योगी अंदर से बेहद सरल, सुदामा प्रसंग सुन रोने लगे:गोरक्ष मठ में कथा कहने वाले जगदगुरु रामदिनेशाचार्य बोले- वे सबसे पहले साधु हैं

गोरक्ष पीठ मे 7 दिवसीय भागवत कथा के व्यास रहे जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य का कहना है कि योगी जी सबसे पहले एक साधु हैं। एक साधु के जितने आयाम होते हैं वह उनमें घटित होते हैं। मेरा यह व्यक्तिगत अनुभव है कि ऊपर से जितने कड़क दिखते हैं, अंदर से वे पूरी तरह सहज और सरल हैं। उन्होंने कहा- मैं गोरक्ष पीठ में जब सुदामा चरित की कथा कह रहा था, तो मैंने देखा कि योगी जी की आंखों में आंसू छलकने लगे। साधु एक हृदय होता है। साधु एक विचार है, साधु एक जीवन शैली है। तीनों का समन्वय उनमें दिखाई देता है। अपनी परंपरा,आचार्यों और अपनी संस्कृति के प्रति जिस प्रकार से उनके मन में भाव है। उसमें किसी प्रकार की कोई कमी वे नहीं छोड़ते हैं। लगभग 52 सालों से चली आ रही महंत दिग्विजय नाथ और महंत अवेद्यनाथ से अब तक गोरक्ष पीठ की जो परंपरा है उसको वे बहुत ही बेहतर ढंग से निभा रहे हैं। जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री होने के साथ-साध एक साधक और मठ के महंत होने की जो व्यवस्था है उनमें समन्वय बनाकर राजनीति में शुचिता की स्थापना कर रहे हैं।अध्यात्म की भी स्थापना बहुत बेहतर ढंग से कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अयोध्या और यहां के लोगों से उनका अत्यन्त प्रेम हैं।राम मंदिर आंदोलन से जुड़े एक-एक व्यक्ति और उसके योगदान को जानते हैं।उन्होंने राम मंदिर आंदोलन को अपनी आंखों से देखा है।इससे जुड़े लोगों के प्रति उनके मन में बहुत आदर हैं। महंत अवेद्यनाथ महाराज और परमहंस रामचंद्र दास महाराज के साथ जब मंदिर आंदोलन खड़ा करने की बात होती रही तो उस काल से लेकर अब जिसने जो योगदान दिया वह उन्हें अच्छी तरह याद है।गोरखपुर और अयोध्या की जिस परंपरा की स्थापना महंत अवेद्यनाथ महाराज ने किया उसे वह आगे बढ़ा रहे हैं। दो दिन पूर्व जब वे अयोध्या आकर हरिधाम पीठ में आए और जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी हर्याचार्य महाराज को श्रद्धांजलि दी।इस अवसर पर उन्होंने कहा कि स्वामी हर्याचार्य बेहद विद्वान और धर्म के प्रति समर्पित रहे। शास्त्रों की अवज्ञा होने पर वे तुरंत उनका विरोध कर सही समाधान प्रस्तुत करते रहे।