समोसा खाना हो, तो कानपुर चले आइए…भाई, यहां तीखी हरी, गुड़ की मीठी चटनी के साथ जो समोसा मिलता है। उसका टेस्ट अल्टीमेट है। फिर बात अगर मुन्ना समोसा की हो, तो क्या ही कहने। जी हां… मुन्ना समोसा को देखते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। बाहर से कानपुर आने वाले लोग मुन्ना समोसा की दुकान का पता जरूर पूछते हैं। वजह- यहां मिलने वाले पांच तरह के समोसे हैं। बात क्वालिटी की करें, तो दुकान वाले भैया कोई समझौता नहीं करते। इसकी निशानी है- वो चमचमाती हुई सफेद कढ़ाई, जिसमें समोसे तले जाते हैं। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज जायका में आज जानते हैं कानपुर के मुन्ना समोसे का फेमस जायका… मुन्ना समोसे की खुशबू लोगों को अपनी ओर खींच लाती है। कानपुर सेंट्रल से 7 किमी दूर है पड़ता है नेहरू नगर। बस, यहां पहुंचते ही किसी से भी पूछ लीजिए। आप खुद दुकान तक पहुंच जाएंगे। दुकान पर हर 20 मिनट में गरमागरम समोसे छनकर निकलते हैं। यहां आलू के समोसे की सेल सबसे ज्यादा है। इसके अलावा पनीर-कॉर्न, पिज्जा-चीज, चीज-कॉर्न और मलाई-पनीर समोसा भी डिमांड में रहता है। इनका स्वाद एक बार अगर जुबान को लग जाए, तो फिर यह आपको बार-बार यहां खींच लाएगा। 54 साल पुराना जायका, तीसरी पीढ़ी संभाल रही दुकान दुकान के मालिक अर्पित गुप्ता बताते हैं- यह दुकान 54 साल पुरानी है। हमारे नाना मुन्ना गुप्ता ने इस दुकान की नींव रखी थी। पहले इसका कोई नाम नहीं था, लेकिन बाद में लोगों की जुबान पर जब समोसे का स्वाद चढ़ा, तो लोग खुद ही बोलने लगे- मुन्ना समोसा खाना है। बस ऐसे ही इस दुकान का नाम मुन्ना समोसा पड़ गया। अर्पित गुप्ता बताते हैं- नाना जी के बाद हमारे पिताजी स्व. राजेंद्र कुमार गुप्ता इस दुकान को देखने लगे। अब हम लोग परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं, जो दुकान चला रहे हैं। मुझे खुद 22 साल हो गए। अब कारीगर बढ़ाए हैं। समोसे में नए प्रयोग किए गए और अब नया जायका परोसा जा रहा है। लोगों को यह खूब पसंद भी आ रहा है। हमारी दुकान पर समोसे के अलावा, ब्रेड-पकौड़ा, मिर्च-पकौड़ा, गुझिया और रसगुल्ले भी मिलते हैं। बाकी समोसे के साथ-साथ चाय की भी खासा डिमांड रहती है। तो ग्राहकों के लिए चाय सर्विस भी उपलब्ध है। 5 प्रकार के समोसे बनाने का आइडिया कैसे आया? अर्पित गुप्ता बताते हैं- 2019 में जब कोविड आया, तो उस दौरान मैंने यूट्यूब पर देखा कि आलू और पनीर के अलावा भी कई तरह के समोसे बनाए जा सकते हैं। इसके बाद हमने दुकान पर ही अपने कुछ खास ग्राहकों के लिए इन्हें बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे यह समोसा हर किसी को पसंद आने लगा। एक बार जो खाता है ,वह दोबारा यहां समोसा जरूर लेने के लिए आता है। सबसे पहले चीज-कॉर्न समोसा बनाना शुरू किया। फिर इसके बाद धीरे-धीरे पनीर मलाई, चीज पिज्जा और पनीर-कॉर्न समोसा की भी शुरुआत की। दुकान पर पहुंच चुके कई सेलिब्रिटी अर्पित ने बताया कि हमारी दुकाने के समोसे खाने के लिए द ग्रेट खली, कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव, भोजपुरी अभिनेता व सांसद रवि किशन भी हमारी दुकान में आ चुके हैं। दाम की बात करें तो यहां आलू का समोसा 10 रुपए प्रति पीस हैं। जबकि, अन्य चार तरह के समोसों की कीमत 20 रुपए प्रति पीस है। 