बारिश में लखनऊ के प्राथमिक विद्यालयों का बुरा हाल हो गया है। स्कूलों की छतें टपक रही हैं। प्लास्टर झड़ रहे हैं। बड़े-बड़े घास उग आए हैं। कूड़े-कचरे का ढेर लगा है। स्कूलों में सांप और अन्य जहरीले जीव-जंतु निकलते हैं। पानी भर जाता है। इससे पढ़ाई प्रभावित हो रही है। बच्चों और शिक्षकों के बीमार होने का खतरा बना है। दैनिक भास्कर टीम ने आशियाना के प्राथमिक विद्यालय भिलावां और मानसरोवर योजना के प्राथमिक विद्यालय मिर्जापुर की पड़ताल की, तो यह सच्चाई सामने आई। बच्चों ने कहा कि डर के साये में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। अभिभावकों ने भी चिंता जाहिर की। अधिकारी इस पर ध्यान नहीं देने का आरोप लगाया। स्कूलों के शिक्षकों ने इन समस्याओं को स्वीकार तो किया, लेकिन कैमरे पर बोलने से मना दिया। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पहले देखिए स्कूलों की बदहाली की 3 तस्वीरें… पहले पढ़िए प्राथमिक विद्यालय भिलावां के बारे में… गंदगी से बीमार रहते बच्चे प्राथमिक विद्यालय भिलावां के पास में नगर निगम का कूड़ा घर बना है। इससे स्कूल के पास गंदगी फैली रहती है। तीसरी क्लास में पढ़ने वाले अली कहते हैं कि गंदगी से खूब बदबू आती हैं। बड़ी संख्या में बच्चे इसके चलते बीमार भी हो जाते हैं। हम लोग के स्कूल के पास लोग खूब कूड़ा फैलाते हैं। हमेशा गंदगी रहती है, लेकिन इस बार सफाई को लेकर काम करना जरूरी है। मच्छरों का प्रकोप बहुत रहता है छात्रा अनन्या वर्मा कहती हैं कि बगल के कूड़े घर से बहुत मच्छर आते हैं। बहुत बदबू आती है। जिसके चलते बहुत हम लोग बीमार भी हो जाते है। बगल में रहने वाले बहुत लोग भी बीमार रहते हैं। लंच करते समय बहुत परेशानी होती है छात्रा रूमाना कहती हैं कि इधर गंदगी बहुत है, जिससे मक्खी बहुत आती है। लंच करते समय बहुत परेशानी होती है। बारिश के दौरान हालात और बिगड़ जाते हैं। रात तक लोग कूड़ा फेंककर जाते है। गंदगी से रहना मुश्किल, पढ़ाई पर भी असर स्कूल के बगल रहने वाले जय कहते हैं कि यहां सबसे बड़ी समस्या कूड़े के ढेर को लेकर है। एक तरफ तो बच्चों के का स्कूल चलता है, वहीं दूसरी तरफ गंदगी की भरमार है। इतनी ज्यादा गंदगी है कि सहन नहीं होता है। बड़े लोगों को ही इतनी ज्यादा परेशानी होती है तो मासूम बच्चों का क्या हाल होगा, ये आसानी से समझा जा सकता है। बहुत बार इसको लेकर शिकायत की गई पर कोई सुनवाई नहीं हुई। गंदगी के चलते बड़ी संख्या में बच्चे बीमार भी रहते हैं। डेंगू और मलेरिया का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। कोई सुनने वाला नहीं है। ठीक सामने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की दीवार है। जब यहां कोई आता है तो सिर्फ कुछ दूर तक सफाई हो जाती है। स्कूल के नजदीक कूड़ा डालना ठीक नहीं है लखनऊ के लोकबंधु अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.राजीव दीक्षित कहते हैं कि स्कूल के नजदीक गार्बेज डंपिंग ग्राउंड कतई नहीं होना चाहिए। वैसे भी ये रिहायशी इलाका है। यहां अलर्टनेस ज्यादा जरूरी है। स्कूल परिसर के अलावा अगल-बगल के इलाकों की साफ-सफाई भी बेहद जरूरी है। रूटीन हेल्थ चेकअप भी जरूरी डॉ. राजीव कहते है कि ये समझना पड़ेगा, कि आज कल के दौर के बच्चे बेहद नाजुक है। उन पर इन्फेक्शन का असर भी ज्यादा दिनों तक रहता है और कई दिनों तक उन्हें इलाज भी कराना पड़ता है। ऐसे में यदि स्कूल से जुड़े परिसर को ही कूड़े का घर बना दिया जाएगा, तो उनके बीमार होने के चांस ज्यादा होंगे। उनकी पढ़ाई पर भी असर पड़ेगा। ऐसे में जरूरी कदम बिना देर किए उठाए जाने चाहिए। स्कूल