तैयारी क्या है? पार्टी से दूर जा चुके मुस्लिम और पिछड़ों को कैसे साधेंगी? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… मायावती ने ये 5 बड़े संदेश दिए मायावती पुरानी फॉर्म में लौटीं
15 जनवरी, 2026 को मायावती अपना 70वां जन्मदिन मनाएंगी। ठीक इसके एक साल बाद जब 71वां जन्मदिन मनाएंगी, तो यूपी में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी होगी। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में हार के बाद मायावती सक्रिय राजनीति से एक तरह से दूरी बनाती चली गईं। उन पर आरोप लगने लगा कि वह भाजपा की B-टीम बन चुकी हैं। 2018 में उनके राजनीतिक गढ़ पश्चिमी यूपी में चंद्रशेखर के तेजी से उभार का कारण भी यही निष्क्रियता बनी। 2024 में जब उन्होंने पीएम मोदी पर टिप्पणी करने के बाद भतीजे आकाश को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया, तो खुलकर आरोप लगा कि भाजपा से अंदरखाने मिल चुकी हैं। 2025 के शुरुआती महीनों में उन्होंने जिस तरीके से निर्णय लिए, उससे भी यही संदेश गया। लेकिन, 15 अप्रैल के बाद मायावती ने अपने ऊपर लग रहे एक-एक कर सारे आरोप धो डाले। पहले भतीजे आकाश को पार्टी में वापस लाईं। फिर संगठन के ढीले पेंच कसने शुरू किए। अगस्त के आखिरी दिनों में अलग-अलग राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा की। यूपी में ओबीसी से आने वाले विश्वनाथ पाल को लगातार दूसरी बार मौका दिया। वहीं, भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक बनाया। 9 अक्टूबर को मायावती ने कांशीराम की पुण्यतिथि पर यूपी की राजधानी लखनऊ में 5 लाख की भीड़ जुटाकर अपने विरोधियों को भी हतप्रभ कर दिया। इस भीड़ से जहां मायावती का आत्मविश्वास लौटा, वहीं महीने भर के अंदर 5 बड़ी बैठकें कर उन्होंने अपनी निष्क्रियता धोने का प्रयास किया। भतीजे आकाश को आगे कर दलित युवकों को साधा
चंद्रशेखर की सक्रियता के चलते बसपा से बड़ी संख्या में दलित युवा छिटक कर आजाद समाज पार्टी की ओर चला गया। 2024 के लोकसभा में बसपा ने सबसे निराशाजनक प्रदर्शन किया। तब उसका न केवल वोटबैंक 9% से नीचे आया, बल्कि पार्टी का खाता भी नहीं खुला। परिणाम के बाद मायावती ने अपने भतीजे आकाश को फिर से पार्टी में लाईं। उन्हें नेशनल कोआर्डिनेटर भी बनाया। लेकिन, फरवरी में पहले उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया। फिर मार्च के शुरुआती दिनों में आकाश को भी पार्टी से निकाल दिया। मायावती के इस एक्शन पर उनकी पार्टी के अंदर भी सवाल उठे। हालांकि वहां अनुशासन के डर से कोई खुलकर बोल नहीं पाया। लेकिन, दूसरे दलों के लोगों ने आकाश के बहाने मायावती पर खूब सियासी तीर छोड़े। जल्द ही मायावती को इसका एहसास भी हुआ। 14 अप्रैल अंबेडकर जयंती से पहले उन्होंने भतीजे आकाश को वापस ले लिया। फिर 27 अगस्त को उन्हें राष्ट्रीय संयोजक का पद सौंप दिया। बसपा में इस तरह का पद पहली बार सृजित किया गया। 9 और 19 अक्टूबर के आयोजनों में मायावती ने साफतौर पर आकाश को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर पेश किया। उन्होंने सार्वजनिक बयान में कहा कि जिस तरीके से पार्टी में मुझे कांशीराम ने आगे बढ़ाया था। आप लोगों ने जैसे मेरा साथ दिया, उसी तरह आकाश को मैंने आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है। अब आप लोग उनका साथ देना। आकाश को आगे बढ़ाकर मायावती ने दो लक्ष्य साधे। पहला पार्टी में मायावती के बाद कौन, पर चल रही चर्चाओं पर विराम लगा दिया। वहीं ये भी स्पष्ट कर दिया कि उनके बाद आकाश ही पार्टी का चेहरा होंगे और ड्राइविंग सीट पर वही बैठेंगे। दूसरा 30 साल के आकाश आनंद के चेहरे के भरोसे दलित युवाओं को पार्टी में साधना। 20% दलितों का भरोसा अब भी बसपा के साथ
