देश के अलग-अलग हिस्सों में होली दो तारीखों में 14 और 15 मार्च को मनाई गई। उत्तर भारत में ही एक हिस्से में होली 14 मार्च को मनाई गई, तो दूसरे हिस्से में 15 मार्च को। हालांकि, होली की सरकारी छुट्टी 14 मार्च को थी। ऐसे में, त्योहार मनाने की तारीख और छुट्टी मैच नहीं हो पाई। कुछ ऐसा ही संयोग पिछले साल दिवाली पर भी हुआ था। ऐसे में, अब सरकार तिथियों की इस दिक्कत का समाधान निकालने जा रही है। वह समाधान है- एक देश, एक तिथि, एक पंचांग। क्या है एक देश, एक तिथि, एक पंचांग? क्यों इसकी मांग उठी? इसका फायदा क्या होगा? क्यों तिथियां अलग-अलग होती हैं? इन सभी सवालों के जवाब भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- सवाल 1- क्या है एक देश, एक तिथि, एक पंचांग? जवाब- एक देश, एक तिथि, एक पंचांग ज्योतिषाचार्यों की तरफ से की गई एक पहल है। इसमें पूरे देश में कोई त्योहार किस दिन मनाया जाएगा, इसे लेकर एक पंचांग निर्धारित किया जाएगा। इसकी तारीख के मुताबिक ही सरकारी छुट्टियां या आयोजन होंगे। इससे भारत भर में जितने त्योहार पड़ते हैं, उनकी तारीख एक होगी। इसके लिए देश भर में छपने वाले हिंदू कैलेंडरों में संशोधन का सुझाव सरकार को दिया गया है। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के ज्योतिष विभाग के मुताबिक, विभाग ज्योतिषाचार्यों के साथ मिलकर एक सॉफ्टवेयर तैयार कर रहा है, जिससे उसमें एकरूपता हो। सवाल 2- एक देश, एक तिथि, एक पंचांग की मांग कब और कहां से उठी? जवाब- बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) के ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर शत्रुघ्न त्रिपाठी बताते हैं- पर्व में तिथियों का मतभेद साल 1965 से चला आ रहा है। इसे लेकर ही पिछले साल BHU में फरवरी महीने में हुई ‘काशीस्थ पंचंगों में व्रत-पर्व आदि की एकरूपता’ नाम से एक रिव्यू सेमिनार और वर्कशॉप हुई। इसमें कुल 200 ज्योतिषाचार्य, विद्वान, पंचांगकार, रिसर्चर और प्रतिभागी आए थे। इन्होंने काशी से छपने वाले पंचांगों के त्योहारों की तारीख को लेकर सहमति जताई थी। फिर इस साल मार्च और अप्रैल महीने में इसे लेकर BHU के ज्योतिष विभाग में बैठकें हुईं। इसमें काशी से प्रकाशित होने वाले पंचांगों के व्रत पर्वों के एक तारीख पर होने को लेकर चर्चा की गई। कहा गया कि एक तिथि एक त्योहार का नियम अब पूरे प्रदेश में लागू होगा। मार्च के आखिरी हफ्ते में BHU में एक अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन हुआ। इसमें प्रदेश के पंचांगकारों और ज्योतिषाचार्यों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन में फैसला लिया गया कि अब देश में सूर्य सिद्धांत से पंचांग तैयार किया जाएगा। बता दें कि काशी से छपने वाले पंचांगों के आधार पर पूरे यूपी, बिहार, एमपी, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों में त्योहार मनाए जाते हैं। सवाल 3- अलग-अलग पंचांगों में त्योहारों की तिथियां अलग क्यों रहती थीं? जवाब- काशी से छपने वाले अलग-अलग पंचांगों में होली, दिवाली, जन्माष्टमी जैसे त्योहारों की तिथियां गणना पद्धति में कुछ फर्क होने की वजह से इन त्योहारों की तिथियां एक नहीं रह पाती हैं। विभाग ने कुछ प्रमुख पंचागों श्री ऋषिकेश पंचांग, हृषिकेश पंचांग, विश्व पंचांग, महावीर पंचांग, आदित्य पंचांग, गुरु गोविंद पंचांग, गणेशापा पंचांग, अन्नपूर्णा पंचांग का अध्ययन कर नया पंचांग तैयार किया है। BHU के ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर वासुदेव शर्मा के मुताबिक, अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पंचांग बनाने की व्यवस्था है। तिथियों में परिवर्तन का कारण यही है कि सब जगह सूर्योदय और सूर्यास्त अलग-अलग है। उन्होंने कहा- जब प्रदेश की बात आती है, तो तिथियां को लेकर सरकार भी मौन हो जाती है। जैसे देश की संस्कृति अलग-अलग है, वैसे ही आजकल पंचांग भी अलग-अलग हो गए हैं। यही कारण है, त्योहारों के दिन भी अलग-अलग निर्धारित हो जा रहे हैं। इसे लेकर प्रोफेसर विनय पांडेय ने कहते हैं कि ज्योतिषीय समय की गणना देश के कुछ भागों के अक्षांश और रेखांश पर भी निर्भर करती है। जहां सूर्योदय और चंद्रोदय के समय में भौगोलिक दृष्टि से अंतर रहेगा ही। पूर्वोत्तर भारत में सूर्य सबसे पहले दिखेगा, पश्चिमी भारत में रात देर से होगी। इसी के आधार पर हर राज्य विशेषकर दक्षिणी भारत के पंचांगों में कुछ अंतर आ जाता है। यही मतभेद का कारण बन जाता है। इस सम्मेलन में सभी ज्योतिषाचार्य को एक किया जा रहा है। सवाल 4- एक देश, एक पंचांग बनने से क्या फायदा होगा? जवाब- BHU में जुटे