16 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी है। अगले 6 दिनों में करीब 60 लाख भक्त वृंदावन और मथुरा पहुंचेंगे। शहर के 750 से ज्यादा होटल-धर्मशाला एडवांस में बुक हैं। जन्माष्टमी से पहले वृंदावन में तैयार श्रीकृष्ण की पोशाकों की अचानक डिमांड हाई हो गई है। जन्माष्टमी पर 450 करोड़ रुपए की पोशाकों के कारोबार का अनुमान है। ये पोशाक दो तरह से बिक रही हैं- पहला- जो भक्त वृंदावन-मथुरा पहुंच रहे हैं, वो यहां की दुकानों पर मौजूद पोशाक को खरीद रहे हैं। दूसरा- पूरे भारत ही नहीं, कनाडा, रूस, स्पेन, इटली, फ्रांस, बेल्जियम, जापान और चीन से भी ऑनलाइन ऑर्डर आ रहे हैं। कोरियर से श्रीकृष्ण की पोशाक भेजी जा रही हैं। जन्माष्टमी पर भक्तों को वृंदावन-मथुरा में तैयार श्रीकृष्ण की पोशाक क्यों चाहिए? उनकी कीमत कितनी है? ये कितने दिन में तैयार होती हैं? ये जानने के लिए दैनिक भास्कर टीम वृंदावन के मार्केट में पहुंची। पढ़िए रिपोर्ट… 200 से ज्यादा कारखाने, जरी वाली पोशाक ज्यादा बिक रहीं
मथुरा-वृंदावन में 200 से ज्यादा कारखाने ऐसे हैं, जिनमें लड्डू गोपाल की पोशाक तैयार की जाती है। पोशाक भी एक से बढ़कर एक। इनकी कई वैराइटी हैं, जोकि मौसम के हिसाब से तय होती हैं। अलग-अलग पोशाक बनाने वाले कारखानों के मालिकों से बात करके समझ आया कि बुटीक वाली और जरी जरदोजी वाली पोशाक सबसे ज्यादा लोग खरीद रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि लोग अब अपने लड्डू गोपाल को सजा संवारा हुआ देखना चाहते हैं। कारीगर खालिद कहते हैं- 16 अगस्त को घर-घर में श्रीकृष्ण जन्म लेंगे। हर कोई यही चाहता है कि उनके कान्हा जी अच्छे दिखें। अब लोग फैशन के हिसाब से पोशाक तय करते हैं, जो भी यहां आते हैं, वो यही चाहते हैं कि उनके घर में बैठे ठाकुरजी अच्छे दिखे। खूब सुंदर दिखे, इसके लिए वो कितने भी पैसे खर्च करते हैं, अब ये उनका भाव ही होता है, जो वह इतनी दूर पोशाक लेने आते हैं। व्यापारी बोले- 3 महीने से बना रहे, 14 घंटे लेबर काम कर रहे
अलग-अलग कारखानों में पोशाक के बारे में बातचीत करते हुए हम जवाहर अग्रवाल के कारखाना में पहुंचे। हमने पूछा- इस बार विदेश में कहां-कहां से ऑर्डर आए हैं? जवाहर कहते हैं- कृष्ण जन्माष्टमी पर विदेशों से ऑर्डर बढ़ जाते हैं। हमारे पास सबसे ज्यादा ऑर्डर कनाडा, रूस और स्पेन से आ रहे हैं। भारत में मध्य प्रदेश और राजस्थान से सबसे ज्यादा ऑर्डर आते हैं। कुछ इस्कॉन मंदिरों से भी ऑर्डर मिले हैं। कृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त को है, उससे 3 महीने पहले से हमारे पास पूरे भारत से ऑर्डर आने लगे थे। नार्मल दिनों में 8 घंटे की शिफ्ट में पोशाक बनाई जाती हैं, मगर इस वक्त ऑर्डर पूरे करने के लिए 14-14 घंटे मेहनत की जा रही है। मथुरा-वृंदावन में इस वक्त करीब 20 हजार से ज्यादा कारीगर इस काम को कर रहे हैं। कारोबारी बोले- लेबर महंगी होने का असर पड़ा