बसपा का राजनीतिक ग्राफ उसके कोर वोटरों के बिखराव के साथ गिरना शुरू हुआ। 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे करीब 22.23 फीसदी वोट मिले थे। तब माना गया था कि बसपा का कोर दलित वोटर अब भी उसके साथ मजबूती से खड़ा है। लेकिन, इसके दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में उसका वोटबैंक 3 फीसदी नीचे 19.43% पर आ गया। तब भी यही संदेश गया कि दलितों का भरोसा अब भी बसपा के साथ ही है। लेकिन, 2022 के विधानसभा चुनाव में उसके कोर वोटर में ही बिखराव शुरू हो गया। उसका वोटबैंक सिमट कर 12.88% पर रह गया। पहली बार ये संदेश गया कि दलित वोटर भी अब बसपा से दूर जा रहे हैं। 2024 के लोकसभा में भी यही हुआ। लेकिन, 9 अक्टूबर, 2025 को लखनऊ में कांशीराम पुण्यतिथि के बहाने 9 साल बाद मायावती ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। इस आयोजन में उमड़ी 5 लाख की भीड़ ने ये बता दिया कि दलित अब भी बसपा के साथ हैं। पिछले चुनावों में अलग-अलग कारणों और बसपा के कमजोर प्रदर्शन की वजह से वे दूर गए थे। बसपा के कोर एजेंडे में मुस्लिम और ओबीसी
2007 में बसपा की सफलता में मुस्लिम और ओबीसी की बड़ी भूमिका थी। तब 25 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटरों का झुकाव बसपा की ओर था। वहीं, ओबीसी में यादव को छोड़कर अन्य पिछड़े खासकर अति पिछड़ों ने गोल-बंद होकर बसपा का साथ दिया था। 1 नवंबर को मायावती ने ओबीसी भाईचारा कमेटी की बैठक ली। आमतौर पर ये बैठक बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल, रामअवतार मित्तल और मेवालाल गौतम लेते थे। लेकिन, इस बार मायावती ने खुद इसकी बैठक लेकर ये संदेश देने की कोशिश की है कि बसपा के लिए पिछड़ा समाज काफी अहम है। मायावती ने इस बैठक में दो बड़ी बातें कहीं- पहली: 1989 के लोकसभा में बसपा के 3 सांसदों में वह भी एक थीं। तब पीएम बने विश्वनाथ प्रताप सिंह को इसी शर्त पर बसपा ने समर्थन दिया था कि वह डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारत रत्न दें। साथ ही मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करते हुए ओबीसी को 27% आरक्षण दें। मायावती ने कहा कि बसपा के दबाव में ही वीपी सिंह को मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करनी पड़ी थी। दूसरी: बसपा की यूपी में 4 बार सरकार रही। चारों बार ओबीसी को मंत्रिमंडल में सबसे अधिक जगह दी गई। साथ ही पिछड़ों में ऐसे अति पिछड़े नेताओं को मौका दिया गया, जिसे राजनीतिक रूप से कभी मौका नहीं मिला था। इसके दो दिन पहले ही मायावती ने पहली बार मुस्लिम भाईचारा कमेटी की बैठक ली थी। इसमें आकाश भी पहुंचे थे। मायावती ने तब मुस्लिमों को साधने का सीधा-सा गणित बताया कि बसपा की चार बार की यूपी सरकार में सबसे अधिक मुस्लिमों के हित में निर्णय लिए गए। मायावती ने सभी पदाधिकारियों को 100 बड़े कार्यों की सूची भी दी, जिसे उन्हें मुस्लिम बहुल बस्तियों में दिखाना है। मायावती ने सपा के MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण की काट में DM (दलित-मुस्लिम) का फॉर्मूला रखा। बताया कि मुस्लिम और यादव मिलकर 27 फीसदी ही होते हैं। जबकि 20% दलित और 19% मुस्लिम मिलकर 39 फीसदी हो जाएंगे। 2007 की तर्ज पर 2027 का चुनाव लड़ेगी बसपा