9 स्टेप में तैयार होता है समोसा एक नजर समोसों के इतिहास पर भी डाल लीजिए कस्टमर रिव्यू… …………….. पढ़िए हर गुरुवार पब्लिश होने वाली हमारी ‘जायका’ सीरीज की ये 4 कहानियां… 1.ठग्गू के लड्डू…ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं: 55 साल पुराना कनपुरिया जायका; स्वाद ऐसा कि पीएम मोदी भी मुरीद, सालाना टर्नओवर 5 करोड़ रुपए गंगा नदी के किनारे बसा कानपुर, स्वाद की दुनिया में भी खास पहचान रखता है। यहां का एक जायका 55 साल पुराना है। इसकी क्वालिटी और स्वाद आज भी वैसे ही बरकरार है। यूं तो आपने देश के कई शहरों में लड्डुओं का स्वाद चखा होगा। लेकिन गाय के शुद्ध खोए, सूजी और गोंद में तैयार होने वाले ठग्गू के लजीज लड्डुओं का स्वाद आप शायद ही भूल पाएंगे। पीएम मोदी जब कानपुर मेट्रो का उद्घाटन करने आए थे, तब उन्होंने मंच से इस लड्डू की तारीफ की थी। पढ़िए पूरी खबर… 2. बाजपेयी कचौड़ी…अटल बिहारी से राजनाथ तक स्वाद के दीवाने: खाने के लिए 20 मिनट तक लाइन में लगना पड़ता है, रोजाना 1000 प्लेट से ज्यादा की सेल बात उस कचौड़ी की, जिसकी तारीफ यूपी विधानसभा में होती है। अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव भी इसके स्वाद के मुरीद रह चुके हैं। दुकान छोटी है, पर स्वाद ऐसा कि इसे खाने के लिए लोग 15 मिनट तक खुशी-खुशी लाइन में लगे रहते हैं। जी हां…सही पहचाना आपने। हम बात कर रहे हैं लखनऊ की बाजपेयी कचौड़ी की। पढ़िए पूरी खबर… 3. ओस की बूंदों से बनने वाली मिठाई: रात 2:30 बजे मक्खन-दूध को मथकर तैयार होती है, अटल से लेकर कल्याण तक आते थे खाने नवाबी ठाठ वाले लखनऊ ने बदलाव के कई दौर देखे हैं, पर 200 साल से भी पुराना एक स्वाद है जो आज भी बरकरार है। लखनऊ की रियासत के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह भी इसके मुरीद थे। अवध क्षेत्र का तख्त कहे जाने वाले लखनऊ के चौक पर आज भी 50 से ज्यादा दुकानें मौजूद हैं, जहां बनती है रूई से भी हल्की मिठाई। दिल्ली वाले इसे ‘दौलत की चाट’ कहते हैं। ठेठ बनारसिया इसे ‘मलइयो’ नाम से पुकारते हैं। आगरा में ‘16 मजे’ और लखनऊ में आकर ये ‘मक्खन-मलाई’ बन जाती है। पढ़िए पूरी खबर… 4. रत्तीलाल के खस्ते के दीवाने अमेरिका में भी: 1937 में 1 रुपए में बिकते थे 64 खस्ते, 4 पीस खाने पर भी हाजमा खराब नहीं होता मसालेदार लाल आलू और मटर के साथ गरमा-गरम खस्ता, साथ में नींबू, लच्छेदार प्याज और हरी मिर्च। महक ऐसी कि मुंह में पानी आ जाए। ये जायका है 85 साल पुराने लखनऊ के रत्तीलाल खस्ते का। 1937 में एक डलिये से बिकना शुरू हुए इन खस्तों का स्वाद आज ऑस्ट्रेलिया,अमेरिका और यूरोप तक पहुंच चुका है। पढ़िए पूरी खबर…