जवाहर अग्रवाल कहते हैं- लोगों का जुड़ाव वृंदावन से है, मगर यहां लेबर महंगी हो रही है। इसलिए पोशाक की कीमत बढ़ती जा रही है। मार्केट में पोशाक की वैल्यू बढ़ाई नहीं गई है, इससे हमारा मुनाफा अब पहले जैसा नहीं रहा है। धीरे-धीरे पोशाक बनाने का कारोबार कोलकाता शिफ़्ट हो रहा है, क्योंकि वहां लेबर सस्ती है। मगर इतना है कि अगर वहां पर पोशाक बना भी लेंगे, तो भी सप्लाई यही से करनी होगी, क्योंकि लोग पोशाक खरीदने कोलकाता नहीं जाएंगे। वृंदावन में 5 से 50 हजार तक की पोशाक मिल रही
इस कारखाना से निकलकर हमारी टीम एक और कारखाना पहुंची। यहां अनुज शर्मा से मुलाकात हुई। हमने पूछा- सबसे सस्ती पोशाक कितने की मिलेंगी? महंगी में कितनी रेंज बिकती है? अनुज कहते हैं- ठाकुरजी की पोशाक की कीमत तो भक्त का भाव तय करता है। वृंदावन में 5 रुपए से लेकर 50 हजार रुपए तक पोशाक मौजूद हैं। हमने पूछा- पोशाक की कीमतें कैसे तय होती हैं? अनुज ने कहा- देखिए, जो पोशाक मशीनों से बनती हैं, वह सस्ती होती हैं, लेकिन जो पोशाक अच्छे कपड़े पर जरी के काम वाली होती हैं, वह महंगी होती हैं। इन्हें तैयार करने में समय भी लगता है। 50 हजार वाली पोशाक की खास बात यह है कि इसको बनाने में करीब 48 घंटे लगते हैं। 2 कारीगर मिलकर 1 पोशाक बना पाते हैं। पोशाक कारीगर बोले- इन दिनों घर-घर बन रही पोशाक
अनुज कहते हैं- वृंदावन में पोशाक बनाने का काम वैसे तो पूरे साल चलता है, मगर सबसे ज्यादा कृष्ण जन्माष्टमी पर डिमांड बढ़ जाती है। आम दिनों में जहां कारीगर प्रतिदिन 8 घंटे काम करते हैं, वहीं जन्माष्टमी के लिए करीब एक महीने तक 12 से 14 घंटे तक मेहनत करते हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव की प्रशासन से लेकर ब्रजवासी तक तैयारी कर रहे हैं, यहां अधिकांश घरों में पोशाक बनाने का काम चल रहा है। 3 तरह से बनाई जाती हैं पोशाक
कान्हा जन्म के बाद नई और आकर्षक पोशाक धारण करें, इसके लिए कारखानों में कारीगर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। यहां कारीगर मशीन, बुटीक और जड़ी की पोशाक बना रहे हैं। वृंदावन में सबसे ज्यादा लड्डू गोपाल की पोशाक बनाई जाती हैं। इसके अलावा राधा कृष्ण और अन्य देवताओं की पोशाक बनती हैं। वृंदावन में बनी पोशाक से लोगों के भाव जुड़े
अब सवाल उठता है कि वृंदावन में बनी श्रीकृष्ण की पोशाकें, विशेष रूप से ठाकुर जी के लिए भक्त क्यों पसंद करते हैं? इसका जवाब यहां के लोग ही देते हैं। वह मानते हैं- यहां तैयार पोशाक पवित्र और शुभ मानी जाती है। दरअसल, वृंदावन को भगवान कृष्ण की लीलाभूमि माना जाता है, और यहां बनी पोशाकें भगवान के साथ एक आध्यात्मिक संबंध स्थापित करने का एक तरीका मानी जाती हैं। एक वजह यह भी है कि भक्त वृंदावन के कारीगरों की भक्ति और समर्पण में विश्वास करते हैं, मानते हैं कि वह भगवान के लिए पोशाकें बनाते समय शुद्धता रखते हैं। वृंदावन के कारीगरों द्वारा बनाई गई पोशाकें अपनी सुंदरता, जटिल डिजाइन और कढ़ाई के लिए जानी जाती हैं। …………. ये भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते गोस्वामी गाने लगीं ‘बधाई गीत’:बोलीं- ठाकुरजी ने हमें अपने पास रखा, अब यूपी सरकार की ट्रस्ट पर रोक लगी वृंदावन के बांके बिहारी का माहौल अचानक बदल गया। जो गोस्वामी