विद्वानों ने पाया कि हर बार दिवाली, होली, मकर संक्रांति, कृष्ण जन्माष्टमी जैसे त्योहारों लेकर जनता के बीच भ्रम की स्थिति होती है। पंचांगों में डेट और टाइमिंग अलग बताने की वजह से यह समस्या बढ़ जाती है। सोशल मीडिया पर भी अलग-अलग डेट और टाइमिंग के दावे होते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि पंचांगों में समानता तय की जाए। कुछ विद्वानों ने तर्क दिया कि सभी पंचांगों में एक डेट-एक त्योहार रहेगा, तो यह कंफ्यूजन दूर होगा। लोग विधि-विधान से तय समय-काल में पूजा, व्रत और त्योहार मना सकेंगे। इसी से त्योहार भी फलित होंगे। व्रत-त्योहारों की सरकारी छुट्टियों को लेकर भी एकरूपता आएगी। सवाल 5- पंचांग क्या होता है और तिथि कैसे निर्धारित की जाती है? जवाब- हिंदू समाज पंचांग कैलेंडर को मानता है। इसके अलग-अलग रूप हैं, जो पूरे भारत में माने जाते हैं। पंचांग पंच और अंग दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका मतलब होता है पांच अंग। यह नाम इसके पांच भागों से मिलकर बने होने के कारण है। इसमें तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण शामिल है। हिंदू पंचांग में गणना तीन धाराओं के आधार पर की जाती है। इसमें पहली चंद्र, दूसरी नक्षत्र और तीसरी सूर्य आधारित है। इस पंचांग में भी ग्रेगैनियन कैलेंडर की तरह 12 महीने होते हैं। हर महीने में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं। एक शुक्ल और दूसरा कृष्ण पक्ष। महीने का हिसाब सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर यह तय किया जाता है। महीने को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में बांटा जाता है। एक दिन को तिथि कहा जाता है। दिन को चौबीस घंटों के साथ 8 प्रहर में भी बांटा गया है। एक प्रहर करीब 3 घंटे का होता है। एक घंटे में लगभग दो घड़ी होती हैं। एक पल लगभग आधा मिनट के बराबर होता है और एक पल में चौबीस क्षण होते हैं। सवाल 6- देश भर में मुख्य रूप से कितनी पंचांग पद्धतियां हैं? जवाब- उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित मनीष शर्मा के मुताबिक, उत्तर और दक्षिण भारत में अलग पंचांग हैं। इनमें 15 दिन का अंतर रहता है। मध्य भारत और उत्तर भारत में पूर्णिमा माह का आखिरी दिन होता है। इसके बाद अगले दिन से नया महीना शुरू होता है। इसे पूर्णिमांत कहा जाता है। जबकि, महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण में अमांत माह का प्रचलन है। पूर्णिमांत और अमांत पंचांग में 15 दिनों यानी एक पक्ष का अंतर है। उदाहरण के लिए उज्जैन में सावन महीने में महाकालेश्वर की सवारी भाद्रपद मास में भी निकाली जाती है। क्योंकि, यहां पुराने समय में मराठा राजाओं का शासन था। उनके पंचांग के आधार पर सवारी की तिथि भादौ महीने में पड़ती थी। अहमदाबाद के ज्योतिषाचार्य पं. सूरज हजारी प्रसाद मिश्रा के मुताबिक, गुजरात में अमावस्या पर महीना खत्म होता है। इसके बाद आने वाली प्रतिपदा तिथि से नया महीना शुरू होता है। इसे अमांत कहा जाता है। उत्तर भारत और गुजरात के पंचांगों में 15 तिथियों का अंतर रहता है। इसी कारण जहां उत्तर भारत का पंचांग चलता है, वहां भाद्रपद मास में जन्माष्टमी मनाई जाती है। जबकि हमारे क्षेत्र में सावन महीने में ही ये पर्व आता है। औरंगाबाद के ज्योतिषाचार्य पं. अनंत पांडव गुरुजी के मुताबिक, महाराष्ट्र में अमांत पंचांग प्रचलित है। यहां अमावस्या पर महीना खत्म होता है। इसी वजह से महाराष्ट्र में भी अमावस्या के बाद प्रतिपदा तिथि यानी 21 जुलाई से ही सावन महीना शुरू होगा। उत्तर भारत और मध्य भारत में चंद्र मास माना जाता है, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में सूर्य मास मान्य है। यहां सूर्यदेव को विशेष महत्व दिया जाता है। इसी वजह से इन क्षेत्रों में विवाह जैसे मांगलिक कर्म भी सूर्य की उपस्थिति में दिन में ही किए जाते हैं। जबकि, उत्तर भारत और मध्य भारत में चंद्र मास होने की वजह से विवाह आदि शुभ काम रात में होते हैं। ——————- ये खबर भी पढ़ें… जेंडर चेंज कराकर पहले पुरुष, फिर पिता बनी:क्या संभव है जैविक पिता बनना; फिर शाहजहांपुर के शरद की पत्नी कैसे मां बनीं? शाहजहांपुर के शरद सिंह की 2 साल पहले तक पहचान सरिता सिंह के रूप में थी। उन्होंने जेंडर चेंज कराया। सर्जरी के बाद महिला से पुरुष बन गए। अब उनकी पत्नी सविता ने बच्चे को जन्म दिया है। चर्चा हो रही है कि जेंडर चेंज के बाद क्या कोई जैविक पिता बन सकता है? सेक्स रि-असाइनमेंट सर्जरी क्या है? क्यों पुरुष जेंडर चेंज कराते हैं? क्या प्रोसेस है? खर्च कितना आता है? पढ़ें पूरी खबर