बसपा की 2027 में 2007 की तर्ज पर सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर चुनाव लड़ने की तैयारी है। बस एक छोटा-सा फर्क रहेगा। तब बसपा ने पहली बार ब्राह्मण भाईचारा कमेटी का भी गठन किया था। लेकिन, इस बार बसपा सिर्फ दलित, मुस्लिम और ओबीसी खासकर अति पिछड़ों को साधने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। इसके लिए पूरे प्रदेश में मंडल से लेकर जिला स्तर पर और विधानसभा लेकर बूथ स्तर तक 90 फीसदी तक कमेटियों का गठन किया जा चुका है। बसपा बिहार चुनाव के बाद पूरा फोकस यूपी पर करने जा रही है। इसके बाद अलग-अलग समाज के सम्मेलन होंगे। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद भी पूरे प्रदेश में दौरा करेंगे। उनकी रैली और सभाएं होंगी। साथ ही खुद मायावती भी मंडलों में पार्टी कैडर की बैठकें लेंगी। मायावती का मानना है कि एक बार उसका संगठन बूथ स्तर तक फिर से सक्रिय हो गया, तो 2027 में वह भी सत्ता का एक विकल्प होगी। ———————– ये खबर भी पढ़ें- मायावती बोलीं- अच्छे दिन हम लाएंगे, मुस्लिमों के बाद OBC नेताओं संग बड़ी बैठक बसपा सुप्रीमो मायावती एक्शन मोड में हैं। उन्होंने शनिवार को ओबीसी नेताओं के साथ बड़ी बैठक की। इसमें उन्होंने ओबीसी समाज को पार्टी से जोड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने को कहा। साथ ही सपा-भाजपा की विचारधारा को जातिवादी करार दिया। पढ़िए पूरी खबर…
15 जनवरी, 2026 को मायावती अपना 70वां जन्मदिन मनाएंगी। ठीक इसके एक साल बाद जब 71वां जन्मदिन मनाएंगी, तो यूपी में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी होगी। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में हार के बाद मायावती सक्रिय राजनीति से एक तरह से दूरी बनाती चली गईं। उन पर आरोप लगने लगा कि वह भाजपा की B-टीम बन चुकी हैं। 2018 में उनके राजनीतिक गढ़ पश्चिमी यूपी में चंद्रशेखर के तेजी से उभार का कारण भी यही निष्क्रियता बनी। 2024 में जब उन्होंने पीएम मोदी पर टिप्पणी करने के बाद भतीजे आकाश को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया, तो खुलकर आरोप लगा कि भाजपा से अंदरखाने मिल चुकी हैं। 2025 के शुरुआती महीनों में उन्होंने जिस तरीके से निर्णय लिए, उससे भी यही संदेश गया। लेकिन, 15 अप्रैल के बाद मायावती ने अपने ऊपर लग रहे एक-एक कर सारे आरोप धो डाले। पहले भतीजे आकाश को पार्टी में वापस लाईं। फिर संगठन के ढीले पेंच कसने शुरू किए। अगस्त के आखिरी दिनों में अलग-अलग राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा की। यूपी में ओबीसी से आने वाले विश्वनाथ पाल को लगातार दूसरी बार मौका दिया। वहीं, भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक बनाया। 9 अक्टूबर को मायावती ने कांशीराम की पुण्यतिथि पर यूपी की राजधानी लखनऊ में 5 लाख की भीड़ जुटाकर अपने विरोधियों को भी हतप्रभ कर दिया। इस भीड़ से जहां मायावती का आत्मविश्वास लौटा, वहीं महीने भर के अंदर 5 बड़ी बैठकें कर उन्होंने अपनी निष्क्रियता धोने का प्रयास किया। भतीजे आकाश को आगे कर दलित युवकों को साधा