परिवार की महिलाएं कॉरिडोर प्रोजेक्ट के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं, वह ठाकुरजी की तरफ देखते हुए बधाई गीत गाने लगती हैं। माहौल भक्तिमय पहले से था, अब लोग भावुक नजर आने लगते हैं। जो भक्त मंदिर में पहुंच रहे थे, वह बदले हुए दृश्य का कारण जानने का प्रयास करने लगते हैं, महिलाएं हंसते हुए कहती हैं- जो हमारे ठाकुरजी को परेशान करना चाहते थे, उनकी हार हुई। ठाकुरजी ने हमें अपने पास रखा। जय हो बिहारीजी की। पढ़िए पूरी खबर…
मथुरा-वृंदावन में 200 से ज्यादा कारखाने ऐसे हैं, जिनमें लड्डू गोपाल की पोशाक तैयार की जाती है। पोशाक भी एक से बढ़कर एक। इनकी कई वैराइटी हैं, जोकि मौसम के हिसाब से तय होती हैं। अलग-अलग पोशाक बनाने वाले कारखानों के मालिकों से बात करके समझ आया कि बुटीक वाली और जरी जरदोजी वाली पोशाक सबसे ज्यादा लोग खरीद रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि लोग अब अपने लड्डू गोपाल को सजा संवारा हुआ देखना चाहते हैं। कारीगर खालिद कहते हैं- 16 अगस्त को घर-घर में श्रीकृष्ण जन्म लेंगे। हर कोई यही चाहता है कि उनके कान्हा जी अच्छे दिखें। अब लोग फैशन के हिसाब से पोशाक तय करते हैं, जो भी यहां आते हैं, वो यही चाहते हैं कि उनके घर में बैठे ठाकुरजी अच्छे दिखे। खूब सुंदर दिखे, इसके लिए वो कितने भी पैसे खर्च करते हैं, अब ये उनका भाव ही होता है, जो वह इतनी दूर पोशाक लेने आते हैं। व्यापारी बोले- 3 महीने से बना रहे, 14 घंटे लेबर काम कर रहे
अलग-अलग कारखानों में पोशाक के बारे में बातचीत करते हुए हम जवाहर अग्रवाल के कारखाना में पहुंचे। हमने पूछा- इस बार विदेश में कहां-कहां से ऑर्डर आए हैं? जवाहर कहते हैं- कृष्ण जन्माष्टमी पर विदेशों से ऑर्डर बढ़ जाते हैं। हमारे पास सबसे ज्यादा ऑर्डर कनाडा, रूस और स्पेन से आ रहे हैं। भारत में मध्य प्रदेश और राजस्थान से सबसे ज्यादा ऑर्डर आते हैं। कुछ इस्कॉन मंदिरों से भी ऑर्डर मिले हैं। कृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त को है, उससे 3 महीने पहले से हमारे पास पूरे भारत से ऑर्डर आने लगे थे। नार्मल दिनों में 8 घंटे की शिफ्ट में पोशाक बनाई जाती हैं, मगर इस वक्त ऑर्डर पूरे करने के लिए 14-14 घंटे मेहनत की जा रही है। मथुरा-वृंदावन में इस वक्त करीब 20 हजार से ज्यादा कारीगर इस काम को कर रहे हैं। कारोबारी बोले- लेबर महंगी होने का असर पड़ा
जवाहर अग्रवाल कहते हैं- लोगों का जुड़ाव वृंदावन से है, मगर यहां लेबर महंगी हो रही है। इसलिए पोशाक की कीमत बढ़ती जा रही है। मार्केट में पोशाक की वैल्यू बढ़ाई नहीं गई है, इससे हमारा मुनाफा अब पहले जैसा नहीं रहा है। धीरे-धीरे पोशाक बनाने का कारोबार कोलकाता शिफ़्ट हो रहा है, क्योंकि वहां लेबर सस्ती है। मगर इतना है कि अगर वहां पर पोशाक बना भी लेंगे, तो भी सप्लाई यही से करनी होगी, क्योंकि लोग पोशाक खरीदने कोलकाता नहीं जाएंगे। वृंदावन में 5 से 50 हजार तक की पोशाक मिल रही