में रेगुलर हेल्थ कैम्प या बच्चों का रूटीन हेल्थ चेकअप भी बेहद जरूरी है। अब जानिए मानसरोवर योजना के प्राथमिक विद्यालय मिर्जापुर का हाल… 4-5 फीट नीचे बना है स्कूल डोम शेप स्ट्रक्चर में बने इस परिषदीय स्कूल की बनावट कुछ ऐसी है कि ये बेसमेंट में नजर आता है। कॉलोनी की रोड और नालियों से करीब 4 से 5 फीट नीचे है। ऐसे में बारिश के दौरान पूरी कॉलोनी का पानी और वेस्ट वाटर गंदगी के साथ स्कूल परिसर के अंदर आ जाता है। इस स्कूल के आसपास हालत इस कदर बिगड़े हैं कि दिन में बारिश शुरू होते ही सभी बच्चों को वापस घर भेज दिया जाता है। 5वीं में पढ़ने वाले साक्षी कहती हैं कि बारिश के दौरान यहां बहुत परेशानी होती है। बहुत ज्यादा पानी भर जाता है। सांप भी निकलते हैं। बहुत कीड़े निकलते हैं। स्कूल से निकलते समय पूरी तरह से भीग जाते हैं। कमर तक भर जाता है पानी 5वीं की अनन्या कहती हैं कि कमर तक पानी भर जाता है। कुर्सी रखकर बाहर निकलते हैं। छत में सीलन आ गई। वहां से भी पानी टपकता है। कई बार प्लास्टर भी टूट कर गिरता है। छत भी टपकती है, पानी भर जाता है छात्रा रश्मि कहती हैं कि स्कूल में अक्सर पानी भर जाता है। कीड़े बहुत आते हैं। छत भी टपकती है। बारिश के सीजन में पढ़ाई से पहले साफ-सफाई करनी पड़ती है। ईंट रखकर ही बाहर निकल पाते हैं। अंश कहते हैं कि पानी बरसने के बाद घर लौटना बहुत मुश्किल हो जाता है। यहां तक कि रोड का पूरा पानी स्कूल में आ जाता है। छत से पत्थर जैसा कुछ गिरा करता है। कई दिनों तक पढ़ाई भी प्रभावित रहती है। पुराना भवन हो चुका है जर्जर स्कूल की शिक्षिका कहती हैं कि बच्चों को सुरक्षित रखना भी इस परिसर में चैलेंज है। लगभग सभी कमरों में सीलन है। स्कूल भवन का निर्माण पुराना है। जर्जर भवन होने के कारण बारिश और सीलन से छत भी टपकती है। यही कारण है कि 2 क्लास रूम को पूरी तरह बंद रखा गया है। करीब 60 बच्चे इस स्कूल में नामांकित हैं। बच्चों पर जहरीले जीव जंतुओं का भी खतरा रहता है। सुरक्षा को लेकर मन आशंकित रहता है। गंदगी के चलते यहां रुकना बहुत मुश्किल रहता है। पर इस माहौल में भी बच्चों को अच्छी पढ़ाई कराने का पूरा प्रयास किया जाता है। पोते का नाम कटाकर प्राइवेट स्कूल में एडमिशन कराया मिर्जापुर गांव की निवासी बुजुर्ग महिला जनक दुलारी कहती हैं कि पहले मेरा पोता इसी स्कूल में पढ़ता था। स्कूल में पानी भर जाता था। स्कूल परिसर में इतनी गंदगी रहती है कि बच्चों को पढ़ाई में बहुत परेशानी होती है। यही कारण रहा कि इस बार अपने पोते को इस स्कूल से निकाल कर दूसरे प्राइवेट स्कूल में डाल दिया। बुजुर्ग महिला दावा करती है कि स्कूल परिसर ठीक हो जाए तो आसपास के घरों के कई बच्चे यहां एडमिशन लेंगे। उनकी पढ़ाई बिना किसी बाधा के हो सकेगी। कई बार इसको लेकर शिकायत की गई पर कोई सुनवाई नहीं होती जिम्मेदारों को इस दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए। स्कूलों और शिक्षकों की समस्या का हल निकालना जरूरी बेसिक शिक्षा विभाग की महिला शिक्षक संघ की अध्यक्ष सुलोचना मौर्या कहती हैं कि महिला शिक्षक स्कूल परिसर में कई समस्याओं से जूझती हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। ऐसे शिक्षकों की परेशानियों का हल निकालना बेहद जरूरी है। इन शिक्षकों पर अपनी सुरक्षा के अलावा सभी बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी रहती है। इस लिहाज से वरीयता पर इन स्कूलों को लेकर पहल करने की जरूरत है। ये समझना होगा कि जब राजधानी लखनऊ में ऐसे हालात हैं, तो दूर दराज के जिलों में कैसे हालात होंगे? वहां की समस्याओं की कौन सुनवाई करता होगा?