वक्फ बिल पारित होने के बाद मुस्लिमों के बीच भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के खिलाफ नाराजगी पहले से ज्यादा बढ़ गई है। इस बीच, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने खुद को औरंगजेब का वंशज नहीं मानने वालों का संघ में स्वागत वाली बात कहकर बड़ा ऑफर दिया है। एक ओर संघ इंडी गठबंधन के पीडीए के जवाब में हिंदुत्व, सनातन और राष्ट्रवाद के नाम पर हिंदुओं की एकजुटता पर ताकत लगा रहा है। दूसरी ओर मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश भी तेज कर रहा है। संघ की रणनीति क्या है? संघ प्रमुख के औरंगजेब वाले बयान से भाजपा को कितना फायदा मिलेगा? पढ़िए पूरी रिपोर्ट पहले जानिए संघ प्रमुख भागवत ने जो कुछ कहा पहला बयान- औरंगजेब को आदर्श न मानने वाले भारतीयों का संघ में स्वागत है। शाखा में शामिल होने वाले सभी लोग भारत माता की जय बोलें, भगवा ध्वज का सम्मान करें। भारतीयों का रहन-सहन, पूजा पद्धति अलग हो सकती है, लेकिन संस्कृति एक है। दूसरा बयान- श्मशान, मंदिर और पानी, सभी हिंदुओं के लिए एक होना चाहिए। इसी लक्ष्य के साथ संघ काम कर रहा है। हिंदू समाज के सभी पंथ, जाति, समुदाय साथ आएं। यही संघ की परिकल्पना है। संघ का मतलब सबकी मदद करना और युवा शक्ति को सही दिशा देना है। 4 दिन यूपी में रहे मोहन भागवत
संघ प्रमुख मोहन भागवत 4 दिन के प्रवास पर यूपी आए। इसी दौरान उन्होंने ये दोनों बयान दिए। वाराणसी में संघ की शाखाओं में शामिल होने के साथ संघ के पदाधिकारियों के साथ बैठक भी की। इसमें यूपी में विपक्ष की ओर से जाति के आधार पर पिछड़ों-दलितों को तोड़ने की रणनीति के खिलाफ उन्हें हिंदुत्व के नाम पर एकजुट करने की योजना की समीक्षा हुई। रामनवमी पर भी संघ की ओर से दलित बस्तियों में कन्या पूजन के साथ सामाजिक समरसता भोज के आयोजन भी किए गए। सपा ने ट्रैक बदला, नुकसान भाजपा को हुआ
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि समाजवाद में दो ही धाराएं हैं, अमीर और गरीब। समाजवादी नेता और चिंतक गरीबों के हक में उन्हें समान अधिकार देने की बात करते थे। लेकिन, लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने पहली बार समाजवाद को छोड़कर जाति का दांव चला। पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का कार्ड चला। सपा का यह कार्ड सफल हुआ और यूपी में भाजपा की सीटें 64 से घटकर 34 रह गईं। इसके बाद ही आरएसएस और भाजपा की चिंता बढ़ी। दोनों ने एक ओर पिछड़ों और दलित हिंदुओं को जाति के नाम पर बिखरने से रोकने की रणनीति के तहत कार्यक्रम तय किए। दूसरी ओर, मुस्लिम ध्रुवीकरण से विपक्षी दलों को हो रहे फायदे में भी सेंध लगाने की रणनीति बनाई। संघ और भाजपा का यह है प्लान
1- राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, पसमांदा के बाद अब पिछड़े और गरीब मुसलमान भाजपा के एजेंडे में हैं। ईद से पहले इस वर्ग को मोदी की सौगात बांटी गई। यही वर्ग मोदी सरकार की ज्यादातर योजनाओं का लाभार्थी भी है। वक्फ बिल के बाद भाजपा और संघ यह संदेश भी देना चाहते हैं कि यह बिल गरीब और कमजोर मुस्लिमों के पक्ष में है। अगर इन प्रयासों से भाजपा को दो-तीन फीसदी भी मुस्लिम वोट मिलता है, तो उसके लिए फायदेमंद और विपक्ष के लिए नुकसानदायक रहेगा। वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय का कहना है- संघ प्रमुख ने साफ कर दिया है कि कट्टरपंथी मुसलमानों को छोड़कर संघ सभी को साथ लेकर चलने को तैयार है। वक्फ बिल पास होने से बढ़ी तनातनी के बीच संघ ने गरीब, पिछड़े और वंचित मुसलमानों को साधने की कोशिश तेज की है। 