इस कारखाना से निकलकर हमारी टीम एक और कारखाना पहुंची। यहां अनुज शर्मा से मुलाकात हुई। हमने पूछा- सबसे सस्ती पोशाक कितने की मिलेंगी? महंगी में कितनी रेंज बिकती है? अनुज कहते हैं- ठाकुरजी की पोशाक की कीमत तो भक्त का भाव तय करता है। वृंदावन में 5 रुपए से लेकर 50 हजार रुपए तक पोशाक मौजूद हैं। हमने पूछा- पोशाक की कीमतें कैसे तय होती हैं? अनुज ने कहा- देखिए, जो पोशाक मशीनों से बनती हैं, वह सस्ती होती हैं, लेकिन जो पोशाक अच्छे कपड़े पर जरी के काम वाली होती हैं, वह महंगी होती हैं। इन्हें तैयार करने में समय भी लगता है। 50 हजार वाली पोशाक की खास बात यह है कि इसको बनाने में करीब 48 घंटे लगते हैं। 2 कारीगर मिलकर 1 पोशाक बना पाते हैं। पोशाक कारीगर बोले- इन दिनों घर-घर बन रही पोशाक
अनुज कहते हैं- वृंदावन में पोशाक बनाने का काम वैसे तो पूरे साल चलता है, मगर सबसे ज्यादा कृष्ण जन्माष्टमी पर डिमांड बढ़ जाती है। आम दिनों में जहां कारीगर प्रतिदिन 8 घंटे काम करते हैं, वहीं जन्माष्टमी के लिए करीब एक महीने तक 12 से 14 घंटे तक मेहनत करते हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव की प्रशासन से लेकर ब्रजवासी तक तैयारी कर रहे हैं, यहां अधिकांश घरों में पोशाक बनाने का काम चल रहा है। 3 तरह से बनाई जाती हैं पोशाक
कान्हा जन्म के बाद नई और आकर्षक पोशाक धारण करें, इसके लिए कारखानों में कारीगर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। यहां कारीगर मशीन, बुटीक और जड़ी की पोशाक बना रहे हैं। वृंदावन में सबसे ज्यादा लड्डू गोपाल की पोशाक बनाई जाती हैं। इसके अलावा राधा कृष्ण और अन्य देवताओं की पोशाक बनती हैं। वृंदावन में बनी पोशाक से लोगों के भाव जुड़े
अब सवाल उठता है कि वृंदावन में बनी श्रीकृष्ण की पोशाकें, विशेष रूप से ठाकुर जी के लिए भक्त क्यों पसंद करते हैं? इसका जवाब यहां के लोग ही देते हैं। वह मानते हैं- यहां तैयार पोशाक पवित्र और शुभ मानी जाती है। दरअसल, वृंदावन को भगवान कृष्ण की लीलाभूमि माना जाता है, और यहां बनी पोशाकें भगवान के साथ एक आध्यात्मिक संबंध स्थापित करने का एक तरीका मानी जाती हैं। एक वजह यह भी है कि भक्त वृंदावन के कारीगरों की भक्ति और समर्पण में विश्वास करते हैं, मानते हैं कि वह भगवान के लिए पोशाकें बनाते समय शुद्धता रखते हैं। वृंदावन के कारीगरों द्वारा बनाई गई पोशाकें अपनी सुंदरता, जटिल डिजाइन और कढ़ाई के लिए जानी जाती हैं। …………. ये भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते गोस्वामी गाने लगीं ‘बधाई गीत’:बोलीं- ठाकुरजी ने हमें अपने पास रखा, अब यूपी सरकार की ट्रस्ट पर रोक लगी वृंदावन के बांके बिहारी का माहौल अचानक बदल गया। जो गोस्वामी परिवार की महिलाएं कॉरिडोर प्रोजेक्ट के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं, वह ठाकुरजी की तरफ देखते हुए बधाई गीत गाने लगती हैं। माहौल भक्तिमय पहले से था, अब लोग भावुक नजर आने लगते हैं। जो भक्त मंदिर में पहुंच रहे थे, वह बदले हुए दृश्य का कारण जानने का प्रयास करने लगते हैं, महिलाएं हंसते हुए कहती हैं- जो हमारे ठाकुरजी को परेशान करना चाहते थे, उनकी हार हुई। ठाकुरजी ने हमें अपने पास रखा। जय हो बिहारीजी की। पढ़िए पूरी खबर…