चंद्रशेखर की सक्रियता के चलते बसपा से बड़ी संख्या में दलित युवा छिटक कर आजाद समाज पार्टी की ओर चला गया। 2024 के लोकसभा में बसपा ने सबसे निराशाजनक प्रदर्शन किया। तब उसका न केवल वोटबैंक 9% से नीचे आया, बल्कि पार्टी का खाता भी नहीं खुला। परिणाम के बाद मायावती ने अपने भतीजे आकाश को फिर से पार्टी में लाईं। उन्हें नेशनल कोआर्डिनेटर भी बनाया। लेकिन, फरवरी में पहले उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया। फिर मार्च के शुरुआती दिनों में आकाश को भी पार्टी से निकाल दिया। मायावती के इस एक्शन पर उनकी पार्टी के अंदर भी सवाल उठे। हालांकि वहां अनुशासन के डर से कोई खुलकर बोल नहीं पाया। लेकिन, दूसरे दलों के लोगों ने आकाश के बहाने मायावती पर खूब सियासी तीर छोड़े। जल्द ही मायावती को इसका एहसास भी हुआ। 14 अप्रैल अंबेडकर जयंती से पहले उन्होंने भतीजे आकाश को वापस ले लिया। फिर 27 अगस्त को उन्हें राष्ट्रीय संयोजक का पद सौंप दिया। बसपा में इस तरह का पद पहली बार सृजित किया गया। 9 और 19 अक्टूबर के आयोजनों में मायावती ने साफतौर पर आकाश को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर पेश किया। उन्होंने सार्वजनिक बयान में कहा कि जिस तरीके से पार्टी में मुझे कांशीराम ने आगे बढ़ाया था। आप लोगों ने जैसे मेरा साथ दिया, उसी तरह आकाश को मैंने आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है। अब आप लोग उनका साथ देना। आकाश को आगे बढ़ाकर मायावती ने दो लक्ष्य साधे। पहला पार्टी में मायावती के बाद कौन, पर चल रही चर्चाओं पर विराम लगा दिया। वहीं ये भी स्पष्ट कर दिया कि उनके बाद आकाश ही पार्टी का चेहरा होंगे और ड्राइविंग सीट पर वही बैठेंगे। दूसरा 30 साल के आकाश आनंद के चेहरे के भरोसे दलित युवाओं को पार्टी में साधना। 20% दलितों का भरोसा अब भी बसपा के साथ
बसपा का राजनीतिक ग्राफ उसके कोर वोटरों के बिखराव के साथ गिरना शुरू हुआ। 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे करीब 22.23 फीसदी वोट मिले थे। तब माना गया था कि बसपा का कोर दलित वोटर अब भी उसके साथ मजबूती से खड़ा है। लेकिन, इसके दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में उसका वोटबैंक 3 फीसदी नीचे 19.43% पर आ गया। तब भी यही संदेश गया कि दलितों का भरोसा अब भी बसपा के साथ ही है। लेकिन, 2022 के विधानसभा चुनाव में उसके कोर वोटर में ही बिखराव शुरू हो गया। उसका वोटबैंक सिमट कर 12.88% पर रह गया। पहली बार ये संदेश गया कि दलित वोटर भी अब बसपा से दूर जा रहे हैं। 2024 के लोकसभा में भी यही हुआ। लेकिन, 9 अक्टूबर, 2025 को लखनऊ में कांशीराम पुण्यतिथि के बहाने 9 साल बाद मायावती ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। इस आयोजन में उमड़ी 5 लाख की भीड़ ने ये बता दिया कि दलित अब भी बसपा के साथ हैं। पिछले चुनावों में अलग-अलग कारणों और बसपा के कमजोर प्रदर्शन की वजह से वे दूर गए थे। बसपा के कोर एजेंडे में मुस्लिम और ओबीसी
2007 में बसपा की सफलता में मुस्लिम और ओबीसी की बड़ी भूमिका थी। तब 25 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटरों का झुकाव बसपा की ओर था। वहीं, ओबीसी में यादव को छोड़कर अन्य पिछड़े खासकर अति पिछड़ों ने गोल-बंद होकर बसपा का साथ दिया था। 1 नवंबर को मायावती ने ओबीसी भाईचारा कमेटी की बैठक ली। आमतौर पर ये बैठक बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल, रामअवतार मित्तल और मेवालाल गौतम लेते थे। लेकिन, इस बार मायावती ने खुद इसकी बैठक लेकर ये संदेश देने की कोशिश की है कि बसपा के लिए पिछड़ा समाज काफी अहम है। मायावती ने इस बैठक में दो बड़ी बातें कहीं- पहली: 1989 के लोकसभा में बसपा के 3 सांसदों में वह भी एक थीं। तब पीएम बने विश्वनाथ प्रताप सिंह को इसी शर्त पर बसपा ने समर्थन दिया था कि वह डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारत रत्न दें। साथ ही मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करते हुए ओबीसी को 27% आरक्षण दें। मायावती ने कहा कि बसपा के दबाव में ही वीपी सिंह को मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करनी पड़ी थी। दूसरी: बसपा की यूपी में 4 बार सरकार रही। चारों बार ओबीसी को मंत्रिमंडल में सबसे अधिक जगह दी गई। साथ ही पिछड़ों में ऐसे अति पिछड़े नेताओं को मौका दिया गया, जिसे राजनीतिक रूप से कभी मौका नहीं मिला था। इसके दो दिन पहले ही मायावती ने पहली बार मुस्लिम भाईचारा कमेटी की बैठक ली थी। इसमें आकाश भी पहुंचे थे। मायावती ने तब मुस्लिमों को साधने का सीधा-सा गणित बताया कि बसपा की चार बार की यूपी सरकार में सबसे अधिक मुस्लिमों के हित में निर्णय लिए गए। मायावती ने सभी पदाधिकारियों को 100 बड़े कार्यों की सूची भी दी, जिसे उन्हें मुस्लिम बहुल बस्तियों में दिखाना है। मायावती ने सपा के MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण की काट में DM (दलित-मुस्लिम) का फॉर्मूला रखा। बताया कि मुस्लिम और यादव मिलकर 27 फीसदी ही होते हैं। जबकि 20% दलित और 19% मुस्लिम मिलकर 39 फीसदी हो जाएंगे। 2007 की तर्ज पर 2027 का चुनाव लड़ेगी बसपा
बसपा की 2027 में 2007 की तर्ज पर सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर चुनाव लड़ने की तैयारी है। बस एक छोटा-सा फर्क रहेगा। तब बसपा ने पहली बार ब्राह्मण भाईचारा कमेटी का भी गठन किया था। लेकिन, इस बार बसपा सिर्फ दलित, मुस्लिम और ओबीसी खासकर अति पिछड़ों को साधने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। इसके लिए पूरे प्रदेश में मंडल से लेकर जिला स्तर पर और विधानसभा लेकर बूथ स्तर तक 90 फीसदी तक कमेटियों का गठन किया जा चुका है। बसपा बिहार चुनाव के बाद पूरा फोकस यूपी पर करने जा रही है। इसके बाद अलग-अलग समाज के सम्मेलन होंगे। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद भी पूरे प्रदेश में दौरा करेंगे। उनकी रैली और सभाएं होंगी। साथ ही खुद मायावती भी मंडलों में पार्टी कैडर की बैठकें लेंगी। मायावती का मानना है कि एक बार उसका संगठन बूथ स्तर तक फिर से सक्रिय हो गया, तो 2027 में वह भी सत्ता का एक विकल्प होगी। ———————– ये खबर भी पढ़ें- मायावती बोलीं- अच्छे दिन हम लाएंगे, मुस्लिमों के बाद OBC नेताओं संग बड़ी बैठक बसपा सुप्रीमो मायावती एक्शन मोड में हैं। उन्होंने शनिवार को ओबीसी नेताओं के साथ बड़ी बैठक की। इसमें उन्होंने ओबीसी समाज को पार्टी से जोड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने को कहा। साथ ही सपा-भाजपा की विचारधारा को जातिवादी करार दिया। पढ़िए पूरी खबर…