2- हिंदुत्व के नाम पर दलितों और पिछड़ों को एकजुट करने की शुरुआत यूपी में गोरक्ष पीठ के पूर्व महंत अवैद्यनाथ ने की थी। उन्होंने दलितों के साथ समरसता भोज के आयोजन किए। उसी प्रयोग को भाजपा ने 2014 से अपनाया। भाजपा के नेताओं ने भी दलित और पिछड़े वर्ग के कार्यकर्ताओं के घर पर भोजन की शुरुआत की। इसका 2 चुनावों में भाजपा को जबरदस्त फायदा मिला था। अब संघ और भाजपा इसी पर फिर से काम करने में जुटे हैं। 3- आरएसएस की ओर से अहिल्याबाई होल्कर की 300वां जयंती वर्ष मनाया जा रहा है। अनुसूचित जाति के महापुरुषों को समाज का प्रेरणास्रोत बताकर उनकी जाति से जुड़े लोगों को साधने की कोशिश की जा रही है। संघ खासतौर पर दलित युवाओं को साधने के लिए अनुसूचित जाति के छात्रावासों में विचार गोष्ठी पर जोर दे रहा है। संघ के सामाजिक समरसता विभाग ने अंबेडकर जयंती के लिए भी गांव-गांव में कार्यक्रम की योजना बनाई है। बड़ा सवाल- क्या मुस्लिम भाजपा की तरफ आएंगे
वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्रनाथ भट्ट कहते हैं- 1920 में प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की के खलीफा को अंग्रेजों ने हरा दिया था। महात्मा गांधी ने मुसलमानों के पक्ष में खिलाफत आंदोलन चलाया। फिर भी पाकिस्तान अलग देश बना। उसके बाद से कांग्रेस राज में मुस्लिम तुष्टीकरण के लगातार प्रयास हुए हैं। लेकिन, तमाम प्रयास के बाद भी मुस्लिमों का दिल नहीं जीत सके। आज भी मदरसों में औरंगजेब के समय तैयार फतवा-ए-आलमगिरी पढ़ाया जाता है। औरंगजेब भारत में इस्लाम की बैकबोन है। अगर मोहन भागवत को लगता है कि इस तरह के बयान से मुसलमान राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल हो जाएगा, तो यह गलतफहमी है। हिंदुत्व के नाम पर भी संघ को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। ———————— यह खबर भी पढ़ें… जातियों की एकजुटता संघ के लिए क्यों जरूरी?, श्मशान, मंदिर और पानी सब हिंदुओं के लिए एक हो, भागवत को यह क्यों कहना पड़ा घ का जातियों को एकजुट करने के पीछे क्या मकसद है, पहले कब-कब ऐसी कोशिश की, क्यों भाजपा के लिए यह जरूरी है, इन सभी सवालों के जवाब भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए-
संघ प्रमुख मोहन भागवत 4 दिन के प्रवास पर यूपी आए। इसी दौरान उन्होंने ये दोनों बयान दिए। वाराणसी में संघ की शाखाओं में शामिल होने के साथ संघ के पदाधिकारियों के साथ बैठक भी की। इसमें यूपी में विपक्ष की ओर से जाति के आधार पर पिछड़ों-दलितों को तोड़ने की रणनीति के खिलाफ उन्हें हिंदुत्व के नाम पर एकजुट करने की योजना की समीक्षा हुई। रामनवमी पर भी संघ की ओर से दलित बस्तियों में कन्या पूजन के साथ सामाजिक समरसता भोज के आयोजन भी किए गए। सपा ने ट्रैक बदला, नुकसान भाजपा को हुआ
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि समाजवाद में दो ही धाराएं हैं, अमीर और गरीब। समाजवादी नेता और चिंतक गरीबों के हक में उन्हें समान अधिकार देने की बात करते थे। लेकिन, लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने पहली बार समाजवाद को छोड़कर जाति का दांव चला। पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का कार्ड चला। सपा का यह कार्ड सफल हुआ और यूपी में भाजपा की सीटें 64 से घटकर 34 रह गईं। इसके बाद ही आरएसएस और भाजपा की चिंता बढ़ी। दोनों ने एक ओर पिछड़ों और दलित हिंदुओं को जाति के नाम पर बिखरने से रोकने की रणनीति के तहत कार्यक्रम तय किए। दूसरी ओर, मुस्लिम ध्रुवीकरण से विपक्षी दलों को हो रहे फायदे में भी सेंध लगाने की रणनीति बनाई। संघ और भाजपा का यह है प्लान
1- राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, पसमांदा के बाद अब पिछड़े और गरीब मुसलमान भाजपा के एजेंडे में हैं। ईद से पहले इस वर्ग को मोदी की सौगात बांटी गई। यही वर्ग मोदी सरकार की ज्यादातर योजनाओं का लाभार्थी भी है। वक्फ बिल के बाद भाजपा और संघ यह संदेश भी देना चाहते हैं कि यह बिल गरीब और कमजोर मुस्लिमों के पक्ष में है। अगर इन प्रयासों से भाजपा को दो-तीन फीसदी भी मुस्लिम वोट मिलता है, तो उसके लिए फायदेमंद और विपक्ष के लिए नुकसानदायक रहेगा। वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय का कहना है- संघ प्रमुख ने साफ कर दिया है कि कट्टरपंथी मुसलमानों को छोड़कर संघ सभी को साथ लेकर चलने को तैयार है। वक्फ बिल पास होने से बढ़ी तनातनी के बीच संघ ने गरीब, पिछड़े और वंचित मुसलमानों को साधने की कोशिश तेज की है। 2- हिंदुत्व के नाम पर दलितों और पिछड़ों को एकजुट करने की शुरुआत यूपी में गोरक्ष पीठ के पूर्व महंत अवैद्यनाथ ने की थी। उन्होंने दलितों के साथ समरसता भोज के आयोजन किए। उसी प्रयोग को भाजपा ने 2014 से अपनाया। भाजपा के नेताओं ने भी दलित और पिछड़े वर्ग के कार्यकर्ताओं के घर पर भोजन की शुरुआत की। इसका 2 चुनावों में भाजपा को जबरदस्त फायदा मिला था। अब संघ और भाजपा इसी पर फिर से काम करने में जुटे हैं। 3- आरएसएस की ओर से अहिल्याबाई होल्कर की 300वां जयंती वर्ष मनाया जा रहा है। अनुसूचित जाति के महापुरुषों को समाज का प्रेरणास्रोत बताकर उनकी जाति से जुड़े लोगों को साधने की कोशिश की जा रही है। संघ खासतौर पर दलित युवाओं को साधने के लिए अनुसूचित जाति के छात्रावासों में विचार गोष्ठी पर जोर दे रहा है। संघ के सामाजिक समरसता विभाग ने अंबेडकर जयंती के लिए भी गांव-गांव में कार्यक्रम की योजना बनाई है। बड़ा सवाल- क्या मुस्लिम भाजपा की तरफ आएंगे
वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्रनाथ भट्ट कहते हैं- 1920 में प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की के खलीफा को अंग्रेजों ने हरा दिया था। महात्मा गांधी ने मुसलमानों के पक्ष में खिलाफत आंदोलन चलाया। फिर भी पाकिस्तान अलग देश बना। उसके बाद से कांग्रेस राज में मुस्लिम तुष्टीकरण के लगातार प्रयास हुए हैं। लेकिन, तमाम प्रयास के बाद भी मुस्लिमों का दिल नहीं जीत सके। आज भी मदरसों में औरंगजेब के समय तैयार फतवा-ए-आलमगिरी पढ़ाया जाता है। औरंगजेब भारत में इस्लाम की बैकबोन है। अगर मोहन भागवत को लगता है कि इस तरह के बयान से मुसलमान राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल हो जाएगा, तो यह गलतफहमी है। हिंदुत्व के नाम पर भी संघ को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। ———————— यह खबर भी पढ़ें… जातियों की एकजुटता संघ के लिए क्यों जरूरी?, श्मशान, मंदिर और पानी सब हिंदुओं के लिए एक हो, भागवत को यह क्यों कहना पड़ा घ का जातियों को एकजुट करने के पीछे क्या मकसद है, पहले कब-कब ऐसी कोशिश की, क्यों भाजपा के लिए यह जरूरी है, इन सभी सवालों के जवाब भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए-